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मंगलवार, 9 जनवरी 2018

navgeet

नवगीत:
निर्माणों के गीत गुँजायें...
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
चलो सड़क एक नयी बनायें,
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*
मतभेदों के गड्ढें पाटें,
सद्भावों की मुरम उठायें.
बाधाओं के टीले खोदें,
कोशिश-मिट्टी-सतह बिछायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*
निष्ठां की गेंती-कुदाल लें,
लगन-फावड़ा-तसला लायें.
बढ़ें हाथ से हाथ मिलाकर-
कदम-कदम पथ सुदृढ़ बनायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*
आस-इमल्शन को सींचें,
विश्वास गिट्टियाँ दबा-बिछायें.
गिट्टी-चूरा-रेत छिद्र में-
भर धुम्मस से खूब कुटायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*
है अतीत का लोड बहुत सा,
सतहें समकर नींव बनायें.
पेवर माल बिछाये एक सा-
पंजा बारम्बार चलायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*
मतभेदों की सतह खुरदुरी,
मन-भेदों का रूप न पायें.
वाइब्रेशन-कोम्पैक्शन कर-
रोलर से मजबूत बनायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*
राष्ट्र-प्रेम का डामल डालें
प्रगति-पन्थ पर रथ दौड़ायें.
जनगण देखे स्वप्न सुनहरे,
कर साकार, बमुलियाँ गायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*
श्रम-सीकर का अमिय पान कर,
पग को मंजिल तक ले जाएँ.
बनें नींव के पत्थर हँसकर-
काँधे पर ध्वज-कलश उठायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*
टिप्पणी:
१. इमल्शन = सड़क निर्माण के पूर्व मिट्टी-गिट्टी की पकड़ बनाने के लिये डामल-पानी का तरल मिश्रण, पेवर = डामल-गिट्टी का मिश्रण समान मोती में बिछानेवाला यंत्र, पंजा = लोहे के मोटे तारों का पंजा आकार, गिट्टियों को खींचकर गड्ढों में भरने के लिये उपयोगी, वाइब्रेटरी रोलर से उत्पन्न कंपन तथा स्टेटिक रोलर से बना दबाव गिट्टी-डामल के मिश्रण को एकसार कर पर्त को ठोस बनाते हैं, बमुलिया = नर्मदा अंचल का लोकगीत.
२. इस रचना में नवगीत के तत्व न्यून हैं किन्तु सड़क-निर्माण की प्रक्रिया वर्णित होने के कारण यह प्रासंगिक है.
***

बुधवार, 13 दिसंबर 2017

navgeet- gittee sadakon ki

नवगीत
गिट्टी सड़को की
.
कुटती-पिटती,
दबती जाए
गिट्टी सड़कोँ की.
.
चोटें सहती,
पीर न कहती,
ठेकेदार करे हँस ठट्ठा,
सोचे जड़ में डालू मट्ठा
सुध आती भूखी बिटिया की
गुपचुप दहती.
बिखरी-सिहरी
घुलती जाए
मिट्टी सड़कोँ की.
.
अफ़सर रोलर,
नेता ठोकर,
चीरहरण चाहे दुर्योधन,
कहीं नहीं दिखते मनमोहन,
कुटिल दुशासन आँख तरेरे,
दरुआ ब्रोकर.
सिमटी-सिकुडी,
फ़िर भी चुभती,
चिट्ठी सड़कोँ की.
.
सह एकाकी
ताका-ताकी,
पाकर अवसर कोई न छोड़े,
पत्रकार भी हाथ मरोड़े,
लाज लीलने नेता दौड़े,
लुकती-छिपती.
कहीं न टिपती,
कहीं न टिकती,
बिट्टी सड़कोँ की
...
संजीव, 9425183244
www.divyanarmada.in
#हिन्दी_ब्लोगर

