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बुधवार, 4 जनवरी 2023

सॉनेट, हयात, नूपुर, दीवार


सॉनेट
हयात

है हयात यह धूप सुनहरी
चीर कोहरा हम तक आई
झलक दिखाए ठिठक रुपहली
ठिठुर रहे हर मन को भाई

गौरैया बिन आँगन सूना
चपल गिलहरी भी गायब है
बिन खटपट सूनापन दूना
छिपा रजाई में रब-नब है

कायनात की ट्रेन खड़ी है
शीत हवाओं के सिगनल पर
सीटी मारे घड़ी, अड़ी है
कहे उठो पहुँचो मंज़िल पर

दुबकी मौत शीत से डरकर
चहक हयात रही घर-बाहर
संजीव
४-१-२०२३, ८•२२
●●●
सॉनेट
नूपुर

नूपुर की खनखन हयात है
पायल सिसक रही नूपुर बिन
नथ-बेंदी बिसरी बरात है
कंगन-चूड़ी करे न खनखन

हाई हील में जीन्स मटकती
पिज्जा थामे है हाथों में
भूल नमस्ते, हैलो करती
घुली गैरियत है बातों में

पीढ़ी नई उड़ रही ऊँचा
पर जमीन पर पकड़ खो रही
तनिक न भाता मंज़र नीचा
आँखें मूँदे ख्वाब बो रही

मान रही नूपुर को बंधन
अब न सुहाता माथे चंदन
संजीव
४-१-२०२३, ८•५७
●●●
सॉनेट
दीवार
*
क्या कहती? दीवार मनुज सुन।
पीड़ा मन की मन में तहना।
धूप-छाँव चुप हँसकर सहना।।
हो मजबूत सहारा दे तन।।
थक-रुक-चुक टिक गहे सहारा।
समय साइकिल को दुलराती।
सुना किसी को नहीं बताती।।
टिके साइकिल कह आभार।।
झाँक झरोखा दुनिया दिखती।
मेहनत अपनी किस्मत लिखती।
धूप-छाँव मिल सुख-दुख तहती।
दुनिया लीपे-पोते-रँगती।।
पर दीवार न तनिक बदलती।।
न ही किसी पर रीझ फिसलती।।
संवस
४-१-२०२२
*

मंगलवार, 29 मार्च 2016

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२१.३.२०१६ 

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