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गुरुवार, 25 जुलाई 2019

मुक्तिका: बिटिया

दोहाः
छूट गया क्यों हाथ से, श्वासों का संतूर
प्यासी आसें रह गयीं, मन्जिल भी है दूर..
मुक्तिका:
बिटिया
संजीव 'सलिल'
*
*
चाह रहा था जग बेटा पर अनचाहे ही पाई बिटिया.
अपनों को अपनापन देकर, बनती रही पराई बिटिया..
कदम-कदम पर प्रतिबंधों के अनुबंधों से संबंधों में
भैया जैसा लाड़-प्यार, पाने मन में अकुलाई बिटिया..
झिड़की ब्यारी, डांट कलेवा, घुड़की भोजन था नसीब में.
चौराहों पर आँख घूरती, तानों से घबराई बिटिया..
नत नैना, मीठे बैना का, अमिय पिला घर स्वर्ग बनाया.
हाय! बऊ, दद्दा, बीरन को, बोझा पड़ी दिखाई बिटिया..
खान गुणों की रही अदेखी, रंग-रकम की माँग बड़ी थी.
बीसों बार गयी देखी, हर बार गयी ठुकराई बिटिया..
करी नौकरी घर को पाला, फिर भी शंका-बाण बेधते.
तनिक बोल ली पल भर हँसकर, तो हरजाई कहाई बिटिया..
राखी बाँधी लेकिन रक्षा करने भाई न कोई पाया.
मीत मिले जो वे भी निकले, सपनों के सौदाई बिटिया..
जैसे-तैसे ब्याह हुआ तो अपने तज अपनों को पाया.
पहरेदार ननदिया कर्कश, कैद भई भौजाई बिटिया..
पी से जी भर मिलन न पाई, सास साँस की बैरन हो गयी.
चूल्हा, स्टोव, दियासलाई, आग गयी झुलसाई बिटिया..
फेरे डाले सात जनम को, चंद बरस में धरम बदलकर
लाया सौत सनम, पाये अब राह कहाँ?, बौराई बिटिया..
दंभ जिन्हें हो गए आधुनिक, वे भी तो सौदागर निकले.
अधनंगी पोशाक, सुरा, गैरों के साथ नचाई बिटिया..
मन का मैल 'सलिल' धो पाये, सतत साधना स्नेह लुटाये.
अपनी माँ, बहिना, बिटिया सम, देखे सदा परायी बिटिया..
*******************************************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

बुधवार, 25 जुलाई 2018

muktika, bitiya

मुक्तिका:
बिटिया
संजीव 'सलिल'
*
चाह रहा था जग बेटा पर अनचाहे ही पाई बिटिया.
अपनों को अपनापन देकर, बनती रही पराई बिटिया..
कदम-कदम पर प्रतिबंधों के अनुबंधों से संबंधों में
भैया जैसा लाड़-प्यार, पाने मन में अकुलाई बिटिया..
झिड़की ब्यारी, डांट कलेवा, घुड़की भोजन था नसीब में.
चौराहों पर आँख घूरती, तानों से घबराई बिटिया..
नत नैना, मीठे बैना का, अमिय पिला घर स्वर्ग बनाया.
हाय! बऊ, दद्दा, बीरन को, बोझा पड़ी दिखाई बिटिया..
खान गुणों की रही अदेखी, रंग-रकम की माँग बड़ी थी.
बीसों बार गयी देखी, हर बार गयी ठुकराई बिटिया..
करी नौकरी घर को पाला, फिर भी शंका-बाण बेधते.
तनिक बोल ली पल भर हँसकर, तो हरजाई कहाई बिटिया..
राखी बाँधी लेकिन रक्षा करने भाई न कोई पाया.
मीत मिले जो वे भी निकले, सपनों के सौदाई बिटिया..
जैसे-तैसे ब्याह हुआ तो अपने तज अपनों को पाया.
पहरेदार ननदिया कर्कश, कैद भई भौजाई बिटिया..
पी से जी भर मिलन न पाई, सास साँस की बैरन हो गयी.
चूल्हा, स्टोव, दियासलाई, आग गयी झुलसाई बिटिया..
फेरे डाले सात जनम को, चंद बरस में धरम बदलकर
लाया सौत सनम, पाये अब राह कहाँ?, बौराई बिटिया..
दंभ जिन्हें हो गए आधुनिक, वे भी तो सौदागर निकले.
अधनंगी पोशाक, सुरा, गैरों के साथ नचाई बिटिया..
मन का मैल 'सलिल' धो पाये, सतत साधना स्नेह लुटाये.
अपनी माँ, बहिना, बिटिया सम, देखे सदा परायी बिटिया..
*******************************************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

