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मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

हस्तिनापुर की बिथा-कथा बुंदेली महाकाव्य डॉ. मुरारीलाल खरे


हस्तिनापुर की बिथा-कथा
बुंदेली महाकाव्य
डॉ. मुरारीलाल खरे
विश्ववाणी हिंदी संस्थान
समन्वय प्रकाशन अभियान जबलपुर
*

हस्तिनापुर की बिथा-कथा
महाकाव्य
डॉ. मुरारीलाल खरे
प्रथम संस्करण २०१९
प्रतिलिप्याधिकार: रचनाकार
ISBN
मूल्य: २००/-
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स्मरण:
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समर्पण
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भूमिका
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अपनी बात

बुंदेली में ई लेखक कौ काव्य रचना कौ पैलो प्रयास 'बुंदेली रमायण सन २०१३ में छपो तो। ऊके बाद एक खंड काव्य साहित्यिक हिंदी में 'शर शैया पर भीष्म पितामह' सन २०१५ में छपो। तबहूँ जौ बिचार मन में उठो कै महाभारत की कथा खौं छोटो करकें बुंदेली में काव्य-रचना करी जाए। महाभारत की कथा तौ भौत बड़ी है। ऊखौं  पूरौ पड़बे की फुरसत और धीरज कोऊ खौं नइंयां। छोटो करबे में कैऊ प्रसंग छोड़ने परे। जौ बात कछू विद्वानन खौं खटक सख्त ई के लानें छमा चाउत। बुंदेली में हस्तिनापुर की बिथा-कथा लिखबे में कैऊ मुश्किलें आईं। एक तौ जौ कै बुंदेली कौ कोनउ  मानक स्वरुप सर्वसम्मति सेन स्वीकार नइंयां। एकई शब्द कौ अर्थ बताबे बारे जगाँ-जगाँ अलग-अलग शब्द हैं, जैसें 'बहुट के लाने भौत, भारी, बड़ौ, मटके, गल्लां, बिलात, ढेरन।  उच्चारन सोउ अलग-अलग हैं। ईसें कैऊ भाँत सें समझौता करने परो। हिंदी के 'ओस को कऊँ 'बौ' और कितऊँ 'ऊ' बोलो जात। उसको की जगां 'बाए' 'उयै', 'ऊखों' कौ इस्तेमाल होत। 'को' के लाने 'खौं' और 'खाँ' दोऊ चलत आंय। 'यहाँ', 'वहाँ' के लानें दतिया में 'हिना', हुआँ' झाँसी में 'हिआँ', 'हुआँ', कऊँ 'इहाँ-उहाँ' तौ कितऊँ 'इतै-उतै', 'इताएँ-उताएँ', इतईं-उतईं बोलो जात। ई रचना में जितै जैसो सुभीतो परौ वैसोइ शब्द लै लओ। बिद्वान लोग इयै   एक रूपता की कमी मान सकत। लेखक कौ बचपनो झाँसी, ललितपुर और मऊरानीपुर-गरौठा के ग्रामीण अंचल में बीतो, सो उतै की बोलियन कौ असर ई रचना में जरूर आओ हुये। 

बुंदेली में अवधी की भाँत 'श' को उच्चारन 'स' और 'व' को उच्चारन कऊँ-कऊँ 'ब' होत। ऐसोइ ई काव्य में है। 'ण' को उच्चारन 'न' है पर ई रचना में 'ण' जितै कोऊ के नाव में है तौ ऊकौ 'न' नईं करो गओ जैसें द्रोण, कर्ण, कृष्ण, कृष्णा में सुद्ध रूप लओ है, उनें द्रोन, करन, कृस्न, कृस्ना नईं करो। सब पात्रन के नाव सुद्ध रूप में रखे गए उनकों बुंदेली अपभृंस नईं करो। ठेठ बुंदेली के तरफ़दार ई पै ऐतराज कर सकत। शब्द खौं जबरदस्ती देहाती उच्चारन दैवे के लाने बिगारो नइयाँ। एकदम ठेठ देहाती और कम चलवे वारे स्थानीय शब्द न आ पाएँ, ऐसी कोसिस रई। व्याकरन बुंदेली कौ है, शब्द सब कऊँ बुंदेली के नइयाँ। ई कोसिस में लेखक खौं कां तक सफलता मिली जे तो पाठक हरें तै कर सकत। विनती है उनें जौ रचना कैसी लगी, जौ बतावे की किरपा करें। अंत में निवेदन है 'भूल-चूक माफ़'।  
विनयवंत 
एम. एल. खरे 
     (डॉ. मुरारी लाल खरे) 
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कितै का है?
अध्याय संख्या और नाव                                                                पन्ना संख्या 
१. हस्तिनापुर कौ राजबंस 

