कुल पेज दृश्य

durga लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
durga लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

आदि शक्ति वंदना

आदि शक्ति वंदना 
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
आदि शक्ति जगदम्बिके, विनत नवाऊँ शीश.
रमा-शारदा हों सदय, करें कृपा जगदीश....
*
पराप्रकृति जगदम्बे मैया, विनय करो स्वीकार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
अनुपम-अद्भुत रूप, दिव्य छवि, दर्शन कर जग धन्य.
कंकर से शंकर रचतीं माँ!, तुम सा कोई न अन्य..
परापरा, अणिमा-गरिमा, तुम ऋद्धि-सिद्धि शत रूप.
दिव्य-भव्य, नित नवल-विमल छवि, माया-छाया-धूप..
जन्म-जन्म से भटक रहा हूँ, माँ ! भव से दो तार.
चरण-शरण जग, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
नाद, ताल, स्वर, सरगम हो तुम. नेह नर्मदा-नाद.
भाव, भक्ति, ध्वनि, स्वर, अक्षर तुम, रस, प्रतीक, संवाद..
दीप्ति, तृप्ति, संतुष्टि, सुरुचि तुम, तुम विराग-अनुराग.
उषा-लालिमा, निशा-कालिमा, प्रतिभा-कीर्ति-पराग.
प्रगट तुम्हीं से होते तुम में लीन सभी आकार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
वसुधा, कपिला, सलिलाओं में जननी तव शुभ बिम्ब.
क्षमा, दया, करुणा, ममता हैं मैया का प्रतिबिम्ब..
मंत्र, श्लोक, श्रुति, वेद-ऋचाएँ, करतीं महिमा गान-
करो कृपा माँ! जैसे भी हैं, हम तेरी संतान.
ढाई आखर का लाया हूँ,स्वीकारो माँ हार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
******

मंगलवार, 9 अक्टूबर 2018

argla stotra


।। यह अर्गला स्तोत्र है।।
। ॐ अर्गला स्तोत्र मंत्र यह, विष्णु ऋषि ने रच गाया।
। छंद अनुष्टुप, महालक्ष्मी देव अंबिका-मन भाया ।
। सप्तशती के अनुष्ठान में, भक्त पाठ-विनियोग करें।
।ॐ चण्डिका मातु नमन शत, मारकंडे' नित जाप करें।
*
।ॐ जयंती मंगलाकाली, शांत कालिका कपालिनी।
। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री माँ, सुध-स्वःस्वाहा जय पालागी।१।
*
। जय-जय-जय देवी चामुंडा, दु:खहर्ता हर प्राणी की।
। व्याप्त सभी में रहनेवाली, कालयात्री जय पालागी।२।
*
। मधु-कैटभ वध कर ब्रम्हा को, वर देने वाली मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोह-विजय दो, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।३।
*
। महिषासुर-वधकर्ता माता, भक्तों को सुख दो मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।४।
*
। रक्तबीज संहारकारिणी, चण्ड-मुण्डहंता मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।५।

। शुम्भ-निशुम्भ, धूम्रलोचन का वध करनेवाली मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।६।

। युग-युग सबके द्वारा वन्दित, हे सब सुखदायिनी मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।७।
*
। रूप-चरित चिंतन से ज्यादा, सब दुश्मननाशक मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।८।
*
। चरणकमल में नत मस्तक जो, पाप हरें उनके मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।९।
*
। भक्तिपूर्वक जो पूजें, उनकी हर व्याधि हरो मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१०।
*
। उन्हें, तुम्हें जो भक्तिपूर्वक पूजें हे अंबे मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।११।
*
। दो सौभाग्य परमसुख जननी!, दो आरोग्य मुझे मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१२।
*
। द्वेष रखें जो उन्हें मिटाकर, मेरी शक्ति बढ़ा मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१३।
*
। देवी माँ! कल्याण करो दे संपति-सुख सब मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१४।
*
। शीश मुकुटमणि पग-तल घिसते, देव दनुज दोनों मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१५।
*
। ज्ञान-कीर्ति, धन-धान्य, लक्ष्मी, भक्तजनों को दो मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१६।