शुक्रवार, 8 दिसंबर 2017

navageet

नवगीत-
वही है सड़क
.
जहाँ समतल रहे कम
और गड्ढे बहुत ज्यादा हों
वही है सड़क जन-जन की.
.
जहाँ गिट्टी उछलती हो,
जहाँ पर धूल उड़ती हो,
जहाँ हों भौंकते कुत्ते
जहाँ नित देह नुचती हो
वही है सड़क जन-गण की
.
जहाँ हम खुद करें दंगे,
रहें कपड़े पहन नंगे,
जहाँ जुमले उछलते हैं
जहाँ पंजे करें पंगे
वही है सड़क जन-पथ की
.
जहाँ आदम जनम लेता,
जहाँ वामन कदम रखता,
जहाँ सपना बजे दूल्हा
जहाँ चूल्हा बुझे जलता
वही है सड़क जन-मन की
.
जहाँ कलियाँ छली जाती,
जहाँ गलियाँ नहीं गाती,
जहाँ हो कत्ल पेड़ों का
जहाँ भू की फ़टी छाती
वही है सड़क जन-धन की
.
जहाँ मिल, ना मिले रोजी,
जहाँ मिलकर छिने रोटी,
जहाँ पग हो रहे घायल
जहाँ चूसी गई बोटी
वही है सड़क जन-जन की
...
संजीव, ९४२५१८३२४४ 
www.divyanarmada.in
#हिंदी_ब्लॉगर 

मंगलवार, 5 दिसंबर 2017

navgeet

नवगीत
दिन दहाड़े
.
दिन दहाड़े लुट रही
इज्जत सड़क की
.
जन्म से चाहा
दिखाकर राह सबको
लक्ष्य तक पहुँचाए
पर पहुँचा न पाई.
देख कमसिन छवि
भटकते ट्रक न चूके
छेड़ने से, हॉर्न
सीटी भी बजाई.
पा अकेला ट्रालियों ने
रौंद डाला-
बमुश्किल रह सकी
हैं श्वासें धड़कती.
सेल्फ़ी लेती रही
आसें गुजरती.
.
जो समझ के धनी
फेंकें रोज कचरा
नासमझ आकर उठा
कुछ अश्रु पोंछें.
सियासतदां-संत
फ़ुसला, बाँह में भर
करें मुँह काला
ठठाकर रौंद भूले.
काश! कुछ भुजबल
सड़क को मिल सके तो
कर नपुंसक दे उन्हें
इच्छा मचलती.
बने काली हो रही
इच्छा सड़क की.
.
भाग्य चमके
भूलते पगडंडियाँ जो
राजपथ पा गली
कुलियों को न हेरें.
जनपथों को मसल-
छल, सपने दिखाते
लूट-भोगें सुख, न
लेकिन हैं अघाते.
भाग्य पलटे, धूल
तख्तो-ताज लोटे
माँ बनी उनकी
चुपाती, खुद सिसकती.
अनाथों की नाथ है
छवि हर सड़क की.
***
संजीव, ९४२५१८३२४४ 
salil.sanjiv @gmail.com
#हिन्दी_ब्लॉगर, www.divyanarmada.in 

शनिवार, 17 अगस्त 2013

doha salila: bhavan mahatmya 2 -sanjiv

दोहा सलिला :
भवन माहात्म्य : 2
संजीव
*
[इंस्टिट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स, लोकल सेंटर जबलपुर द्वारा गगनचुम्बी भवन (हाई राइज बिल्डिंग) पर १०-११ अगस्त २०१३ को आयोजित अखिल भारतीय संगोष्ठी  की स्मारिका में प्रकाशित कुछ दोहे।]
*

