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सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

laghukatha

लघुकथा -
आलिंगन का संसार 
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अलगू और जुम्मन को दो राजनैतिक दलों ने टिकिट देकर चुनाव क्या लड़ाया उनका भाईचारा ही समाप्त हो गया। दोनों ने एक-दूसरे के आचार-विचार की ऐसी बखिया उधेड़ी कि तीसरा जीत गया पर दोनों के मन में एक-दूसरे के लिये कटुता का बीज बो गया। फलत:, मिलना-जुलना तो बंद हो ही गया, दुश्मनी भी पल गयी। 

एक दिन रात को अँधेरे में लौटते हुए अलगू का बच्चा दुर्घटनाग्रस्त हो गया, कुछ देर बाद जुम्मन वहाँ से गुजरा, भीड़ देखकर कारण पूछा, पता लगा अलगू बच्चे को लेकर अस्पताल गया है। सोचा चुपचाप सरक जाए पर मन न माना, बरबस वह भी अस्पताल पहुँच गया। कान में आवाज़ सुनायी दी बच्चा रोते-रोते भी पिता से उसे बुलाने की ज़िद कर रहा था। डॉक्टर निश्चेतक (अनिस्थीसिया) देकर बच्चे को शल्य क्रिया कक्ष में ले गया। कुछ देर बाद चढ़ाने के लिये खून की जरूरत हुई, घर के किसी व्यक्ति का खून बच्चे के खून से न मिला। जुम्मन का खून उसी रक्त समूह का था, उसने बिना देर अपना खून दे दिया।  

अलगू और लोगों को लेकर लौटा तो निगाह जुम्मन के जूतों पर पड़ी। उसे सच समझने में देर न लगी, झपट कर कमरे में घुसा और खून देकर उठ रहे जुम्मन को बाँहों में भरकर सिसक पड़ा,  आँखों से भी आँसू बह निकले और फिर आबाद हो गया आलिंगन का संसार।

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बुधवार, 22 जुलाई 2009

तेवरी, मुक्तिका, गीतिका या गजल

गीतिका

आचार्य संजीव 'सलिल'

आते देखा खुदी को जब खुदा ही जाता रहा.
गयी दौलत पास से क्या, दोस्त ही जाता रहा.

दर्दे-दिल का ज़िक्र क्यों हो?, बात हो बेबात क्यों?
जब ये सोचा बात का सब मजा ही जाता रहा.

ठोकरें हैं राह का सच, पूछ लो पैरों से तुम.
मिली सफरी तो सफर का स्वाद ही जाता रहा.

चाँद को जब तक न देखा चाँदनी की चाह की.
शमा से मिल शलभ का अरमान ही जाता रहा

'सलिल' ने मझधार में कश्ती को तैराया सदा.
किनारों पर डूबकर सम्मान ही जाता रहा..