। दुर्दान्ती दनुजों का दर्प मिटानेवाली हे मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१७।
*
। चतुर्भुजी विधि-वंदित हो, हे चौकर परमेश्वरी मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१८।

। कृष्णवर्ण विष्णु स्तुति करते, सदा तुम्हारी ही मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१९।

। हिमगिरि-तनया-पति शिव वंदित, हो तुम परमेश्वरी मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।२०।
*
। इंद्राणी-पति सद्भवित हो, तुम्हें पूजते नित मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।२१।
*
। अति प्रचण्ड दैत्यों को दण्डित, कर-कर दर्प-हरण मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।२२।
*
। सदा-सदा आनंद असीमित, निज भक्तों के दे मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।२३।
*
। मन मोहे मन-माफ़िक जो, वह पत्नि प्रदान करो मैया!।
। श्रेष्ठ-कुला, संसार-समुद दुर्गम से, जो तारे मैया!।२४।
*
। करे अर्गला-स्तोत्र पाठ जो, सप्तशती संग-पढ़ मैया!।
। जप-संख्या अनुसार श्रेष्ठ फल, सुख-सम्पति पाता मैया!।२५।
*
। इति देवी का अर्गला स्तोत्र पूर्ण हुआ।
==============================

सोमवार, 8 अक्टूबर 2018

दुर्गा-स्तुति

आदि शक्ति वंदना










संजीव वर्मा 'सलिल'
*
आदि शक्ति जगदम्बिके, विनत नवाऊँ शीश.
रमा-शारदा हों सदय, करें कृपा जगदीश....
*
पराप्रकृति जगदम्बे मैया, विनय करो स्वीकार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
अनुपम-अद्भुत रूप, दिव्य छवि, दर्शन कर जग धन्य.
कंकर से शंकर रचतीं माँ!, तुम सा कोई न अन्य..
परापरा, अणिमा-गरिमा, तुम ऋद्धि-सिद्धि शत रूप.
दिव्य-भव्य, नित नवल-विमल छवि, माया-छाया-धूप..
जन्म-जन्म से भटक रहा हूँ, माँ ! भव से दो तार.
चरण-शरण जग, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
नाद, ताल, स्वर, सरगम हो तुम. नेह नर्मदा-नाद.
भाव, भक्ति, ध्वनि, स्वर, अक्षर तुम, रस, प्रतीक, संवाद..
दीप्ति, तृप्ति, संतुष्टि, सुरुचि तुम, तुम विराग-अनुराग.
उषा-लालिमा, निशा-कालिमा, प्रतिभा-कीर्ति-पराग.
प्रगट तुम्हीं से होते तुम में लीन सभी आकार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
वसुधा, कपिला, सलिलाओं में जननी तव शुभ बिम्ब.
क्षमा, दया, करुणा, ममता हैं मैया का प्रतिबिम्ब..
मंत्र, श्लोक, श्रुति, वेद-ऋचाएँ, करतीं महिमा गान-
करो कृपा माँ! जैसे भी हैं, हम तेरी संतान.
ढाई आखर का लाया हूँ,स्वीकारो माँ हार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*******************
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.com
#hindi_blogger

