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मंगलवार, 27 अक्टूबर 2020

नवगीत:

नवगीत:
संजीव 
*
ऐसा कैसा
पर्व मनाया ?
*
मनुज सभ्य है
करते दावा
बोल रहे
कुदरत पर धावा
कोई काम
न करते सादा
करते कभी
न पूरा वादा
अवसर पाकर
स्वार्थ भुनाया
*
धुआँ, धूल
कचरा फैलाते
हल्ला-गुल्ला
शोर मचाते
आज पूज
कल फेकें प्रतिमा
समझें नहीं
ईश की गरिमा
अपनों को ही
किया पराया
धनवानों ने
किया प्रदर्शन
लंघन करता
भूखा-निर्धन
फूट रहे हैं
सरहद पर बम
नहीं किसी को
थोड़ा भी गम
तजी सफाई
किया सफाया
***
२७-१०-२०१४ 

रविवार, 29 अक्टूबर 2017

navgeet

नवगीत:
देव सोये तो
सोये रहें
हम मानव जागेंगे
राक्षस
अति संचय करते हैं
दानव
अमन-शांति हरते हैं
असुर
क्रूर कोलाहल करते
दनुज
निबल की जां हरते हैं
अनाचार का
शीश पकड़
हम मानव काटेंगे
भोग-विलास
देवता करते
बिन श्रम सुर
हर सुविधा वरते
ईश्वर पाप
गैर सर धरते
प्रभु अधिकार
और का हरते
हर अधिकार
विशेष चीन
हम मानव वारेंगे
मेहनत
अपना दीन-धर्म है
सच्चा साथी
सिर्फ कर्म है
धर्म-मर्म
संकोच-शर्म है
पीड़ित के
आँसू पोछेंगे
मिलकर तारेंगे
***

navgeet

नवगीत:
आओ रे!
मतदान करो
भारत भाग्य विधाता हो
तुम शासन-निर्माता हो
संसद-सांसद-त्राता हो
हमें चुनो
फिर जियो-मरो
कैसे भी
मतदान करो
तूफां-बाढ़-अकाल सहो
सीने पर गोलियाँ गहो
भूकंपों में घिरो-ढहो
मेलों में
दे जान तरो
लेकिन तुम
मतदान करो
लालटेन, हाथी, पंजा
साड़ी, दाढ़ी या गंजा
कान, भेंगा या कंजा
नेता करनी
आप भरो
लुटो-पिटो
मतदान करो
पाँच साल क्यों देखो राह
जब चाहो हो जाओ तबाह
बर्बादी को मिले पनाह
दल-दलदल में
फँसो-घिरो
रुपये लो
मतदान करो
नाग, साँप, बिच्छू कर जोड़
गुंडे-ठग आये घर छोड़
केर-बेर में है गठजोड़
मत सुधार की
आस धरो
टैक्स भरो
मतदान करो
***
(राज्यों में चुनाव की खबर पर )