दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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बुधवार, 20 मई 2009
ग़ज़ल: मनु बेतखल्लुस, दिल्ली
ख़ुद ही अपने पे आजमाने हैं
सर्द रातें गुजारने के लिए,
धूप के गीत गुनगुनाने हैं
कैद सौ आफ़ताब तो कर लूँ,
क्या मुहल्ले के घर जलाने हैं
आ ही जायेंगे वो चराग ढले,
और उनके कहाँ ठिकाने हैं
फ़िक्र पर बंदिशें हजारों हैं,
सोचिये, क्या हसीं जमाने हैं
तुझ सा मशहूर हो नहीं सकता
तुझ से हटकर, मेरे फ़साने हैं
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
शुक्रवार, 15 मई 2009
ग़ज़ल: मनु बेतखल्लुस, दिल्ली
हस्रतों की उनके आगे यूँ नुमाईश हो गई
लब न हिल पाये निगाहों से गुजारिश हो गई
उम्र भर चाहा किए तुझको खुदा से भी सिवा
यूँ नहीं दिल में मेरे तेरी रिहाइश हो गई
अब कहीं जाना बुतों की आशनाई कहर है
जब किसी अहले-वफ़ा की आजमाइश हो गई
घर टपकता है मेरा, सो लौट जाएगा अबर
हम भरम पाले हुए थे और बारिश हो गई
जब तलक वो गौर फरमाते मेरी तहरीर पर
तब तलक मेरे रकीबों की सिफारिश हो गई
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
बुधवार, 6 मई 2009
ग़ज़ल: मनु बेतखल्लुस, दिल्ली
मेरी निगाह ने वा कर दिए बवाल कई,
हुए हैं जान के दुश्मन ही हमखयाल कई
नज़र मिलाते ही मुझसे वो हुआ,
कहा था जिसने के, आ पूछ ले सवाल कई
उलट पलट दिया सब कुछ नई हवाओं ने,
कई निकाल दिए, हो गए बहाल कई
कहीं पे नूर, कहीं ज़ुल्मतें बरसती रहीं,
दिखाए रौशनी ने ऐसे भी कमाल कई
है बादे-मर्ग की बस्ती ज़रा अदब से चल,
यहाँ पे सोये हैं, तुझ जैसे बेमिसाल कई ************