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शनिवार, 18 मई 2013

doha taj laj paryay hai acharya sanjiv verma 'salil'




दोहा सलिल:
ताज लाज-पर्याय है…





संजीव
*
ताज लाज-पर्याय है, देखे दोहा मौन.
दर्दनाक सच सिसकता, धीर धराये कौन?
*
मंदिर था मकबरा है, ताज महल है नाम.
बलिहारी है समय की, कहें सुबह को शाम।।
*
संगमरमरी शान का, जीवित दस्तावेज।
हृदयहीनता छिपी है, यहाँ सनसनीखेज।।
*
तहखाने में बंद हैं, शिव कब हो उद्धार।
कब्रों का पाखंड है, शमशानी श्रृंगार।।
*
बूँद-बूँद जल टपकता, शिव गुम नीचे कब्र।
कब तक करना पडेगा, पाषणों को सब्र।।
*
चिन्ह मांगलिक सुशोभित, कई कमल-ओंकार।
नाम मकबरे का महल, कहीं न जग में यार।।
*
जितने बरस विवाह के, उतनी हों संतान।
तन सह पाए किस तरह, असमय निकली जान।।
*
बच्चे जनने की बनी, बीबी सिर्फ मशीन।
खेल वासना का हुआ, नाम प्यार की बीन।।
*
कैद बाप को कर हुए, जो सुत सत्तासीन।
दें दुहाई वे प्यार की, पद-मद में जो लीन।।
*
प्रथम जोड़ सम्बन्ध फिर, मान लिया आधीन।
छीन महल अपमान कर, तड़पाया कर दीन।।
*
कब तक पढ़ सुन कहेंगे, हम झूठा इतिहास?
पूछें पत्थर ताज के, हो गमगीन-उदास।।
*
मुक्तक
मुहब्बत है किसे कितनी, नहीं पत्थर बताएँगे?
नहीं दिल पास जिनके, कैसे दिल के गीत गायेंगे?
प्यार के नाम पर जनता के धन के फूंकनेवाले-
गरीबों की मुहब्बत को, न क्यों नीचा दिखायेंगे?
*
दोष होता न समरथ का, न मानेंगे कभी यारों,
सचाई सामने लाना है लो संकल्प यह सारों।
करो मत स्वार्थ, सत्ता या सियासत की अधिक चिंता-
न सच से आँख मूंदो, निडर हो सच ही कहो प्यारों।।
*
salil.sanjiv@gmail.com
divyanarmada.blogspot.in

रविवार, 24 जुलाई 2011

ताज महल नहीं तेजोमहल, मकबरा नहीं शिवमन्दिर ।।

ताज महल नहीं तेजोमहल, मकबरा नहीं शिवमन्दिर ।।



बी.बी.सी. कहता है........... ताजमहल...........
एक छुपा हुआ सत्य..........
कभी मत कहो कि.........
यह एक मकबरा है..........

प्रो.पी. एन. ओक. को छोड़ कर किसी ने कभी भी इस कथन को चुनौती नही दी कि........


"ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था"



प्रो.ओक. अपनी पुस्तक "TAJ MAHAL - THE TRUE STORY" द्वारा इस


बात में विश्वास रखते हैं कि,--


सारा विश्व इस धोखे में है कि खूबसूरत इमारत ताजमहल को मुग़ल बादशाह

शाहजहाँ ने बनवाया था.....

ओक कहते हैं कि......


ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर,एक हिंदू प्राचीन शिव

मन्दिर है जिसे तब तेजो महालय कहा जाता था.

