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शुक्रवार, 19 जुलाई 2019

स्मृति-गीत माँ के प्रति

स्मृति-गीत
माँ के प्रति:
संजीव
*
अक्षरों ने तुम्हें ही किया है नमन
शब्द ममता का करते रहे आचमन
वाक्य वात्सल्य पाकर मुखर हो उठे-
हर अनुच्छेद स्नेहिल हुआ अंजुमन
गीत के बंद में छंद लोरी मृदुल
और मुखड़ा तुम्हारा ही आँचल धवल
हर अलंकार माथे की बिंदी हुआ-
रस भजन-भाव जैसे लिए चिर नवल
ले अधर से हँसी मुक्त मुक्तक हँसा
मौन दोहा हृदय-स्मृति ले बसा
गीत की प्रीत पावन धरोहर हुई-
मुक्तिका ने विमोहा भुजा में गसा
लय विलय हो तुम्हीं सी सभी में दिखी
भोर से रात तक गति रही अनदिखी
यति कहाँ कब रही कौन कैसे कहे-
पीर ने धीर धर लघुकथा नित लिखी
लिपि पिता, पृष्ठ तुम, है समीक्षा बहन
थिर कथानक अनुज, कथ्य तुमको नमन
रुक! सखा चिन्ह कहते- 'न संजीव थक'
स्नेह माँ की विरासत हुलस कर ग्रहण
साधना माँ की पूनम बने रात हर
वन्दना ओम नादित रहे हर प्रहर
प्रार्थना हो कृपा नित्य हनुमान की
अर्चना कृष्ण गुंजित करें वेणु-स्वर
माँ थी पुष्पा चमन, माँ थी आशा-किरण
माँ की सुषमा थी राजीव सी आमरण
माँ के माथे पे बिंदी रही सूर्य सी-
माँ ही जीवन में जीवन का है अवतरण
*
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com

रविवार, 7 अक्टूबर 2018

smruti geet

स्मृति-गीत
*
शत-शत नमन पूज्य माँ-पापा
यह जीवन है
देन तुम्हारी.
*
वसुधा-नभ तुम, सूर्य-धूप तुम
चंद्र-चाँदनी, प्राण-रूप तुम
ममता-छाया, आँचल-गोदी
कंधा-अँगुली, अन्न-सूप तुम
दीप-ज्योति तुम
'मावस हारी
*
दीपक-बाती, श्वास-आस तुम
पैर-कदम सम, 'थिर प्रयास तुम
तुमसे हारी सब बाधाएँ
श्रम-सीकर, मन का हुलास तुम
गयी देह, हैं
यादें प्यारी
*
तुममें मैं था, मुझमें तुम हो
पल-पल सँग रहकर भी गुम हो
तब दीखते थे आँख खोलते
नयन मूँद अब दीखते तुम हो
वर दो, गहें
विरासत प्यारी
*
रहे महकती सींचा जिसको
तुमने वह
संतति की क्यारी
***
७.१०.२०१८

गुरुवार, 8 जून 2017

smruti geet

प्रख्यात भूविद डॉ. एस.एस. श्रीवास्तव लखनऊ दिवंगत
गत २ जून २०१७ को प्रख्यात भूविद डॉ. एस. एस. श्रीवास्तव का लम्बी - जटिल बीमारी के पश्चात् देहावसान हो गया. सहधर्मिणी श्रीमती सुमन श्रीवास्तव (कवयित्री-लघुकथाकार) ने जिस समर्पण, कुशलता, धैर्य, निष्ठा तथा निरंतरतापूर्वक अपने जीवनसाथ की श्वासें बचाने के लिए काल से लोहा लिया वह असाधारण है। डॉ. श्रीवास्तव के अल्प सानिंध्य में उनकी जिजीविषा, जीवट और मानवीयता के जिन पहलुओं से परिचित हो सका वह प्रणम्य है। माननीय सुमन जी, स्वजनों-परिजनों के शोक में सहभागी होते हुए दिवंगत महाप्राण की स्मृतियों को नतशिर नमन.
विश्व वाणी हिंदी भाषा-साहित्य संस्थान डॉ. एस. एस. श्रीवास्तव के परलोक प्रस्थान जनित पीड़ा के क्षणों में आत्मीय सुमन जी, पुत्र डॉ. सुधांशु तथा स्वजनों के प्रति संवेदना व्यक्त करता है। दिवंगत की पुण्य स्मृति में शान्ति पाठ तथा हवन ९ जून २०१७ को प्रात: ९ बजे श्रीवास्तव निवास बी. जी. २, विंकन होम्स, ६ फान ब्रेक अवेन्यु, सरोजिनी नायडू मार्ग लखनऊ में है।
***
स्मृति गीत-
दादा नहीं रहे...
*
कैसे हो विश्वास
हमारे दादा नहीं रहे?
*
दुर्बल तन
मन वज्र सरीखा।
तेज आत्म का
मुख पर देखा।
तन दधीचि सा
मुस्काते लब-
कितना कुछ
कह डाला पल में
लेकिन बिना कहे
कैसे हो विश्वास
हमारे दादा नहीं रहे?
*
भूविद थे
उदार धरती सम।
सु-मन मना
अँखियाँ चमकीं नम।
सुमन-सुवासित
श्वास-श्वास तव,
अस्फुट ध्वनियों के
वर्तुल बुन
किस्से अगिन कहे?
कैसे हो विश्वास
हमारे दादा नहीं रहे?
*
यादें मन में
अमिट-अमर शत।
फिर-फिर जीवित
होता है गत।
भीष्म पितामह
शर-शैया पर.
अविचल लेटे
मन ही मन में
नव संकल्प तहे
कैसे हो विश्वास
हमारे दादा नहीं रहे?
*
अब भी जगत
वही-वैसा है।
किन्तु न कुछ
पहले जैसा है।
सुमन-भाल का
सूर्य ग्रहण से
अस्त हुआ न दहे.
कैसे हो विश्वास
हमारे दादा नहीं रहे?
*
अक्षय निधि है
कर्म विरासत।
हम सब गहें
न तजें सिया-सत।
दर्द सुमन-मन का
सहभागी हो मन
मौन तहे.
कैसे हो विश्वास
हमारे दादा नहीं रहे?
****