सोमवार, 14 अगस्त 2017

नवगीत

navgeet-
हम
*
हम वही हैं,
यह न भूलो
झट उठो आकाश छू लो।
बता दो सारे जगत को
यह न भूलो
हम वही है।
*
हमारे दिल में पली थी
सरफरोशी की तमन्ना।
हमारी गर्दन कटी थी
किंतु
किंचित भी झुकी ना।
काँपते थे शत्रु सुनकर
नाम जिनका
हम वही हैं।
कारगिल देता गवाही
मर अमर
होते हमीं हैं।
*
इंकलाबों की करी जयकार
हमने फेंककर बम।
झूल फाँसी पर गये
लेकिन
न झुकने दिया परचम।
नाम कह 'आज़ाद', कोड़े
खाये हँसकर
हर कहीं हैं।
नहीं धरती मात्र
देवोपरि हमें
मातामही हैं।
*
पैर में बंदूक बाँधे,
डाल घूँघट चल पड़ी जो।
भवानी साकार दुर्गा
भगत के
के संग थी खड़ी वो।
विश्व में ऐसी मिसालें
सत्य कहता हूँ
नहीं हैं।
ज़िन्दगी थीं या मशालें
अँधेरा पीती रही
रही हैं।
*
'नहीं दूँगी कभी झाँसी'
सुनो, मैंने ही कहा था।
लहू मेरा
शिवा, राणा, हेमू की
रग में बहा था।
पराजित कर हूण-शक को
मर, जनम लेते
यहीं हैं।
युद्ध करते, बुद्ध बनते
हमीं विक्रम, 'जिन'
हमीं हैं।
*
विश्व मित्र, वशिष्ठ, कुंभज
लोपामुद्रा, कैकयी, मय ।
ऋषभ, वानर, शेष, तक्षक
गार्गी-मैत्रेयी
निर्भय?
नाग पिंगल, पतंजलि,
नारद, चरक, सुश्रुत
हमीं हैं।
ओढ़ चादर रखी ज्यों की त्यों
अमल हमने
तही हैं।
*
देवव्रत, कौंतेय, राघव
परशु, शंकर अगम लाघव।
शक्ति पूजित, शक्ति पूजी
सिय-सती बन
जय किया भव।
शून्य से गुंजित हुए स्वर
जो सनातन
हम सभी हैं।
नाद अनहद हम पुरातन
लय-धुनें हम
नित नयी हैं।
*
हमीं भगवा, हम तिरंगा
जगत-जीवन रंग-बिरंगा।
द्वैत भी, अद्वैत भी हम
हमीं सागर,
शिखर, गंगा।
ध्यान-धारी, धर्म-धर्ता
कम-कर्ता
हम गुणी हैं।
वृत्ति सत-रज-तम न बाहर
कहीं खोजो,
त्रय हमीं हैं।
*
भूलकर मत हमें घेरो
काल को नाहक न टेरो।
अपावन आक्रांताओं
कदम पीछे
हटा फेरो।
बर्फ पर जब-जब
लहू की धार
सरहद पर बही हैं।
कहानी तब शौर्य की
अगणित, समय ने
खुद कहीं हैं।
*
हम वही हैं,
यह न भूलो
झट उठो आकाश छू लो।
बता दो सारे जगत को
यह न भूलो
हम वही है।
*
salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१८३२४४
#दिव्यनर्मदा
#हिंदी_ब्लॉगर