बुधवार, 30 मई 2018

बालगीत: बिटिया रानी

बालगीत:
बिटिया रानी
*
आँख में आँसू, नाक से पानी
क्यों रूठी है बिटिया रानी?
*
पल में खिलखिल कर हँस देगी
झटपट कह दो 'बहुत सयानी'।
*
ठेंगा दिखा रही भैया को
नटखट याद दिलाती नानी।
*
बारिश में जा छप-छप करती
झबला पहने हरियल-धानी।
*
टप-टप टपक रही हैं बूँदें
भीग गया है छप्पर-छानी।
*
पैर पटककर मचल न जाए
करने दो इसको मनमानी।
***
३०.५.२०१८, ७९९९५५९६१८
salil.sanjiv@gmail.com

रविवार, 10 सितंबर 2017

beti / bitiya

बाल रचना
बिटिया छोटी
*
फ़िक्र बड़ी पर बिटिया छोटी
क्यों न खेलती कन्ना-गोटी?
*
ऐनक के काँचों से आँखें
झाँकें लगतीं मोटी-मोटी
*
इतनी ज्यादा गुस्सा क्यों है?
किसने की है हरकत खोटी
*
दो-दो फूल सजे हैं प्यारे
सर पर सोहे सुंदर चोटी
*
हलुआ-पूड़ी इसे खिलाओ
तनिक न भाती इसको रोटी
*
खेल-कूद में मन लगता है
नहीं पढ़ेगी पोथी मोटी
***

बालगीत

बिटिया

*

स्वर्गलोक से आयी बिटिया।
सबके दिल पर छाई बिटिया।।

यह परियों की शहजादी है।
खुशियाँ अनगिन लाई बिटिया।।

है नन्हीं, हौसले बड़े हैं।
कलियों सी मुस्काई बिटिया।।

जो मन भाये वही करेगी.
रोको, हुई रुलाई बिटिया।।

मम्मी दौड़ी, पकड़- चुपाऊँ.
हाथ न लेकिन आई बिटिया।।

ठेंगा दिखा दूर से हँस दी .
भरमा मन भरमाई बिटिया।।

दादा-दादी, नाना-नानी,
मामा के मन भाई बिटिया।।

मम्मी मैके जा क्यों रोती?
सोचे, समझ न पाई बिटिया।।

सात समंदर दूरी कितनी?
अंतरिक्ष हो आई बिटिया।।

*****
*
बाल गीत:
लंगडी
*आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
एक पैर लें
जमा जमीं पर।
रखें दूसरा
थोडा ऊपर।
बना संतुलन
निज शरीर का-
आउट कर दें
तुमको छूकर।
एक दिशा में
तुम्हें धकेलें।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
आगे जो भी
दौड़ लगाये।
कोशिश यही
हाथ वह आये।
बचकर दूर न
जाने पाए-
चाहे कितना
भी भरमाये।
हम भी चुप रह
करें झमेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....*
हा-हा-हैया,
ता-ता-थैया।
छू राधा को
किशन कन्हैया।
गिरें धूल में,
रो-उठ-हँसकर,
भूलें- झींकेगी
फिर मैया।
हर पल 'सलिल'
ख़ुशी के मेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
************
गीत :
राह देखती माँ की गोदी...
*
राह देखती माँ की गोदी
लाड़ो बिटिया आ जाओ.
प्यासी ममता हेर रही है-
कुछ तो प्यास बुझा जाओ....
*
नटखट-चंचल भोलापन
तेरा जीवन की थाती है.
दीप यहाँ मैं दूर कहीं तू-
लेकिन मेरी बाती है. 