आते खाली हाथ सब, जाते खाली हाथ।
बना छोड़ते जो भवन, दें यश-अपयश नाथ।२६।
*
भवन हेतु धरती चुनें, जन-जीवन उपयुक्त।
सब प्रसन्न हो रह सकें, हिल-मिल हो उन्मुक्त।२७।
*
भवनों में दृश्यांकन, करें मनोरम आप।
निरखें- मन में शांति हो, पड़े ह्रदय पर छाप।२८।
*
सुन्दर-उपयोगी भवन, बना कमायें पुण्य।
रहवासी आशीष दें, तब जीवन हो धन्य।२९।
*
करतीं 'सलिल' इमारतें, जन-जीवन संपन्न।
अगर न हों तो हो मनुज, बेबस-दीन-विपन्न।३०।
*
नींव सदा मजबूत हो, सीधी हो दीवाल।
वायु-प्रकाश मिले प्रचुर, जीवन हो खुशहाल।३१।
*
भवन बनाने से बढ़े, वंश कीर्ति सुख नाम।
पंछी पाये नीड़ निज, शांति-सौख्य-विश्राम।३२।
*
भवन अगर कमजोर हो, कर सकते कुल-नाश।
मिट जाती मनु-सभ्यता, पल में जैसे ताश।३३।
*
भवन यांत्रिकी-दूत हैं, मानव को वरदान।
आपद-विपदा से बचा, तन में फूकें जान।३४।
*
पौधारोपण कीजिए, भवनों के चहुँ ओर।
उज्जवल उषा निहारिए, सुन्दर सांझ अंजोर।३५।
*
उपयोगी सुदृढ़ भवन, आते सबके काम।
हैं सचमुच बेदाम ये, सेवा दें अविराम।३६।
*
बिल्डिंग नहीं इमारतें, हैं जीवित इतिहास।
मानवता की धड़कनें, राष्ट्र-देव की श्वास।३७।
*
भवन बना रहते रहे, सुर-नर हो सम्पन्न।
भवन-हीन दानव रहे वन में घोर-विपन्न।३८।
*
भवन-सडक से सुख मिले, मणि-कांचन संयोग।
जीते जी ही स्वर्ग सा, सुख सकते सब भोग।३९।
*
भवनों का निर्माण कर, रक्षें भली प्रकार।
यातायात सुगम बने, 'सलिल' बढ़े व्यापार।४०।
*
गत से आगत तक बनें, भवन सभ्यता-सेतु।
शिल्प और तकनीक का, संगम सबके हेतु।४१।
*
ताप-शीत-बरखा सहें, भवन खड़े रह मौन।
रक्षा करने भवन की, आगे आये कौन?४२।
*
इमारतें कहतीं कथा, युग की- सुनिए चेत।
जो न सत्य पहचानता, वह रहता है खेत।४३।
*
भवन भेद करते नहीं, सबके शरणागार।
सबके प्रति हों समर्पित, क्षमता के अनुसार।४४।
*
भवनों का आकार हो, सम्यक भव्य सुरूप।
हर रहवासी सुखी हो, खुद को समझे भूप।४५।
*
भवन-सुरक्षा कीजिए, मान सुखद कर्त्तव्य।
भवन सुरक्षित तो मिलें, शीघ्र सभी गंतव्य।४६।
*
भवन-इमारत चाहते, संरक्षण दें मीत।
संरक्षित रहिए विहँस, गढ़ नव जीवन-रीत।४७।
*
साथ मनुज का दे रहे, भवन आदि से अंत।
करते पर उपकार ज्यों, ऋषि-मुनि तारक संत।४८।
*
भवन क्रोध करते नहीं' रहें हमेशा शांत।
सहनशक्ति खो हो रहा, मानव क्यों उद्भ्रांत।४९।
*
भवन-सुरक्षा कीजिए, मानक के अनुरूप।
अवहेला कर दीन हों, पालन कर हों भूप।५०।
*

सोमवार, 12 अगस्त 2013

doha salila: bhavan mahatmya -SANJIV

दोहा सलिला :
भवन माहात्म्य
संजीव
*
[इंस्टिट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स, लोकल सेंटर जबलपुर द्वारा गगनचुम्बी भवन (हाई राइज बिल्डिंग) पर १०-११ अगस्त २०१३ को आयोजित अखिल भारतीय संगोष्ठी  की स्मारिका में प्रकाशित कुछ दोहे।]

