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शुक्रवार, 1 अगस्त 2025

अगस्त १, कब क्या, मुक्तक, सॉनेट, जनमत, तिलक, समीक्षा, पूर्णिका, नवगीत

सलिल सृजन अगस्त १
*
अगस्त : कब-क्या?
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०१ अगस्त - विश्व स्तनपान दिवस, बाल गंगाधर तिलक स्मृति दिवस, देवकीनंदन खत्री जयंती, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन जयंती, नारायण श्रीवास्तव १९५१
०२ अगस्त - दादरा एवं नगर हवेली मुक्ति दिवस
०३ अगस्त - प्रथम रविवार - फ्रेंडशिप डे, हृदय प्रत्यारोपण दिवस, नाइजर स्वतंत्रता दिवस, मैथिलीशरण गुप्त जयंती, नीलम कुलश्रेष्ठ १९७१
०४ अगस्‍त - किशोर कुमार जयंती, सहायक कुत्ता दिवस, अमेरिकी तट रक्षक दिवस
०५ अगस्त - शिवमंगल सिंह सुमन जयंती, गोलेन्द्र पटेल जयंती
०६ अगस्त - हिरोशिमा दिवस, विश्व शांति दिवस, सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी दिवस
०७ अगस्‍त - राष्‍ट्रीय हथकरघा दिवस, रवीन्द्रनाथ टैगोर स्मृति दिवस
०८. अगस्त - विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस, भीष्म साहनी जयंती, कृष्णकांत उपाध्याय जयंती,
०९ अगस्त - अगस्त क्रांति दिवस, नागासाकी दिवस, भारत छोड़ो आन्दोलन स्मृति दिवस, विश्व आदिवासी दिवस, राष्ट्रीय पुस्तक प्रेमी दिवस
१० अगस्‍त - विश्‍व जैव ईंधन दिवस, डेंगू निरोधक दिवस, विश्व शेर दिवस, पं. रघुनाथ पाणिग्रही निधन
११ अगस्त - खुदीराम बोस शहीद दिवस, दिलीप कुमार जन्म १९२२
१२ अगस्त - अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस, पुस्तकालयाध्यक्ष दिन, विक्रम साराभाई जन्‍म दिवस, विश्व हाथी दिवस, नाग पंचमी
१३ अगस्त - बाएँ हाथ के बल्लेबाज दिवस, विश्व अंगदान दिवस, डॉ. जहांआरा १९७०
१४ अगस्त - संस्‍कृत दिवस, पाकिस्तान स्वतंत्रता दिवस, स्वामी अखंडानंद सरस्वती जयन्ती, शहीद गुलाब सिंह पटेल पुण्य तिथि, निहाल तांबा जन्म,
१५ - स्वतंत्रता दिवस भारत, शोक दिवस बांग्ला देश, वर्जिन मैरी मान्यता दिवस, महर्षि अरविन्द घोष जयंती, महादेव देसाई दिवस, छाया सक्सेना जन्म १९७१, संतोष शुक्ला १९४२
१६ अगस्त - पांडिचेरी विलय दिवस, रानीअवन्ती बाई दिवस,
१७ अगस्त - इण्डोनेशिया का स्वतंत्रता दिवस, अमृतलाल नागर जयंती, शहीद मदनलाल ढींगरा दिवस, नेताजी वायुयान दुर्घटना
१८ अगस्त - सुभाष चंद्र बोस स्‍मृति दिवस , अफ़ग़ानिस्तान का स्वतंत्रता दिवस, देशज जन अधिकार दिवस, गुलज़ार जन्म, उदय भानु मधुकर जन्म १९४८
२०- विश्व मच्छर दिवस, सद्भावना दिवस, अक्षय ऊर्जा दिवस भारत
२३- विश्व दास व्यापार उन्मूलन दिवस, ब्लैक रिबन दिवस, इसरो दिवस
१९ अगस्त - विश्व मानवता दिवस , विश्व फोटोग्राफी दिवस, विश्व कमीज दिवस, चरक जयन्ती, संस्कृत दिवस,
२० अगस्त - विश्व मच्छर दिन, राजीव गांधी जयंती, अर्थ ओवरशूट डे, सद्भावना दिवस भारत, अक्षय ऊर्जा दिवस भारत, मनोहर 'आकाश' १९५०, संजीव वर्मा सलिल जन्म १९५२, संगीता भारद्वाज १९६७
२१ अगस्त - विष्णु दिगंबर पलुस्कर दिवस, बिस्मिल्ला खां निधन
२३ अगस्त - दास व्यापार उन्मूलन दिवस
२५ अगस्त - पं. रघुनाथ पाणिग्रही निधन,
२६ अगस्त - महिला समानता दिवस, अंतर्राष्ट्रीय श्वान दिवस, मदर टेरेसा जयंती
२७ अगस्त - मदर टेरेसा जयंती, महान गायक मुकेश जी की पुण्यतिथि
२८ अगस्त - रास बिहारी बोस दिवस, फिराक़ गोरखपुरी जयंती, राजेंद्र यादव जन्म, श्याम सखा 'श्याम' जन्म
२९ अगस्त - राष्‍ट्रीय खेल दिवस, ध्यानचंद जन्म दिवस,अन्तर्राष्ट्रीय नाभिकीय परीक्षण विरोध दिवस, वर्षा सिंह जन्म
३० अगस्त - लघु उद्योग दिवस, भगवती चरण वर्मा दिवस,
३१ अगस्त - अमृता प्रीतम जन्म, शिवाजी सावंत जन्म, मलेशिया दिवस
***
पूर्णिका
*
अंजली में सुमन रखिए
सुरभि फैला, मौन रहिए

