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मंगलवार, 30 जुलाई 2019

द्विपदी

​एक द्विपदी
जात मजहब धर्म बोली, चाँद अपनी कह जरा
पुज रहा तू ईद में भी, संग करवा चौथ के. 
****

शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

मुक्तक, द्विपदी दोहे,

मुक्तक 

खिलखिलाती रहो, चहचहाती रहो 
जिंदगी में सदा गुनगुनाती रहो
मेघ तम के चलें जब गगन ढाँकने
सूर्य को आईना हँस दिखाती रहो
*
गए मिलने गले पड़ने नहीं,पर तुम न मानोगे.
दबाने-काटने के जुर्म में, बंदूक तानोगे.
चलाओ स्वच्छ भारत का भले अभियान हल्ला कर-
सियासत कीचड़ी कर, हाथ से निज पंक सानोगे
*
द्विपदी 
ग़ज़ल कहती न तू आ भा, ग़ज़ल कहती है जी मुझको 
बताऊँ मैं उसे कैसे, जिया है हमेशा तुझको
*
न बारिश तुम इसे समझो, गिरा है आँख से पानी. 
जो आहों का असर होगा, कहाँ जाओगे ये सोचो.
*
न केवल बात में, हालात में भी है वहाँ सीलन 
जहाँ फौजों के साए में, चुनावी जीत होती है
*


दोहे 

डर से डर ही उपजता, मिले स्नेह को स्नेह. 
निष्ठा पर निष्ठा अडिग, सम हो गेह-अगेह.



*
मन के मनसबदार! तुम, कहो हुए क्यों मौन?
तनकर तन झट झुक गया, यहाँ किसी का कौन?
*
हम सब कारिंदे महज, एक राम दीवान
करा रहा वह; भ्रम हमें, अपना होता मान 
*
वही द्विवेदी जो पढ़े, योग-भोग दो वेद.
अंत समय में हो नहीं, उसको किंचित खेद.
*
शोक न करता जो कभी, कहिए उसे अशोक.
जो होता होता रहे, कोई न सकता रोक
*
जहाँ अँधेरा घोर हो, बालें वहीं प्रदीप 
पल में तम कर दूर दे, ज्यों मोती सह सीप
*
विजय भास्कर की तभी, तिमिर न हो जब शेष
ऊषा दुपहर साँझ को, बाँटे नेह अशेष
*
चमक रहे चमचे चतुर, गोल-मोल हर बात 
पोल ढोल की खुल रही, नाजुक हैं हालात
*
सेना नौटंकी करे, कहकर आम चुनाव.
जिसको चाहे लड़ा दे, डगमग है अब नाव
*

बुधवार, 10 जुलाई 2019

द्विपदी

द्विपदी:
करें शिकवे-शिकायत आप-हम दिन-रात अपनों से 
कभी गैरों से कोई बात मन की कह नहीं सकता.

शनिवार, 4 मई 2019

दोहा-द्विपदी

तेरह-ग्यारह; विषम-सम, दोहा में दुहराव. ग्यारह-तेरह सोरठा, करिए सहज निभाव.
*
दोहा ने दोहा सदा, शब्द-शब्द का अर्थ.
दोहा तब ही सार्थक, शब्द न हो जब व्यर्थ.

*
जिया जिया में बसा ले, दोहा छंद पुनीत. 
दोहा छंद जिया अगर, दिन दूनी हो प्रीत.
*
उत्सव
एकाकी रह भीड़ का अनुभव है अग्यान।
छवि अनेक में एक की, मत देखो मतिमान।।
*
दिखा एकता भीड़ में, जागे बुद्धि-विवेक।
अनुभव दे एकांत का, भीड़ अगर तुम नेक।।
*
जीवन-ऊर्जा ग्यान दे, अमित आत्म-विश्वास।
ग्यान मृत्यु का निडरकर, देता आत्म-उजास।।
*
शोर-भीड़ हो चतुर्दिक, या घेरे एकांत।
हर पल में उत्सव मना, सज्जन रहते शांत।।
*
जीवन हो उत्सव सदा, रहे मौन या शोर।
जन्म-मृत्यु उत्सव मना, रहिए भाव-विभोर।।
*
12.4.2018

