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शनिवार, 18 अक्टूबर 2014

lekh: bharteey falit vidyayen:

अंध श्रद्धा और अंध आलोचना के शिकंजे में भारतीय फलित विद्याएँ 

भारतीय फलित विद्याओं (ज्योतषशास्त्र, सामुद्रिकी, हस्तरेखा विज्ञान, अंक ज्योतिष आदि) तथा धार्मिक अनुष्ठानों (व्रत, कथा, हवन, जाप, यज्ञ आदि) के औचित्य, उपादेयता तथा प्रामाणिकता पर प्रायः प्रश्नचिन्ह लगाये जाते हैं. इनपर अंधश्रद्धा रखनेवाले और इनकी अंध आलोचना रखनेवाले दोनों हीं विषयों के व्यवस्थित अध्ययन, अन्वेषणों तथा उन्नयन में बाधक हैं. शासन और प्रशासन में भी इन दो वर्गों के ही लोग हैं. फलतः इन विषयों के प्रति तटस्थ-संतुलित दृष्टि रखकर शोध को प्रोत्साहित न किये जाने के कारण इनका भविष्य खतरे में है. 

हमारे साथ दुहरी विडम्बना है 

१. हमारे ग्रंथागार और विद्वान सदियों तक नष्ट किये गए. बचे हुए कभी एक साथ मिल कर खोये को दुबारा पाने की कोशिश न कर सके. बचे ग्रंथों को जन्मना ब्राम्हण होने के कारण जिन्होंने पढ़ा वे विद्वान न होने के कारण वर्णित के वैज्ञानिक आधार नहीं समझ सके और उसे ईश्वरीय चमत्कार बताकर पेट पालते रहे. उन्होंने ग्रन्थ तो बचाये पर विद्या के प्रति अन्धविश्वास को बढ़ाया। फलतः अंधविरोध पैदा हुआ जो अब भी विषयों के व्यवस्थित अध्ययन में बाधक है. 

२. हमारे ग्रंथों को विदेशों में ले जाकर उनके अनुवाद कर उन्हें समझ गया और उस आधार पर लगातार प्रयोग कर विज्ञान का विकास कर पूरा श्रेय विदेशी ले गये. अब पश्चिमी शिक्षा प्रणाली से पढ़े और उस का अनुसरण कर रहे हमारे देशवासियों को पश्चिम का सब सही और पूर्व का सब गलत लगता है. लार्ड मैकाले ने ब्रिटेन की संसद में भारतीय शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन पर हुई बहस में जो अपन लक्ष्य बताया था, वह पूर्ण हुआ है. 
इन दोनों विडम्बनाओं के बीच भारतीय पद्धति से किसी भी विषय का अध्ययन, उसमें परिवर्तन, परिणामों की जाँच और परिवर्धन असीम धैर्य, समय, धन लगाने से ही संभव है. 

अब आवश्यक है दृष्टि सिर्फ अपने विषय पर केंद्रित रहे, न प्रशंसा से फूलकर कुप्पा हों, न अंध आलोचना से घबरा या क्रुद्ध होकर उत्तर दें. इनमें शक्ति का अपव्यय करने के स्थान पर सिर्फ और सिर्फ विषय पर केंद्रित हों.

संभव हो तो राष्ट्रीय महत्व के बिन्दुओं जैसे घुसपैठ, सुरक्षा, प्राकृतिक आपदा (भूकंप, तूफान. अकाल, महत्वपूर्ण प्रयोगों की सफलता-असफलता) आदि पर पर्याप्त समयपूर्व अनुमान दें तो उनके सत्य प्रमाणित होने पर आशंकाओं का समाधान होगा। ऐसे अनुमान और उनकी सत्यता पर शीर्ष नेताओं, अधिकारियों-वैज्ञानिकों-विद्वानों को व्यक्तिगत रूप से अवगत करायें तो इस विद्या के विधिवत अध्ययन हेतु व्यवस्था की मांग की जा सकेगी।  

मंगलवार, 6 सितंबर 2011

विशेष आलेख: स्वाति नक्षत्र और साहित्यिक मान्यताएँ --- संजीव 'सलिल'