*
भवन मनुज की सभ्यता, ईश्वर का वरदान।
रहना चाहें भवन में, भू पर आ भगवान।१।
*
भवन बिना हो जिंदगी, आवारा-असहाय।
अपने सपने ज्यों 'सलिल', हों अनाथ-निरुपाय।२।
*
मन से मन जोड़े भवन, दो हों मिलकर एक।
सब सपने साकार हों, खुशियाँ मिलें अनेक।३।
*
भवन बचाते ज़िन्दगी, सड़क जोड़ती देश।
पुल बिछुडों को मिलाते, तरु दें वायु हमेश।४।
*
राष्ट्रीय संपत्ति पुल, सड़क इमारत वृक्ष।
बना करें रक्षा सदा, अभियंतागण दक्ष।५।
*
भवन सड़क पुल रच बना, आदम जब इंसान।
करें देव-दानव तभी, मानव का गुणगान।६।
*
कंकर को शंकर करें, अभियंता दिन-रात।
तभी तिमिर का अंत हो, उगे नवल प्रभात७।
*
भवन सड़क पुल से बने, देश सुखी संपन्न।
भवन सेतु पथ के बिना, होता देश विपन्न।८।
*
इमारतों की सुदृढ़ता, फूंके उनमें जान।
देश सुखी-संपन्न हो, बढ़े विश्व में शान।९।
*
भारत का नव तीर्थ है, हर सुदृढ़ निर्माण।
स्वेद परिश्रम फूँकता, निर्माणों में प्राण।१०।
*
अभियंता तकनीक से, करते नव निर्माण।
होता है जीवंत तब, बिना प्राण पाषाण।११।
*
भवन सड़क पुल ही रखें, राष्ट्र-प्रगति की नींव।
सेतु बना- तब पा सके, सीता करुणासींव।१२।
*
करे इमारत को सुदृढ़, शिल्प-ज्ञान-तकनीक।
लगन-परिश्रम से बने, बीहड़ में भी लीक।१३।
*
करें कल्पना शून्य में, पहले फिर साकार।
आंकें रूप अरूप में, यंत्री दे आकार।१४।
*
सिर्फ लक्ष्य पर ही रखें, हर पल अपनी दृष्टि।
अभियंता-मजदूर मिल, रचें नयी नित सृष्टि।१५।
*
सडक देश की धड़कनें, भवन ह्रदय पुल पैर।
वृक्ष श्वास-प्रश्वास दें, कर जीवन निर्वैर।१६।
*
भवन सेतु पथ से मिले, जीवन में सुख-चैन।
इनकी रक्षा कीजिए, सब मिलकर दिन-रैन।१७।
*
काँच न तोड़ें भवन के, मत खुरचें दीवार।
याद रखें हैं भवन ही, जीवन के आगार।१८।
*
भवन न गन्दा हो 'सलिल', सब मिल रखें खयाल।
कचरा तुरत हटाइए, गर दे कोई डाल।१९।
*
भवनों के चहुँ और हों, ऊँची वृक्ष-कतार।
शुद्ध वायु आरोग्य दे, पायें ख़ुशी अपार।२०।
*
कंकर से शंकर गढ़े, शिल्प ज्ञान तकनीक।
भवन गगनचुम्बी बनें, गढ़ सुखप्रद नव लीक।२१।
*
वहीं गढ़ें अट्टालिका जहाँ भूमि मजबूत।
जन-जीवन हो सुरक्षित, खुशियाँ मिलें अकूत।२२।
*
ऊँचे भवनों में रखें, ऊँचा 'सलिल' चरित्र।
रहें प्रकृति के मित्र बन, जीवन रहे पवित्र।२३।
*
रूपांकन हो भवन का, प्रकृति के अनुसार।
अनुकूलन हो ताप का, मौसम के अनुसार।२४।
*
वायु-प्रवाह बना रहे, ऊर्जा पायें प्राण।
भवन-वास्तु शुभ कर सके, मानव को सम्प्राण।२५।