मधुर वाणी कर्ण प्रिय सुन
विहँस कर रस-खान बनिए

कहें कम, पढ़-सुन अधिक नित
शुभाशुभ का मनन करिए

सलिल शीतल प्यास हरता
पी-पिला कर ईश भजिए

आत्म में परमात्म देखें
जीव को संजीव करिए
१.८.२०२५
***
सॉनेट
तिलक
*
तिलक आज होते; क्या करते?
क्या सत्ता सम्मुख झुक जाते?
मनमानी को शीश नवाते?
या चारण बन जय-जय गाते?
तिलक लोक में घुल-मिल जाते
लोक प्रथाओं को अपनाते
नहीं तंत्र से डर झुक जाते
रण की भेरी आप बजाते
तिलक माथ पर तिलक लगाते
जन जागृति का पथ अपनाते
नित 'सुराज' का पाठ पढ़ाते
दे 'स्वराज्य' को जीवन जाते
तिलक न भय खाते-बिक जाते
तिलक न निज सरकार गिराते
१-८-२०२२
***
सॉनेट
जनमत
*
जनमत सिसके पीटो बाजा
कर मनमानी हँस दिन-रात
ठठा उठा अँगुली बेबात
अंधेर नगरी चौपट राजा
जनमत को ठेंगा दिखलाओ
हो आराध्य-साध्य अब सत्ता
शेष सभी का काटो पत्ता
चुनी हुई सरकार गिराओ
जनमत भौजाई गरीब की
खींचो चीर न चिथड़ा छोड़ो
सजा सुना दो झट सलीब की
जनमत मारे, मरा न करता
अवसर पाकर फिर जी जाता
सत्ता को पग तल में धरता
१-८-२०२२
***
सॉनेट
उलट-पलट
*
उलट-पलट दो सब सरकारें
उन्हें नहीं रहने का हक़ है
जिनको तुम पर रहता शक है
जो न तुम्हारी जय उच्चारें
चीखो ऊँगली उठा-उठाकर
आक्रामकता को अपनाकर
निज गिरोह की जय-जय गाकर
बिना बात आरोप लगाकर
समय साथ है आज तुम्हारे
साथ न हरदम कभी रहा रे!
जब बदले तब शीश धुंआ रे!
औरों ने अब तेरी बारी
सम्हल, न फिर पीछे पछता री!
कहे बनती बात बिगारी
१-८-२०२२
***
मित्र दिवस
*
मित्र न पुस्तक से अधिक,
बेहतर कोई मीत!.
सुख-दुःख में दे-ले 'सलिल',
मन जुड़ते नव रीत.
*
नहीं लौटता कल कभी,
पले मित्रता आज.
थाती बन कल तक पले,
करे ह्रदय पर राज.
*
मौन-शोर की मित्रता,
अजब न ऐसी अन्य.
यह आ, वह जा मिल गले
पालें प्रीत अनन्य.
*
तन-मन की तलवार है,
मन है तन की ढाल.
एक साथ हर्षित हुए,
होते संग निढाल.
*
गति-लय अगर न मित्र हों,
जिए किस तरह गीत.
छंद बंध अनिबंध कर,
कहे पले अब प्रीत.
*
सरल शत्रुता साधना,
कठिन निभाना साथ.
उठा, जमा या तोड़ मत
मित्र! मिला ले हाथ.
*
मैं-तुम हम तो मित्रता,
हम मैं-तुम तो बैर.
आँख फेर मुश्किल बढ़े,
गले मिले तो खैर.
*
मीनाकारी मिल करें,
शब्दों की सब मित्र।
बुद्धि विनीता का करो,
स्वागत छिड़को इत्र।।
*
नहीं कलपना; कल्पना,
कर दें मिल साकार।
हाथ मित्रता का करें,
हाथों में स्वीकार।।
*
सदा निरुपमा मित्रता,
है अमोल उपहार।
दिल हारे दिल जीतकर,
दिल जीते दिल हार।।
१.८.२०२१
***
मुक्तक
मुक्तक मोती माल ले, करें समय से बात।
नहीं रात को दिन कहें, नहीं दिवस को रात।।
औरों को सम मान दे, पाएँ नित सम्मान-
मत भूलें उपकार को, कभी करें मत घात।।
*
गाँठ अहं की खुल जाए तो सलिल-धार नर्मदा बने।
सुलभ सके झट सारी उलझन, भौंह न कोई रही तने।।
अपने गैर न हो पाएँगे, गैर सभी अपने होंगे-
नेह नर्मदा नित्य नहाओ, भले बचाओ चार चने।।
१.८.२०१९
लेख-
लघु कथा - नव विधान और मूल्यों की आवश्यकता
*
पारंपरिक लघुकथा का उद्गम व् उपयोगिता -
लघु कथा का मूल संस्कृत वांग्मय में है। लघु अर्थात देखने में छोटी, कथा अर्थात जो कही जाए, जिसमें कहने योग्य बात हो, बात ऐसी जो मन से निकले और मन तक पहुँच जाए। यह बात कहने का कोई उद्देश्य भी होना चाहिए। उद्देश्य की विविधता लघु कथा के वर्गीकरण का आधार होती है। बाल कथा, बोध कथा, उपदेश कथा, दृष्टान्त कथा, वार्ता, आख्यायिका, उपाख्यान, पशु कथा, अवतार कथा, संवाद कथा, व्यंग्य कथा, काव्य कथा, गीति कथा, लोक कथा, पर्व कथा आदि की समृद्ध विरासत संस्कृत, भारतीय व विदेशी भाषाओँ के वाचिक और लिखित साहित्य में प्राप्त है। गूढ़ से गूढ़ और जटिल से जटिल प्रसंगों को इन कथन के माध्यम से सरल-सहज बनाकर समझाया गया। पंचतंत्र, हितोपदेश, बेताल कथाएँ, अलीबाबा, सिंदबाद आदि की कहानियाँ मन-रंजन के साथ ज्ञानवर्धन के उद्देश्य को लेकर कही-सुनी और लिखी-पढ़ी गयीं। धार्मिक-आध्यात्मिक प्रवचनों में गूढ़ सत्य को कम शब्दों में सरल बनाकर प्रस्तुत करने की परिपाटी सदियों तक परिपुष्ट हुई।
दुर्भाग्य से दुर्दांत विदेशी हमलावरों ने विजय पाकर भारतीय साहित्य और सांस्कृतिक संस्थाओं का विनाश लगातार लंबे समय तक किया। इस दौर में कथा साहित्य धार्मिक पूजा-पर्वों में कहा-सुना जाकर जीवित तो रहा पर उसका उद्देश्य भयभीत और संकटग्रस्त जन-मन में शुभत्व के प्रति आस्था बनाये रखकर, जिजीविषा को जिलाये रखना था। बहुधा घर के बड़े-बुजुर्ग इन कथाओं को कहते, उनमें किसी स्त्री-पुरुष के जीवन में आये संकटों-कष्टों के कारन शक्तियों की शरण में जाने, उपाय पूछने और अपने तदनुसार आचरण में सुधार करने पर दैवीय शक्तियों की कृपा से संकट पर विजयी होने का संदेश होता था। ऐसी कथाएँ शोषित-पीड़ित ही नहीं सामान्य या सम्पन्न मनुष्य में भी अपने आचरण में सुधार, सद्गुणों व पराक्रम में वृद्धि, एकता, सुमति या खेती-सड़क-वृक्ष या रास्तों की स्वच्छता, दीन-हीन की मदद, परोपकार, स्वाध्याय आदि की प्रेरणा का स्रोत बनता था। ये लघ्वाकारी कथाएँ महिलाओं या पुरुषों द्वारा अल्प समय में कह-सुन ली जाती थीं, बच्चे उन्हें सुनते और इस तरह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जीवन मूल्य पहुँचते रहते। देश, काल, परिस्थिति, श्रोता-वक़्ता, उद्देश्य आदि के अनुसार कथावस्तु में बादलाव होता रहता और देश के विविध भागों में एक ही कथा के विविध रूप कहे-सुने जाते किन्तु सबका उद्देश्य एक ही रहता। आहत मन को सांत्वना देना, असंतोष का शमन करना, निराश मन में आशा का संचार, भटकों को राह दिखाना, समाज सुधार या राष्ट्रीय स्वाधीनता के कार्यक्रमों हेतु जन-मन को तैयार करना कथावाचक और उपदेशक धर्म की आड़ में करते रहे। फलत:, राजनैतिक पराभव काल में भी भारतीय जन मानस अपना मनोबल, मानवीय मूल्यों में आस्था और सत्य की विजय का विश्वास बनाये रह सका।
आधुनिक हिंदी का उद्भव
कालान्तर में आधुनिक हिंदी ने उद्भव काल में पारंपरिक संस्कृत, लोक भाषाओँ और अन्य भारतीय भाषाओँ के साहित्य की उर्वर विरासत ग्रहण कर विकास के पथ पर कदम रखा। गुजराती, बांग्ला और मराठी भाषाओँ का क्षेत्र हिंदी भाषी क्षेत्रों के समीप था।विद्वानों और जन सामान्य के सहज आवागमन ने भाषिक आदान-प्रदान को सुदृढ़ किया। मुग़ल आक्रांताओं की अरबी-फ़ारसी और भारतीय मजदूर-किसानों की भाषा के मिलन से लश्करी का जन्म सैन्य छवनियों में हुआ जो रेख्ता और उर्दू के रूप में विकसित हुई। राजघरानों, जमींदारों तथा समृद्ध जनों में अंग्रेजी शिक्षा तथा विदेश जाकर उपाधियाँ ग्रहण करने पर अंग्रेजी भाषा के प्रति आकर्षण बढ़ा। शासन की भाषा अंग्रेजी होने से उसे श्रेष्ठ माना जाने लगा।अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली ने भारतीयों के मन में अपने विरासत के प्रति हीनता का भाव सुनियोजित तरीके से पैदा किया गया। स्वतंत्रता के संघर्ष काल में साम्यवाद युवा वर्ग को आकर्षित कर सका। स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र तथा अहिंसक दोनों तरीकों से प्रयास किये जाते रहे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आकस्मिक रूप से लापता होने पर स्वन्त्रता प्राप्ति का पूर्ण श्रेय गाँधी जी के नेतृत्व में चले सत्याग्रह को मिला। फलत:, कोंग्रेस सत्तारूढ़ हुई। श्री नेहरू के व्यक्तित्व में अंग्रेजी राजतंत्र और साम्यवादी व्यवस्था के प्रति विकट सम्मोहन ने स्वातंत्र्योत्तर काल में इन दोनों तत्वों को सत्ता और साहित्य में सहभागी बना दिया जबकि भारतीय सनातन परंपरा में विश्वास करने वाले तत्व पारस्परिक फूट के कारण बलिपंथी होते हुए भी पिछड़ गए।
सत्ता और साहित्य की बंदरबाँट
सत्ता समीकरणों को चतुरता से साधते हुए आम चुनावों में विजयी कोंग्रेस ने सरकार बनायी। सरकार निर्विघ्न चले इस हेतु हिंसा में विश्वास रखने वाले साम्यवादियों को शिक्षा प्रतिष्ठानों में स्थान दिया गया। इस केर-बेर के संग ने समाजवादियों तथा तत्कालीन हिंदुत्ववादी शक्तियों को सत्ता से बाहर रखने में सफलता पा ली। साम्यवादी अपने बल पर कभी सत्ता-केंद्र में नहीं आ सके किन्तु शिक्षा संस्थानों और साहित्य में अपना प्रभुत्व स्थापित कर साम्यवादी विचारों के अनुरूप सृजन और समीक्षा के मानक थोपने में कुछ काल के लिए सफल हो गए। उन्होंने लघु कथा, व्यंग्य लेख, नवगीत, फिल्म निर्माण आदि क्षेत्रों में सामाजिक वर्गीकरण, विभाजन, शोषण, टकराव, वैषम्य, पीड़ा, दर्द, दुःख और पतन को केंद्र में रखकर रचनाकर्म किया ताकि समाज के विविध वर्ग आपस में लड़ें और वे हँसिया-हथौड़ा चलकर सत्ता पा सकें। विधि का विधान कि कुछ प्रान्तों को छोड़ साम्यवादी साहित्यकार और राजनेता सफल नहीं हुए किंतु शिक्षा और साहित्य में अपनी विचारधारा के अनुरूप मानक निर्धारित कर, साहित्य प्रकाशित करने, पुरस्कृत होने में सफल हो गए। परोक्षतः: कोंग्रेस ने इस कार्य में उन्हें समर्थन दिया और अपनी सत्ता बनाये रखने में उनका समर्थन लिया। गैर कॉंग्रेसवादी सरकार आते ही इस वर्ग ने शिक्षा संस्थानों में अराजकता, अभारतीयता और राष्ट्रीयता का उद्गोष किया और प्रतिबंधित होते ही आवेदन कर येन-केन-प्रकारेण जुगाड़े गए सम्मान वापसी की नौटंकी की।
साम्यवादी रचना विधान
यह निर्विवाद है कि भारतीय जन मानस चिरकाल से सात्विक, आस्थावान, अहिंसक, सहिष्णु, उत्सवधर्मी तथा रचनात्मक प्रवृत्तिवाला है। अशिक्षाजनित सामाजिक प्रदूषण काल में छुआछूत, सती प्रथा, पर्दा प्रथा और ब्राम्हणों द्वारा धर्म की आड़ में खुद को सर्वश्रेष्ठ बनाये रखने के प्रयास में दलितवर्ग को निम्न बताने जैसी बुराइयों के पनपने पर उनके निराकरण के प्रयास सतत होते रहे किंतु विदेशी शासन ने इन्हें असफल कर समाज विभाजित किया। स्वतंत्रता के पश्चात बहुमत पाने में असफल साम्यवादियों ने यही तरीका अपनाया और एक ओर नक्सलवाद जैसे आंदोलन और दूसरी ओर अपनी विचारधारा के साहित्यिक मानक बनाकर उनके अनुरूप साहित्य की रचना कर समाज को पराभव में लेने का कुचक्र रचा पर पूरी तरह सफल न हो सके। ऐसे साहित्यकारों और समीक्षकों ने भारतीय वांग्मय की सनातन विरासत और परंपरा को हीन, पिछड़ा, अवैज्ञानिक और अनुपयुक्त कहकर अंग्रेजी साहित्य की दुहाई देते हुए, उसकी आड़ में साम्यवादी विचारधारा के अनुकूल जीवनमूल्यों को विविध विधाओं का मानक बता दिया। फलत:, रचनाकर्म का उद्देश्य समाज में व्याप्त शोषण, टकराव, बिखराव, संघर्ष, टूटन, फुट, विसंगति, विडंबना, असंतोष, विक्षोभ, कुंठा, विद्रोह आदि का शब्दांकन मात्र हो गया। उन्होंने देश में हर क्षेत्र में हुई उल्लेखनीय प्रगति, सद्भाव, एकता, साहचर्य, सहकारिता, निर्माण, हर्ष, उल्लास, उत्सव आदि की जान-बूझकर अनदेखी और उपेक्षा की। इन तथाकथित साहित्यकारों की पृष्ठभूमि देखें तो अपने छात्र जीवन में ये साम्यवादी छात्र संगठनों से जुड़े मिलेंगे। कोढ़ में खाज यह कि इस वैचारिक पृष्ठभूमि के अनेक जन उच्च प्रशासनिक पदों पर जा बैठे और उन्होंने 'अपने लोगों' को न केवल महिमामण्डित किया अपितु भिन्न विचारधारा के साहित्यकारों का दमन और उपेक्षा भी की।
लघुकथा और शार्ट स्टोरी