विशेष आलेख:                                                                          
स्वाति नक्षत्र और साहित्यिक मान्यताएँ
--संजीव 'सलिल'
*

स्वाति संबंधी मेरी अल्प जानकारी निम्न है:


स्वाति शुभ नक्षत्र है. यह राशि चक्र के २७ नक्षत्रों अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेशा, मघा, पूर्व फाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठ, मूला, पूर्व आषाढ़ा, उत्तर आषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्व भाद्रपद, उत्तर भाद्रपद व रेवती में १५ वाँ नक्षत्र है. यह वायु से नियंत्रित होता है.

समान्तर कोष भाग २, पृष्ठ ५०५, क्र. ९२४.७  के अनुसार स्वाति का पर्याय तलवार भी है.

वृहत हिंदी कोष संपादक कालिका प्रसाद, राजवल्लभ सहाय व मुकुन्दी लाल श्रीवास्तव के अनुसार सूर्य की एक पत्नि का नाम स्वाति है.                                                                      

साहित्यिक मान्यताओं और जन-श्रुतियों के अनुसार स्वाति नक्षत्र में होने वाले जल वृष्टि की चाह में चातक 'पिऊ कहाँ' की टेर लगाता है तथा स्वाति नक्षत्र में गिरा जल पीकर चातक तृप्त होता है. यही जल सीप-गर्भ में जने पर मोती, वंश-वृक्ष (बांस) की जड़ में जाने पर वंशलोचन (आयुर्वेदिक औषधि), कदली-पत्र के समपार में कपूर तथा सर्प-मुख में गरल बनता है. 

स्वाति से संबंधित अन्य शब्द और उनके अर्थ : स्वातिकारी = कृषि देवी, स्वातिगिरि = एक नागकन्या, स्वाति पंथ / पथ = आकाशगंगा, स्वातिबिंदु = स्वाति नक्षत्र में गिरि जल की बूँद, स्वातिमुख = एक समाधि, एक किन्नर, स्वातिमुखा = एक नागकन्या, स्वातियोग = आषाढ़ के शुक्ल पक्ष में स्वाति नक्षत्र का चन्द्रमा के साथ योग, स्वातिसुत / सुवन = मुक्ता, मोती. 

हिंदी ज्योतिष के अनुसार;                                                               
स्वाति नक्षत्र का स्वरूप मोती के समान है (Swati nakshtra looks like a pearl)। इसे शुभ नक्षत्रों में गिना जाता है। इस नक्षत्र के विषय में मान्यता है कि, इस नक्षत्र के दौरान जब वर्षा की बूंदें मोती के मुख में पड़ती है तब सच्चा मोती बनता है, बांस में इसकी बूंदे पड़े तो बंसलोचन और केले में पड़े में कर्पूर बन जाता है। यानी देखा जाय तो यह नक्षत्र गुणों को बढ़ाने वाला व्यक्तित्व में निखार लाने वाला होता है। इस नक्षत्र के विषय में यह भी कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस नक्षत्र में पैदा लेते हैं वे मोती के समान उज्जवल होते हैं ( Native of swati nakshatra are shining like a pearl)।
                                                                                 
स्वाति नक्षत्र राहु का दूसरा नक्षत्र है (Swati is the second nakshatra of Rahu)। यह नक्षत्रमंडल में उपस्थित 27 नक्षत्रों में 15 वां है (Swati nakshtra is fifteenth Nakshatra of constellation) । इसकी राशि तुला होती है। इन सभी के प्रभाव के कारण इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति में सात्विक और तामसी गुणों का समावेश होता है (Native of swati nakshatra are combination of passion and Morality)। ये अध्यात्म में गहरी आस्था रखते हैं। आपका जन्म स्वाति नक्षत्र में हुआ है तो आप परिश्रमी होंगे और अपने परिश्रम के बल पर सफलता हासिल करने का ज़ज्बा रखते होंगे।