अपने अनुसंधान के दौरान ओक ने खोजा कि इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर

के महाराज जयसिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था और इस पर अपना कब्ज़ा कर
लिया था,,

=> शाहजहाँ के दरबारी लेखक "मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी "ने अपने

"बादशाहनामा" में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत 1000  से ज़्यादा
पृष्ठों मे लिखा है,,जिसके खंड एक के पृष्ठ 402 और 403 पर इस बात का
उल्लेख है कि, शाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी जिसे मृत्यु के बाद,
बुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था और इसके ०६
माह बाद,तारीख़ 15 ज़मदी-उल- अउवल दिन शुक्रवार,को अकबराबाद आगरा लाया
गया फ़िर उसे महाराजा जयसिंह से लिए गए,आगरा में स्थित एक असाधारण रूप से
सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) मे पुनः दफनाया गया,लाहौरी के
अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों कि इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे
,पर बादशाह के दबाव मे वह इसे देने के लिए तैयार हो गए थे.

इस बात कि पुष्टि के लिए यहाँ ये बताना अत्यन्त आवश्यक है कि जयपुर के

पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वे दोनो आदेश अभी तक रक्खे हुए हैं जो
शाहजहाँ द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा
जयसिंह को दिए गए थे.......

=> यह सभी जानते हैं कि मुस्लिम शासकों के समय प्रायः मृत दरबारियों और

राजघरानों के लोगों को दफनाने के लिए, छीनकर कब्जे में लिए गए मंदिरों और
भवनों का प्रयोग किया जाता था ,

उदाहरनार्थ हुमायूँ, अकबर, एतमाउददौला और सफदर जंग ऐसे ही भवनों मे

दफनाये गए हैं ....

=> प्रो. ओक कि खोज ताजमहल के नाम से प्रारम्भ होती है---------


=> "महल" शब्द, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में

भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता...

यहाँ यह व्याख्या करना कि महल शब्द मुमताज महल से लिया गया है......वह कम

से कम दो प्रकार से तर्कहीन है---------


पहला -----शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल कभी नही था,,,बल्कि उसका

नाम मुमताज-उल-ज़मानी था ...


और दूसरा-----किसी भवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के

लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज)का ही प्रयोग किया जाए और प्रथम अर्ध भाग
(मुम) को छोड़ दिया जाए,,,यह समझ से परे है...

प्रो.ओक दावा करते हैं कि,ताजमहल नाम तेजो महालय (भगवान शिव का महल) का

बिगड़ा हुआ संस्करण है, साथ ही साथ ओक कहते हैं कि----

मुमताज और शाहजहाँ कि प्रेम कहानी,चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और

लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है
क्योंकि शाहजहाँ के समय का कम से कम एक शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की
पुष्टि नही करता है.....

इसके अतिरिक्त बहुत से प्रमाण ओक के कथन का प्रत्यक्षतः समर्थन कर रहे हैं......

तेजो महालय (ताजमहल) मुग़ल बादशाह के युग से पहले बना था और यह भगवान्
शिव को समर्पित था तथा आगरा के राजपूतों द्वारा पूजा जाता था-----
 ==> न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़
के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर 1985 में यह सिद्ध किया
कि यह दरवाजा सन् 1359 के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग 300 वर्ष
पुराना है...

==> मुमताज कि मृत्यु जिस वर्ष (1631) में हुई थी उसी वर्ष के अंग्रेज

भ्रमण कर्ता पीटर मुंडी का लेख भी इसका समर्थन करता है कि ताजमहल मुग़ल
बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था......

==>यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने सन् 1638 (मुमताज कि

मृत्यु के 07 साल बाद) में आगरा भ्रमण किया और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन
वृत्तांत का वर्णन किया,,परन्तु उसने ताज के बनने का कोई भी सन्दर्भ नही
प्रस्तुत किया,जबकि भ्रांतियों मे यह कहा जाता है कि ताज का निर्माण
कार्य 1631 से 1651 तक जोर शोर से चल रहा था......

==> फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो औरंगजेब द्वारा गद्दीनशीन

होने के समय भारत आया था और लगभग दस साल यहाँ रहा,के लिखित विवरण से पता
चलता है कि,औरंगजेब के शासन के समय यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया कि
ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था.......

प्रो. ओक. बहुत सी आकृतियों और शिल्प सम्बन्धी असंगताओं को इंगित करते

हैं जो इस विश्वास का समर्थन करते हैं कि,ताजमहल विशाल मकबरा न होकर
विशेषतः हिंदू शिव मन्दिर है.......