दीपक-बाती साथ रहें कुछ पल
तो तम् मिट जायेगा.
अगरु-धूप सा स्मृतियों का
धूम्र सुरभि फैलाएगा.

बहुत हुआ अब मत तरसाओ
घर-अँगना में छा जाओ.
प्यासी ममता हेर रही है-
कुछ तो प्यास बुझा जाओ....
*
परस पुलक से भर देगा
जब तू कैयां में आयेगी.
बीत गयीं जो घड़ियाँ उनकी
फिर-फिर याद दिलायेगी.

सखी-सहेली, कौन कहाँ है?
किसने क्या खोया-पाया?
कौन कष्ट में भी हँसता है?
कौन सुखों में भरमाया?

पुरवाई-पछुआ से मिलकर
खिले जुन्हाई आ जाओ.
प्यासी ममता हेर रही है-
कुछ तो प्यास बुझा जाओ....
*
कुण्डलिया 
प्यारी बिटिया! यही है दुनिया का दस्तूर।
हर दीपक के तले है, अँधियारा भरपूर।
अँधियारा भरपूर मगर उजियारे की जय।
बाद अमावस के फिर सूरज ऊगे निर्भय।
हार न मानो, लडो, कहे चाचा की चिठिया।
जय पा अत्याचार मिटाओ, प्यारी बिटिया।

*********************************

लोकतंत्र में लोक ही, होता जिम्मेवार।
वही बनाता देश की भली-बुरी सरकार।
छोटे-छोटे स्वार्थ हित, जब तोडे कानून।
तभी समझ लो कर रहा, आजादी का खून।
भारत माँ को पूजकर, हुआ न पूरा फ़र्ज़।
प्रकृति माँ को स्वच्छ रख, तब उतरे कुछ क़र्ज़।

**************************************

ग़ज़ल 

तू न होकर भी यहीं है मुझको सच समझा गई ।
ओ मेरी माँ! बनके बेटी, फिर से जीने आ गई ।।

रात भर तम् से लड़ा, जब टूटने को दम हुई।
दिए के बुझने से पहले, धूप आकर छा गई ।।

नींव के पत्थर का जब, उपहास कलशों ने किया।
ज़मीं काँपी असलियत सबको समझ में आ गई ।।

सिंह-कुल-कुलवंत कवि कविता करे तो जग कहे।
दिल पे बीती आ जुबां पर ज़माने पर छा गई

बनाती कंकर को शंकर नित निनादित नर्मदा।
ज्यों की त्यों धर दे चदरिया 'सलिल' को सिखला गई ।।

*************************************

दोहे

जो सबको हितकर वही, होता है साहित्य।
कालजयी होता अमर, जैसे हो आदित्य.

सबको हितकर सीख दे, कविता पाठक धन्य।
बडभागी हैं कलम-कवि, कविता सत्य अनन्य।

********************************

सोमवार, 14 नवंबर 2016

baal geet

बाल रचना
बिटिया छोटी
*
फ़िक्र बड़ी पर बिटिया छोटी
क्यों न खेलती कन्ना-गोटी?
*
ऐनक के काँचों से आँखें
झाँकें लगतीं मोटी-मोटी
*
इतनी ज्यादा गुस्सा क्यों है?
किसने की है हरकत खोटी
*
दो-दो फूल सजे हैं प्यारे
सर पर सोहे सुंदर चोटी
*
हलुआ-पूड़ी इसे खिलाओ
तनिक न भाती इसको रोटी
*
खेल-कूद में मन लगता है
नहीं पढ़ेगी पोथी मोटी
***

