मुक्तिका:
मुस्कुराते रहो...
संजीव 'सलिल'
*

*
मुस्कुराते रहो, खिलखिलाते रहो
स्वर्ग नित इस धरा पर बसाते रहो..
*
गैर कोई नहीं, है अपरिचित अगर
बाँह फैला गले से लगाते रहो..
*
बाग़ से बागियों से न दूरी रहे.
फूल बलिदान के नव खिलाते रहो..
*
भूल करते सभी, भूलकर भूल को
ख्वाब नयनों में अपने सजाते रहो..
*
नफरतें दूर कर प्यार के, इश्क के
गीत, गज़लें 'सलिल' गुनगुनाते रहो..
***
मुस्कुराते रहो...
संजीव 'सलिल'
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मुस्कुराते रहो, खिलखिलाते रहो
स्वर्ग नित इस धरा पर बसाते रहो..
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गैर कोई नहीं, है अपरिचित अगर
बाँह फैला गले से लगाते रहो..
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बाग़ से बागियों से न दूरी रहे.
फूल बलिदान के नव खिलाते रहो..
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भूल करते सभी, भूलकर भूल को
ख्वाब नयनों में अपने सजाते रहो..
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नफरतें दूर कर प्यार के, इश्क के
गीत, गज़लें 'सलिल' गुनगुनाते रहो..
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