आज प्रियदर्शी बना है अम्बर, शिव लपेटे हैं नाग- बाघम्बर।
नेह की भेंट आप लाई हैं- चुप उमा छोड़ सकल आडम्बर।।

*
बाग़ पुष्पा है, महकती क्यारी,  गंध में गंध घुल रही न्यारी।                                                                                                            मंत्र पढ़ते हैं भ्रमर पंडित जी- तितलियाँ ला रही हैं अग्यारी।।

जो मिला उससे है संतोष नहीं छोड़ता है कुबेर कोष नहीं
नाग पी दूध ज़हर देता है यही फितरत है, कहीं दोष नहीं।।
*
बोल जब भी जबान से निकले, पान ज्यों पानदान से निकले 
कान में घोल दे गुलकंद 'सलिल, ज्यों उजाला विहान से निकले
*

मंगलवार, 9 अप्रैल 2019

द्विपदी

द्विपदी 
*
परवाने जां निसार कर देंगे. 
हम चराग-ए-रौशनी तो बन जाएँ..
*
तितलियों की चाह में भटको न तुम. 
फूल बन महको चली आएँगी ये..
*
जब तलक जिन्दा था रोटी न मुहैया थी.
मर गया तो तेरहीं में दावतें हुईं..
*
बाप की दो बात सह नहीं पाते 
अफसरों की लात भी परसाद है..
*
पत्थर से हर शहर में मिलते मकां हजारों.
मैं ढूँढ-ढूँढ हारा, घर एक नहीं मिलता..
*
संवस

सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

द्विपदियाँ और दोहे

सामयिक द्विपदियाँ और दोहे
संजीव
*
मिलाकर हाथ खासों ने, किया है आम को बाहर
नहीं लेना न देना ख़ास से, हम आम इन्सां हैं
*
इनके पंजे में कमल, उनका भगवा हाथ
आम आदमी देखकर, नत दोनों का माथ
*
'राज्य बनाया है' कहो या 'तोडा है राज्य'
तोड़ रही है सियासत, कैसे हों अविभाज्य?
*
भाग्य विधाता आम है, शोषण करता ख़ास
जो खासों का साथ दे, उसको मानो दास
*
साथ उसी का दो सलिल, जिस पर हो विश्वास
साथ ख़ास के जो रहे, वह पाये संत्रास
*

१८-२-२०१४ 

गुरुवार, 26 जुलाई 2018

द्विपदी ग़ज़ल

द्विपदी 
गजल 
*
ग़ज़ल कहती न तू आ भा, ग़ज़ल कहती है जी मुझको 
बताऊँ मैं उसे कैसे, जिया है हमेशा तुझको

dwipadi: pani

द्विपदी 
पानी  
*
न बारिश तुम इसे समझो, गिरा है आँख से पानी. 
जो आहों का असर होगा, कहाँ जाओगे ये सोचो.

dwipadi: jeet

द्विपदी: 
जीत  
न केवल बात में, हालात में भी है वहाँ सीलन 
जहाँ फौजों के साए में, चुनावी जीत होती है। 

शनिवार, 21 जुलाई 2018

द्विपदी - दोहे साथ में


बसा लो दिल में, दिल में बस जाओ                                                                                  फिर भुला दो तो कोई बात नहीं
*
खुद्कुशी अश्क की कहते हो जिसे 
वो आंसुओं का पुनर्जन्म हुआ
*
अल्पना कल्पना की हो ऐसी 
 द्वार जीवन का जरा सज जाये.
*
गौर गुरु! मीत की बातों पे करो 
दिल किसी का दुखाना ठीक नहीं
*
श्री वास्तव में हो वहीं, जहां रहे श्रम साथ 
 जीवन में ऊँचा रखे श्रम ही हरदम माथ
*
खरे खरा व्यवहार कर, लेते हैं मन जीत 
जो इन्सान न हो खरे, उनसे करें न प्रीत.
*
गौर करें मन में नहीं, 'सलिल' तनिक हो मैल
कोल्हू खीन्चे द्वेष का, इन्सां बनकर बैल
*
काया की माया नहीं जिसको पाती मोह, 
वही सही कायस्थ है, करे गलत से द्रोह.

