होली का रंग रोटेरियन के सँग
संजीव 'सलिल'
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रोटेरियन का ब्याह भया तो, हमें खुसी भई खासी.
नाच रहे पी झूम बाराती, सुन-गा भीम पलासी..
मैके जाती भौजी ने, चुपके से हमसे पूछा-
'इनखों ख़त में का लिक्खें?' बतलाओ सुने न दूजा..
मैं बोलो: 'प्रानों से प्यारे' सबसे पहले लिखना.
आखिर में 'चरणों की दासी', लिख ख़त पूरा करना..
पत्र मिला तो रोटेरियन पर छाई गहन उदासी.
हमने पूछो: 'काय! भओ का? बोले आफत खासी.
'चरणदास' लिख बिनने भेजी, चिट्ठी सत्यानासी.
कोढ़ खाज में, लिखो अंत में' प्रिय-प्रानों की प्यासी'..
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जो तुरिया रो-रो टरी, बाखों जम गओ रंग.
रुला-झिंकाकर खसम खों, कर डरो बदरंग.
कलप-कलपकर क्लब बना, पतिगण रोना रोंय.
इक-दूजे के पोंछकर आँसू, मुस्का सोंय..
जे 'आ-आ' हँस कह रहीं, बे 'हट-हट' कह मौन.
आहत-चाहत की ब्यथा-कथा बताये कौन?
अंग्रेजी के फूल ने, दे हिंदी का फूल.
फूल बनाकर सच कहा, चुभा शूल तज भूल..
खोते सिक्के चल रहे, खरे चलन से दूर.
भाभी की आरति करें, भैया बढ़ता नूर..
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पिटता पति जितना अधिक, उतना जाता फूल.
वापरती पत्नी अगर, टूट जाए स्टूल.
कभी गेंद, बल्ला कभी बलम बाने स्टंप.
काँधे चढ़कर मरती, पत्नि ऊँचा जंप..
करते आँखें चार जब, तब थे उनके ठाठ.
दोनों को चश्मा चढ़ा, करते आँखें आठ..
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फागुन में गुन बहुत हैं, लाया फाग-अबीर.
टिके वही मैदान में, जिसके मन में धीर..
जिसके मन में धीर, उसे ही संत कहेंगे.
दीक्षित जो बीवी से, उसको कंत कहेंगे.
तंत न भिड़ पिटने में, चापो चरण शगुन में.
रोटेरियन धोते हैं धोती हँस फागुन में..
*Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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