शनिवार, 24 नवंबर 2012

गीत: हर सड़क के किनारे संजीव 'सलिल'

गीत:
हर सड़क के किनारे



संजीव 'सलिल'
*
हर सड़क के किनारे हैं उखड़े हुए,
धूसरित धूल में, अश्रु लिथड़े हुए.....
*
कुछ जवां, कुछ हसीं, हँस मटकते हुए,
नाज़नीनों के नखरे लचकते हुए।
कहकहे गूँजते, पीर-दुःख भूलते-
दिलफरेबी लटें, पग थिरकते हुए।।



बेतहाशा खुशी, मुक्त मति चंचला,
गति नियंत्रित नहीं, दिग्भ्रमित मनचला।
कीमती थे वसन किन्तु चिथड़े हुए-
हर सड़क के किनारे हैं उखड़े हुए,
धूसरित धूल में, अश्रु लिथड़े हुए.....
*
चाह की रैलियाँ, ध्वज उठाती मिलीं,
डाह की थैलियाँ, खनखनाती मिलीं।
आह की राह परवाह करती नहीं-
वाह की थाह नजरें भुलातीं मिलीं।।


 

दृष्टि थी लक्ष्य पर पंथ-पग भूलकर,
स्वप्न सत्ता के, सुख के ठगें झूलकर।
साध्य-साधन मलिन, मंजु मुखड़े हुए
हर सड़क के किनारे हैं उखड़े हुए,
धूसरित धूल में, अश्रु लिथड़े हुए.....
*
ज़िन्दगी बन्दगी बन न पायी कभी,
प्यास की रास हाथों न आयी कभी।
श्वास ने आस से नेह जोड़ा नहीं-
हास-परिहास कुलिया न भायी कभी।।



जो असल था तजा, जो नकल था वरा,
स्वेद को फेंककर, सिर्फ सिक्का ।
साध्य-साधन मलिन, मंजु उजड़े हुए
हर सड़क के किनारे हैं उखड़े हुए,
धूसरित धूल में, अश्रु लिथड़े हुए.....
*

शनिवार, 29 अक्टूबर 2011

नवगीत: सड़क पर.... संजीव 'सलिल'

नवगीत:
                                                                                       
सड़क पर

संजीव 'सलिल'
*
सड़क पर
सतत ज़िंदगी चल रही है.....
*
उषा की किरण का
सड़क पर बसेरा.
दुपहरी में श्रम के
परिंदे का फेरा.
संझा-संदेसा
प्रिया-घर ने टेरा.
रजनी को नयनों में
सपनों का डेरा.
श्वासा में आशा
विहँस पल रही है.
सड़क पर हताशा
सुलग-जल रही है. ....
*
कशिश कोशिशों की
सड़क पर मिलेगी.
कली मेहनतों की
सड़क पर खिलेगी.
चीथड़ों में लिपटी
नवाशा मिलेगी.
कचरा उठा
जिंदगी हँस पलेगी.
महल में दुपहरी
खिली, ढल रही है.
सड़क पर सड़क से
सड़क मिल रही है....
*
अथक दौड़ते पग
सड़क के हैं संगी.
सड़क को न भाती
हैं चालें दुरंगी.
सड़क पर न करिए
सियासत फिरंगी.
'सलिल'-साधना से
सड़क स्वास्थ्य-चंगी.
मंहगाई जन-गण को
नित छल रही है.
सड़क पर जवानी
मचल-फल रही है.....