मंगलवार, 10 जुलाई 2018

dwipadi

द्विपदी:
करें शिकवे-शिकायत आप-हम, दिन-रात अपनों से।
कभी गैरों से कोई बात मन की, कह नहीं सकता।।
*

शुक्रवार, 6 जुलाई 2018

द्विपदियाँ

एक रचना:
पौधा पेड़ बनाओ
*
काटे वृक्ष, पहाडी खोदी, खो दी है हरियाली.
बदरी चली गयी बिन बरसे, जैसे गगरी खाली.
*
खा ली किसने रेत नदी की, लूटे नेह किनारे?
पूछ रही मन-शांति, रहूँ मैं किसके कहो सहारे?
*
किसने कितना दर्द सहा रे!, कौन बताए पीड़ा?
नेता के महलों में करता है, विकास क्यों क्रीड़ा?
*
कीड़ा छोड़ जड़ों को, नभ में बन पतंग उड़ने का.
नहीं बताता कट-फटकर, परिणाम मिले गिरने का.
*
नदियाँ गहरी करो, किनारे ऊँचे जरा उठाओ.
सघन पर्णवाले पौधे मिल, लगा तनिक हर्षाओ.
*
पौधा पेड़ बनाओ, पाओ पुण्य यज्ञ करने का.
वृक्ष काट क्यों निसंतान हो, कर्म नहीं मिटने का.
*
अगला जन्म बिगाड़ रहे क्यों, मिटा-मिटा हरियाली?
पाट रहा तालाब जो रहे , टेंट उसी की खाली. 
*
पशु-पक्षी प्यासे मारे जो, उनका छीन बसेरा.
अगले जनम रहे बेघर वह, मिले न उसको डेरा.
*
मेघ करो अनुकंपा हम पर, बरसाओ शीतल जल.
नेह नर्मदा रहे प्रवाहित, प्लावन करे न बेकल. 
*
६.७.२०१८, ७९९९५५९६१८

बुधवार, 10 जनवरी 2018

द्विपदी/शे'र

हम न होते जो आप जैसे तो
हममें रिश्ता कभी न हो पाता

बुधवार, 20 दिसंबर 2017

द्विपदी

बड़े भैया !
विख्यात हिंदीविद, उपन्यासकार, नाटककार
डॉ. सुरेश वर्मा के जन्म दिवस पर
अनंत प्रणाम, शुभकामनाएँ 

चित्र में ये शामिल हो सकता है: 1 व्यक्ति, चश्मे

गहरी आँखें, गहरा चिन्तन,  सुमधुर मीठे बोल
कलम चले जब रख देती है सच अनजाना खोल
चिन्तन-मनन धर्म जीवन का, शब्दाराधन कर्म
शत वंदन कर सलिल धन्य है, फले पुण्य के कर्म
सादर प्रणाम
संजीव  

शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

द्विपदी बीर छंद


 द्विपदी 
*
भूल भुलाई, भूल न भूली, भूलभुलैयां भूली भूल.
भुला न भूले भूली भूलें, भूल न भूली भाती भूल.
*
यह द्विपदी अश्वावातारी जातीय बीर छंद में है.

मंगलवार, 29 अगस्त 2017

dwipadi

द्विपदी सलिला:
इस आभासी जग में :

