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सोमवार, 10 जनवरी 2011

नवगीत: गीत का बनकर / विषय जाड़ा --संजीव 'सलिल'

नवगीत: 


गीत का बनकर / विषय जाड़ा

 

--संजीव 'सलिल' 

*

गीत का बनकर

विषय जाड़ा

नियति पर

अभिमान करता है...
*
कोहरे से

गले मिलते भाव.

निर्मला हैं

बिम्ब के

नव ताव..

शिल्प पर शैदा

हुई रजनी-

रवि विमल

सम्मान करता है...
*
गीत का बनकर

विषय जाड़ा

नियति पर

अभिमान करता है...

*
फूल-पत्तों पर

जमी है ओस.

घास पाले को

रही है कोस.

हौसला सज्जन

झुकाए सिर-

मानसी का

मान करता है...
*
गीत का बनकर

विषय जाड़ा

नियति पर

अभिमान करता है...

*
नमन पूनम को

करे गिरि-व्योम.

शारदा निर्मल,

निनादित ॐ.

नर्मदा का ओज

देख मनोज-

'सलिल' संग

गुणगान करता है...

*
गीत का बनकर

विषय जाड़ा

'सलिल' क्यों

अभिमान करता है?...

******

मंगलवार, 29 जून 2010

गीत: कहे कहानी, आँख का पानी. संजीव 'सलिल'

गीत:
कहे कहानी, आँख का पानी.
संजीव 'सलिल'
*
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*
कहे कहानी, आँख का पानी.
की सो की, मत कर नादानी...
*
बरखा आई, रिमझिम लाई.
नदी नवोढ़ा सी इठलाई..
ताल भरे दादुर टर्राये.
शतदल कमल खिले मन भाये..
वसुधा ओढ़े हरी चुनरिया.
बीरबहूटी बनी गुजरिया..
मेघ-दामिनी आँख मिचोली.
खेलें देखे ऊषा भोली..
संध्या-रजनी सखी सुहानी.
कहे कहानी, आँख का पानी...
*
पाला-कोहरा साथी-संगी.
आये साथ, करें हुडदंगी..
दूल्हा जाड़ा सजा अनूठा.
ठिठुरे रवि सहबाला रूठा..
कुसुम-कली पर झूमे भँवरा.
टेर चिरैया चिड़वा सँवरा..
चूड़ी पायल कंगन खनके.
सुन-गुन पनघट के पग बहके.
जो जी चाहे करे जवानी.
कहे कहानी, आँख का पानी....
*
अमन-चैन सब हुई उड़न छू.
सन-सन, सांय-सांय चलती लू..
लंगड़ा चौसा आम दशहरी
खाएँ ख़ास न करते देरी..
कूलर, ए.सी., परदे खस के.
दिल में बसी याद चुप कसके..
बन्ना-बन्नी, चैती-सोहर.
सोंठ-हरीरा, खा-पी जीभर..
कागा सुन कोयल की बानी.
कहे कहानी, आँख का पानी..

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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com