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मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

मनहरण (कवित्त/घनाक्षरी) छंद: भारती की आरती --संजीव 'सलिल'

मनहरण (कवित्त/घनाक्षरी) छंद

संजीव 'सलिल'

भारती की आरती उतारिये 'सलिल' नित, सकल जगत को सतत सिखलाइये.
जनवाणी हिंदी को बनायें जगवाणी हम, भूत अंगरेजी का न शीश पे चढ़ाइये.
बैर ना विरोध किसी बोली से तनिक रखें, पढ़िए हरेक भाषा, मन में बसाइये.
शब्द-ब्रम्ह की सरस साधना करें सफल, छंद गान कर रस-खान बन जाइए.

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