आप राहु के प्रभाव के कारण कुटनीतिज्ञ बुद्धि के होते है, राजनीति में आपकी बुद्धि खूब चलती हैं, राजनीतिक दांव पेंच और चालों को आप अच्छी तरह समझते हैं यही कारण है कि आप सदैव सतर्क और चौकन्ने रहते हैं। आप राजनीति में प्रत्यक्ष रूप से हों अथवा नहीं परंतु अपका व्यवहार आपको राजनैतिक व्यक्तित्व प्रदान करता है। आप अपना काम निकालना खूब जानते हैं। आप परिश्रम के साथ चतुराई का भी इस्तेमाल बखूबी करना जानते हैं। आप इस नक्षत्र के जातक हैं और सक्रिय राजनीति में हैं तो इस बात की संभावना प्रबल है कि आप सत्ता सुख प्राप्त करेंगे (If native of Swati nakshatra play an active role in politics, they get great position and success there) ।

सामाजिक तौर पर देखा जाए तो लोगों के साथ आपके बहुत ही अच्छे सम्बन्ध होते हैं क्योंकि आपका स्वभाव अच्छा होता है। आपके स्वभाव की अच्छाई एवं रिश्तों में ईमानदारी के कारण लोग आपके प्रति विश्वास रखते हैं। आपके हृदय में दूसरों के प्रति सहानुभूति और दया की भावना रहती है। लोगों के प्रति अच्छी भावना होने के कारण आपको जनता का सहयोग प्राप्त होता है और आपकी छवि उज्जवल रहती है।

आप स्वतंत्र विचारधारा के व्यक्ति होते हैं अत: आप दबाव में रहकर काम करने में विश्वास नहीं रखते हैं। आप जो भी कार्य करना चाहते है उसमें पूर्ण स्वतंत्रता चाहते हैं। नौकरी, व्यवसाय एवं आजीविका की दृष्टि से इनकी स्थिति काफी अच्छी रहती है। आप चाहे नौकरी करें अथवा व्यवसाय दोनों ही में कामयाबी हासिल करते हैं। आप काफी महत्वाकांक्षी होते हैं और सदैव ऊँचाईयों पर पहुंचने की आकांक्षा रखते हैं।                

आर्थिक मामलों में भी स्वाति नक्षत्र के जातक भाग्यशाली होते हैं, अपनी बुद्धि और चतुराई से काफी मात्रा में धन सम्पत्ति प्राप्त करते हैं (Native of Swati Nakshatra are lucky, they earn lots of money from their gumption and cunningness)। स्वाति नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ति पारिवारिक दायित्व को निभाना बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। अपने परिवार के प्रति काफी लगाव व प्रेम रखते हैं। आप सुख सुविधाओं से परिपूर्ण जीवन का आनन्द लेते हें। आपके व्यक्तित्व की एक बड़ी विशेषता यह होती है कि आप अपने प्रतिद्वंद्वी को सदा पराजित करते हैं और विजयी होते हैं।

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शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

गीत: दीपावली मनायें ------ संजीव 'सलिल'

गीत: 
                                                         
दीपावली मनायें

संजीव 'सलिल'
*
दीप-ज्योति बनकर हम जग में नव-प्रकाश फैलायें.
नित्य आत्म-परमात्म संग-संग दीपावली मनायें...
*
फैले चारों और रौशनी, तनिक न हो अवरोध.
सबको उन्नति का अवसर हो, स्वाभिमान का बोध..
पढ़ने-बढ़ने, जीवन गढ़ने का सबको अधिकार.
जितना पायें, दूना बाँटें बढ़े परस्पर प्यार..

सब तम पीकर, बाँट उजाला, 'सलिल' अमर हो जायें.
नित्य आत्म-परमात्म संग-संग दीपावली मनायें...
*
अमावसी करा को तोड़ें, रहें पूर्णिमा मुक्त.
निजहित में ही बसे सर्वहित, जनगण-मन संयुक्त..
श्रम-सीकर की स्वेद गंग में, नित्य करें अवगाहन.
रचें शून्य से सृष्टि रमा नारी हो, नर नारायण..