रविवार, 7 अगस्त 2011

नवगीत: सड़क पर.... -- संजीव 'सलिल'


                                                     traffic.jpg
सड़क पर
मछलियों ने नारा लगाया:
'अबला नहीं, हम हैं
सबला दुधारी'.
मगर काँप-भागा,
तो घड़ियाल रोया.
कहा केंकड़े ने-
मेरा भाग्य सोया.
बगुले ने आँखों से
झरना बहाया...
*
सड़क पर
तितलियों ने डेरा जमाया.
ज़माने समझना
न हमको बिचारी.
भ्रमर रास भूला
क्षमा माँगता है.
कलियों से काँटा
डरा-काँपता है.
तूफां ने डरकर
है मस्तक नवाया...
*
सड़क पर
बिजलियों ने गुस्सा दिखाया.
'उतारो, बढ़ी कीमतें
आज भारी.
ममता न माया,
समता न साया.
हुआ अपना सपना
अधूरा-पराया.
अरे! चाँदनी में है
सूरज नहाया...
*
सड़क पर
बदलियों ने घेरा बनाया.
न आँसू बहा चीर
अपना भीगा री!
न रहते हमेशा,
सुखों को न वरना.
बिना मोल मिलती
सलाहें न धरना.
'सलिल' मिट गया दुःख
जिसे सह भुलाया...
****************

नवगीत: सड़क पर.... -- 

संजीव 'सलिल'

*                             

गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

नवगीत: सड़क संजीव 'सलिल'

नवगीत:

सड़क                                                                                         

संजीव 'सलिल'
*
इस सड़क ने
नित्य बदले नए चोले...

खुशियाँ सभी ने देखीं
पीड़ा न युग ने जानी.
विष पी गयी यहीं पर
मीरां सी राजरानी.

चुप सड़क ने
कुछ न कहकर सत्य बोले.
इस सड़क ने
नित्य बदले नए चोले...

घूमे यहीं दीवाने,
गूँजे यहीं तराने,
थी होड़ सिर कटायें-
अब शेष हैं बहाने.

क्यों सड़क ने
अमृत में भी ज़हर घोले...
इस सड़क ने
नित्य बदले नए चोले...

हर मूल्य क्यों बिकाऊ?
हर बात क्यों उबाऊ?
मौसम चला-चली का-
कुछ भी न क्यों टिकाऊ?

हर सीने में
'सलिल' धड़के आज शोले.
इस सड़क ने
नित्य बदले नए चोले...

*****************

रविवार, 16 जनवरी 2011

नवगीत: सड़क पर.... संजीव 'सलिल'

नवगीत:
                                                                                सड़क पर

संजीव 'सलिल'
*
सड़क पर
सतत ज़िंदगी चल रही है.....
*
उषा की किरण का
सड़क पर बसेरा.
दुपहरी में श्रम के
परिंदे का फेरा.
संझा-संदेसा
प्रिया-घर ने टेरा.
रजनी को नयनों में
सपनों का डेरा.
श्वासा में आशा
विहँस पल रही है.
सड़क पर हताशा
सुलग-जल रही है. ....
*
कशिश कोशिशों की
सड़क पर मिलेगी.
कली मेहनतों की
सड़क पर खिलेगी.
चीथड़ों में लिपटी
नवाशा मिलेगी.
कचरा उठा
जिंदगी हँस पलेगी.
महल में दुपहरी
खिली, ढल रही है.
सड़क पर सड़क से
सड़क मिल रही है....
*
अथक दौड़ते पग
सड़क के हैं संगी.
सड़क को न भाती
हैं चालें दुरंगी.
सड़क पर न करिए
सियासत फिरंगी.
'सलिल'-साधना से
सड़क स्वास्थ्य-चंगी.
मंहगाई जन-गण को
नित छल रही है.
सड़क पर जवानी
मचल-फल रही है.....