अंग्रेजी साहित्य में गद्य (प्रोज) के अंतर्गत उपन्यास (नावेल), निबन्ध (एस्से), कहानी (स्टोरी), व्यंग्य (सैटायर), लघुकथा (शार्ट स्टोरी), गल्प (फिक्शन), संस्मरण (मेमायर्स), आत्मकथा (ऑटोबायग्राफी) आदि प्रमुख हैं। अंग्रेजी की कहानी लघु उपन्यास की तरह तथा शार्ट स्टोरी सामान्यत:६-७ पृष्ठों तक की हो सकती है। हिंदी लघु कथा का आकार सामान्यत: कुछ वाक्यों से लेकर एक-डेढ़ पृष्ठ तक होता है। स्पष्ट है कि शार्ट स्टोरी और लघुकथा सर्वथा भिन्न विधाएँ हैं। 'शॉर्ट स्टोरी' छोटी कहानी हो सकती है पर वह 'लघुकथा' नहीं हो सकती। हिंदी साहित्य में विधाओं का विभाजन आकारगत नहीं अन्तर्वस्तु या कथावस्तु के आधार पर होता है। उपन्यास सकल जीवन या घटनाक्रम को समाहित करता है, जिसके तत्व कथावस्तु, पात्र, चरित्र-चित्रण, कथोपकथन, वातावरण, भाषा शैली आदि हैं। कहानी जीवन के काल विशेष या घटना विशेष से जुड़े प्रभावों पर केंद्रित होती है, जिसके तत्व कथावस्तु, पात्र, चरित्र चित्रण, कथोपकथन, उद्देश्य तथा भाषा शैली हैं। लघुकथा किसी क्षण विशेष में घटित प्रसंग और उसके प्रभाव पर केंद्रित होती है। प्रसिद्ध समीक्षक लक्ष्मीनारायण लाल ने लघु कथा और कहानी में तात्विक दृष्टि से कोई अंतर न मानते हुए व्यावहारिक रूप से आकारगत अंतर स्वीकार किया है। उनके अनुसार 'लघुकथा में भावनाओं का उतना महत्व नहीं है जितना किसी सत्य का, किसी विचार का विशेषकर उसके सारांश का महत्व है।'
लघुकथा क्या है?, अंधों का हाथी ?
सन १९८४ में सारिका के लघु कथा विशेषांक में राजेंद्र यादव ने 'लघुकथा और चुटकुला में साम्य' इंगित करते हुए लघुकथा लेखन को कठिन बताया। मनोहरश्याम जोशी ने' लघु कथाओं को चुटकुलों और गद्य के बीच' सर पटकता बताया। मुद्राराक्षस के अनुसार 'लघु कथा ने साहित्य में कोई बड़ा स्थान नहीं बनाया'। शानी भी 'लघुकथाओं को चुटकुलों की तरह' बताया। इसके विपरीत पद्म श्री लक्ष्मीनारायण लाल ने लघुकथा को लेखक का 'अच्छा अस्त्र' कहा है।
सरला अग्रवाल के शब्दों में 'लघुकथा में किसी अनुभव अथवा घटना की टीस और कचोट को बहुत ही गहनता के साथ उद्घाटित किया जाता है।' प्रश्न उठता है कि टीस के स्थान पर रचना हर्ष और ख़ुशी को उद्घाटित करे तो वह लघु कथा क्यों न होगी? गीत सभी रसों की अभिव्यक्ति कर सकता है तो लघुकथा पर बन्धन क्यों? डॉ. प्रमथनाथ मिश्र के मत में लघु कथा 'सामाजिक बुराई के काले-गहरे बादलों के बीच दबी विद्युल्लता की भाँति है जो समय-बेसमय छटककर पाठकों के मस्तिष्क पर एक तीव्र प्रभाव छोड़कर उनके सुषुप्त अंत:करण को हिला देती है।' सामाजिक अच्छाई के सफेद-उजले मेघों के मध्य दामिनी क्यों नहीं हो सकती लघुकथा? रमाकांत श्रीवास्तव लिखते हैं 'लघुकथा का नि:सरण ठीक वैसे ही हुआ है जैसे कविता का। अत: वह यथार्थपरक कविता के अधिक निकट है, विशेषकर मुक्त छंद कविता के।' मुक्तछंद कविता से हिंदी पाठक के मोहभंग काल में उसी पथ पर ले जाकर लघुकथा का अहित करना ठीक होगा या उसे लोकमंगल भाव से संयुक्त रखकर नवगीत की तरह नवजीवन देना उपयुक्त होगा? कृष्णानन्द 'कृष्ण' लघुकथा लेखक के लिए 'वैचारिक पक्षधरता' अपरिहार्य बताते हैं। एक लघुकथा लेखक के लिए किसी विचार विशेष के प्रति प्रतिबद्ध होना जरूरी क्यों हो? कथ्य और लक्ष्य की आवश्यकतानुसार विविध लघुकथाओं में विविध विचारों की अभिव्यक्ति प्रबंधित करना कैसे ठीक हो सकता है? एक रचनाकार को किसी राजनैतिक विचारधारा का बन्दी क्यों होना चाहिए? रचनाकार का लक्ष्य लोक-मंगल हो या राजनैतिक स्वार्थपूर्ति?
'हिंदी लघुकथा को लेखन की पुरातन दृष्टान्त, किस्सा या गल्प शैली में अवस्थित रहना है या कथा लेखन की वर्तमान शैली को अपना लेना है- तय हो जाना चाहिए' बलराम अग्रवाल के इस मत के सन्दर्भ में कहना होगा कि साहित्य की अन्य विधाओं की तरह लघुकथा के स्वरूप में अंतिम निर्णय करने का अधिकार पाठक और समय के अलावा किसी का नहीं हो सकता। तय करनेवालों ने तो गीत के मरण की घोषणा कर दी थी किंतु वह पुनर्जीवित हो गया। समाज किसी एक विचार या वाद के लोगों से नहीं बनता। उसमें विविध विचारों और रुचियों के लोग होते हैं जिनकी आवश्यकता और परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं, तदनुसार साहित्य की हर विधा में रचनाओं का कथ्य, शल्प और शैली बदलते हैं। लघुकथा इसका अपवाद कैसे हो सकती है? लघुकथा को देश, काल और परिस्थिति सापेक्ष्य होने के लिए विविधता को ग्रहण करना ही होगा। पुरातन और अद्यतन में समन्वय से ही सनातन प्रवाह और परंपरा का विकास होता है।
अवध नारायण मुद्गल उपन्यास को नदी, कहानी को नहर और लघुकथा को उपनहर बताते हुए कहते हैं कि जिस बंजर जमीन को नहरों से नहीं जोड़ा जा सकता उसे उपनहरों से जोड़कर उपजाऊ बनाया जा सकता है। यदि उद्देश्य अनछुई अनुपजाऊ भूमि को उर्वर बनाना है तो यह नहीं देखा जाता कि नहर बनाने के लिए सामग्री कहाँ से लाई जा रही है और मजदूर किस गाँव, धर्म राजनैतिक विचार का है? लघुकथा लेखन का उद्देश्य उपन्यास और कहानी से दूर पाठक और प्रसंगों तक पहुँचना ही है तो इससे क्या अंतर पड़ता है कि वह पहुँच बोध, उपदेश, व्यंग्य, संवाद किस माध्यम से की गयी? उद्देश्य पड़ती जमीन जोतना है या हलधर की जाति-पाँति देखना?
लघुकथा के रूप-निर्धारण की कोशिशें
डॉ. सतीश दुबे मिथक, व्यंग्य या संवेदना के स्तरों पर लघुकथाएँ लिखी जाने का अर्थ हर शैली में अभिव्यक्त होने की छटपटाहट मानते हैं। वे लघुकथा के तयशुदा स्वरूप में ऐसी शैलियों के आने से कोई खतरा नहीं देखते। यह तयशुदा स्वरूप साध्य है या साधन? यह किसने, कब और किस अधिकार से तय किया? यह पत्थर की लकीर कैसे हो सकता जिसे बदला न जा सके? यह स्वरूप वही है जिसकी चर्चा ऊपर की गयी है। देश, काल, परिस्थिति के अनुरूप और पाठक की रूचि के अनुसार लघुकथा का जो स्वरूप उपयुक्त होगा वह जीवित रहेगा, शेष भुला दिया जाएगा। लघुकथा के विकास के लिए बेहतर होगा कि हर लघुकथाकार को अपने कथ्य के उपयुक्त शैली और शिल्प का संधान करने दिया जाए। उक्त मानक थोपने के प्रयास और मानकों को तोडनेवाले लघुकथाकारों पर सुनियोजित आक्रमण तथा उनके साहित्य की अनदेखी करने की विफल कोशिशें यही दर्शाती हैं कि पारंपरिक शिल्प और शैली से खतरा अनुभव हो रहा है और इसलिए विधान के रक्षाकवच में अनुपयुक्त और आयातित मानक थोपे जाते रहे हैं। यह उपयुक्त समय है जब अभिव्यक्ति को कुंठित न कर लघुकथाकार को सृजन की स्वतंत्रता मिले।
सृजन की स्वतंत्रता और सार्थकता
पारंपरिक स्वरूप की लघुकथाओं को जन स्वीकृति का प्रमाण यह है कि समीक्षकों और लघुकथाकारों की समूहबद्धता, रणनीति और नकारने के बाद भी बोध कथाओं, दृष्टान्त कथाओं, उपदेश कथाओं, संवाद कथाओं आदि के पाठक श्रोता घटे नहीं हैं। सच तो यह है कि पाठक और श्रोता कथ्य को पढ़ता और सराहता या नकारता है, उसे इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि समीक्षक उस रचना को किस खाँचे में वर्गीकृत करता है। समय की माँग है कि लघुकथा को स्वतंत्रता से सांस लेने दी जाए। नामवर सिंह भारतीय लघुकथाओं को पश्चात्य लघुकथाओं का पिछलग्गू नहीं मानते तथा हिंदी लघुकथाओं को निजत्व और विराट भावबोध से संपन्न मानते हैं। हिंदी भाषा जिस जमीन पर विकसित हुई उसकी लघुकथा उस जमीन में आदि काल से कही-सुनी जाती लघुकथा की अस्पर्श्य कैसे मान सकती है?
सिद्धेश्वर लघुकथा को सर्वाधिक प्रेरक, संप्रेषणीय, संवेदनशील और जीवंत विधा मानते हुए उसे पाठ्यक्रम में स्थान दिए जाने की पैरवी करते है जिससे हर लघुकथाकार सहमत होगा किन्तु जन-जीवन में कही-सुनी जा रही देशज मूल्यों, भाषा और शिल्प की लघुकथाओं की वर्जना कर केवल साम्यवादी विचारधारा को प्रोत्साहित करती लघुकथाओं का चयन पाठ्यक्रम में नहीं किया जा सकता। इसलिए लघुकथा के रूढ़ और संकीर्ण मानकों को परिवर्तित कर हिंदी भाषी क्षेत्र की सभ्यता-संस्कृति और जन मानस के आस्था-उल्लास-नैतिक मूल्यों के अनुरूप रची तथा राष्ट्रीयता को बढ़ावा देती लघु कथाओं को हो चुना जाना उपयुक्त होगा। तारिक असलम 'तनवीर' लिजलिजी और दोहरी मानसिकता से ग्रस्त समीक्षकों की परवाह करने के बजाय 'कलम की ताकत' पर ध्यान देने का मश्वरा देते हैं।
डॉ. कमलकिशोर गोयनका, कमलेश भट्ट 'कमल' को दिए गए साक्षात्कार में लघुकथा को लेखकविहीन विधा कहते हैं। कोई बच्चा माँ विहीन कैसे हो सकता है। हर बच्चे का स्वतंत्र अस्तित्व और विकास होने पर भी उसमें जीन्स माता-पिता के ही होते हैं। इसी तरह लघुकथा भी लघुकथाकार तथा उसके परिवेश से अलग होते हुए भी उसका प्रतिनिधित्व करती है। लघुकथाकार रचना में सतही तौर पर न दिखते हुई भी पंक्ति-पंक्ति में उसी तरह उपस्थित होता है जैसे रोटी में नमी के रूप में पानी या दाल में नमक। अत:, स्पष्ट है कि हिंदी की आधुनिक लघुकथा को अपनी सनातन पृष्ठभूमि तथा आधुनिक हिंदी के विकास काल की प्रवृत्तियों में समन्वय और सामंजस्य स्थापित करते हुए भविष्य के लिए उपयुक्त साहित्य सृजन के लिए सजग होना होगा। लघुकथा एक स्वतंत्र विधा के रूप में अपने कथ्य और लक्ष्य पाठक वर्ग को केंद्र में रखकर लिखी जाय और व्यवस्थित अध्ययन की दृष्टि से उसे वर्गीकृत किया जाए किन्तु किसी वर्ग विशेष की लघुकथा को स्वीकारने और शेष को नकारने की दूषित प्रथा बन्द करने में ही लघुकथा और हिंदी की भलाई है। लघुकथा को उद्यान के विविध पुष्पों के रंग और गन्ध की तरह विविधवर्णी होने होगा तभी वह जी सकेगी और जीवन को दिशा दे सकेगी।
लघुकथा के तत्व
कुंवर प्रेमिल कथानक, प्रगटीकरण तथा समापन को लघुकथा के ३ तत्व मानते हैं। वे लघुकथा को किसी बंधन, सीमा या दायरे में बाँधने के विरोधी हैं। जीवितराम सतपाल के अनुसार लघुकथा में अमिधा, लक्षणा व व्यंजना शब्द की तीनों शक्तियों का उपयोग किया जा सकता है। वे लघुकथा को बरसात नहीं फुहार, ठहाका नहीं मुस्कान कहते हैं। गुरुनाम सिंह रीहल कलेवर और कथनीयता को लघुकथा के २ तत्व कहते हैं। मोहम्मद मोइनुद्दीन 'अतहर' के अनुसार भाषा, कथ्य, शिल्प, संदर्भगत संवेदना से परिपूर्ण २५० से ५०० शब्दों का समुच्चय लघुकथा है। डॉ. शमीम शर्मा के अनुसार लघुकथा में 'विस्तार के लिए कोई स्थान नहीं होता। 'थोड़े में अधिक' कहने की प्रवृत्ति प्रबल है। सांकेतिक एवं ध्वन्यात्मकता इसके प्रमुख तत्व हैं। अनेक मन: स्थितियों में से एक की ही सक्रियता सघनता से संप्रेषित करने का लक्ष्य रहता है।'
बलराम अग्रवाल के अनुसार कथानक और शैली लघुकथा के अवयव हैं, तत्व नहीं। वे वस्तु को आत्मा, कथानक को हृदय, शिल्प को शरीर और शैली को आचरण कहते हैं। योगराज प्रभाकर लघु आकार और कथा तत्व को लघुकथा के तत्व बताते हैं। उनके अनुसार किसी बड़े घटनाक्रम में से क्षण विशेष को प्रकाशित करना, लघुकथा लिखना है। कांता रॉय लघुकथा के १५ तत्व बताती है जो संभवत: योगराज प्रभाकर द्वारा सुझाई १५ बातों से नि:सृत हैं- कथानक, शिल्प, पंच, कथ्य, भूमिका न हो, चिंतन हेतु उद्वेलन, विसंगति पूर्ण क्षण विशेष, कालखण्ड दोष से मुक्त, बोध-नीति-शिक्षा न हो, इकहरापन, सन्देश, चुटकुला न हो, शैली तथा सामाजिक महत्व । नया लघुकथाकार और पाठक क्या करे? बलराम अग्रवाल कथानक को तत्व नहीं मानते, कांता रॉय मानती हैं।
