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रविवार, 13 दिसंबर 2020

सामयिक गीत

सामयिक गीत
खाट खड़ी है
*
बड़े-बड़ों की खाट खड़ी है
मोल बढ़ गया है छोटों का.
हल्ला-गुल्ला,शोर-शराबा
है बिन पेंदी के लोटों का.
*
नकली नोट छपे थे जितने
पल भर में बेकार हो गए.
आम आदमी को डँसने से
पहले विषधर क्षार हो गए.
ऐसी हवा चली है यारो!
उतर गया है मुँह खोटों का
बड़े-बड़ों की खाट खड़ी है
मोल बढ़ गया है छोटों का.
*
नाग कालिया काले धन का
बिन मरे बेमौत मर गया.
जल, बहा, फेंका घबराकर
जान-धन खाता कहीं भर गया.
करचोरो! हर दिन होना है
वार धर-पकड़ के सोटों का
बड़े-बड़ों की खाट खड़ी है
मोल बढ़ गया है छोटों का.
*
बिना परिश्रम जोड़ लिया धन
रिश्वत और कमीशन खाकर
सेठों के हित साधे मिलकर
निज चुनाव हित चंदे पाकर
अब हर राज उजागर होगा
नेता-अफसर की ओटों का
बड़े-बड़ों की खाट खड़ी है
मोल बढ़ गया है छोटों का.
*
१३-१२-२०१६

मंगलवार, 24 दिसंबर 2019

सामयिक गीत

सामयिक गीत 
नूराकुश्ती खेल रहे हो
देश गर्त में ठेल रहे हो
*
तुम ही नहीं सयाने जग में
तुम से कई समय के मग में
धूल धूसरित पड़े हुए हैं
शमशानों में गड़े हुए हैं
अवसर पाया काम करो कुछ
मिलकर जग में नाम करो कुछ
रिश्वत-सुविधा-अहंकार ही
झिल रहे हो, झेल रहे हो
नूराकुश्ती खेल रहे हो
देश गर्त में ठेल रहे हो
*
दलबंदी का दलदल घटक
राजनीति है गर्हित पातक
अपना पानी खून बतायें
खून और का व्यर्थ बहायें
सच को झूठ, झूठ को सच कह
मैली चादर रखते हो तह
देशहितों की अनदेखी कर
अपनी नाक नकेल रहे हो
नूराकुश्ती खेल रहे हो
देश गर्त में ठेल रहे हो
*


रविवार, 14 मई 2017

geet

सामयिक गीति रचना 
देव बचाओ
संजीव
*
जीवन रक्षक 
जीवन भक्षक
बन बैठे हैं देव् बचाओ
.
पाला-पोसा, लिखा-पढ़ाया
जिसने वह समाज पछताये
दूध पिलाकर जिनको पाला
उनसे विषधर भी शर्माये
रुपया इनकी जान हो गया
मोह जान का इन्हें न व्यापे
करना इनका न्याय विधाता
वर्षों रोगी हो पछताये
रिश्ते-नाते
इन्हें न भाते
इनकी अकल ठिकाने लाओ
जीवन रक्षक
जीवन भक्षक
बन बैठे हैं देव् बचाओ
.
बैद-हकीम न शेष रहे अब
नीम-हकीम डिगरियांधारी
नब्ज़ देखना सीख न पाये
यंत्र-परीक्षण आफत भारी
बीमारी पहचान न पायें
मँहगी औषधि खूब खिलाएं
कैंची-पट्टी छोड़ पेट में
सर्जन जी ठेंगा दिखलायें
हुआ कमीशन
ज्यादा प्यारा
हे हरि! इनका लोभ घटाओ
जीवन रक्षक
जीवन भक्षक
बन बैठे हैं देव् बचाओ
.
इसके बदले उसे बिठाया
पर्चे कराया कर, नकल करी है
झूठी डिग्री ले मरीज को
मारें, विपदा बहुत बड़ी है
मरने पर भी कर इलाज
पैसे मांगे, ये लाश न देते
निष्ठुर निर्मम निर्मोही हैं
नाव पाप की खून में खेते
देख आइना
खुद शर्मायें
पीर हारें वह राह दिखाओ
जीवन रक्षक
जीवन भक्षक
बन बैठे हैं देव् बचाओ
***
१४-५-२०१५

मंगलवार, 22 जनवरी 2013

सामयिक गीत: पंच फैसला... संजीव 'सलिल'

सामयिक गीत:
पंच फैसला...
संजीव 'सलिल'
*
पंच फैसला सर-आँखों,
पर यहीं गड़ेगा लट्ठा...
*
नाना-नानी, पिता और माँ सबकी थी ठकुराई.
मिली बपौती में कुर्सी, क्यों तुम्हें जलन है भाई?
रोजगार है पुश्तों का, नेता बन भाषण देना-
फर्ज़ तुम्हारा हाथ जोड़, सर झुका करो पहुनाई.
सबको अवसर? सब समान??
सुन-कह लो, करो न ठट्ठा...
*
लोकतंत्र है लोभतन्त्र, दल दाम लगाना जाने,
भौंक तन्त्र को ठोंकतन्त्र ने दिया कुचल मनमाने.
भोंक पीठ में छुरा, भाइयों! शोक तन्त्र मुस्काये-
मृतकों के घर जा पैसे दे, वादे करें लुभाने..
संसद गर्दभ ढोएगी
सारे पापों का गट्ठा...  
*
उठा पनौती करी मौज, हो गए कहीं जो बच्चे.
हम देते नकार रिश्तों को, हैं निर्मोही सच्चे.
देश खेत है राम लला का, चिड़ियाँ राम लला की-
पंडा झंडा कोई हो, हम खेल न खेले कच्चे..
कहीं नहीं चाणक्य जड़ों में
डाल सके जो मट्ठा...
*
नेता जी-शास्त्री जी कैसे मरे? न पता लगाया..
अन्ना हों या बाबा, दिन में तारे दिखा भगाया.
घपले-घोटालों से फुर्सत, कभी तनिक पाई तो-
बंदर घुडकी दे-सुन कर फ़ौजी का सर कटवाया.
नैतिक जिम्मेदारी ले वह
जो उल्लू का पट्ठा...
*
नागनाथ गर हटा, बनेगा साँपनाथ ही नेता.
फैलाया दूजा तब हमने, पहला जाल समेटा.
केर-बेर का संग बना मोर्चा झपटेंगे सत्ता-
मौनी बाबा कोई न कोई मिल जाएगा बेटा.
जोकर लिए हाथ में हम
तुम सत्ता चलो या अट्ठा...
***