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बुधवार, 20 सितंबर 2017

navgeet

नवगीत
*
कचरखौंद जारी है,
झगड़ झिल्ल भारी है....
.
अड़भक्की नाम वर
देख भगे जानवर।
गर्दभ मिल नृत्यरत
काग पूजे तान भर।
गद्य खौंद कविता में
कवि हुआ मदारी है।
कचरखौंद जारी है,
झगड़ झिल्ल भारी है....
.
ठठा रहा बड़बोला
आग में जला टोला।
रास रचा, बाबा बन,
ठगे बोल बम भोला।
ढोल पीट, आत्म मुग्ध
मुआ खुद पुजारी है।
कचरखौंद जारी है,
झगड़ झिल्ल भारी है....
.
मूढ़मगज़ गड़ा दीठ
हेर रहे व्यास-पीठ।
देह देख कथ्य बिसर,
दाद देंय टाक ढीठ।
सुरसति की दुर्गति
सँग रमा की सवारी है।
कचरखौंद जारी है,
झगड़ झिल्ल भारी है....
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२०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१ 
salil.sanjiv@gmailcom, ९४२५१८३२४४ 
http://divyanarmada.blogspot.com 
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