मंगलवार, 2 अगस्त 2016

स्मृति गीत

भाई ओंकार श्रीवास्तव के प्रति
स्मरण गीत
*
वह निश्छल मुस्कान
कहाँ हम पायेंगे?
*
मन निर्मल होता तुममें ही देखा था
हानि-लाभ का किया न तुमने लेखा था
जो शुभ अच्छा दिखा उसी का वन्दन कर
संघर्षित का तिलक किया शुचि चन्दन कर
कब ओंकारित स्वर
हम फिर सुन पायेंगे?
*
श्री वास्तव में तुमने ही तो पाई है
ज्योति शक्ति की जन-मन में सुलगाई है
चित्र गुप्त प्रतिभा का देखा जिस तन में
मिले लक्ष्य ऐसी ही राह सुझाई है
शब्द-नाद जयकार
तुम्हारी गायेंगे
*
रेवा के सुत,रेवा-गोदी में सोए
नेह नर्मदा नहा, नए नाते बोए
मित्र संघ, अभियान, वर्तिका, गुंजन के
हित चिंतक! हम याद तुम्हारी में खोए
तुम सा बंधु-सुमित्र न खोजे पायेंगे 
***

मंगलवार, 28 जून 2016

smruti geet

स्मृति गीत
*
अपलक तुम्हें निहारूँ कैसे ?
*
नयन खुले तो लुक-छिप जाते
नयन मुँदे तो झलक दिखाते
ओ मेरे तुम! कहाँ खो गये?
रोक न पाये हम पछताते
जब तक सिर पर छाँव रही तव
तब तक हमने धूप न जानी
तुम बिन नाते हुए पराये
तुम बिन यह दुनिया बेगानी
बोलो तुम्हीं गुहारूँ कैसे
अपलक तुम्हें निहारूँ कैसे ?
*
सुधियों से मन भर आता है
तुम्हें याद कर तर जाता है
तुम नर्मदा-अमरकंटक से-
जननि-जनक पावन नाता है
बूँद मात्र हम, सलिल-धार तुम
जान सके अब, थे अपार तुम
शिला सदृश जग निर्मम-निष्ठुर
करो कृपा, सुन लो गुहार तुम
तनिक कहो अवतारूँ कैसे?
अपलक तुम्हें निहारूँ कैसे ?
*
कैंया मिली, मचलना सीखा
अँगुली थामी, चलना सीखा
गिर-रोये, आ तुरत उठाया
गिर-उठ,चलना-बढ़ना सीखा
तुमसे साँसें-सपने पाये
रिश्ते-नाते अपने पाये
हमसे कब-क्या खता हो गयी?
गये दूर, अब तलक न आये
श्वास-श्वास में बसे हुए हो
पल भर कहो बिसारूँ कैसे?
***
(संस्कारी जातीय, मुक्तक छन्द)

रविवार, 19 जून 2016

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स्मृति गीत:
हर दिन पिता याद आते हैं...

इनलाइन चित्र 1
संजीव 'सलिल' 
*
जान रहे हम अब न मिलेंगे. 
यादों में आ, गले लगेंगे.
आँख खुलेगी तो उदास हो-
हम अपने ही हाथ मलेंगे. 
पर मिथ्या सपने भाते हैं.
हर दिन पिता याद आते हैं...
*
*
लाड, डांट, झिडकी, समझाइश.
कर न सकूँ इनकी पैमाइश. 
ले पहचान गैर-अपनों को-
कर न दर्द की कभी नुमाइश.
अब न गोद में बिठलाते हैं.
हर दिन पिता याद आते हैं...
*

अक्षर-शब्द सिखाये तुमने.
नित घर-घाट दिखाए तुमने.
जब-जब मन कोशिश कर हारा-
फल साफल्य चखाए तुमने.
पग थमते, कर जुड़ जाते हैं 
हर दिन पिता याद आते हैं...
*