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रविवार, 30 जुलाई 2017

muktika

मुक्तिका:
संजीव
*
याद जिसकी भुलाना मुश्किल है
याद उसको न आना मुश्किल है
मौत औरों को देना है आसां
मौत को झेल पाना मुश्किल है
खुद को कहता रहा मसीहा जो
इसका इंसान होना मुश्किल है
तुमने बोले हैं झूठ सौ-सौ पर
एक सच बोल सकना मुश्किल है
अपने अधिकार चाहते हैं सभी
गैर को हक़ दिलाना मुश्किल है
***

शुक्रवार, 4 मार्च 2016

navgeet

नवगीत -
याद 
*
याद आ रही 
याद पुरानी
*
फेरे साथ साथ ले हमने 
जीवन पथ पर कदम धरे हैं 
धूप-छाँव, सुख-दुःख पा हमको  
नेह नर्मदा नहा तरे हैं 
मैं-तुम हम हैं 
श्वास-आस सम
लेखनी-लिपि ने 
लिखी कहानी 
याद आ रही 
याद पुरानी
*
ज्ञान-कर्म इन्द्रिय दस घोड़े 
जीवन पथ पर दौड़े जुत रथ 
मिल लगाम थामे हाथों में 
मन्मथ भजते अंतर्मन मथ 
अपनेपन की 
पुरवाई सँग  
पछुआ आयी 
हुलस सुहानी 
*
कोयल कूकी, बुरा अमुआ 
चहकी चिड़िया, महका महुआ 
चूल्हा-चौके, बर्तन-भाँडे 
देवर-ननदी, दद्दा-बऊआ 
बीत गयी 
पल में ज़िंदगानी 
कहते-सुनते 
राम कहानी 
***

गुरुवार, 9 जनवरी 2014

hasya salila: yaad -sanjiv

हास्य सलिला:
याद
संजीव 'सलिल'
*
कालू से लालू कहें, 'दोस्त! हुआ हैरान.
घरवाली धमका रही, रोज खा रही जान.
पीना-खाना छोड़ दो, वरना दूँगी छोड़.
जाऊंगी मैं मायके, रिश्ता तुमसे तोड़'
कालू बोला: 'यार! हो, किस्मतवाले खूब.
पिया करोगे याद में, भाभी जी की डूब..
बहुत भली हैं जा रहीं, कर तुमको आजाद.
मेरी भी जाए कभी प्रभु से है फरियाद..'
____________________

रविवार, 2 जून 2013

geet yaad aaee aaj sanjiv

गीत:
याद आई आज
संजीव
*
याद आई आज…
फिर-फिर याद आई आज…
*
कर-कर कोशिश हिम्मत हारी,
मंद श्वास की है अग्यारी।
आस-प्यास सब तुम पर वारी-
अपनों ने भी याद बिसारी।
तुम्हीं हो जिससे न किंचित लाज
याद आई आज…
*
था नहीं सुख में तुम्हारा साथ,
आज गुम जो कह रहे थे नाथ!
अब न सूझे हाथ को ही हाथ-
झुक रहा अब तक तना था माथ।
जब न सिर पर शेष कोई ताज
याद आई आज…
*
बिसारा सब लेन-देन अशेष,
आम हैं सब, कौन खास-विशेष?
छाँह आँगन में नहीं है शेष-
जाऊं कम कर भार, विहँसें शेष।
ना किसी को, ना किसीसे काज
याद आई आज…
*
कुछ न सार्थक या निरर्थक मीत,
गाये कब किसने किसीके गीत?
प्रीत अविनश्वर हुई प्रतीत -
रीत सुख-दुःख-साक्षी संगीत।
शब्द होते गीत कब-किस व्याज?
याद आई आज...
*
अनिल से मिल तजूँ रूपाकार,
अनल हो, सच को सकूँ स्वीकार।
गगन होकर पाऊँ-दूँ विस्तार-
धरा जग-आधार प्राणाधार-
'सलिल' देकर तृप्ति, वर ले गाज
याद आई आज…
*

रविवार, 5 सितंबर 2010

मुक्तिका: चुप रहो... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

चुप रहो...

संजीव 'सलिल'
*

महानगरों में हुआ नीलाम होरी चुप रहो.
गुम हुई कल रात थाने गयी छोरी चुप रहो..

टंग गया सूली पे ईमां मौन है इंसान हर.
बेईमानी ने अकड़ मूंछें मरोड़ी चुप रहो..

टोफियों की चाह में है बाँवरी चौपाल अब.
सिसकती कदमों तले अमिया-निम्बोरी चुप रहो..

सियासत की सड़क काली हो रही मजबूत है.
उखड़ती है डगर सेवा की निगोड़ी चुप रहो..

बचा रखना है अगर किस्सा-ए-बाबा भारती.
खड़कसिंह ले जाये चोरी अगर घोड़ी चुप रहो..

याद बचपन की मुक़द्दस पाल लहनासिंह बनो.
हो न मैली साफ़ चादर 'सलिल' रहे कोरी चुप रहो..

चुन रही सरकार जो सेवक है जिसका तंत्र सब.
'सलिल' जनता का न कोई धनी-धोरी चुप रहो..

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-- दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

मंगलवार, 10 अगस्त 2010

हास्य मुक्तिका: बसाई याद जिसकी दिल में संजीव 'सलिल'

हास्य मुक्तिका:

बसाई याद जिसकी दिल में

संजीव 'सलिल'
*











*
बसाई याद जिसकी दिल में हमने वह कसाई है.
धँसे दिल में मिली हमको, हँसी चुप्पी रुलाई है..

उसे चूमा गुंजाया गीत, लिपटाया मिला दोहा.
बिछुड़कर ग़ज़ल कह दी, फिर मिले पाई रुबाई है..

न लेने चैन ही देती, न कुछ आराम करने दे.
जो मूंदूं आँख तो देखूं वो पलकों में समाई है..

नहीं है सिर्फ मेरा प्यार, वह है स्वप्न लाखों का.
मुझे है फख्र उससे ज़माने की महबूबाई है.

न उसका पिंड छोड़ेंगे, न लेने चैन ही देंगे.
नहीं है गैर, कविता से 'सलिल' की आशनाई है.
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Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com