डॉ. हरिमोहन के अनुसार लघुकथा विसंगतियों से जन्मी तीखे तेवर वाली व्यंग्य परक विधा है तो डॉ. पुष्पा बंसल के अनुसार 'घटना की प्रस्तुति मात्र'। अशोक लव 'संक्षिप्तता में व्यापकता' को लघुकथा का वैशिष्ट्य कहते हैं तो विक्रम सोनी 'मूल्य स्थापन' को। कहा जाता है कि दो अर्थशास्त्रियों के तीन मत होते हैं। यही स्थिति लघुकथा और लघुकथाकारों की है 'जितने मुँह उतनी बातें'।
लघुकथा के तत्व
मेरे अनुसार उक्त तथा अन्य सामग्री का अध्ययन से स्पष्ट होता है कि लघुकथा के ३ तत्व, १. क्षणिक घटना, २. संक्षिप्त कथन तथा ३.तीक्ष्ण प्रभाव हैं। इन में से कोई एक भी न हो या कमजोर हो तो लघुकथा प्रभावहीन होगी जो न होने के समान है। घटना न हो तो लघुकथा का जन्म ही न होगा, घटना हो पर उस पर कुछ कहा न जाए तो भी लघुकथा नहीं हो सकती, घटना घटित हो, कुछ लिखा भी जाए पर उसका कोई प्रभाव न हो तो लिखना - न लिखना बराबर हो जायेगा। घटना लंबी, जटिल, बहुआयामी, अनेक पात्रों से जुडी हो तो सबके साथ न्याय करने पर लघुकथा कहानी का रूप ले लेगी। इस ३ तत्वों का प्रयोग कर एक अच्छी लघुकथा की रचना हेतु कुछ लक्षणों का होना आवश्यक है। योगराज प्रभाकर तथा कांता रॉय इन लक्षणों को तत्व कहते हैं। वस्तुत:, लक्षण उक्त ३ तत्वों के अंग रूप में उनमें समाहित होते हैं।
१. क्षणिक घटना - दैनन्दिन जीवन में सुबह से शाम तक अनेक प्रसंग घटते हैं। सब पर लघुकथा नहीं लिखी जा सकती। घटना-क्रम, दीर्घकालिक घटनाएँ, जटिल घटनाएँ, एक-दूसरे में गुँथी घटनाएँ लघुकथा लेखन की दृष्टि से अनुपयुक्त हैं। बादल में कौंधती बिजली जिस तरह एक पल में चमत्कृत या आतंकित कर जाती है, उसी तरह लघुकथा का प्रभाव होता है। क्षणिक घटना पर बिना सोचे-विचार त्वरित प्रतिक्रिया की तरह लघुकथा को स्वाभाविक होना चाहिए। लघुकथा सद्यस्नाता की तरह ताजगी की अनुभूति कराती है, ब्यूटी पार्लर से सज्जित सौंदर्य जैसी कृत्रिमता की नहीं। सावधानी हटी, दुर्घटना घटी की तर्ज़ पर कहा जा सकता है घटना घटी, लघुकथा हुई। लघ्यकथा के उपयुक्त कथानक व कथ्य वही हो सकता है जो क्षणिक घटना के रूप में सामने आया हो।
२. संक्षिप्त कथन - किसी क्षण विशेष अथवा अल्प समयावधि में घटित घटना-प्रसंग के भी कई पहलू हो सकते हैं। लघुकथा घटना के सामाजिक कारणों, मानसिक उद्वेगों, राजनैतिक परिणामों या आर्थिक संभावनाओं का विश्लेषण करे तो वह उपन्यास का रूप ले लेगी। उपन्यास और कहानी से इतर लघुकथा सूक्ष्मतम और संक्षिप्तम आकार का चयन करती है। वह गुलाबजल नहीं इत्र की तरह होती है। इसीलिए लघुकथा में पात्रों के चरित्र-चित्रण नहीं होता। 'कम में अधिक' कहने के लिए संवाद, आत्मालाप, वर्णन, उद्धरण, मिथक, पूर्व कथा, चरित्र आदि जो भी सहायक हो उसका उपयोग किया जाना चाहिए। उद्देश्य कम से कम कलेवर में कथ्य को प्रभावी रूप से सामने लाना है। शिल्प, मारक वाक्य (पंच) हो-न हो अथवा कहाँ हो, संवाद हों न हों या कितने किसके द्वारा हों, भूमिका न हो, इकहरापन, सन्देश, चुटकुला न हो तथा भाषा-शैली आदि संक्षिप्त कथन के लक्षण हैं। इन सबकी सम्मिलित उपस्थिति अपरिहार्य नहीं है। कुछ हो भी सकते हैं, कुछ नहीं भी हो सकते हैं।
३.तीक्ष्ण प्रभाव- लघुकथा लेखन का उद्देश्य लक्ष्य पर प्रभाव छोड़ना है। एक लघुकथा सुख, दुःख, हर्ष, शोक, हास्य, चिंता, विरोध आदि विविध मनोभावों में से किसी एक की अभिव्यक्त कर अधिक प्रभावी हो सकती है। एकाधिक मनोभावों को सामने लाने से लघुकथा का प्रभाव कम हो सकता है। कुशल लघुकथाकार घटना के एक पक्ष पर सारगर्भित टिप्पणी की तरह एक मनोभाव को इस तरह उद्घाटित करता है कि पाठक / श्रोता आह य वाह कह उठे। चिंतन हेतु उद्वेलन, विसंगति पूर्ण क्षण विशेष, कालखण्ड दोष से मुक्ति आदि तीक्ष्ण प्रभाव हेतु सहायक लक्षण हैं। तीक्ष्ण प्रभाव सोद्देश्य हो निरुद्देश्य? यह विचारणीय है। सामान्यत: बुद्धिजीवी मनुष्य कोई काम निरुद्देश्य नहीं करता। लघुकथा लेखन का उपक्रम सोद्देश्य होता है। व्यक्त करने हेतु कुछ न हो तो कौन लिखेगा लघुकथा? व्यक्त किये गए से कोई पाठक शिक्षा / संदेश ग्रहण करेगा या नहीं? यह सोचना लघुकथाकार काम नहीं है, न इस आधार पर लघुकथा का मूल्यांकन किया जाना उपयुक्त है। *:
सन्दर्भ-
१. सारिका लघुकथा अंक १९८४
२. अविरल मंथन लघुकथा अंक सितंबर २००१, संपादक राजेन्द्र वर्मा
३. प्रतिनिधि लघुकथाएं अंक ५, २०१३, सम्पादक कुंवर प्रेमिल
४. तलाश, गुरुनाम सिंह रीहल
५. पोटकार्ड, जीवितराम सतपाल
६. लघुकथा अभिव्यक्ति अक्टूबर-दिसंबर २००७
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जबलपुर में लघुकथाकार
१. संजीव वर्मा 'सलिल', २. डॉ. राजकुमार तिवारी 'सुमित्र', ३. कुँवर प्रेमिल,
४. प्रदीप शशांक, ५. गीता गीत, ६. सुरेश तन्मय, ७. ओमप्रकाश बजाज, ८. सनातन कुमार बाजपेयी, ९. विजय किसलय, १०. दिनेश नंदन तिवारी, ११. धीरेन्द्र बाबू खरे, १२. गुप्तेश्वर द्वारका गुप्त, १३ सुरेंद्र सिंह सेंगर, १४. विजय बजाज, १५. रमेश सैनी, १६. प्रभात दुबे, १७. पवन जैन, १८. नीता कसार, १९. मधु जैन, २० शशि कला सेन, २१. प्रकाश चंद्र जैन, २२. अनुराधा गर्ग, २३. सुनीता मिश्र, २४. आशा भाटी, २५. राकेश भ्रमर, २६.अशोक श्रीवास्तव 'सिफर', २७. आरोही श्रीवास्तव, २८ छाया त्रिवेदी, २९.रामप्रसाद अटल, ३०.अविनाश दत्तात्रेय कस्तूरे, ३१. अर्चना मलैया, ३२ बिल्लोरे, ३३. अरुण यादव, ३४. आशा वर्मा, ३५, मिथलेश बड़गैयां, ३६. सुरेंद्र सिंह पवार, ३७. मनोज शुक्ल, ३८ आचार्य भगवत दुबे, ३९. गार्गीशरण मिश्र ४०. विनीता श्रीवास्तव, ४१. डॉ. वीरेंद्र कुमार दुबे, ४२.
दिवंगत लघुकथाकार- सर्व स्वर्गीय- हरिशंकर परसाई, श्री राम ठाकुर 'दादा', गुरुनाम सिंह रीहल, मनोहर शर्मा 'माया', गायत्री तिवारी, मो. मोईनुद्दीन 'अतहर'
१.८.२०१८
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लघुकथा:
काल की गति
'हे भगवन! इस कलिकाल में अनाचार-अत्याचार बहुत बढ़ गया है. अब तो अवतार लेकर पापों का अंत कर दो.' - भक्त ने भगवान से प्रार्थना की।
' नहीं कर सकता.' भगवान् की प्रतिमा में से आवाज आई।
' क्यों प्रभु?'
'काल की गति।'
'मैं कुछ समझा नहीं।'
'समझो यह कि परिवार कल्याण के इस समय में केवल एक या दो बच्चों के होते राम अवतार लूँ तो लक्ष्मण, शत्रुघ्न और विभीषण कहाँ से मिलेंगे? कृष्ण अवतार लूँ तो अर्जुन, नकुल और सहदेव के अलावा ९८ कौरव भी नहीं होंगे। चित्रगुप्त का रूप रखूँ तो १२ पुत्रों में से मात्र २ ही मिलेंगे। तुम्हारा कानून एक से अधिक पत्नियाँ भी नहीं रखने देगा तो १२८०० पटरानियों को कहाँ ले जाऊँगा? बेचारी द्रौपदी के ५ पतियों की कानूनी स्थिति क्या होगी?
भक्त और भगवान् दोनों को चुप देखकर ठहाका लगा रही थी काल की गति।
***
नवगीत
*
तन पर
पहरेदार बिठा दो
चाहे जितने,
मन पाखी को
कैद कर सके
किसका बूता?
*
तनता-झुकता
बढ़ता-रुकता
तन ही हरदम।
हारे ज्ञानी
झुका न पाये
मन का परचम।
बाखर-छानी
रोक सकी कब
पानी चूता?
मन पाखी को
कैद कर सके
किसका बूता?
*
ताना-बाना
बुने कबीरा
ढाई आखर।
ज्यों की त्यों ही
धर जाता है
अपनी चादर।
पैर पटककर
सना धूल में
नाहक जूता।
मन पाखी को
कैद कर सके
किसका बूता?
*
चढ़ी शीश पर
नहीं उतरती
क़र्ज़ गठरिया।
आस-मदारी
नचा रहा है
श्वास बँदरिया।
आसमान में
छिपा न मिलता
इब्नबतूता।
मन पाखी को
कैद कर सके
किसका बूता?
१-८-२०१६
***
मुक्तक
बन के अपना पराया तुमने किया
हमने चुप हो ज़हर का घूँट पिया
हों जो तूफ़ान हार जाओगे-
जलेंगे दिल में तेरे बन के दिया
१.८.२०१४
***
विचारोत्तेजक लेख:
कायस्थों का महापर्व नागपंचमी
*
कायस्थोंके उद्भव की पौराणिक कथाके अनुसार उनके मूल पुरुष श्री चित्रगुप्तके २ विवाह सूर्य ऋषिकी कन्या नंदिनी और नागराजकी कन्या इरावती हुए थे। सूर्य ऋषि हिमालय की तराईके निवासी और आर्य ब्राम्हण थे जबकि नागराज अनार्य और वनवासी थे। इसके अनुसार चित्रगुप्त जी ब्राम्हणों तथा आदिवासियों दोनों के जामाता और पूज्य हुए। इसी कथा में चित्रगुप्त जी के १२ पुत्रों नागराज वासुकि की १२ कन्याओं से साथ किये जाने का वर्णन है जिनसे कायस्थों की १२ उपजातियों का श्री गणेश हुआ।
इससे स्पष्ट है कि नागों के साथ कायस्थॉ का निकट संबंध है। आर्यों के पूर्व नाग संस्कृति सत्ता में थी। नागों को विष्णु ने छ्ल से हराया। नाग राजा का वेश धारण कर रानी का सतीत्व भंग कर नाग राजा के प्राण हरने, राम, कृष्ण तथा पान्ड्वों द्वारा नाग राजाओं और प्रजा का वध करने, उनकी जमीन छीनने, तक्षक द्वारा दुर्योधन की सहायता करने, जन्मेजय द्वारा नागों का कत्लेआम किये जाने, नागराज तक्षक द्वारा फल की टोकनी में घुसकर उसे मारने के प्रसंग सर्व ज्ञात हैं।
यह सब घट्नायें कयस्थों के ननिहाल पक्ष के साथ घटीं तो क्या कायस्थों पर इसका कोई असर नहीं हुआ? वास्तव में नागों और आर्यों के साथ समानता के आधार पर संबंध स्थापित करने का प्रयास आर्यों को नहीं भाया और उन्होंने नागों के साथ उनके संबंधियों के नाते कायस्थों को भी नष्ट किया। महाभारत युद्ध में कौरव और पांडव दोनों पक्षों से कायस्थ नरेश लड़े और नष्ट हुए। बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना....
कालान्तर में शान्ति स्थापना के प्रयासों में असंतोष को शांत करने के लिए पंचमी पर नागों का पूजनकर उन्हें मान्यता तो दी गयी किन्तु ब्राम्हण को सर्वोच्च मानने की मनुवादी मानसिकता ने आजतक कार्य पर जाति निर्धारण नहीं किया। श्री कृष्ण को विष्णु का अवतार मानने की बाद भी गीता में उनका वचन 'चातुर्वर्ण्य मया सृष्टं गुण कर्म विभागष:' को कार्य रूप में नहीं आने दिया गया।
कायस्थों को सत्य को समझना होगा तथा आदिवासियों से अपने मूल संबंध को स्मरण और पुनर्स्थापित कर खुद को मजबूत बनाना होगा। कायस्थ और आदिवासी समाज मिलकर कार्य करें तो जन्मना ब्राम्हणवाद और छद्म श्रेष्ठता की नींव धसक सकती है। सभी सनातन धर्मी योग्यता वृद्धि हेतु समान अवसर पायें, अर्जित योग्यतानुसार आजीविका पायें तथा पारस्परिक पसंद के आधार पर विवाह संबंध में बँधने का अवसर पा सकें तो एक समरस समाज का निर्माण हो सकेगा। इसके लिए कायस्थों को अज्ञानता के घेरे से बाहर आकर सत्य को समझना और खुद को बदलना होगा।
नागों संबंध की कथा पढ़ने मात्र से कुछ नहीं होगा। कथा के पीछे का सत्य जानना और मानना होगा। संबंधों को फिर जोड़ना होगा। नागपंचमी के समाप्त होते पर्व को कायस्थ अपना राष्ट्रीय पर्व बना लें तो आदिवासियों और सवर्णों के बीच नया सेतु बन सकेगा।
१.८.२०१४
***
मुक्तक
दूर रहकर भी जो मेरे पास है.
उसी में अपनत्व का आभास है..
जो निपट अपना वही तो ईश है-
क्या उसे इस सत्य का अहसास है?
मिर हर पथ दिखलायें उमर तमाम..
*
भ्रम तो भ्रम है, चीटी हाथी, बनते मात्र बहाना.
खुले नयन रह बंद सुनाते, मिथ्या 'सलिल' फ़साना..
नयन मूँदकर जब-बज देखा, सत्य तभी दिख पाया-
तभी समझ पाया माया में कैसे सत्पथ पाना..
*
भीतर-बाहर जाऊँ जहाँ भी, वहीं मिले घनश्याम.
खोलूँ या मूंदूं पलकें, हँसकर कहते 'जय राम'..
सच है तो सौभाग्य, अगर भ्रम है तो भी सौभाग्य-
सीलन, घुटन, तिमिर हर पथ दिखलायें उमर तमाम..
१.८.२०११