मंगलवार, 28 जनवरी 2014

muktak: sanjiv

Sanjiv Verma 'salil'  
*
मुक्तक:
अंधेरों को चीरकर तुमकोउजाला मिलेगा 
सत्य-शिव-सुंदर वरो, मन में शिवाला मिलेगा 
सूर्य सी मेहनत करो बिन दाम सुबहो-शाम तुम-
तभी तो अमरत्व का तुमको निवाला मिलेगा 

andheron ko cheerkar nikalo uajala milega / 
satya shiv sundar varo man men shivala milega / 
surya si mehnat karo bin daam subho-shaam tum
tabhee amaratva ka tumako nivala milega.
*
बिटिया बोले तो बचपन को याद करो 
जब चुप तो खुद से ही संवाद करो
जब नाचे तो झूम उठो आनंद मना 
कभी न रोए प्रभु से यह फरियाद करो 

bitiya bole to bachpan ko yad karo / 
jab chup ho to khud se hee samvad karo / 
jab nache to jhoom utho anand mana / 
kabhee n roye prabhu se yah fariyaad karo.
*
नये हाथों को सहारा दें सदा
शुक्रिया मिलकर खुदा का हो अदा
नईं राहों पर चलें जो पग नये
मंज़िलें होंगी 'सलिल' उन पर फ़िदा

naye hathon ko sahara den sda/
shukriya milkar khuda ka ho ada/
nyi rahon par chale jo pag nye/
manzilen hongi 'salil' un par fida

*
salil.sanjiv@gmail.com / divyanarmada.blogspot.in

शुक्रवार, 3 मई 2013

hindi poem: acharya sanjiv verma 'salil'

कविता:


जीवन अँगना को महकाया

संजीव 'सलिल'
*
*
जीवन अँगना को महकाया
श्वास-बेल पर खिली कली की
स्नेह-सुरभि ने.
कली हँसी तो फ़ैली खुशबू
स्वर्ग हुआ घर.
कली बनी नन्हीं सी गुडिया.
ममता, वात्सल्य की पुडिया.
शुभ्र-नर्म गोला कपास का,
किरण पुंज सोनल उजास का.
उगे कली के हाथ-पैर फिर
उठी, बैठ, गिर, खड़ी हुई वह.
ठुमक-ठुमक छन-छननन-छनछन
अँगना बजी पैंजनिया प्यारी
दादी-नानी थीं बलिहारी.
*
कली उड़ी फुर्र... बनकर बुलबुल
पा मयूर-पर हँसकर-झूमी.
कोमल पद, संकल्प ध्रुव सदृश
नील-गगन को देख मचलती
आभा नभ को नाप रही थी.
नवल पंखुडियाँ ऊगीं खाकी
मुद्रा-छवि थी अब की बाँकी.
थाम हाथ में बड़ी रायफल
कली निशाना साध रही थी.
छननन घुँघरू, धाँय निशाना
ता-ता-थैया, दायें-बायें
लास-हास, संकल्प-शौर्य भी
कली लिख रही नयी कहानी
बहे नर्मदा में ज्यों पानी.
बाधाओं की श्याम शिलाएँ
संगमरमरी शिला सफलता
कोशिश धुंआधार की धारा
संकल्पों का सुदृढ़ किनारा.
*
कली न रुकती,
कली न झुकती,
कली न थकती,
कली न चुकती.
गुप-चुप, गुप-चुप बहती जाती.
नित नव मंजिल गहती जाती.
कली हँसी पुष्पायी आशा.
सफल साधना, फलित प्रार्थना.
विनत वन्दना, अथक अर्चना.
नव निहारिका, तरुण तारिका.
कली नापती नील गगन को.
व्यस्त अनवरत लक्ष्य-चयन में.
माली-मालिन मौन मनायें
कोमल पग में चुभें न काँटें.
दैव सफलता उसको बाँटें.
पुष्पित हो, सुषमा जग देखे
अपनी किस्मत वह खुद लेखे.
******************************
टीप : बेटी तुहिना (हनी) का राष्ट्रीय एन.सी.सी. थल सैनिक कैम्प में चयन होने पर पहुँचाने जाते समय रेल-यात्रा के मध्य १४.९.२००६ मध्य रात्रि को हुई कविता.
------- दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

गुरुवार, 18 अक्टूबर 2012

दो बालगीत: बिटिया / लंगडी आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

दो बालगीत: 