२. कुवँरन की शिक्षा और दुर्योधन की ईरखा 

३. द्रौपदी स्वयंवर और राज कौ बँटवारौ 

४. छल कौ खेल और पांडव बनवास 

५. अज्ञातवास में पाण्डव 

६. दुर्योधन कौ पलटवौ और युद्ध के बदरा 

७. महायुद्ध (भाग १) पितामह की अगुआई में 

८. महायुद्ध (भाग २) आख़िरी आठ दिन 

९. महायुद्ध के बाद 

***

कैसी बिथा?

कुरुक्षेत्र के महायुद्ध में घाव हस्तिनापुर खा गओ
राजबंस की द्वेष आग में झुलस आर्यावर्त गओ

घर में आग लगाई, घर में बरत दिया की भड़की लौ
सत्यानास देस कौ भओ  तो, नईं वंस कौ भओ भलो

लरकाईं में संग रये जो, संग-संग खाये-खेले
बेी युद्ध में एक दुसरे के हथयारन खौं झेले

दिव्य अस्त्र पाए ते जतन सें, होवे खौं कुल के रक्षक
नष्ट भये आपस में भिड़कें, बने बंधुअन के भक्षक

गरव करतते अपने बल कौ, जो वे रण में मर-खप गए
वेदव्यास आंखन देखी जा, बिथा-कथा लिख कें धर गए

***
पैलो अध्याय

हस्तिनापुर कौ राजबंस

कब, कितै और काए 

द्वापर के आखिरी दिनन भारत माता की छाती पै।
भाव बड़ौ संग्राम भयंकर कुरुक्षेत्र की थाती पै।१।

बा लड़ाई में शामिल भए ते केऊ राजा बड़े-बड़े।
कछू पाण्डवन संग रए ते, कछू कौरवां संग खड़े।२।

एकई राजबंस के ककाजात भइयन में युद्ध भओ। 
जीसें भारत भर के के कैऊ राजघरन कौ नास भओ।३।

भारी मार-काट भइती, धरती पै भौतइ गिरो रकत।
सत्यानास देस कौ भओ, बौ युद्ध कहाओ महाभारत।४।

चलो अठारा दिना हतो बौ, घमासान युद्ध भारी।
धरासाई भए बियर कैऊ, लासन सें पाती भूमि सारी।५।

जब-जब घर में फुट परत, तौ बैर ईरखा बड़न लगत।
स्वारथ भारी परत नीति पै, तब-तब भैया लड़न लगत।६।

ज्ञान धरम कौ नईं रहै जब, ऊकौ भटकन लगै अरथ।
भड़के भूँक राजसुख की, छिड़ जात छिड़ जात युद्ध होत अनरथ।७।

राज हस्तिनापुर के बँटवारे के लाने युद्ध भओ।
जेठौ कौरव तनकउ हिस्सा, देवे खौं तैयार न भओ।८।

उत्तर में गंगा के करकें, हतो हस्तिनापुर कौ राज।
जीपै शासन करत रये, कुरुबंसी सांतनु राजधिराज।९।

कथा महाभारत की शुरू, होत सांतनु म्हराज सें है।
सुनवे बारी, बड़ी बिचित्र, जुडी भइ सोउ कृष्ण सें है।१०।

सांतनु की चौथी पैरी एक न रई, दो फाँक भई।
नाव एक कौ परो पाण्डव, दूजी कौरव कही गई।११।
.... निरंतर