रविवार, 1 जून 2025

जून १, कब क्या, मुक्तिका, माँ, अमरूद, नर्मदाष्टक, सरस्वती, समीक्षा, चंद्र विजय अभियान

सलिल सृजन जून १ 
जून कब?... क्या??...
०१. विश्व माता-पिता दिवस, विश्व दुग्ध दिवस, विश्व डायनासौर दिवस 
०२. तेलंगाना दिवस, इटली गणतंत्र दिवस
०३. विश्व साइकिल दिवस 
०४. हिंसा पीड़ित बच्चों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस      
०५. विश्व पर्यावरण दिवस 
०६. विश्व कीट दिवस 
०७. विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस 
०८. विश्व महासागर दिवस विश्व ब्रेन ट्यूमर दिवस  
०९. विश्व प्रत्यायन (एक्रेडिटेशन) दिवस 
१०. राष्ट्रीय जड़ी-बूटी एवं मसाला दिवस 
११. केबीजी सिंड्रोम जागरूकता दिवस  
१२. विश्व बाल-श्रम निषेध दिवस, रक्षत्रीय लाल गुलाब दिवस  
१३. विश्व रंगहीनता जागरूकता दिवस,  
१४. विश्व रक्तदाता दिवस
१५. विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस, पिता दिवस 
१६. अंतर्राष्ट्रीय पारिवारिक प्रेषण (रेमिटेन्स) दिवस 
१७. विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस
१८. अंतर्राष्ट्रीय वनभोज (पिकनिक) दिवस
१९. विश्व सिकल सेल जागरूकता दिवस 
२०. विश्व शरणार्थी दिवस 
२१. विश्व संगीत दिवस  
२२. अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस, विश्व वर्षा वन दिवस  
२३. अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस,  अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस 
२४. रानी दुर्गावती  बलिदान दिवस  
२५. विश्व नाविक दिवस  
२६. अंतरराष्ट्रीय नशा निषेध दिवस , अंतरराष्ट्रीय यातना पीड़ित समर्थन में दिवस  
२७. सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग दिवस 
२९. राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस  
३०. विश्व क्षुद्र गृह (एस्‍टेरॉयड) दिवस 
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विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर
कार्यालय ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाऊन, जबलपुर ४८२००१
विश्व कीर्तिमान रचता काव्य संकलन ''चंद्र विजय अभियान'' लोकार्पित
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जबलपुर, ३१ मई। "चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर आरोहण कर भारत को विश्व में प्रथम स्थान पर प्रतिष्ठित करने वाले अभियंताओ, वैज्ञानिकों और तकनीकविदों के सम्मान में 'चंद्र विजय अभियान' नामक संकलन की संकल्प हिंदी साहित्य में अपनी तरह का प्रथम और महत्वपूर्ण प्रयोग है। ऐसा समय साक्षी साहित्य भावी पीढ़ियों का पथ प्रदर्शन करता है। इस हेतु विश्व वाणी हिंदी संस्थान था संपादक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' के साथ सभी २१३ सहभागी साधुवाद के पात्र हैं। अभियांत्रिकी शिक्षा में हिंदी का प्रयोग दिनों-दिन बढ़ रहा है किंतु अभी भी कठनाइयाँ बहुत हैं। कई शाखाओं में हिंदी में पुस्तकें उपलब्ध नहीं हैं।'' डॉ. राजीव चाँडक प्राचार्य शासकीय अभियांत्रिकी महाविद्यालय जबलपुर ने उक्त विचार सारस्वत अतिथि की आसंदी से विश्व कीर्तिमान स्थापित कर रहे काव्य संकलन 'चंद्र विजय अभियान' का लोकार्पण करते हुए व्यक्त किए। इसके पूर्व जानकी रमण महाविद्यालय में संस्था की कार्यकारिणी बैठक में ऑपरेशन सिंदूर पर एक स्मारिका द्वारा सेनाओं का अभिनंदन करने तथा पर्यावरण चेतना जाग्रत करने हेतु फुलबगिया काव्य संकलन द्वारा पर्यावरण चेतन जाग्रत करने की घोषणा डॉ. मुकुल तिवारी ने की। आरंभ में सरस्वती वंदना तथा बांग्ला कविता का सुमधुर पाठ श्रीमती क्षिप्रा सेन ने किया। हैदराबाद से पधारी श्रीमती सुनीता परसाई ने भुआणी में काव्य पाठ किया। नव पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हुए सुश्री ईशिता मिश्रा ने भी काव्य पाठ किया।


कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ख्यात दंत शल्यज्ञ डॉ. रोहित मिश्र ने हिंदी में विज्ञान और तकनीक संबंधी लेखन को युग की जरूरत बताते हुए दंत चिकित्सा के अध्ययन हिंदी बनाए जाने से सहमति व्यक्त की तथा संकल्प किया कि दंत विज्ञान की एक पुस्तक हिंदी में यात्री शीघ्र लिखेंगे। संकलन में सम्मिलित जबलपुर के ४० रचनाकारों को ससम्मान कृति भेंट करते हुए प्रसिद्ध छंद शास्त्री-समीक्षक इं. संजीव वर्मा 'सलिल' चेयरमैन इंडियन जिओटेक्नीकल सोसायटी जबलपुर चैप्टर ने केंद्र तथा राज्य शासन से सभी तकनीकी तथा विज्ञान संबंधी पाठ्यक्रम हिंदी माध्यम से पढ़ाए जाने को आदिवासी, श्रमिक, दलित तथा निम्न वर्ग के बच्चों की उन्नति के लिए आवश्यक बताया। अपनी मारिशस यात्रा के अनुभव सुनाते हुए वक्ता ने हिंदी के तकनीकी पाठ्यक्रम उन देशों में भी आरंभ किए जाने की आवश्यकता प्रतिपादित की जहाँ बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीय हैं। सद्य लोकार्पित काव्य संग्रह में ५ देशों के २१३ रचनाकारों द्वारा ५२ भाषा-बोलिओं में २७० रचनाएँ एक वैज्ञानिक परियोजना पर लिखे जाने का ऐतिहासिक सारस्वत अनुष्ठान ने संस्कारधानी की गौरव वृद्धि की है।


''हिंदी में विज्ञान परक लेखन - दशा और दिशा' विषय पर बोलते हुए सारगर्भित संगोष्ठी में श्रीमती छाया शुक्ला ने वर्तमान शिक्षा प्रणाली में अद्यतन वैज्ञानिक प्रगति के अनुरूप ही नहीं भावी विकास को दृष्टि में रखते हुए परिवर्तन किए जाने को आवश्यक बताया। युवा कवि अजय मिश्र ने हिंदी में विज्ञान परक लेखन को अपर्याप्त मानते हुए इस दिशा में प्रचुर प्रयास किए जाने पर बल दिया। जानकी रमन महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. अभिजात कृष्ण त्रिपाठी ने विज्ञान तथा अभियांत्रिकी शिक्षा संबंधी पाठ्य क्रमों में नव वैज्ञानिक प्रगति के अनुरूप निरंतर परिवर्तन किए जाने के साथ-साथ तकनीकी शिक्षा को व्यवसायोन्मुख बनाए जाने की जरूरत प्रतिपादित की। आभार प्रदर्शन गजलकार मीना भट्ट ने किया। आयोजन को सफल बनाने में डॉ. अस्मिता शैली, डॉ. अल्पना श्रीवास्तव, इं. सुरेन्द्र सिंह पवार, एड. सलप नाथ यादव, काली दास ताम्रकार, मदन श्रीवास्तव, डॉ. सुरेन्द्र साहू 'निर्विरोध', आदि ने सराहनीय योगदान किया।