आज भी ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से बंद पड़े हैं,जो आम जनता

की पहुँच से परे हैं

प्रो. ओक., जोर देकर कहते हैं कि हिंदू मंदिरों में ही पूजा एवं धार्मिक

संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति,त्रिशूल,कलश और ॐ आदि वस्तुएं
प्रयोग की जाती हैं.......

==> ताज महल के सम्बन्ध में यह आम किवदंत्ती प्रचलित है कि ताजमहल के

अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद बूँद कर पानी टपकता रहता है,, यदि यह
सत्य है तो पूरे विश्व मे किसी किभी कब्र पर बूँद बूँद कर पानी नही
टपकाया जाता,जबकि
प्रत्येक हिंदू शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद बूँद कर पानी टपकाने की
व्यवस्था की जाती है,फ़िर ताजमहल (मकबरे) में बूँद बूँद कर पानी टपकाने का क्या
मतलब....????

==> राजनीतिक भर्त्सना के डर से इंदिरा सरकार ने ओक की सभी पुस्तकें स्टोर्स से

वापस ले लीं थीं और इन पुस्तकों के प्रथम संस्करण को छापने वाले संपादकों को
भयंकर परिणाम भुगत लेने की धमकियां भी दी गईं थीं....

==> प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है

कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में
खुलवाए, और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे ....
 ज़रा सोचिये....!!!!!!
 कि यदि ओक का अनुसंधान पूर्णतयः सत्य है तो किसी देशी राजा के बनवाए गए
संगमरमरी आकर्षण वाले खूबसूरत, शानदार एवं विश्व के महान आश्चर्यों में से
एक भवन, "तेजो महालय" को बनवाने का श्रेय बाहर से आए मुग़ल बादशाह शाहजहाँ
को क्यों......?????
 तथा......

इससे जुड़ी तमाम यादों का सम्बन्ध मुमताज-उल-ज़मानी से क्यों........???????


""""आंसू टपक रहे हैं, हवेली के बाम से.......

    रूहें लिपट के रोटी हैं हर खासों आम से.......
    अपनों ने बुना था हमें, कुदरत के काम से......
    फ़िर भी यहाँ जिंदा हैं हम गैरों के नाम से......"""""

Girish Kamble
Research Associate
Mahyco Life Science Research Centre
Jalna-431203(MS)
India

--
With Best Regards
Mahendra Patel
http://hostsewa.com
http://gyanplus.tk
http://gujvani.tk

abhar: hindustan ka dard.

सोमवार, 2 मई 2011

ताजमहल मकबरा नहीं तेजो महालय (तेजपुंज शिव का मंदिर)




cid:part1.00050203.06090602@oracle.com

ताजमहल मकबरा नहीं तेजो महालय (तेजपुंज शिव का मंदिर)

दुनिया के ७ आश्चर्यों में से एक  भारत के आगरा जिले में सहित ताजमहल को मुग़ल सम्राट शाहजहाँ द्वारा  उसकी अनेक बेगमों में से एक मुमताजमहल की याद में बनवाया गया मकबरा बताया जाता है जबकि सत्य इसके सर्वथा विपरीत है. अकाट्य ऐतिहासिक साक्ष्य हैं की यह भवन मूलतः शिव मंदिर था जिसे राजपूत राजाओं ने अपने इष्टदेव को समर्पित किया था तथा इसका शेष भाग राजपूत राजाओं का निवास था. मुगलों ने सत्तासीन होने पर राजपूतों का मान मर्दन करने के लिए इसे कपटपूर्वक मुमताज़महल का मकबरा बनाने के किये हथिया लिया और अपने दरबारी इतिहासकारों से झूठा इतिहास लिखवा लिया कि इसे शाहजहाँ ने दिवंगत बेगम की याद में बनवाया. यह विडम्बना है कि देश स्वतंत्र होने पर भारत सरकार के एक विभाग सर्वे ऑफ़ इंडिया के विद्वान् महानिर्देशक स्व. पुरुषोत्तम नागेश ओक द्वारा प्रामाणिक खोजकर लिखी गयी किताब 'ताजमहल राजपूती महल था' में प्रस्तुत निष्कर्षों की उपेक्षा की गयी और जनता को सत्य से दूर रखा गया. यहाँ प्रस्तुत है ताजमहल के तेजो महालय होने संबंधी प्रमाण:
 
