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रविवार, 17 मई 2009

काव्य किरण: चुटकी -अमरनाथ, लखनऊ

नव काव्य विधा: चुटकी

समयाभाव के इस युग में बिन्दु में सिन्धु समाने का प्रयास सभी करते हैं। शहरे-लखनऊ के वरिष्ठ रचनाकार अभियंता अमरनाथ ने क्षणिकाओं से आगे जाकर कणिकाओं को जन्म दिया है जिन्हें वे 'चुटकी' कहते हैं। चुटकी काटने की तरह ये चुटकियाँ आनंद और चुभन की मिश्रित अनुभूति कराती हैं। अंगरेजी के paronyms की तरह इसकी दोनों पंक्तियों में एक समान उच्चारण लिए हुए कोई एक शब्द होता है जो भिन्नार्थ के कारण मजा देता है।
इस्मत


नाम तो रखती वो इस्मत।
बेचती-फिरती वो इस्मत।

अजहर

जो भी पीता नित्य ज़हर
कहते सब उसको अजहर।

आरा

रहता है वो आरा
लिए हाथ में आरा।


ज्येष्ठ

आता महिना जब भी ज्येष्ठ
उसको छेड़ता अक्सर ज्येष्ठ।

महिषी

कैसी तुम पट्टराज महिषी
तुमको देख रंभात महिषी।


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