बुधवार, 12 अप्रैल 2017

tantrokta raatri sukta

हिंदी काव्यानुवाद-
तंत्रोक्त रात्रिसूक्त 
*
II यह तंत्रोक्त रात्रिसूक्त है II
I ॐ ईश्वरी! धारक-पालक-नाशक जग की, मातु! नमन I 
II हरि की अनुपम तेज स्वरूपा, शक्ति भगवती नींद नमन I१I
*
I ब्रम्हा बोले: 'स्वाहा-स्वधा, वषट्कार-स्वर भी हो तुम I
II तुम्हीं स्वधा-अक्षर-नित्या हो, त्रिधा अर्ध मात्रा हो तुम I२I
*
I तुम ही संध्या-सावित्री हो, देवी! परा जननि हो तुम I
II तुम्हीं विश्व को धारण करतीं, विश्व-सृष्टिकर्त्री हो तुम I३I  
*
I तुम ही पालनकर्ता मैया!, जब कल्पांत बनातीं ग्रास I
I सृष्टि-स्थिति-संहार रूप रच-पाल-मिटातीं जग दे त्रास I४I 
*
I तुम्हीं महा विद्या-माया हो, तुम्हीं महा मेधास्मृति हो I
II कल्प-अंत में रूप मिटा सब, जगन्मयी जगती तुम हो I५I
*
I महा मोह हो, महान देवी, महा ईश्वरी तुम ही हो I 
II सबकी प्रकृति, तीन गुणों की रचनाकर्त्री भी तुम हो I६I
*
I काल रात्रि तुम, महा रात्रि तुम, दारुण मोह रात्रि तुम हो I
II तुम ही श्री हो, तुम ही ह्री हो, बोधस्वरूप बुद्धि तुम हो I७I
*
I तुम्हीं लाज हो, पुष्टि-तुष्टि हो, तुम ही शांति-क्षमा तुम हो I
II खड्ग-शूलधारी भयकारी, गदा-चक्रधारी तुम हो I८I
*
I तुम ही शंख, धनुष-शर धारी, परिघ-भुशुण्ड लिए तुम हो I
II सौम्य, सौम्यतर तुम्हीं सौम्यतम, परम सुंदरी तुम ही हो I९I
*
I अपरा-परा, परे सब से तुम, परम ईश्वरी तुम ही हो I
II किंचित कहीं वस्तु कोई, सत-असत अखिल आत्मा तुम होI१०I
*
I सर्जक-शक्ति सभी की हो तुम, कैसे तेरा वंदन हो ?
II रच-पालें, दे मिटा सृष्टि जो, सुला उन्हें देती तुम हो I११I 
*
I हरि-हर,-मुझ को ग्रहण कराया, तन तुमने ही हे माता! I
II कर पाए वन्दना तुम्हारी, किसमें शक्ति बची माता!! I१२I
*
I अपने सत्कर्मों से पूजित, सर्व प्रशंसित हो माता!I
II मधु-कैटभ आसुर प्रवृत्ति को, मोहग्रस्त कर दो माता!!I१३II'
*
I जगदीश्वर हरि को जाग्रत कर, लघुता से अच्युत कर दो I
II बुद्धि सहित बल दे दो मैया!, मार सकें दुष्ट असुरों को I१४I
*
IIइति रात्रिसूक्त पूर्ण हुआII
१२-४-२०१७

सोमवार, 3 अप्रैल 2017

vedokta ratri sukta


।। अथ वेदोक्त रात्रि सूक्तं ।।

।। वेदोक्त रात्रि सूक्त।।
*
ॐ रात्री व्यख्यदायती पुरुत्रा देव्यक्षभि:। विश्र्वा अधिश्रियोधित ।१।

। ॐ रात्रि! विश्रांतिदायिनी जगत आश्रित। सब कर्मों को देखें, फल दें।१।
*
ओर्वप्रा अमर्त्या निवतो देव्युद्वत:। ज्योतिषा बाधते तम:।२।

।। देवी अमरा व्याप विश्व में, नष्ट करें अज्ञान तिमिर को ज्ञान ज्योति से ।२।
*
निरु स्वसारमस्कृतोषसं देव्येति। अपेदु हासते तम: ।३।

। पराशक्ति रूपा रजनी प्रगटा दें ऊषा, नष्ट अविद्या तिमिर स्वत्: हो। ३।
*
सा नो अद्य यस्या वयं नि ते यामन्नाविक्ष्महि। वृक्षे न वसतिं वय:।४।

।रात्रि देवी पधारें हों मुदित , सो सकें हम खग सदृश निज घोंसले में।४।
*
नि ग्रामासो अविक्षत नि पद्वन्तो नि पक्षिण:। नि श्येना सश्चिदर्थिन:।५।

। सोते सुख से ग्राम्य जन, पशु, जीव-जंतु,खग, रात्रि अंक में।५।
*
यावया वृक्यं वृकं यवय स्तेनमूर्म्ये। अथा न: सुतरा भव। ६।
।रात्रि देवी! पाप वृक वासना वृकी को, दूर कर सुखदायिनी हो।६।
*
उप मा पेपिशत्तम: कृष्णं व्यक्तमस्थित। उष ऋणेव् यातय। ७।

।घेरे अज्ञान तिमिर ज्ञान दे कर दूर, उषा! उऋण करतीं मुझे दे धन। ७।
*
उप ते गा इवाकरं वृणीष्व दुहितर्दिव:। रात्रि स्तोमं न जिग्युषे। ८।
। पयप्रदा गौ सदृश रजनी!, व्योमकन्या!! हविष्य ले लो।३।
२९.३.२०२०
***