बने आत्म विश्वात्म, तभी परमात्म प्राप्त कर पायें.
नित्य आत्म-परमात्म संग-संग दीपावली मनायें...
*
एक दीप गर जले अकेला तूफां उसे बुझाता.
शत दीपोंसे जग रौशन हो, अन्धकार डर जाता.
शक्ति एकता में होती है, जो चाहे वह कर दे.
माटी के दीपक को भी वह तम हरने का वर दे..

उतरे स्वर्ग धरा पर खुद जब सरगम-स्वर सँग गायें.
नित्य आत्म-परमात्म संग-संग दीपावली मनायें...
*

शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

ज्योतिष की परीक्षा : पूर्व निर्धारित नाटक - कुछ सवाल --अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल'


ज्योतिष पर प्रतिबन्ध की माँग और विरोध : अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल'



 ज्योतिष की परीक्षा : पूर्व निर्धारित नाटक - कुछ सवाल

* ज्योतिष के विरोधियों का तर्क यह है कि इस विधा का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और यह अंध विश्वास पर आधारित है. यह भी कि इससे आम आदमी भाग्य पर विश्वास कर कर्मठता से दूर होगा. दूसरी ओर ज्योतिष को व्यवसाय बनानेवाले निथालों की जमात खड़ी हो जायेगी जो आम लोगों की सरलता का लाभ लेकर ठगी करेगी तथा इसकी इन्तिहाँ बाल-बलि जैसे प्रकरणों में होगी.
 
* इसमें कोई संदेह नहीं कि इन तर्कों में दम है पर यह भी सच है कि इनमें से कोई भी तर्क अंतिम सच नहीं है.
 
* ज्योतिष को विज्ञानं सम्मत न माननेवालों के पास अपने इस मत के समर्थन में कोई भी वैज्ञानिक आधार नहीं है सिवाय इसके कि कुछ ज्योतिषी वह नहीं कर सके जिसका उन्होंने दावा किया था.
 
* सच है कि वे स्वयंभू प्रदर्शनकारी झूठे सिद्ध हुए पर ज्योतिष विधा झूठी सिद्ध नहीं हुई. क्या पूर्व में कई वैज्ञानिकों के प्रयोग असफल तथा बाद में सफल नहीं हुए? यदि असफलता को ही सच-झूठ का अंतिम आधार माना जाये तो कोई उन्नति ही नहीं हो सकेगी.
 
* प्रश्न यह भी है कि जिन्होंने परखने का प्रयास किया उनकी अपनी योग्यता और नीयत कैसी है? क्या वे ज्योतिष को नकारने का पूर्वाग्रह लेकर समूचा आयोजन मात्र इसलिए नहीं कर रहे थे कि उनके कार्यक्रम और चैनल की टी.आर.पी. बढे? हम जानते हैं कि बिग बास, नृत्य और गीत प्रतियोगिता ही नहीं खेल प्रतियोगिताएँ तक धनार्जन के लिये हो रही हैं तथा कब, कहाँ क्या होना है ? यह सब पहले से निर्धारित होता है. यहाँ जीत-हार ही नहीं सच-झूठ भी नकली होता है. ऐसी स्थिति में यह कैसे माना जाये कि ज्योतिष की जड़ खोदने जा रहे महानुभावों की नीयत में खोट नहीं थी? यदि उनका उद्देश्य सही था तो इसके लिये ज्योतिष के विद्वानों को ही परीक्षक क्यों नहीं बनाया गया?
 
* प्रश्न परखे जानेवाले ज्योतिषियों के चयन की विधि तथा योग्यता का भी है. कौन बतायेगा परखे गए लोग वास्तव में विधा के विद्वान थे... केवल अभिनेता ही नहीं. यह कैसे सिद्ध होगा कि यह सब पूर्व निर्धारित नाटक नहीं था जिसके पात्र धन लेकर वह भूमिका निभा रहे थे जो उन्हें दी गयी थी. सच-झूठ को परखने की विधि भी संदेह से परे नहीं है.
 