इस आभासी जग में सचमुच, कोई न पहरेदार
शिक्षित-बुद्धिमान हमलावर, देते कष्ट हजार
*
जिन्हें जानते हैं जीवन में, उन्हें बनायें मित्र
'सलिल' सुरक्षित आप रहेंगे, मलिन न होगा चित्र
*
भली-भाँति कर जाँच- बाद में, भले मित्र लें जोड़
संख्या अधिक बढ़ाने की प्रिय!, कभी न करिए होड़
*
नकली खाते बना-बनाकर, छलिए ठगते मीत
प्रोफाइल लें जाँच, यही है, सीधी-सच्ची रीत
*
पढ़ें पोस्ट खाताधारी की, कितनी-कैसे लेख
लेखक मन की देख सकेंगे, रचनाओं में रेख
*
नकली चित्र लगाते हैं जो, उनसे रहिए दूर
छल करना ही उनकी फितरत, रहिए सजग जरूर
*
खाताधारक के मित्रों को देखें, चुप सायास
वस्त्र-भाव मुद्राओं से भी, होता कुछ आभास
*
देह-दर्शनी मोहकतामय, व्याल-जाल जंजाल
दिखें सोचिए इनके पीछे, कैसा है कंकाल?
*
संचित चित्रों-सामग्री को, देख करें अनुमान
जुड़ें-ना जुड़ें आप सकेंगे, उनका सच पहचान
*
शिक्षा, स्वजन, जीविका पर भी, तनिक दीजिए ध्यान
चिंतन धारा से भी होता, चिन्तक का अनुमान
*
नेता अभिनेता फूलों या, प्रभु के चिपका चित्र
जो परदे में छिपे- न उसका, विश्वसनीय चरित्र
*
स्वजनों के प्रोफाइल देखें, सच्चे या अनमेल?
गलत जानकारी देकर, कर सके न कोई खेल
*
शब्द और भाषा भी करते, गुपचुप कुछ संकेत
देवमूर्ति से तन में मन का, स्वामी कहीं न प्रेत
*
आक्रामक-अपशब्दों का जो, करते 'सलिल' प्रयोग
दूर रहें ऐसे लोगों से- हैं समाज के रोग
*
पासवर्ड रख गुप्त- बदलते रहिए बारम्बार
जान न पाए अन्य, सावधानी की है दरकार
*
salil.sanjiv @gmail.com
http ://divyanarmada.blogspot.com
#हिंदी_ब्लॉगर

रविवार, 27 अगस्त 2017

aaj ki rachna

कवि-मन की बात
*
कैसा राष्ट्रवाद यह जिसमें अपराधी संरक्षित?
रहें न बाकी कहीं विपक्षी, सत्ता हेतु बुभुक्षित.
*
गूँगे अफसर, अंधे नेता, लोकतंत्र बेहोश.
बिना मौत मरती है जनता, गरजो धरकर जोश.
*
परंपरा धृतराष्ट्र की, खट्टर कर निर्वाह.
चीर-हरण जनतंत्र का, करवाते कह 'वाह'
*
राज कौरवी हुआ नपुंसक, अँधा हुआ प्रशासन.
न्यायी विदुर उपेक्षित उनकी, बात न माने शासन.
*
अंधभक्ति ने देशभक्ति का, आज किया है खून.
नाकारा सरकार-प्रशासन, शेर बिना नाखून.
*
भारतमाता के दामन पर, लगा रहे हैं कीच.
देश डायर बाबा-चेले, हद दर्जे के नीच.
*
राज-धर्म ही नहीं जानते, राज कर रहे कैसे लोग?
सत्य-न्याय की नीलामी कर, देशभक्ति का करते ढोंग.
*
लोग न भूलो, याद रखो यह, फिर आयेंगे द्ववार पर.
इन्हें न चुनना, मार भागना, लोकतंत्र से प्यार कर.
*
अंधभक्त घर जाकर सोचे, क्या पाया है क्या खोया?
आड़ धर्म की, दुराचार का, बीज आप ही क्यों बोया??
***
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.com
#हिंदी_ब्लॉगर
२०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन
जबलपुर ४८२००१

सोमवार, 3 जुलाई 2017

dwipadi

द्विपदी
*
जब तलक मालूम नहीं था, तभी तक मालूम था
जब से कुछ मालुम हुआ तब से न कुछ मालूम है
*

dwaipadi

द्विपदी
*
जब तलक मालूम नहीं था, तभी तक मालूम था
जब से कुछ मालुम हुआ तब से न कुछ मालूम है
*
चुप को चुप होकर सुन चुप्पी, बोले हर अनबोला
बंद रहे लाखों की मुट्ठी, ख़ाक हुई ज्यों खोला 
*

बुधवार, 22 मार्च 2017

dwipadi

द्विपदी
सूरज
*
सुबह उषा का पीछा करता, फिर संध्या से आँख मिला
रजनी के आँचल में छिपता, सूरज किससे करें गिला?
*