***
सरस्वती वंदना
*
प्रार्थना
कब लौं बड़ाई करौं सारदा तिहारी
मति बौराई, जस गा जुबान हारी।
बीना के तारन मा संतन सम संयम
चोट खांय गुनगुनांय धुन सुनांय प्यारी।
सरस छंद छांव देओ, मैया दो अक्कल
फागुन घर आओ रचा फागें माँ न्यारी।
तैं तो सयानी मातु, मूरख अजानो मैं
मातु मति दै दुलार, 'सलिल' काब्य क्यारी।
* ***
Book Review
Showers to the Bowers : Poetry full of emotions
(Particulars of the book _ Showers to Bowers, poetry collection, N. Marthymayam 'Osho', pages 72, Price Rs 100, Multycolour Paperback covr, Amrit Prakashan Gwalior )
Poetry is the expression of inner most feelings of the poet. Every human being has emotions but the sestivity, depth and realization of a poet differs from others. that's why every one can'nt be a poet. Shri N. Marthimayam Osho is a mechanical engineer by profession but by heart he has a different metal in him. He finds the material world very attractive, beautiful and full of joy inspite of it's darkness and peshability. He has full faith in Almighty.
The poems published in this collection are ful of gratitudes and love, love to every one and all of us. In a poem titled 'Lending Labour' Osho says- ' Love is life's spirit / love is lamp which lit / Our onus pale room / Born all resplendor light / under grace, underpeace / It's time for Divine's room / who weave our soul bright. / Admire our Aur, Wafting breez.'
'Lord of love, / I love thy world / pure to cure, no sword / can scan of slain the word / The full of fragrance. I feel / so charming the wing along the wind/ carry my heart, wchih meet falt and blend' the poem ' We are one' expresses the the poet's viewpoint in the above quoted lines.
According to famous English poet Shelly ' Our sweetest songs are those that tell of saddest thought.' Osho's poetry is full of sweetness. He feels that to forgive & forget is the best policy in life. He is a worshiper of piece. In poem 'Purity to unity' the poet say's- 'Poems thine eternal verse / To serve and save the mind / Bringing new twilight to find / Pray for the soul's peace to acquire.'
Osho prays to God 'Light my life,/ Light my thought,/ WhichI sought.' 'Infinite light' is the prayer of each and every wise human being. The speciality of Osho's poetry is the flow of emotions, Words form a wave of feelings. Reader not only read it but becomes indifferent part of the poem. That's why Osho's feeliongs becomes the feelings of his reader.
Bliss Buddha, The Truth, High as heaven, Ode to nature, Journey to Gnesis, Flowing singing music, Ending ebbing etc. are the few of the remarkable poems included in this collection. Osho is fond of using proper words at proper place. He is more effective in shorter poems as they contain ocean of thoughts in drop of words. The eternal values of Indian philosophy are the inner most instict and spirit of Osho's poetry. The karmyoga of Geeta, Vasudhaiv kutumbakam, sarve bhavantu sukhinah, etc. can be easily seen at various places. The poet says- 'Beings are the owner of their action, heirs of their action" and 'O' eternal love to devine / Becomes the remedy.'
In brief the poems of this collection are apable of touching heart and take the reader in a delighted world of kindness and broadness. The poet prefers spirituality over materialism.
१-६-२०१९
***
मुक्तक
कभी दुआ तो कभी बद्दुआ से लड़ते हुए
जयी जवान सदा सरहदों पे बढ़ते हुए .
उठाये हाथ में पत्थर मिले वतनवाले
शहादतों पे चढ़ा पुष्प, चित्र मढ़ते हुए .
*
चरण छुए आशीष मिल गया, किया प्रणाम खुश रहो बोले
नम न नयन थे, नमन न मन से किया, हँसे हो चुप बम भोले
गले मिल सकूँ हुआ न सहस, हाथ मिलाऊँ भी तो कैसे?
हलो-हलो का मिला न उत्तर, हाय-हाय सुन तनिक न डोले
१-६-२०१७
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मुक्तक
न मन हो तो नमन मत करना कभी
नम न हो तो भाव मत वरना कभी
अभावों से निभाओ तो बात है
स्वभावों को विलग मत करना कभी
१-६-२०१६
***
नवगीत:
*
उत्तरायण की
सदा चर्चा रही है
*
तीर शैया पर रही सोती विरासत
समय के शर बिद्ध कर, करते बगावत
विगत लेखन को सनातन मान लेना
किन्तु आगत ने, न की गत से सखावत
राज महलों ने
न सत को जान पाया
लोक-सीता ने
विजन वन-मान पाया
दक्षिणायण की
सतत अर्चा रही है
*
सफल की जय बोलना ही है रवायत
सफलता हित सिया-सत बिन हो सियासत
खुरदुरापन नव सृजन पथ खोलता है
साध्य क्यों संपन्न को ही हो नफासत
छेनियों से, हथौड़ी से
दैव ने आकार पाया
गढ़ा मूरतकार ने पर
लोक ने पल में भुलाया
पूर्वायण की
विकट वर्चा रही है
***
१५-११-२०१४
कालिंदी विला लखनऊ
***
कृति चर्चा:
सर्वमंगल: संग्रहणीय सचित्र पर्व-कथा संग्रह
*
[कृति विवरण: सर्वमंगल, सचित्र पर्व-कथा संग्रह, श्रीमती शकुन्तला खरे, आकार डिमाई, आवरण बहुरंगी पेपरबैक, पृष्ठ संख्या १८६, मूल्य १५० रु., लेखिका संपर्क: योजना क्रमांक ११४/१, माकन क्रमांक ८७३ विजय नगर, इंदौर. म. प्र. भारत]
*
विश्व की प्राचीनतम भारतीय संस्कृति का विकास सदियों की समयावधि में असंख्य ग्राम्यांचलों में हुआ है. लोकजीवन में शुभाशुभ की आवृत्ति, ऋतु परिवर्तन, कृषि संबंधी क्रिया-कलापों (बुआई, कटाई आदि), महापुरुषों की जन्म-निधन तिथियों आदि को स्मरणीय बनाकर उनसे प्रेरणा लेने हेतु लोक पर्वों का प्रावधान किया गया है. इन लोक-पर्वों की जन-मन में व्यापक स्वीकृति के कारण इन्हें सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यता प्राप्त है. वास्तव में इन पर्वों के माध्यम से वैयक्तिक, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में सामंजस्य-संतुलन स्थापित कर, सार्वजनिक अनुशासन, सहिष्णुता, स्नेह-सौख्य वर्धन, आर्थिक संतुलन, नैतिक मूल्य पालन, पर्यावरण सुधार आदि को मूर्त रूप देकर समग्र जीवन को सुखी बनाने का उपाय किया गया है. उत्सवधर्मी भारतीय समाज ने इन लोक-पर्वों के माध्यम से दुर्दिनों में अभूतपूर्व संघर्ष क्षमता और सामर्थ्य भी अर्जित की है.
आधुनिक जीवन में आर्थिक गतिविधियों को प्रमुखता मिलने के फलस्वरूप पैतृक स्थान व् व्यवसाय छोड़कर अन्यत्र जाने की विवशता, अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा के कारण तर्क-बुद्धि का परम्पराओं के प्रति अविश्वासी होने की मनोवृत्ति, नगरों में स्थान, धन, साधन तथा सामग्री की अनुपलब्धता ने इन लोक पर्वों के आयोजन पर परोक्षत: कुठाराघात किया है. फलत:, नयी पीढ़ी अपनी सहस्त्रों वर्षों की परंपरा, जीवन शैली, सनातन जीवन-मूल्यों से अपरिचित हो दिग्भ्रमित हो रही है. संयुक्त परिवारों के विघटन ने दादी-नानी के कध्यम से कही-सुनी जाती कहानियों के माध्यम से समझ बढ़ाती, जीवन मूल्यों और जानकारियों से परिपूर्ण कहानियों का क्रम समाप्त प्राय कर दिया है. फलत: नयी पीढ़ी में पारिवारिक स्नेह-सद्भाव का अभाव, अनुशासनहीनता, उच्छंखलता, संयमहीनता, नैतिक मूल्य ह्रास, भटकाव और कुंठा लक्षित हो रही है.
मूलतः बुंदेलखंड में जन्मी और अब मालवा निवासी विदुषी श्रीमती शकुंतला खरे ने इस सामाजिक वैषम्य की खाई पर संस्कार सेतु का निर्माण कर नव पीढ़ी का पथ-प्रदर्शन करने की दृष्टि से ४ कृतियों मधुरला, नमामि, मिठास तथा सुहानो लागो अँगना के पश्चात विवेच्य कृति ' सर्वमंगल' का प्रकाशन कर पंच कलशों की स्थापना की है. शकुंतला जी इस हेतु साधुवाद की पात्र हैं. सर्वमंगल में चैत्र माह से प्रारंभ कर फागुन तह सकल वर्ष में मनाये जानेवाले लोक-पर्वों तथा त्योहारों से सम्बन्धी जानकारी (कथा, पूजन सामग्री सूचि, चित्र, आरती, भजन, चौक, अल्पना, रंगोली आदि ) सरस-सरल प्रसाद गुण संपन्न भाषा में प्रकाशित कर लोकोपकारी कार्य किया है.
संभ्रांत-सुशिक्षित कायस्थ परिवार की बेटी, बहु, गृहणी, माँ, और दादी-नानी होने के कारण शकुन्तला जी शैशव से ही इन लोक प्रवों के आयोजन की साक्षी रही हैं, उनके संवेदनशील मन ने प्रस्तुत कृति में समस्त सामग्री को बहुरंगी चित्रों के साथ सुबोध भाषा में प्रकाशित कर स्तुत्य प्रयास किया है. यह कृति भारत के हर घर-परिवार में न केवल रखे जाने अपितु पढ़ कर अनुकरण किये जाने योग्य है. यहाँ प्रस्तुत कथाएं तथा गीत आदि पारंपरिक हैं जिन्हें आम जन के ग्रहण करने की दृष्टि से रचा गया है अत: इनमें साहित्यिकता पर समाजीकर और पारम्परिकता का प्राधान्य होना स्वाभाविक है. संलग्न चित्र शकुंतला जी ने स्वयं बनाये हैं. चित्रों का चटख रंग आकर्षक, आकृतियाँ सुगढ़, जीवंत तथा अगढ़ता के समीप हैं. इस कारण इन्हें बनाना किसी गैर कलाकार के लिए भी सहज-संभव है.
भारत अनेकता में एकता का देश है. यहाँ अगणित बोलियाँ, लोक भाषाएँ, धर्म-संप्रदाय तथा रीति-रिवाज़ प्रचलित हैं. स्वाभाविक है कि पुस्तक में सहेजी गयी सामग्री उन परिवारों के कुलाचारों से जुडी हैं जहाँ लेखिका पली-बढ़ी-रही है. अन्य परिवारों में यत्किंचित परिवर्तन के साथ ये पर्व मनाये जाना अथवा इनके अतिरिक्त कुछ अन्य पर्व मनाये जाना स्वाभाविक है. ऐसे पाठक अपने से जुडी सामग्री मुझे या लेखिका को भेजें तो वह अगले संस्करण में जोड़ी जा सकेगी. सारत: यह पुस्तक हर घर, विद्यालय और पुस्तकालय में होना चाहिए ताकि इसके मध्याम से समाज में सामाजिक मूल्य स्थापन और सद्भावना सेतु निर्माण का कार्य होता रह सके.
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मुक्तक
खुद पर हो विश्वास, बहुत है
पूरी हो कुछ आस, बहुत है
चिर अतृप्ति या तृप्ति न चाहूँ
लगे-बुझे नित प्यास, बहुत है
*
राजीव बिन शोभा न सलिल-धार की
वास्तव में श्री अमर है प्यार की
सृजन पथ पर अक्षरी आराधना
राह है संसार से उद्धार की
*
बिंदु-सिन्धु सा खुद में और खुदा में अंतर
कंकर-शंकर किये समाहित सच का मंतर
आप आत्म, परमात्म आप है, द्वैत नहीं कुछ
जो देखे अद्वैत मलिन हो कभी न अंतर
*
इंसानी फितरत समान है, रहो देश या बसों विदेश
ऐसी कोई जगह नहीं है जहाँ मलिनता मिले न लेश
जैसा देश वेश हो वैसा पुरखे सच ही कहते थे-
स्वीकारें सच किन्तु क्षुब्ध हो नोचें कभी न अपने केश
*
बाधाएँ अनगिन आयेंगीं, करना तनिक उजास बहुत है
तपिश झेलने को मन में मधुबन का हो आभास बहुत है
तिमिर अमावस का लाया है खबर जल्द राकेश आ रहा
फिर पूनम-चंदा चमकेगा बस इतना विश्वास बहुत है
*
ममता-समता पाने खातिर जी भर करें प्रयास बहुत है
प्रभु सुमिरन से बने एकता किंचित हो आभास बहुत है
करें प्रार्थना पर न याचना, पौरुष-कोशिश कभी न त्यागें-
कर्मयोग ही फलदायक है, करिए कुछ विश्वास बहुत है. *
*
'जैसी करनी वैसी भरनी' अगर नहीं तो न्याय कहाँ?
लेख-जोखा अगर नहीं तो असत-सत्य का दाय कहाँ?
छाँह न दे तो बेमानी छाता हो जाता क्यों रखिए-
कुछ न करे तो शक्तिमान का किंचित भी अभिप्राय कहाँ?
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१-६-२०१५
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संस्मरण
'नेताजी के साथ मैंने भी हिटलर से हाथ मिलाया'
कर्नल निज़ामुद्दीन
मुबारकपुर, आज़मगढ़ के पास के गाँव ढकुआ में रहने वाले 'कर्नल' निज़ामुद्दीन ने सुभाष चंद्र बोस के साथ बिताए दिनों की याद ताज़ा की.
अभी तक आप उनके उन दावों को पढ़ चुके हैं कि कैसे वह नेताजी के ड्राइवर बने और कैसे उन्होंने नेताजी की ओर जा रहीं तीन गोलियों को अपनी पीठ पर ले लिया था.
उन्होंने वो याद भी ताज़ा की थी जिसके अनुसार रंगून में नेताजी बोस ने आख़िरी मुग़ल शासक बहादुर शाह ज़फर की मज़ार को पक्का करवाया था.
बीबीसी से हुई बातचीत में निज़ामुद्दीन ने ये भी बताया कि कैसे रोज़ शाम को चार बजे के आसपास नेताजी अपने सहयोगियों से साथ बैठ कर आज़ादी की बात किया करते थे.
हिटलर
हिटलर
'कर्नल' निज़ामुद्दीन ने ये भी बताया कि नेताजी बोस के साथ कई देशों की यात्रा के दौरान वो नामचीन लोगों से भी मिले.
उन्होंने बताया, "एक दफ़ा मैं नेताजी के साथ जापान गया था, जहाँ नेताजी की मुलाक़ात जर्मनी के चांसलर हिटलर से हुई. उस मीटिंग के दौरान जर्मनी के फील्ड मार्शल रोमेल भी मौजूद थे. मुझे भी हिटलर से हाथ मिलाने का मौका मिला था".
हालांकि सुभाष चंद्र बोस और उनकी मौत से जुड़े रहस्य पर शोध करने वाले अनुज धर निज़ामुद्दीन के इस दावे पर दूसरी राय रखते हैं.
उन्होंने कहा, "हो सकता है 100 से ज़्यादा उम्र होने के चलते निज़ामुद्दीन ये भूल रहे हों कि हिटलर और नेताजी की मुलाक़ात जर्मनी में हुई थी न कि जापान में. दूसरी बात ये कि नेताजी के साथ आईएनए के दूसरे बड़े अफ़सर जाया करते थे".
नाराज़गी
नेताजी सुभाषचंद्र बोस
'कर्नल' निज़ामुद्दीन बताते हैं कि जब दूसरा विश्व युद्ध समाप्ति पर था तब नेताजी ने आज़ाद हिंद फ़ौज के सभी सदस्यों को छुप कर आदेश दिए थे.
उन्होंने कहा, "विमान हादसे में नेताजी बोस की मौत की ख़बर ग़लत थी क्योंकि उन्होंने 1945 के बाद भी आईएनए के सदस्यों को सभी दस्तावेज़ नष्ट करने के लिए कहा था ताकि बाद में उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई न हो सके".
निज़ामुद्दीन का दावा है कि नेताजी कांग्रेस के अपने पुराने सहयोगियों से खासे आहत रहते थे जिसमे सभी शीर्ष नेता शामिल थे.
हालांकि नेताजी बोस पर 'इंडियाज़ बिगेस्ट कवरअप' लिखने वाले अनुज धर के अनुसार निज़ामुद्दीन को अपने इन दावों के प्रमाण दिखाने की ज़रुरत है.
कश्मकश
अनुज धर