भवन के अंदर पानी का कुआँ ...
 
cid:part2.06030804.06010503@oracle.com
ताजमहल और गुम्बद के सामने का दृश्य

निर्मित छत...... cid:part3.09080704.08060501@oracle.com
गुम्बद और शिखर के पास का दृश्य.....

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शिखर के ठीक पास का दृश्य.........
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आँगन में शिखर के छायाचित्र कि बनावट.....

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प्रवेश द्वार पर बने लाल कमल........
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ताज के पिछले हिस्से का दृश्य और बाइस कमरों का समूह........
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पीछे की खिड़कियाँ और बंद दरवाजों का दृश्य........
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विशेषतः वैदिक शैली मे निर्मित गलियारा.....
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मकबरे के पास संगीतालय........एक विरोधाभास.........

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ऊपरी तल पर स्थित एक बंद कमरा.........

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निचले तल पर स्थित संगमरमरी कमरों का समूह.........

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दीवारों पर बने हुए फूल......जिनमे छुपा हुआ है ओम् ( ॐ ) ....

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निचले तल पर जाने के लिए सीढियां........

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कमरों के मध्य 
300फीट लंबा गलियारा..cid:part16.05080508.04010801@oracle.com 
निचले तल के२२गुप्त कमरों मे से एक कमरा... 
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२२ गुप्त कमरों में से एक कमरे का आतंरिक दृश्य.......

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अन्य बंद कमरों में से एक आतंरिक दृश्य.. 
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एक बंद कमरे की वैदिक शैली में निर्मित छत

 

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ईंटों से बंद किया गया विशाल रोशनदान .....

 

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दरवाजों में लगी गुप्त दीवार,जिससे अन्य कमरों का सम्पर्क था.....

 

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बहुत से साक्ष्यों को छुपाने के लिए, गुप्त ईंटों से बंद किया गया दरवाजा......

 

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बुरहानपुर मध्य प्रदेश मे स्थित महल जहाँ मुमताज-उल-ज़मानी कि मृत्यु हुई थी.......

 

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बादशाहनामा के अनुसार,, इस स्थान पर मुमताज को दफनाया गया....

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प्रो. पी.जी.ओक ने अपनी शोधपरक पुस्तक 'ताजमहल राजपूती महल था' जो अंग्रेजी में  "TAJ MAHAL - THE TRUE STORY" शीर्षक से छपी में प्रमाणित किया कि ताजमहल बेगम मुमताज का मकबरा न होकर, एक हिंदू प्राचीन शिव मन्दिर (तेजो महालय) था. 
 
 शाहजहाँ ने जयपुर के राजा जयसिंह से अवैध तरीके से छीनकर मकबरे में बदल दिया था किन्तु लाख कोशिशों के बाद भी इमारत से हिन्दू मंदिर होने के चिन्ह पूरी तरह नहीं मिटाये जा सके.
  
  शाहजहाँ के दरबारी लेखक मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी द्वारा लिखे गए बादशाहनामा में मुग़ल शासन का सम्पूर्ण वृतांत 1000  से ज़्यादा पृष्ठों मे वर्णित है. खंड एक केपृष्ठ 402 - 403 के अनुसारशाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी को मृत्यु के बादबुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफनाने के ०६ माह बाद, तारीख़ 15 ज़मदी-उल-अउवल दिन शुक्रवार को अकबराबाद आगरा लाया गया. बाद में उसे महाराजा जयसिंह से वफादारी के नाम पर जबरदस्ती छीने गए एक असाधारण रूप से सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) में  पुनः दफनाया गया, लाहौरी के अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों की इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे, पर बादशाह के प्रति वफादारी का वास्ता दिए जाने पर दबाव में देने के लिये मजबूर हो गये थे.जयपुर के पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में शाहजहाँ द्वारा तेजो महालय समर्पित करने के लिये राजा जयसिंहको दिये गये दोनों आदेश अब तक सुरक्षित हैं. मुग़ल काल मेंमृत दरबारियों और राजघरानों के लोगों को दफनाने के लिये प्रायः हिन्दुओं के मंदिरों और भवनों का प्रयोग किया जाता था.हुमायूँअकबरएतमाउददौला और सफदर जंग ऐसे ही भवनों मे दफनाये गए हैं.
  
