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मंगलवार, 9 अक्टूबर 2012

मुक्तिका : शब्द-तर्पण: माँ-पापा संजीव 'सलिल'

मुक्तिका : 

शब्द-तर्पण: माँ-पापा 

 

  

संजीव 'सलिल'

*
माँ थीं आँचल, लोरी, गोदी, कंधा-उँगली थे पापाजी.
माँ थीं मंजन, दूध-कलेवा, स्नान-ध्यान, पूजन पापाजी..
*
माँ अक्षर, पापा थे पुस्तक, माँ रामायण, पापा गीता.
धूप सूर्य, चाँदनी चाँद,  चौपाई माँ, दोहा पापाजी..
*
बाती-दीपक, भजन-आरती, तुलसी-चौरा, परछी आँगन.
कथ्य-बिम्ब, रस-भाव, छंद-लय, सुर-सरगम थे माँ-पापाजी..
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माँ ममता, पापा अनुशासन, श्वास-आस, सुख-हर्ष अनूठे.
नाद-थाप से, दिल-दिमाग से, माँ छाया तरु थे पापाजी..
*
इनमें वे थे, उनमें ये थीं, पग-प्रयास, पथ-मंजिल जैसे.
ये अखबार, आँख-चश्मा वे, माँ कर की लाठी पापाजी..
*
माला-जाप, भाल अरु चंदन, सब उपमाएँ लगतीं बौनी,
माँ धरती सी क्षमा दात्री,  नभ नीलाभ अटल पापाजी..
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माँ हरियाली पापा पर्वत, फूल और फल कह लो चाहे.
माँ बहतीं  थीं 'सलिल'-धार सी, कूल-किनारे थे पापाजी..
*