अनुज धर ने कहा, "अगर हिटलर से हाथ मिलाते हुए नेताजी बोस की तस्वीर मौजूद है तो उसमे निज़ामुद्दीन तो कहीं नहीं दिखते. न ही निज़ामुद्दीन सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु पर जांच के लिए बनी खोसला कमिटी या शाहनवाज़ कमीशन के समक्ष पहुंचे और न ही उनके पास दस्तावेज़ हैं".
मैं खुद भी इस कश्मकश में हूँ कि आख़िर सच क्या है.
'कर्नल' निज़ामुद्दीन के गाँव में तीन घंटे बिताने पर मुझे ये तो समझ में आया कि उन्हें कम से कम सात भाषाओं की समझ है और उनकी आधी से ज़्यादा ज़िन्दगी बर्मा में बीती है.
नेताजी के साथ उनके सहयोग के दावों का सच निज़मुद्दीन के अलावा शायद अब कोई नहीं बता सकता.
उन्होंने कहा, "बर्मा में नेताजी की बहुत इज़्ज़त थी. आज़ाद हिन्द फ़ौज का अपना रेडियो स्टेशन था, अपना बैंक था और हमारे अपने नोट भी छपते थे."
लेकिन 104 वर्ष की उम्र में भी निज़ामुद्दीन उस बात को याद करके भावुक हो उठते हैं, जिसके अनुसार नेताजी बोस को जंगलों में जगहें बदल-बदल कर रातें गुज़ारनी पड़ती थीं.
सुभाष चंद्र बोस की हत्या हुई या मृत्यु?
उन्होंने बताया, "हवाई बमबारी का ख़तरा हमेशा रहता था, इसलिए सुभाष चंद्र बोस हर रात बर्मा के जंगलों में कम से कम दो जगह बदलते थे. मैं ख़ुद उनको रात में उठाता था, ये कहते हुए कि उठिए अंडा (बम) गिर सकता है. इसलिए हमें निकलना चाहिए."
निज़ामुद्दीन के अनुसार, सुभाष हर बार नींद से उठाए जाने पर जवाब देते थे, "नींद से अच्छी तो मौत है."
निज़ामुद्दीन के मुताबिक़, नेताजी बोस अपने सहयोगियों को लेकर इतने मिलनसार थे कि अक्सर उनके जूठे गिलास में भी पानी पी लिया करते थे.
नेताजी सुभाष चंद्र बोस
'कर्नल' निज़ामुद्दीन ने 1940 के दशक की याद करते हुए बताते हैं कि, "उन दिनों ऐसा ही लगता था कि भारत को आज़ाद हिंद फ़ौज ही आज़ादी दिलाएगी."
उन्होंने बताया कि सुभाष बोस ही वो व्यक्ति थे जिन्होंने आख़िरी मुग़ल शासक बहादुर शाह ज़फर की क़ब्र को पूरी इज़्ज़त दिलवाई.
वो बताते हैं, "ज़फर की कब्र को नेताजी बोस ने ही पक्का करवाया था. वहाँ कब्रिस्तान में गेट लगवाया और उनकी क़ब्र के सामने चारदीवारी बनवाई थी. मैं ख़ुद नेताजी के साथ कई मर्तबा ज़फर की मज़ार पर गया हूँ."
निज़ामुद्दीन के अनुसार, उन्होंने अपनी सौ वर्ष से भी ज़्यादा की उम्र में सुभाषचंद्र बोस जैसा दिलदार आदमी नहीं देखा.
विमान हादसा
गांधी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस
इतिहास के मुताबिक़, सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु अगस्त, 1945 में फॉरमोसा, ताइवान में एक विमान हादसे हुई थी.
हालांकि 'कर्नल' निज़ामुद्दीन इस बात का खंडन करते हैं.
उन्होंने बताया, "जापान ने नेताजी को तीन हवाई जहाज़ दिए थे. जब मैंने उन्हें सितांग नदी के किनारे वर्ष 1947 में आख़िरी बार छोड़ा तब वो जापानी अफसरों के साथ मोटरबोट पर बैठने के पहले भावुक हो गए थे. मैंने कहा, मुझे भी अपने साथ ले चलिए, लेकिन उन्होंने कहा कि, तुम यहीं रुको जिससे दूसरों का ख़्याल रखा जा सके."
वैसे नेताजी बोस की मृत्यु से जुड़ी जानकारी जुटाने वाले और 'इंडियाज़ बिगेस्ट कवरअप' नामक किताब लिखने वाले अनुज धर का भी मानना है कि सुभाष चंद्र बोस उस विमान में थे ही नहीं जिसका हादसा हुआ था.
लेकिन अनुज धर निज़ामुद्दीन के उन दावों को ख़ारिज करते हैं, जिनमें कहा गया है कि नेताजी 1945 से लेकर 1947 तक बर्मा में थे.
दावों पर सवाल
नेताजी क़िताब
सुभाष बोस की रहस्यमई मृत्यु पर लेखक अनुज धर की किताब ने कई सवाल खड़े किए हैं.
उन्होंने कहा, "जितने दस्तावेज़ मिले हैं उनके हिसाब से नेताजी इस दौरान रूस में थे. रही बात निज़ामुद्दीन की तो उन्हें कम से कम एक फ़ोटो या कोई प्रमाण तो दिखाना चाहिए अपने और नेताजी के दिनों का."
अब सच्चाई क्या है इसे पता लगाने में अनुज धर जैसे तमाम लोग लगे हैं.
कुछ दिन पहले ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पोती आजमगढ़ में निज़ामुद्दीन से मिलकर लौटीं हैं.
***
हिन्दी काव्यानुवाद सहित नर्मदाष्टक : १ --संजीव 'सलिल'
भगवत्पादश्रीमदाद्य शंकराचार्य स्वामी विरचितं नर्मदाष्टकं
सविंदुसिंधु-सुस्खलत्तरंगभंगरंजितं, द्विषत्सुपापजात-जातकारि-वारिसंयुतं
कृतांतदूत कालभूत-भीतिहारि वर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .१.
त्वदंबु लीनदीन मीन दिव्य संप्रदायकं, कलौमलौघभारहारि सर्वतीर्थनायकं
सुमत्स्य, कच्छ, तक्र, चक्र, चक्रवाक् शर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .२.
महागभीर नीरपूर - पापधूत भूतलं, ध्वनत समस्त पातकारि दारितापदाचलं.
जगल्लये महाभये मृकंडुसूनु - हर्म्यदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .३.
गतं तदैव मे भयं त्वदंबुवीक्षितं यदा, मृकंडुसूनु शौनकासुरारिसेवितं सदा.
पुनर्भवाब्धिजन्मजं भवाब्धि दु:खवर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .४.
अलक्ष्य-लक्ष किन्नरामरासुरादि पूजितं, सुलक्ष नीरतीर - धीरपक्षि लक्षकूजितं.
वशिष्ठ शिष्ट पिप्पलादि कर्ममादिशर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .५.
सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपादि षट्पदै, घृतंस्वकीय मानसेषु नारदादि षट्पदै:,
रवींदु रन्तिदेव देवराज कर्म शर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .६.
अलक्ष्यलक्ष्य लक्ष पाप लक्ष सार सायुधं, ततस्तु जीव जंतु-तंतु भुक्ति मुक्तिदायकं.
विरंचि विष्णु शंकर स्वकीयधाम वर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .७.
अहोsमृतं स्वनं श्रुतं महेशकेशजातटे, किरात-सूत वाडवेशु पण्डिते शठे-नटे.
दुरंत पाप-तापहारि सर्वजंतु शर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .८.
इदन्तु नर्मदाष्टकं त्रिकालमेव ये यदा, पठंति ते निरंतरं न यांति दुर्गतिं कदा.
सुलक्ष्य देह दुर्लभं महेशधाम गौरवं, पुनर्भवा नरा न वै विलोकयंति रौरवं. ९.
इति श्रीमदशंकराचार्य स्वामी विरचितं नर्मदाष्टकं सम्पूर्णं
श्रीमद आदि शंकराचार्य रचित नर्मदाष्टक : हिन्दी पद्यानुवाद द्वारा संजीव 'सलिल'
उठती-गिरती उदधि-लहर की, जलबूंदों सी मोहक-रंजक
निर्मल सलिल प्रवाहितकर, अरि-पापकर्म की नाशक-भंजक
अरि के कालरूप यमदूतों, को वरदायक मातु वर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.१.
दीन-हीन थे, मीन दिव्य हैं, लीन तुम्हारे जल में होकर.
सकल तीर्थ-नायक हैं तव तट, पाप-ताप कलियुग का धोकर.
कच्छप, मक्र, चक्र, चक्री को, सुखदायक हे मातु शर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.२.
अरिपातक को ललकार रहा, थिर-गंभीर प्रवाह नीर का.
आपद पर्वत चूर कर रहा, अन्तक भू पर पाप-पीर का.
महाप्रलय के भय से निर्भय, मारकंडे मुनि हुए हर्म्यदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.३.
मार्कंडे-शौनक ऋषि-मुनिगण, निशिचर-अरि, देवों से सेवित.
विमल सलिल-दर्शन से भागे, भय-डर सारे देवि सुपूजित.
बारम्बार जन्म के दु:ख से, रक्षा करतीं मातु वर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.४.
दृश्य-अदृश्य अनगिनत किन्नर, नर-सुर तुमको पूज रहे हैं.
नीर-तीर जो बसे धीर धर, पक्षी अगणित कूज रहे हैं.
ऋषि वशिष्ठ, पिप्पल, कर्दम को, सुखदायक हे मातु शर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.५.
सनत्कुमार अत्रि नचिकेता, कश्यप आदि संत बन मधुकर.
चरणकमल ध्याते तव निशि-दिन, मनस मंदिर में धारणकर.
शशि-रवि, रन्तिदेव इन्द्रादिक, पाते कर्म-निदेश सर्वदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.६.
दृष्ट-अदृष्ट लाख पापों के, लक्ष्य-भेद का अचूक आयुध.
तटवासी चर-अचर देखकर, भुक्ति-मुक्ति पाते खो सुध-बुध.
ब्रम्हा-विष्णु-सदा शिव को, निज धाम प्रदायक मातु वर्मदा.
चरणकमल में नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.७.
महेश-केश से निर्गत निर्मल, 'सलिल' करे यश-गान तुम्हारा.
सूत-किरात, विप्र, शठ-नट को,भेद-भाव बिन तुमने तारा.
पाप-ताप सब दुरंत हरकर, सकल जंतु भाव-पार शर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.८.
श्रद्धासहित निरंतर पढ़ते, तीन समय जो नर्मद-अष्टक.
कभी न होती दुर्गति उनकी, होती सुलभ देह दुर्लभ तक.
रौरव नर्क-पुनः जीवन से, बच-पाते शिव-धाम सर्वदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.९.
श्रीमदआदिशंकराचार्य रचित, संजीव 'सलिल' अनुवादित नर्मदाष्टक पूर्ण.
१-६-२०१४
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अमरूद - फल भी , दवा भी
अमरूद एक बेहतरीन स्वादिष्ट फल है। अमरूद कई गुणों से भरपूर है। अमरूद में प्रोटीन 10.5 प्रतिशत, वसा 0. 2 कैल्शियम 1.01 प्रतिशत बी पाया जाता है। अमरूद का फलों में तीसरा स्थान है। पहले दो नम्बर पर आंवला और चेरी हैं। इन फलों का उपयोग ताजे फलों की तरह नहीं किया जाता, इसलिए अमरूद विटामिन सी पूर्ति के लिए सर्वोत्तम है।
विटामिन सी छिलके में और उसके ठीक नीचे होता है तथा भीतरी भाग में यह मात्रा घटती जाती है। फल के पकने के साथ-साथ यह मात्रा बढती जाती है। अमरूद में प्रमुख सिट्रिक अम्ल है 6 से 12 प्रतिशत भाग में बीज होते है। इसमें नारंगी, पीला सुगंधित तेल प्राप्त होता है। अमरूद स्वादिष्ट फल होने के साथ-साथ अनेक गुणों से भरा से होता है।
यदि कभी आपका गला ज्यादा ख़राब हो गया हो तो अमरुद के तीन -चार ताज़े पत्ते लें ,उन्हें साफ़ धो लें तथा उनके छोटे-छोटे टुकड़े तोड़ लें | एक गिलास पानी लेकर उसमे इन पत्तों को डाल कर उबाल लें , थोड़ा पकाने के बाद आंच बंद कर दें | थोड़ी देर इस पानी को ठंडा होने दें ,जब गरारे करने लायक ठंडा हो जाये तो इसे छानकर ,इसमें नमक मिलाकर गरारे करें , याद रखें कि इसमें ठंडा पानी नहीं मिलना है |
अमरूद के ताजे पत्तों का रस 10 ग्राम तथा पिसी मिश्री 10 ग्राम मिलाकर 21 दिन प्रात: खाली पेट सेवन करने से भूख खुलकर लगती है और शरीर सौंदर्य में भी वृद्धि होती है।
अमरूद खाने या अमरूद के पत्तों का रस पिलाने से शराब का नशा कम हो जाता है। कच्चे अमरूद को पत्थर पर घिसकर उसका एक सप्ताह तक लेप करने से आधा सिर दर्द समाप्त हो जाता है। यह प्रयोग प्रात:काल करना चाहिए। गठिया के दर्द को सही करने के लिए अमरूद की 4-5 नई कोमल पत्तियों को पीसकर उसमें थोड़ा सा काला नमक मिलाकर रोजाना खाने से से जोड़ो के दर्द में काफी राहत मिलती है।
डायबिटीज के रोगी के लिए एक पके हुये अमरूद को आग में डालकर उसे भूनकर निकाल लें और भुने हुई अमरुद को छीलकर साफ़ करके उसे अच्छे से मैश करके उसका भरता बना लें, उसमें स्वादानुसार नमक, कालीमिर्च, जीरा मिलाकर खाएं, इससे डायबिटीज में काफी लाभ होता है। ताजे अमरूद के 100 ग्राम बीजरहित टुकड़े लेकर उसे ठंडे पानी में 4 घंटे भीगने दीजिए। इसके बाद अमरूद के टुकड़े निकालकर फेंक दें। इस पानी को मधुमेह के रोगी को पिलाने से लाभ होता है।
जब भी आप फोड़े और फुंसियों से परेशान हो तो अमरूद की 7-8 पत्तियों को लेकर थोड़े से पानी में उबालकर पीसकर पेस्ट बना लें और इस पेस्ट को फोड़े-फुंसियों पर लगाने से आराम मिल जाएगा। चार हफ्तों तक नियमित रूप से अमरूद खाने से भी पेट साफ रहता है व फुंसियों की समस्या से राहत मिलती है।
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घनाक्षरी / मनहरण कवित्त
... झटपट करिए
*
लक्ष्य जो भी वरना हो, धाम जहाँ चलना हो,
काम जो भी करना हो, झटपट करिए.
तोड़ना नियम नहीं, छोड़ना शरम नहीं,
मोड़ना धरम नहीं, सच पर चलिए.
आम आदमी हैं आप, सोच मत चुप रहें,
खास बन आगे बढ़, देशभक्त बनिए-
गलत जो होता दिखे, उसका विरोध करें,
'सलिल' न आँख मूँद, चुपचाप सहिये.
*
छंद विधान: वर्णिक छंद, आठ चरण,
८-८-८-७ पर यति, चरणान्त लघु-गुरु.
१-६-२०११
***
गीत
माँ जी हैं बीमार...
*
माँ जी हैं बीमार...
*
प्रभु! तुमने संसार बनाया.
संबंधों की है यह माया..
आज हुआ है वह हमको प्रिय
जो था कल तक दूर-पराया..
पायी उससे ममता हमने-
प्रति पल नेह दुलार..
बोलो कैसे हमें चैन हो?
माँ जी हैं बीमार...
*
लायीं बहू पर बेटी माना.
दिल में, घर में दिया ठिकाना..
सौंप दिया अपना सुत हमको-
छिपा न रक्खा कोई खज़ाना.
अब तो उनमें हमें हो रहे-
निज माँ के दीदार..
करूँ मनौती, कृपा करो प्रभु!
माँ जी हैं बीमार...
*
हाथ जोड़ कर करूँ वन्दना.
अब तक मुझको दिया रंज ना.
अब क्यों सुनते बात न मेरी?
पूछ रही है विकल रंजना..
चैन न लेने दूँगी, तुमको
जग के तारणहार.
स्वास्थ्य लाभ दो मैया को हरि!
हों न कभी बीमार..
१-६-२०१०
***
मुक्तिका
जंगल काटे, पर्वत खोदे, बिना नदी के घाट रहे हैं।
अंतर में अंतर पाले वे अंतर्मन-सम्राट रहे हैं?
जननायक जनगण के शोषक, लोकतंत्र के भाग्य-विधाता।
निज वेतन-भत्ता बढ़वाकर अर्थ-व्यवस्था चाट रहे हैं।।
सत्य-सनातन मूल्य, पुरातन संस्कृति की अब बात मत करो।
नव विकास के प्रस्तोता मिल इसे बताते हाट रहे हैं।।
मखमल के कालीन मिले या मलमल के कुरते दोनों में
अधुनातनता के अनुयायी बस पैबन्दी टाट रहे हैं।।
पट्टी बाँधे गांधारी सी, न्याय-व्यवस्था निज आँखों पर।
धृतराष्ट्री हैं न्यायमूर्तियाँ, अधिवक्तागण भाट रहे हैं।।
राजमार्ग निज-हित के चौड़े, जन-हित की पगडंडी सँकरी।
जात-पाँत के ढाबे-सम्मुख ऊँच-नीच के खाट रहे हैं।।
'सेवा से मेवा' ठुकराकर 'मेवा हित सेवा' के पथ पर।
पग रखनेवाले सेवक ही नेता-साहिब लाट रहे हैं।।
'मन की बात' करें मनमानी, जन की बात न तंत्र सुन रहा।
लोकतंत्र के शव से धनपति लोभ खाई को पाट रहे हैं।।
मिथ्या मान-प्रतिष्ठा की दे रहे दुहाई बैठ खाप में।
'सलिल' अत्त के सभी सयाने मिल अपनी जड़ काट रहे हैं।।
*
हाट = बाज़ार, भारत की न्याय व्यवस्था की प्रतीक मूर्ति की आँखों पर पट्टी चढ़ी है, लाट साहिब = बड़े अफसर, खाप = पंचायत, जन न्यायालय, अत्त के सयाने = हद से अधिक होशियार = व्यंगार्थ वास्तव में मूर्ख।
१-६-२०१०