* विचारणीय यह भी है कि किसी विषय का परीक्षक वही हो सकता जो उस विषय में निष्णात हो. किसी विषय का प्रारंभिक ज्ञान भी न रखनेवाला उस विषय की सार्थकता पर कोई निर्णय कैसे कर सकता है? ज्योतिष की वैज्ञानिकता की परख वे ही कर सकते हैं जो इस विषय के ज्ञाता हैं पर इससे पेट नहीं पालते. ज्योतिष से पेट पालना अपराध नहीं है पर ऐसे जाँचकर्ताओं के निष्कर्ष पर ज्योतिष विरोधी यह कहकर उँगली उठायेंगे कि उन्होंने निजी स्वार्थवश ज्योतिष के पक्ष में फैसला दिया.
 
* दूरदर्शन पर जिन्होंने भी ज्योतिष को झूठा सिद्ध करनेवाले ये भोंडे कार्यक्रम देखे होंगे उन्हें पहले ही आभास हो जाता होगा कि जो किया और कराया जा रहा है उसका परिणाम क्या होगा? इसी से सिद्ध होता है कि यह सब पूर्व नियोजित और सुविचारित था. * अंध श्रद्धा उन्मूलन के नाम पर सदियों से स्थापित किसी विषय और विधा की जड़ों में मठा डालकर गर्वित होने का भ्रम वही पाल सकता है जो नादान या स्वार्थप्रेरित हो.
* एक और बिंदु विचारणीय है कि क्या ज्योतिष को केवल सनातन धर्मी मानते हैं? इस्लाम के अनुयायी नजूमियों को स्वीकारते है. ईसाई भी ज्योतिष पर विश्वास करते हैं पर ज्योतिष को परखने के नाम पर केवल सनातनधर्मी ज्योतिषी परखे गए क्योंकि सनातनधर्मी ही सहिष्णु हैं. यदि निष्पक्षतापूर्वक ज्योतिष को परखा जाना था तो सभी प्रकार के ज्योतिषियों की परीक्षा विषय के विद्वान् विषयसम्मत तरीके से लेते.
 
* ज्योतिष के विविध अंग तथा उपांग हैं. हस्त रेखा, पद रेखा, मस्तक रेखा, शारीरिक गठन, कुण्डली, शगुन विद्या, प्रश्नोत्तर विद्या आदि अनेक ज्ञात-अज्ञात पक्ष हैं ज्योतिष के... समस्या की पहचान तथा निदान के अनेक उपायों में से किन्हें और क्यों चुना गया? इसका आधार क्या था? जिन्हें चुद दिया गया उसके पीछे क्या कारण और धरना है? छोडी गयी दिशों को सही माना गया या एक-के बाद एक उन को भी झूठा सिद्ध किया जाएगा? यह प्रश्न अनुत्तरित है.
 
* इस समस्त चर्चा का उद्देश्य मात्र इतना है कि दूरदर्शनी मनोरंजक कार्यक्रमों को प्रमाण नहीं माना जा सकता. ऐसे कार्यक्रम उद्देश्य विशेष से बनाये और दिखाए जाते हैं. भारत शासन ने इन कुछ कार्यक्रमों के कारण सदियों से परखी और स्वीकारी गयी ज्योतिष विद्या पर प्रतिबन्ध लगाने की दुर्बुद्धिपूर्ण माँग को अस्वीकार कर एक सही निर्णय लिया है जिसे आम लोगों द्वारा सराहा जाना जरूरी है. ज्योतिषप्रेमियों को इस निर्णय हेतु भारत सरकार को धन्यवाद देना चाहिए और सम्बंधित मत्रियों औए अधिकारियों को साधुवाद देना चाहिए. किसी सही निर्णय को समय पर ना सराहा जाये तो उसका औचित्य शंकास्पद हो जाता है.
 
* दिव्य नर्मदा परिवार तहे-दिल से ज्योतिष पर प्रतिबन्ध लगाने की माँग को ठुकराने के निर्णय के साथ है तथा निर्णयकर्ताओं के प्रति आभार व्यक्त करता है.

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दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम