दोहा सलिला:
अधर हुए रस लीन
संजीव 'सलिल'
*
अधर अधर पर जब धरे, अधर रह गये मूक.
चूक हुई कब?, क्यों?, कहाँ?, उठी न उर में हूक..
*
अधर अबोले बोलते, जब भी जी की बात.
अधर सुधारस घोलते, प्रमुदित होता गात..
*
अधर लरजते देखकर, अधर फड़ककर मौन.
किसने-किससे क्या कहा?, 'सलिल' बताये कौन??
*
अधर रीझकर अधर पर, सुना रहा नवगीत.
अधर खीझकर अधर से, कहे- मौन हो मीत..
*
तोता-मैना अधर के, किस्से हैं विख्यात.
कहने-सुनने में 'सलिल', बीत न जाये रात..
*
रसनिधि पाकर अधर में, अधर हुए रसलीन.
विस्मित-प्रमुदित हैं अधर, देख अधर को दीन..
*
अधर मिले जब अधर से, पल में बिसरा द्वैत.
माया-मायाधीश ने, पल में वरा अद्वैत..
*
अधरों का स्पर्श पा, वेणु-शंख संप्राण.
दस दिश में गुंजित हुए, संजीवित निष्प्राण..
*
तन-मन में लेने लगीं, अनगिन लहर लिहोर.
कहा अधर ने अधर से, 'अब न छुओ' कर जोर..
*
यह कान्हा वह राधिका, दोनों खासमखास.
श्वास वेणु बज-बज उठे, अधर करें जब रास..
*
ओष्ठ, लिप्स, लब, होंठ दें, जो जी चाहे नाम.
निरासक्त योगी अधर, रखें काम से काम..
*
अधर लगाते आग औ', अधर बुझाते आग.
अधर गरल हैं अमिय भी, अधर राग औ' फाग..
*
अधर अधर को चूमकर, जब करते रसपान.
'सलिल' समर्पण ग्रन्थ पढ़, बन जाते रस-खान..
*
अधराराधन के पढ़े, अधर न जब तक पाठ.
तब तक नीरस जानिए, उनको जैसे काठ..
*
अधर यशोदा कान्ह को, चूम हो गये धन्य.
यह नटखट झटपट कहे, 'मैया तुम्हीं अनन्य'..
*
दरस-परस कर मत तरस, निभा सरस संबंध.
बिना किसी प्रतिबन्ध के, अधर करे अनुबंध..
*
दिया अधर ने अधर को, पल भर में पैगाम.
सारा जीवन कर दिया, 'सलिल'-नाम बेदाम..
*
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
अधर हुए रस लीन
संजीव 'सलिल'
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अधर अधर पर जब धरे, अधर रह गये मूक.
चूक हुई कब?, क्यों?, कहाँ?, उठी न उर में हूक..
*
अधर अबोले बोलते, जब भी जी की बात.
अधर सुधारस घोलते, प्रमुदित होता गात..
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अधर लरजते देखकर, अधर फड़ककर मौन.
किसने-किससे क्या कहा?, 'सलिल' बताये कौन??
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अधर रीझकर अधर पर, सुना रहा नवगीत.
अधर खीझकर अधर से, कहे- मौन हो मीत..
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तोता-मैना अधर के, किस्से हैं विख्यात.
कहने-सुनने में 'सलिल', बीत न जाये रात..
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रसनिधि पाकर अधर में, अधर हुए रसलीन.
विस्मित-प्रमुदित हैं अधर, देख अधर को दीन..
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अधर मिले जब अधर से, पल में बिसरा द्वैत.
माया-मायाधीश ने, पल में वरा अद्वैत..
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अधरों का स्पर्श पा, वेणु-शंख संप्राण.
दस दिश में गुंजित हुए, संजीवित निष्प्राण..
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तन-मन में लेने लगीं, अनगिन लहर लिहोर.
कहा अधर ने अधर से, 'अब न छुओ' कर जोर..
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यह कान्हा वह राधिका, दोनों खासमखास.
श्वास वेणु बज-बज उठे, अधर करें जब रास..
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ओष्ठ, लिप्स, लब, होंठ दें, जो जी चाहे नाम.
निरासक्त योगी अधर, रखें काम से काम..
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अधर लगाते आग औ', अधर बुझाते आग.
अधर गरल हैं अमिय भी, अधर राग औ' फाग..
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अधर अधर को चूमकर, जब करते रसपान.
'सलिल' समर्पण ग्रन्थ पढ़, बन जाते रस-खान..
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अधराराधन के पढ़े, अधर न जब तक पाठ.
तब तक नीरस जानिए, उनको जैसे काठ..
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अधर यशोदा कान्ह को, चूम हो गये धन्य.
यह नटखट झटपट कहे, 'मैया तुम्हीं अनन्य'..
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दरस-परस कर मत तरस, निभा सरस संबंध.
बिना किसी प्रतिबन्ध के, अधर करे अनुबंध..
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दिया अधर ने अधर को, पल भर में पैगाम.
सारा जीवन कर दिया, 'सलिल'-नाम बेदाम..
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Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com