*

गुरुवार, 5 दिसंबर 2024

दिसंबर ५, सॉनेट, कबीर, कब क्या, हुर्रेमारा, अलंकार, अतिशयोक्ति, नवगीत

सलिल सृजन दिसंबर ५
*
सॉनेट
कबीर
*
ज्यों की त्यों चादर धर भाई
जिसने दी वह आएगा।
क्यों तैंने मैली कर दी है?
पूछे; क्या बतलायेगा?
काँकर-पाथर जोड़ बनाई
मस्जिद चढ़कर बांग दे।
पाथर पूज ईश कब मिलता?
नाहक रचता स्वांग रे!
दो पाटन के बीच न बचता
कोई सोच मत हो दुखी।
कीली लगा न किंचित पिसता
सत्य सीखकर हो सुखी।
फेंक, जोड़ मत; तभी अमीर
सत्य बोलता सदा कबीर।।
५-१२-२०२१
***
सॉनेट
भोर
*
भोर भई जागो रे भाई!
उठो न आलस करना।
कलरव करती चिड़िया आई।।
ईश-नमन कर हँसना।
खिड़की खोल, हवा का झोंका।
कमरे में आकर यह बोले।
चल बाहर हम घूमें थोड़ा।।
दाँत साफकर हल्का हो ले।।
लौट नहा कर, गोरस पी ले।
फिर कर ले कुछ देर पढ़ाई।
जी भर नए दिवस को जी ले।।
बाँटे अरुण विहँस अरुणाई।।
कोरोना से बचकर रहना।
पहन मुखौटा जैसे गहना।।
५-१२-२०२१
***
कब क्या दिसंबर
*
०१. एड्स जागरूकता दिवस, नागालैंड दिवस १९६३, सीमा सुरक्ष बल गठित १९६५, क्रांन्तिकारी राजा महेंद्र प्रताप जन्म १८८६
०२. संत ज्ञानेश्वर दिवस, अरविन्द आश्रम स्कूल पॉन्डिचेरी १९४२
०३. किसान दिवस, विश्व विकलाँग दिवस, शहीद खुदीराम बोस जन्म १८८९ शहीद ११-८-१९०८, डॉ. राजेंद्र प्रसाद जयंती १८८४, यशपाल जन्म १९०३ चद्रसेन विराट जन्म १९३६, देवानंद निधन २०११, भारत-पाक युद्ध १९७१, भोपाल गैस रिसाव १९८४
०४. भारतीय जल सेना दिवस, सती प्रथा समापन आदेश जारी १८२९ (लार्ड विलियम बेंटिक), शेख अब्दुल्ला जन्म १९०५
०५. आर्थिक-सामाजिक विकास दिवस, महर्षि अरविन्द दिवस, पन्नालाल श्रीवास्तव 'नूर' जन्म १९१४, रामकृष्ण दीक्षित जन्म १९२८
०६. डॉ. अंबेडकर निधन १९५६, तुर्की महिला मताधिकार १९२९
०७. झंडा दिवस, भारत प्रथम विधवा विवाह १८५६, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी जन्म १८७९
०८. तेजबहादुर सप्रू जन्म १८७५, क्रांतिकारी जतीन्द्रनाथ मुखर्जी (बाघा जतिन) जन्म १८७९, शर्मिला टैगोर जन्म
०९. संविधान सभा प्रथम बैठक १९४६, महाकवि सूरदास जन्म १४८४, क्रन्तिकारी राव तुलाराम जन्म १८२५, शत्रुघ्न सिन्हा जन्म,
१०. मानव अधिकार दिवस, डॉ. द्वारकानाथ कोटनीस निधन १९४२ चीन में
११. डॉ. राजेंद्र प्रसाद अध्यक्ष १९४६, कवि प्रदीप जन्म, ओशो जन्म १९३१, अमरीकी अंतरिक्ष उतरे १९७२ (अपोलो)
१२. मैथिलीशरण गुप्त निधन १९६४, प्रो. सत्य सहाय निधन २०१०, प्रिवीपर्स समाप्ति कानून पारित १०७१
१३. भवानी प्रसाद तिवारी निधन
१४. ऊर्जा बचत दिवस, उपेंद्र नाथ अश्क जन्म १९१०, राजकपूर जन्म १९२४, शैलेन्द्र जन्म १९६६
१५. सरदार पटेल निधन १९५०
१६. बांगला देश दिवस १९७१, प्रथम परमाणु भट्टी कलपक्कम १९८५
१७. क्रन्तिकारी राजेंद्र लाहिड़ी निधन १९२७, भगत सिंह- स्कॉट के धोखे में सांडर्स को गोली मारी, नूरजहाँ निधन १६४५, सत्याग्रह स्थगित १९४०, पाक सेना सर्पण ढाका १९७१
१८. राष्ट्रीय संग्रहालय उद्घाटित १९६०
१९. रामप्रसाद बिस्मिल-अशफ़ाक़ उल्ला खान शहीद १९२७, गोवा विजय १९६१,
२०. क्रांतिकारी बाबा सोहन सिंह भखना शहीद १९६८, वनडे मातरम् रचना १८७६ (बंकिम चन्द्र चटर्जी)
२२. श्रीनिवास रामानुजम जन्म १८८७
२३. स्वामी श्रद्धानन्द निधन १९२६
२४. राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस, विश्व भारती स्थापना १९२१, मो.रफ़ी जन्म १९२४
२५. बड़ा दिन, मदन मोहन मालवीय जन्म १८६१, मो. अली जिन्ना जन्म, अटल बिहारी बाजपेयी जन्म १९२४, कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव जन्म, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी निधन, अभिनेत्री साधना निधन २०१५
२६. शहीद ऊधम सिंह जन्म १८९९, डॉ. किशोर काबरा जन्म १९३४, यशपाल निधन १९७६,
२७. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष स्थापित १९४५, जान गण मन गायन दिवस १९११ मिर्ज़ा ग़ालिब जन्म १७९७, बेनज़ीर भुट्टो हत्या २००७
२८. सुमित्रा नंदन पंत निधन १९७७, प्रथम सिनेमा गृह पेरिस १८९५, कश्मीर युद्ध १९४७
२९. कोलकाता मेट्रो कार्यारंभ १९७२
३०. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने तिरंगा फहराकर भारत को स्वतंत्र घोषित किया, बाबर मारा १५३०
३१. स्वराज्य संकल्प लाहौर १९२९, विश्व युद्ध समाप्त १९४६, रघुवीर सहाय निधन, दुष्यंत कुमार निधन
***
दोहांजलि
*
जयललिता-लालित्य को
भूल सकेगा कौन?
शून्य एक उपजा,
भरे कौन?
छा गया मौन.
*
जननेत्री थीं लोकप्रिय,
अभिनेत्री संपूर्ण.
जयललिता
सौन्दर्य की
मूर्ति, शिष्ट-शालीन.
*
दीन जनों को राहतें,
दीं
जन-धन से खूब
समर्थकी जयकार में
हँसीं हमेशा डूब
*
भारी रहीं विपक्ष पर,
समर्थकों की इष्ट
स्वामिभक्ति
पाली प्रबल
भोगें शेष अनिष्ट
*
कर विपदा का सामना
पाई विजय विशेष
अंकित हैं
इतिहास में
'सलिल' न संशय लेश
***
दो द्विपदियाँ - दो स्थितियाँ
*
साथ थे तन न मन 'सलिल' पल भर
शेष शैया पे करवटें कितनी
*
संग थे तुम नहीं रहे पल भर
हैं मगर मन में चाहतें कितनी
***
दोहा सलिला-
कवि-कविता
*
जन कवि जन की बात को, करता है अभिव्यक्त
सुख-दुःख से जुड़ता रहे, शुभ में हो अनुरक्त
*
हो न लोक को पीर यह, जिस कवि का हो साध्य
घाघ-वृंद सम लोक कवि, रीति-नीति आराध्य
*
राग तजे वैराग को, भक्ति-भाव से जोड़
सूर-कबीरा भक्त कवि, दें समाज को मोड़
*
आल्हा-रासो रच किया, कलम-पराक्रम खूब
कविपुंगव बलिदान के, रंग गए थे डूब
*
जिसके मन को मोहती, थी पायल-झंकार
श्रंगारी कवि पर गया, देश-काल बलिहार
*
हँसा-हँसाकर भुलाई, जिसने युग की पीर
मंचों पर ताली मिली, वह हो गया अमीर
*
पीर-दर्द को शब्द दे, भर नयनों में नीर
जो कवि वह होता अमर, कविता बने नज़ीर
*
बच्चन, सुमन, नवीन से, कवि लूटें हर मंच
कविता-प्रस्तुति सौ टका, रही हमेशा टंच
*
महीयसी की श्रेष्ठता, निर्विवाद लें मान
प्रस्तुति गहन गंभीर थी, थीं न मंच की जान
*
काका की कविता सकी, हँसा हमें तत्काल
कथ्य-छंद की भूल पर, हुआ न किन्तु बवाल
*
समय-समय की बात है, समय-समय के लोग
सतहीपन का लग गया, मित्र आजकल रोग
५.१२.२०१६
***
देवी दंतेश्वरी के दामाद - हुर्रेमारा
----------------
दंतेश्वरी देवी और आदिवासी संयोजन की अनेक कहानियों में से एक है उनके दामाद हुर्रेमारा की। आदिवासी मान्यतायें न केवल उन्हें अपने परिवार के स्तर तक जोड़ती हैं अपितु वे देवी के भी बेटे-बेटियों, नाती-पोतों की पूरी दुनिया स्थापित कर देते हैं। देवी के ये परिजन आपस में लड़ते-झगडते भी हैं तथा प्रेम-मनुहार भी करते हैं।
कहते हैं देवी दंतेश्वरी की पुत्री मावोलिंगो को देख कर जनजातीय देव हुर्रेमारा आसक्त हो गये। उन्होंने मावोलिंगो से अपना प्रेम व्यक्त किया। यह प्यार अपनी परिणति तक पहुँचता इससे पहले ही लड़की की माँ अर्थात देवी दंतेश्वरी को इसकी जानकारी मिल गयी और उन्होंने विवाह को अपनी असहमति प्रदान कर दी। हुर्रेमारा भी कोई साधारण देव तो थे नहीं, उन्होंने कुछ समय तक प्रयास किया कि दंतेश्वरी मान जायें और अपनी पुत्री से उनके विवाह को स्वीकारोक्ति प्रदान कर दें। बात न बनते देख वे क्रोधित हो गये। उन्होंने अपनी बात मनवाने की जिद में शंखिनी-डंकिनी नदियों के पानी को ही संगम के निकट रोक दिया। अब जलस्तर बढने लगा और धीरे धीरे देवी दंतेश्वरी का मंदिर डूब जाने की स्थिति निर्मित हो गयी। दंतेश्वरी को हार कर हुर्रेमारा की जिद माननी ही पड़ी। इस तरह उनकी पुत्री मावोलिंगो से हुर्रेमारा का विवाह सम्पन्न हो सका।
बात यहीं समाप्त नहीं होती। दामाद हुर्रेमारा जब ससुराल पहुँचे तो उनके अपने ही नखरे थे। तुनक मुजाज हुर्रेमारा हर रोज नयी मांग रखते, अपने स्वागत की नयी नयी अपेक्षायें प्रदर्शित करते और किसी न किसी बात पर झगड़ लेते। अंतत: एक दिन सास-दामाद अर्थात दंतेश्वरी और हुर्रेमारा में ऐसी बिगडी कि अब दोनो ही एक दूसरे से मिलना पसंद नहीं करते। यद्यपि देवी के स्थान में हुर्रेमारा की और हुर्रेमारा के स्थान में देवी दंतेश्वरी की विशेष व्यवस्था की जाती है। दंतेवाड़ा से कुछ ही दूर भांसी गाँव के पास एक पहाड़ी तलहटी में हुर्रेमारा का स्थान है जहाँ वे अपनी पत्नी मावोलिंगो व अपने एक पुत्र के साथ रह रहे हैं। इस देव परिवार की अनेक संततियाँ हैं जो निकटस्थ अनेक गाँवों में निवासरत हैं और वहाँ के निवासियों द्वारा सम्मान पाती हैं।
===
***
अलंकार सलिला ३९
अतिशयोक्ति सीमा हनें
*
जब सीमा को तोड़कर, होते सीमाहीन
अतिशयोक्ति तब जनमती, सुनिए दीन-अदीन..
बढा-चढ़ाकर जब कहें, बातें सीमा तोड़.
अतिशयोक्ति तब जानिए, सारी शंका छोड़..
जहाँ लोक-सीमा का अतिक्रमण करते हुए किसी बात को अत्यधिक बढा-चढाकर कहा गया हो, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
जहाँ पर प्रस्तुत या उपमेय को बढा-चढाकर शब्दांकित किया जाये वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण:
१. परवल पाक, फाट हिय गोहूँ।
यहाँ प्रसिद्ध कवि मालिक मोहम्मद जायसी ने नायिका नागमती के विरह का वर्णन करते हुए कहा है कि उसके विरह के ताप के कारण परवल पक गये तथा गेहूँ का ह्रदय फट गया।
२. मैं तो राम विरह की मारी, मोरी मुंदरी हो गयी कँगना।
इन पंक्तियों में श्री राम के विरह में दुर्बल सीताजी की अँगूठी कंगन हो जाने का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन है।
३. ऐसे बेहाल बेबाइन सों, पग कंटक-जल लगे पुनि जोये।
हाय! महादुख पायो सखा, तुम आये न इतै कितै दिन खोये।।
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करि के करुनानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुओ नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये।।
४. बूँद-बूँद मँह जानहू।
५. कहुकी-कहुकी जस कोइलि रोई।
६. रकत आँसु घुंघुची बन बोई।
७. कुंजा गुन्जि करहिं पिऊ पीऊ।
८. तेहि दुःख भये परास निपाते।
९. हनुमान की पूँछ में, लगन न पाई आग।
लंका सारी जल गयी, गए निसाचर भाग।। -तुलसी
१०. देख लो साकेत नगरी है यही।
स्वर्ग से मिलने गगन को जा रही।। -मैथिलीशरण गुप्त
११. प्रिय-प्रवास की बात चलत ही, सूखी गया तिय कोमल गात।
१२. दसन जोति बरनी नहिं जाई. चौंधे दिष्टि देखि चमकाई.
१३. आगे नदिया पडी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार, तब तक था चेतक उस पार।।
१४. भूषण भनत नाद विहद नगारन के, नदी नाद मद गैबरन के रलत है।
१५. ये दुनिया भर के झगडे, घर के किस्से, काम की बातें।
बला हर एक टल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ।। -जावेद अख्तर
१६. मैं रोया परदेस में, भीगा माँ का प्यार।
दुःख ने दुःख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार।। -निदा फाज़ली
अतिशयोक्ति अलंकार के निम्न ८ प्रकार (भेद) हैं।
१. संबंधातिशयोक्ति-
जब दो वस्तुओं में संबंध न होने पर भी संबंध दिखाया जाए अथवा जब अयोग्यता में योग्यता प्रदर्शित की जाए तब संबंधातिशयोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण-
१. फबि फहरहिं अति उच्च निसाना।
जिन्ह मँह अटकहिं बिबुध बिमाना।।
फबि = शोभा देना, निसाना = ध्वज, बिबुध = देवता।
यहाँ झंडे और विमानों में अटकने का संबंध न होने पर भी बताया गया है।
२. पँखुरी लगे गुलाब की, परिहै गात खरोंच
गुलाब की पँखुरी और गात में खरोंच का संबंध न होने पर भी बता दिया गया है।
३. भूलि गयो भोज, बलि विक्रम बिसर गए, जाके आगे और तन दौरत न दीदे हैं।
राजा-राइ राने, उमराइ उनमाने उन, माने निज गुन के गरब गिरबी दे हैं।।
सुजस बजाज जाके सौदागर सुकबि, चलेई आवै दसहूँ दिशान ते उनींदे हैं।
भोगी लाल भूप लाख पाखर ले बलैया जिन, लाखन खरचि रूचि आखर ख़रीदे हैं।।
यहाँ भुला देने अयोग्य भोग आदि भोगीलाल के आगे भुला देने योग्य ठहराये गये हैं।
४. जटित जवाहर सौ दोहरे देवानखाने, दूज्जा छति आँगन हौज सर फेरे के।
करी औ किवार देवदारु के लगाए लखो, लह्यो है सुदामा फल हरि फल हेरे के।।
पल में महल बिस्व करमै तयार कीन्हों, कहै रघुनाथ कइयो योजन के घेरे में।
अति ही बुलंद जहाँ चंद मे ते अमी चारु चूसत चकोर बैठे ऊपर मुंडेरे के।।
५. आपुन के बिछुरे मनमोहन बीती अबै घरी एक कि द्वै है।
ऐसी दसा इतने भई रघुनाथ सुने भय ते मन भ्वै है।।
गोपिन के अँसुवान को सागर बाढ़त जात मनो नभ छ्वै है।
बात कहा कहिए ब्रज की अब बूड़ोई व्है है कि बूडत व्है हैं।।
२. असम्बन्धातिशयोक्ति-
जब दो वस्तुओं में संबंध होने पर भी संबंध न दिखाया जाए अथवा जब योग्यता में अयोग्यता प्रदर्शित की जाए तब असंबंधातिशयोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण-
१. जेहि वर वाजि राम असवारा। तेहि सारदा न बरनै पारा।।
वाजि = घोडा, न बरनै पारा = वर्णन नहीं कर सकीं।
२. अति सुन्दर लखि सिय! मुख तेरो। आदर हम न करहिं ससि केरो।।
करो = का। चन्द्रमा में मुख- सौदर्य की समानता के योग्यता होने पर भी अस्वीकार गया है।
३. देखि गति भासन ते शासन न मानै सखी
कहिबै को चहत गहत गरो परि जाय
कौन भाँति उनको संदेशो आवै रघुनाथ
आइबे को न यो न उपाय कछू करि जाय
विरह विथा की बात लिख्यो जब चाहे तब
ऐसे दशा होति आँच आखर में भरि जाय
हरि जाय चेत चित्त सूखि स्याही छरि जाय
३. चपलातिशयोक्ति-
जब कारण के होते ही तुरंत कार्य हो जाए।
उदाहरण-
१. तव सिव तीसर नैन उघारा। चितवत काम भयऊ जरि छारा।।
शिव के नेत्र खुलते ही कामदेव जलकर राख हो गया।
२. आयो-आयो सुनत ही सिव सरजा तव नाँव।
बैरि नारि दृग जलन सौं बूडिजात अरिगाँव।।
४. अक्रमातिशयोक्ति-
जब कारण और कार्य एक साथ हों।
उदाहरण-
१. बाणन के साथ छूटे प्राण दनुजन के।
सामान्यत: बाण छूटने और लगने के बाद प्राण निकालेंगे पर यहाँ दोनों क्रियाएं एक साथ होना बताया गया है।
२. पाँव के धरत, अति भार के परत, भयो एक ही परत, मिली सपत पताल को।
३. सन्ध्यानों प्रभु विशिख कराला, उठी उदधि उर अंतर ज्वाला।
४. क्षण भर उसे संधानने में वे यथा शोभित हुए।
है भाल नेत्र जवाल हर, ज्यों छोड़ते शोभित हुए।।
वह शर इधर गांडीव गुण से भिन्न जैसे ही हुआ।
धड से जयद्रथ का उधर सिर छिन्न वैसे ही हुआ।।
५. अत्यंतातिशयोक्ति-
जब कारण के पहले ही कार्य संपन्न हो जाए।
उदाहरण:
१. हनूमान की पूँछ में, लगन न पाई आग।
लंका सगरी जर गयी, गये निसाचर भाग।।
२. धूमधाम ऐसी रामचद्र-वीरता की मची, लछि राम रावन सरोश सरकस तें।
बैरी मिले गरद मरोरत कमान गोसे, पीछे काढ़े बाण तेजमान तरकस तें।।
६. भेदकातिशयोक्ति-
जहाँ उपमेय या प्रस्तुत का अन्यत्व वर्णन किया जाए, अभेद में भी भेद दिखाया जाए अथवा जब और ही, निराला, न्यारा, अनोखा आदि शब्दों का प्रयोग कर किसी की अत्यधिक या अतिरेकी प्रशंसा की जाए।
उदाहरण-
१. न्यारी रीति भूतल, निहारी सिवराज की।
२. औरे कछु चितवनि चलनि, औरे मृदु मुसकान।
औरे कछु सुख देत हैं, सकें न नैन बखान।।
अनियारे दीरघ दृगनि, किती न तरुनि समान।
वह चितवन औरे कछू, जेहि बस होत सुजान।।
७. रूपकातिशयोक्ति-
उदाहरण-
१. जब केवल उपमान या अप्रस्तुत का कथन कर उसी से उपमेय या प्रस्तुत का बोध कराया जाए अथवा उपमेय का लोप कर उपमान मात्र का कथा किया जाए अर्थात उपमान से ही अपमान का भी अर्थ अभीष्ट हो तब रूपकातिशयोक्ति होता है। रूपकातिशयोक्ति का अधिक विक्सित और रूढ़ रूप प्रतिक योजना है।
उदाहरण-
१. कनकलता पर चंद्रमा, धरे धनुष दो बान।
कनकलता = स्वर्ण जैसी आभामय शरीर, चंद्रमा = मुख, धनुष = भ्रकुटी, बाण = नेत्र, कटाक्षकनकलता यहाँ नायिका के सौन्दर्य का वर्णन है। शरीर, मुख, भ्रकुटी, कटाक्ष आदि उप्मेयों का लोप कर केवल लता, चन्द्र, धनुष, बाण आदि का कथन किया गया है किन्तु प्रसंग से अर्थ ज्ञात हो जाता है।
२. गुरुदेव! देखो तो नया यह सिंह सोते से जगा।
यहाँ उपमेय अभिमानु का उल्लेख न कर उपमान सिंह मात्र का उल्लेख है जिससे अर्थ ग्रहण किया जा सकता है।
३.विद्रुम सीपी संपुट में, मोती के दाने कैसे।
है हंस न शुक यह फिर क्यों, चुगने को मुक्त ऐसे।।
४. पन्नग पंकज मुख गाहे, खंजन तहाँ बईठ।
छत्र सिंहासन राजधन, ताकहँ होइ जू दीठ।।
८. सापन्हवातिशयोक्ति-
यह अपन्हुति और रूपकातिशयोक्ति का सम्मिलित रूप है। जहाँ रूपकातिशयोक्ति प्रतिषेधगर्भित रूप में आती है वहाँ सापन्हवातिशयोक्ति होता है।
उदाहरण-
१. अली कमल तेरे तनहिं, सर में कहत अयान।
यहाँ सर में कमल का निषेध कर उन्हें मुख और नेत्र के रूप में केवल उपमान द्वारा शरीर में वर्णित किया गया है।
टिप्पणी: उक्त ३, ४, ५ अर्थात चपलातिशयोक्ति, अक्रमातिशयोक्ति तथा अत्यंतातिशयोक्ति का भेद कारण के आधार पर होने के कारण कुछ विद्वान् इन्हें कारणातिशयोक्ति के भेद-रूप में वर्णित करते हैं।
***
***
गीत -
*
महाकाल के पूजक हैं हम
पाश काल के नहीं सुहाते
नहीं समय-असमय की चिंता
कब विलंब से हम घबराते?
*
खुद की ओर उठीं त्रै ऊँगली
अनदेखी ही रहीं हमेशा
एक उठी जो औरों पर ही
देख उसी को ख़ुशी मनाते
*
कथनी-करनी एक न करते
द्वैत हमारी श्वासों में है
प्यासों की कतार में आगे
आसों पर कब रोक लगाते?
*
अपनी दोनों आँख फोड़ लें
अगर तुम्हें काना कर पायें
संसद में आचरण दुरंगा
हो निलज्ज हम रहे दिखाते
*
आम आदमी की ताकत ही
रखे देश को ज़िंदा अब तक
नेता अफसर सेठ बेचकर
वरना भारत भी खा जाते
५.१२.२०१५
***
नवगीत :
*
या तो वो देता नहीं
या देता छप्पर फाड़ के
*
मर्जी हो तो पंगु को
गिरि पर देता है चढ़ा
अंधे को देता दिखा
निर्धन को कर दे धनी
भक्तों को लेता बचा
वो खुले-आम, बिन आड़ के
या तो वो देता नहीं
या देता छप्पर फाड़ के
*
पानी बिन सूखा कहीं
पानी-पानी है कहीं
उसका कुछ सानी नहीं
रहे न कुछ उससे छिपा
मनमानी करता सदा
फिर पत्ते चलता ताड़ के
या तो वो देता नहीं
या देता छप्पर फाड़ के
*
अपनी बीबी छुड़ाने
औरों को देता लड़ा
और कभी बंसी बजा
करता डेटिंग रास कह
चने फोड़ता हो सलिल
ज्यों भड़भूंजा भाड़ बिन
या तो वो देता नहीं
या देता छप्पर फाड़ के
३-१२-२०१५
***