प्रो. ओक ने सही लिखा है कि
"महलशब्दअफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश मेंभवनों के लिए प्रयोग नहीं किया जाता.'महल' शब्द मुमताज महल से लिए जाने का कुतर्क आधारहीन है क्योंकिशाहजहाँ की बेगम का नाम मुमताज महल नहीं मुमताज-उल-ज़मानी था दूसरा किसीभवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज) का ही प्रयोग कर प्रथम अर्ध भाग (मुम) को छोड़ना समझ से परे है... 
  
प्रो.ओक ने ठीक कहा है किमुमताज और शाहजहाँ कि प्रेम कहानी, चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है.शाहजहाँ के समय के शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की पुष्टि नही करते.
  

 तेजो महालय मुग़ल काल के पहले निर्मित भगवान् शिव को समर्पित मंदिर तथा जयपुर के राजपरिवार का आवास था. 

  न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़ के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर १९८५ में यह सिद्ध किया कि यह दरवाजा सन् १३५९ के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग ३०० वर्ष पूर्व का है.

 
  मुमताज की मृत्यु १६३१ में हुई थी. उसी वर्ष के अंग्रेज पर्यटक पीटर मुंडी का लेख भी इसका समर्थन करता है कि  ताजमहल मुग़ल बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था.
 
   यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने मुमताज की मृत्यु के साल बादसन् १६३८  में आगरा भ्रमण किया और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत का वर्णन किया परन्तु उसने ताज के बनने का कोइ उल्लेख नहीं किया. जबकि कहा जाता है कि ताज का निर्माण १६३१ से १६५१  तक जोर-शोर से हो रहा था.

 
   फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो औरंगजेब द्वारा गद्दीनशीन होने के समय भारत आया था और लगभग दस साल यहाँ रहा, के यात्रा वृत्तान्त के अनुसार औरंगजेब के शासन काल में यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया था कि ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था.

 
   प्रो. ओक. ने अनेक आकृतियों और शिल्प सम्बन्धी असंगताओं को इंगित है जो प्रमाणित करते हैं कि ताजमहल विशाल मकबरा न होकर केवलहिंदू शिव मन्दिर है.आज भी ताजमहल के कई कक्ष शाहजहाँ के काल से बंद हैं, जो आम जनता की पहुँच से परे सत्य को अपने दमन में समेटे हैं.हिंदू मंदिरों में ही पूजा एवं धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति, त्रिशूल, कलश और ॐ आदि चिन्हों का प्रयोग सर्वज्ञात है. ताज में ये प्रतीक अनेक स्थानों पर हैं.
 

   ताज महल के सम्बन्ध में किवदंती है कि ताजमहल के अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद बूँद कर पानी टपकता रहता है. पूरे विश्व मे किसी किभी कब्र पर बूँद-बूँद पानी नहीं टपकाया जाता, जबकि हर हिंदू शिव मन्दिर में शिवलिंग पर बूँद-बूँद कर पानी टपकाने का विधान है.
  

  राजनीतिक भर्त्सना के डर से इंदिरा सरकार ने ओक की सभी पुस्तकें स्टोर्स से जब्त कर लीं तथा इनके प्रथम संस्करण छापने वाले संपादकों को भयंकर परिणाम भुगतने की धमकियाँ दीं.


प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में खुलवाये और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे.
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