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

1- बिटिया

*

स्वर्गलोक से आयी बिटिया।
सबके दिल पर छाई बिटिया।।

यह परियों की शहजादी है।
खुशियाँ अनगिन लाई बिटिया।।

है नन्हीं, हौसले बड़े हैं।
कलियों सी मुस्काई बिटिया।।

जो मन भाये वही करेगी.
रोको, हुई रुलाई बिटिया।।

मम्मी दौड़ी, पकड़- चुपाऊँ.
हाथ न लेकिन आई बिटिया।।

ठेंगा दिखा दूर से हँस दी .
भरमा मन भरमाई बिटिया।।

दादा-दादी, नाना-नानी,
मामा के मन भाई बिटिया।।

मम्मी मैके जा क्यों रोती?
सोचे, समझ न पाई बिटिया।।

सात समंदर दूरी कितनी?
अंतरिक्ष हो आई बिटिया।।

*****
*
बाल गीत:
2- लंगडी

आचार्य संजीव 'सलिल'
*
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
एक पैर लें
जमा जमीं पर।
रखें दूसरा
थोडा ऊपर।
बना संतुलन
निज शरीर का-
आउट कर दें
तुमको छूकर।
एक दिशा में
तुम्हें धकेलें।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
आगे जो भी
दौड़ लगाये।
कोशिश यही
हाथ वह आये।
बचकर दूर न
जाने पाए-
चाहे कितना
भी भरमाये।
हम भी चुप रह
करें झमेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....*
हा-हा-हैया,
ता-ता-थैया।
छू राधा को
किशन कन्हैया।
गिरें धूल में,
रो-उठ-हँसकर,
भूलें- झींकेगी
फिर मैया।
हर पल 'सलिल'
ख़ुशी के मेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*************
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in.divyanarmada
94251 83244 / 0761 2411131

शनिवार, 25 सितंबर 2010

मुक्तिका: बिटिया संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

बिटिया

संजीव 'सलिल'
*
*
चाह रहा था जग बेटा पर अनचाहे ही पाई बिटिया.
अपनों को अपनापन देकर, बनती रही पराई बिटिया..

कदम-कदम पर प्रतिबंधों के अनुबंधों से संबंधों में
भैया जैसा लाड़-प्यार, पाने मन में अकुलाई बिटिया..

झिड़की ब्यारी, डांट कलेवा, घुड़की भोजन था नसीब में.
चौराहों पर आँख घूरती,  तानों से घबराई बिटिया..

नत नैना, मीठे बैना का, अमिय पिला घर स्वर्ग बनाया.
हाय! बऊ, दद्दा, बीरन को, बोझा पड़ी दिखाई बिटिया..

खान गुणों की रही अदेखी, रंग-रकम की माँग बड़ी थी.
बीसों बार गयी देखी, हर बार गयी ठुकराई बिटिया..

करी नौकरी घर को पाला, फिर भी शंका-बाण बेधते.
तनिक बोल ली पल भर हँसकर, तो हरजाई कहाई बिटिया..

राखी बाँधी लेकिन रक्षा करने भाई न कोई पाया.
मीत मिले जो वे भी निकले, सपनों के सौदाई बिटिया..

जैसे-तैसे ब्याह हुआ तो अपने तज अपनों को पाया.
पहरेदार ननदिया कर्कश, कैद भई भौजाई बिटिया..

पी से जी भर मिलन न पाई, सास साँस की बैरन हो गयी.
चूल्हा, स्टोव, दियासलाई, आग गयी झुलसाई बिटिया..

फेरे डाले सात जनम को, चंद बरस में धरम बदलकर
लाया सौत सनम, पाये अब राह कहाँ?, बौराई बिटिया..

दंभ जिन्हें हो गए आधुनिक, वे भी तो सौदागर निकले.
अधनंगी पोशाक, सुरा, गैरों के साथ नचाई बिटिया..

मन का मैल 'सलिल' धो पाये, सतत साधना स्नेह लुटाये.
अपनी माँ, बहिना, बिटिया सम, देखे सदा परायी बिटिया..

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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम