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गुरुवार, 2 सितंबर 2021

हरतालिका तीज, गणेश चतुर्थी

पर्व: 
हरतालिका तीज : क्यों और कैसे
*
 प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल तृतीया को सौभाग्यवती स्त्रियों का यह पवित्र पर्व आता है। इस दिन निर्जल रहकर व्रत किया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएँ अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं तथा अविवाहिता कन्याएँ अच्छा वर पाने की कामना से यह व्रत रखती हैं। हरतालिका तीज में भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है। भाद्रपद शुक्ल तृतीया को आने वाले तीज व्रत की भारतीय महिलाओं के सबसे कठिन व्रतों में गिनती होती है।  यह पर्व उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश समेत कई उत्तर-पूर्वीय राज्यों में श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है।

हरतालिका तीज पर भगवान शिव, माता पार्वती तथा भगवान श्री गणेश की पूजा-अर्चना की जाती है। हरतालिका व्रत निराहार और निर्जला रहकर किया जाता है। मान्यतानुसार इस व्रत के दौरान महिलाएँ सुबह से लेकर अगले दिन सुबह सूर्योदय तक जल ग्रहण तक नहीं कर सकतीं। 
संक्षिप्त विधि
१. हरतालिका तीज में श्रीगणेश, भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है।
२. सबसे पहले मिट्टी से तीनों की प्रतिमा बनाएँ और भगवान गणेश को तिलक करके दूर्वा अर्पित करें।
३. इसके बाद भगवान शिव को फूल, बेलपत्र और शमी पत्र अर्पित करें और माता पार्वती को श्रृंगार समर्पित करें।
४. तीनों देवताओं को वस्त्र अर्पित करने के बाद हरतालिका तीज व्रत कथा सुनें या पढ़ें।
५. इसके बाद श्री गणेश की आरती करें और भगवान शिव और माता पार्वती की आरती उतारने के बाद भोग लगाएँ।
हरतालिका तीज के मंत्र-
* 'उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये'
* कात्यायिनी महामाये महायोगिनीधीश्वरी
नन्द-गोपसुतं देवि पतिं में कुरु ते नम:
* गण गौरी शंकरार्धांगि यथा त्वं शंकर प्रिया।
मां कुरु कल्याणी कांत कांता सुदुर्लभाम्।।
* ॐ पार्वतीपतये नमः
***
गणेश चतुर्थी 
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मिट्टी से विघ्नेश गणेश जी की प्रतिमा बनाकर हरित दूर्वा के २१ अंकुर लेकर दो-दो को एक साथ  निम्न नामों के साथ प्रणाम कर अर्पित करें। 
ॐ गणाधिपतये नम:  
ॐ गौरीसुवनाय नम: 
ॐ अघनाशकाय नम: 
ॐ एकदंताय नम: 
ॐ शिवपुत्राय नम: 
ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नम: 
ॐ विनायकाय नम: 
ॐ रिद्धि-सिद्धिपतये नम: 
ॐ इभवक्त्राय नम: 
ॐ विघ्नेवश्वराय नम: 
ॐ गजवदनाय नम: 
सभी को प्रसाद वितरण कर स्वयं ग्रहण करें। 
कथा 
किसी समय शिव जी कैलाश पर्वत से भोगवती नमक स्थान के लिए गए। पार्वती जी ने अपने उबटन से एक मानवाकृति बनाकर द्वार पर रख उसे सजीव कर द्वार पर खड़ाकर किसी को प्रवेश न करने देने का निर्देश दिया और स्नान करने चली गईं। कुछ देर बाद  लौटे। गणेश जी ने उन्हें गृह में प्रवेश करने से रोका।  दोनों में विवाद और युद्ध हुआ। गणेश जी ने शौर्यपूर्वक युद्ध किया किंतु शिव जी ने त्रिशूल से उनका सर काट दिया।  क्रुद्ध शिव जी ने घर में प्रवेश किया। पार्वती जी ने उन्हें शांत करते हुए भोजन हेतु पूछा और तीन थालियाँ परोसी। शिव जी ने पूछा कि तीसरी थाली किसके लिए है, तब पार्वती जी ने गणेश जी के विषय में बताया। शिव जी ने पछताते हुए उन्हें पूरी बात बताई तो पार्वती जी द्वार की और दौड़ी गईं और पुत्र गणेश के शव को देखकर विलाप करने लगीं। शिव जी ने अपने गणों  दिया कि जिस नवजात की माँ उसकी ओर पीठ कर सो रही हो उसका सिर ले आएँ। गणों को एक हथिनी अपने शिशु की ओर पीठ किए दिखी, वे गजशिशु का सर काटकर ले आए। शिव जी ने उसे गणेश जी के धड़ पर लगाकर उनमें जीवन का संचार कर दिया। प्रसन्न पार्वती जी और शिव जी ने शिशु गणेश को चिरजीवी और जगज्जयी होने का वर दिया। 
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बुधवार, 19 सितंबर 2012

प्रातस्मरण स्तोत्र (दोहानुवाद सहित) -संजीव 'सलिल'

II ॐ  श्री गणधिपतये नमः II


== प्रातस्मरण स्तोत्र (दोहानुवाद सहित) ==



हिंदी काव्यानुवाद: संजीव 'सलिल'
*
प्रात:स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं सिंदूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मं
उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्डमाखण्डलादि सुरनायक वृन्दवन्द्यं
*
प्रात सुमिर गणनाथ नित, दीनस्वामि नत माथ.
शोभित गात सिंदूर से, रखिये सिर पर हाथ..
विघ्न-निवारण हेतु हों, देव दयालु प्रचण्ड.
सुर-सुरेश वन्दित प्रभो!, दें पापी को दण्ड..



प्रातर्नमामि चतुराननवन्द्यमान मिच्छानुकूलमखिलं च वरं ददानं.
तं तुन्दिलंद्विरसनाधिप यज्ञसूत्रं पुत्रं विलासचतुरं शिवयो:शिवाय.
*
ब्रम्ह चतुर्मुखप्रात ही, करें वन्दना नित्य.
मनचाहा वर दास को, देवें देव अनित्य..
उदर विशाल- जनेऊ है, सर्प महाविकराल.
क्रीड़ाप्रिय शिव-शिवासुत, नमन करूँ हर काल..



प्रातर्भजाम्यभयदं खलु भक्त शोक दावानलं गणविभुंवर कुंजरास्यम.
अज्ञानकाननविनाशनहव्यवाह मुत्साहवर्धनमहं सुतमीश्वरस्यं..
*
जला शोक-दावाग्नि मम, अभय प्रदायक दैव.
गणनायक गजवदन प्रभु!, रहिए सदय सदैव..

जड़-जंगल अज्ञान का, करें अग्नि बन नष्ट.
शंकर-सुत वंदन नमन, दें उत्साह विशिष्ट..

श्लोकत्रयमिदं पुण्यं, सदा साम्राज्यदायकं.
प्रातरुत्थाय सततं यः, पठेत प्रयाते पुमान..

नित्य प्रात उठकर पढ़े, त्रय पवित्र श्लोक.
सुख-समृद्धि पायें 'सलिल', वसुधा हो सुरलोक..


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Acharya Sanjiv verma 'Salil'
सलिल.संजीव@जीमेल.com
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