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शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

हास्य सलिला लालू जी बाजार गये

हास्य सलिला
लालू जी बाजार गये

संजीव
*
लालू जी बाजार गये, उस दिन लाली के साथ
पल भर भी छोड़ा नहीं, लिये हाथ में हाथ
दोस्त साथ था हुआ चमत्कृत बोला: 'भैया! खूब
दिन भर भउजी के ख्याल में कैसे रहते डूब?
इतनी रहती फ़िक्र, न छोड़ा पल भर को भी हाथ'
लालू बोले: ''गलत न समझो, झुक जाएगा माथ
ज्यों छोडूँगा हाथ, तुरत ही आ जाएगी आफत
बिना बात क्यों कहो बुलाऊँ खुद ही अपनी शामत?
ज्यों छूटेगा हाथ खरीदी कर लेगी यह खूब
चुका न पाऊँ इतने कर्जे में जाऊँगा डूब''
***
३१-७-२०१५
salil.sanjiv@gmail.com
#दिव्यनर्मदा
#divyanarmada
#हिंदी_ब्लॉगर

मंगलवार, 4 अगस्त 2015

hasya salila

हास्य सलिला:
संवाद
संजीव
*
'ए जी! कितना त्याग किया करती हैं हम बतलाओ
तुम मर्दों ने कभी नहीं कुछ किया तनिक शरमाओ
षष्ठी, करवाचौथ कठिन व्रत करते हम चुपचाप
फिर भी मर्द मियाँ मिट्ठू बनते हैं अपने आप'

"लाली की महतारी! नहीं किसी से कम हम मर्द
करें न परवा निज प्राणों की चुप सहते हर दर्द
माँ-बीबी दो पाटों में फँस पिसते रहते मौन
दोनों दावा करें अधिक हक़ उसका, टोंके कौन?
व्रत कर इतने वर माँगे, हैं प्रभु जी भी हैरान
कन्याएँ कम हुईं न माँगी तुमने क्यों नादान?
कह कम ज्यादा सुनो हमेशा तभी बनेगी बात
जीभ कतरनी बनी रही तो बात बढ़े बिन बात
सास-बहू, भौजाई-ननद, सुत-सुता रहें गर साथ
किसमें दम जो रोक-टोंक दे?, जगत झुकाये माथ"

' कहते तो हो ठीक न लेकिन अगर बनायें बात
खाना कैसे पचे बताओ? कट न सकेगी रात
तुम मर्दों के जैसे हम हो सके नहीं बेदर्द
पहले देते दर्द, दवा दे होते हम हमदर्द
दर्द न होता मर्दों को तुम कहते, करें परीक्षा
राज्य करें पर घर आ कैसे? शिक्षा लो, दे दीक्षा'

*** 

बुधवार, 19 सितंबर 2012

हास्य सलिला: उमर क़ैद संजीव 'सलिल'



हास्य सलिला:

उमर क़ैद

संजीव 'सलिल'



नोटिस पाकर कचहरी पहुँचे चुप दम साध.
जज बोलीं: 'दिल चुराया, है चोरी अपराध..'

हाथ जोड़ उत्तर दिया, 'क्षमा करें सरकार!.
दिल देकर ही दिल लिया, किया महज व्यापार..'

'बेजा कब्जा कर बसे, दिल में छीना चैन.
रात स्वप्न में आ किया, बरबस ही बेचैन..

लाख़ करो इनकार तुम, हम मानें इकरार.
करो जुर्म स्वीकार- अब, बंद करो तकरार..'

'देख अदा लत लग गयी, किया न कोई गुनाह.
बैठ अदालत में भरें, हम दिल थामे आह..'

'नहीं जमानत मिलेगी, सात पड़ेंगे फंद.
उम्र क़ैद की अमानत, मिली- बोलती बंद..

***


Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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रविवार, 9 सितंबर 2012

हास्य सलिला: करो समय पर काम संजीव 'सलिल'


हास्य सलिला:




करो समय पर काम



संजीव 'सलिल'
*
गये लिवाने पत्नि जी को, लालू जी ससुराल
साली जी ने आवभगत की, खुश थे लालू लाल..

सासू ने स्वादिष्ट बनाये, जी भरकर पकवान.
खूब खिलाऊँगी लाल को, जी में था अरमान..

लेट लतीफी लालू की, आदत से सब हैरान.
राह देखते भूख लगी, ज्यों निकल जायेगी जान..

जमकर खाया, गप्पे मरीन, टी.व्ही. भी था चालू.
झपकी लगी, घुसे तब घर में बिन आहट के लालू..

उठा न कोई, भुखियाए थे, गये रसोई अन्दर.
थाली में जो मिला खा रहे, ज्यों हो कोई बन्दर..

खटपट सुन जागी सासू जी, देखा तो खिसियाईं.
'बैला का हिस्सा खा गये तुम, लाला!' वे रुस्वाईं..

झुंझलाई बीबी, सालों ने, जमकर किया मजाक.
'बुला रहे हल-बक्खर' सुनकर, नाक हो गयी लाल..

लालू जी को मिला सबक, सब करो समय पर काम.
'सलिल' अन्यथा हो सकता है, जीना कठिन हराम..


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मंगलवार, 4 सितंबर 2012

हास्य सलिला ... पहचान लीजिए संजीव 'सलिल'

हास्य सलिला ...

पहचान लीजिए
संजीव 'सलिल'
*



जो भी जाता मित्र प्रसाधन, जैसे ही बाहर आता.
चक्कर में हम, समझ न पाये, क्यों रह-रहकर मुस्काता?

जिससे पूछा, मौन रहा वह, बढ़ती जाती उत्सुकता-
आखिर एक मित्र बोला: ' क्यों खुद न देखकर है आता?'

गया प्रसाधन, रोक न पाया, मैं खुद को मुस्काने से.
सत्य कहूँ?, अंकित दीवार पर, काव्य पंक्तियाँ गाने से.

शहरयार होते.. क्या करते?, शायद पहले खिसियाते.
रचना का उपयोग अनोखा, देख 'सलिल' फिर मुस्काते.

उत्सुकता से हों नहीं अधिक आप बेज़ार
क्या अंकित था पढ़ें और फिर दाद दीजिये.

''इस अंजुमन में आपको आना है बार-बार
दीवारो-दर को गौर से पहचान लीजिए...''




Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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