शनिवार, 15 जनवरी 2011

नवगीत: सड़क पर संजीव 'सलिल'

नवगीत:

सड़क पर

संजीव 'सलिल'
*
आँज रही है उतर सड़क पर
नयन में कजरा साँझ...
*
नीलगगन के राजमार्ग पर
बगुले दौड़े तेज.
तारे फैलाते प्रकाश तब
चाँद सजाता सेज.
भोज चाँदनी के संग करता
बना मेघ को मेज.
सौतन ऊषा रूठ गुलाबी
पी रजनी संग पेज.
निठुर न रीझा-
चौथ-तीज के सारे व्रत भये बाँझ...
*
निष्ठा हुई न हरजाई, है
खबर सनसनीखेज.
संग दीनता के सहबाला
दर्द दिया है भेज.
विधना बाबुल चुप, क्या बोलें?
किस्मत रही सहेज.
पिया पिया ने प्रीत चषक
तन-मन रंग दे रंगरेज.
आस सारिका गीत गये
शुक झूम बजाये झाँझ...
*
साँस पतंगों को थामे
आसें हंगामाखेज.
प्यास-त्रास की रास
हुलासों को परिहास- दहेज़.
सत को शिव-सुंदर से जाने
क्यों है आज गुरेज?
मस्ती, मौज, मजा सब चाहें
श्रम से है परहेज.
बिना काँच लुगदी के मंझा
कौन रहा है माँझ?...
*

नवगीत सड़क पर संजीव 'सलिल'

नवगीत
                                                                                सड़क पर

संजीव 'सलिल'
*
कहीं है जमूरा,
कहीं है मदारी.
नचते-नचाते
मनुज ही  सड़क पर...
*
जो पिंजरे में कैदी
वो किस्मत बताता.
नसीबों के मारे को
सपना दिखाता.
जो बनता है दाता
वही है भिखारी.
लुटते-लुटाते
मनुज ही  सड़क पर...
*
साँसों की भट्टी में
आसों का ईंधन.
प्यासों की रसों को
खींचे तन-इंजन.
न मंजिल, न रहें,
न चाहें, न वाहें.
खटते-खटाते
मनुज ही  सड़क पर...
*
चूल्हा न दाना,
मुखारी न खाना.
दर्दों की पूंजी,
दुखों का बयाना.
सड़क आबो-दाना,
सड़क मालखाना.
सपने-सजाते
मनुज ही  सड़क पर...
*
कुटी की चिरौरी
महल कर रहे हैं.
उगाते हैं वे
ये फसल चर रहे हैं.
वे बे-घर, ये बा-घर,
ये मालिक वो चाकर.
ठगते-ठगाते
मनुज ही  सड़क पर...
*
जो पंडा, वो झंडा.
जो बाकी वो डंडा.
हुई प्याज मंहगी
औ' सस्ता है अंडा.
नहीं खौलता खून
पानी है ठंडा.
पिटते-पिटाते
मनुज ही  सड़क पर...
*

नवगीत: सड़क पर.... संजीव 'सलिल'

नवगीत:

सड़क पर....

संजीव 'सलिल'
*
सड़क पर
मछलियों ने नारा लगाया:
'अबला नहीं, हम हैं
सबला दुधारी'.
मगर काँप-भागा,
तो घड़ियाल रोया.
कहा केंकड़े ने-
मेरा भाग्य सोया.
बगुले ने आँखों से
झरना बहाया...
*
सड़क पर
तितलियों ने डेरा जमाया.
ज़माने समझना
न हमको बिचारी.
भ्रमर रास भूला
क्षमा मांगता है.
कलियों से कांटा
डरा-कांपता है.
तूफां ने डरकर
है मस्तक नवाया...
*
सड़क पर
बिजलियों ने गुस्सा दिखाया.
'उतारो, बढ़ी कीमतें
आज भारी.
ममता न माया,
समता न साया.
हुआ अपना सपना
अधूरा-पराया.
अरे! चाँदनी में है
सूरज नहाया...
*
सड़क पर
बदलियों ने घेरा बनाया.
न आँसू बहा चीर
अपना भीगा री!
न रहते हमेशा,
सुखों को न वरना.
बिना मोल मिलती
सलाहें न धरना.
'सलिल' मिट गया दुःख
जिसे सह भुलाया...
****************

सोमवार, 10 जनवरी 2011

नवगीत सड़क-मार्ग सा... संजीव वर्मा 'सलिल'

नवगीत
                                                                   
सड़क-मार्ग सा...                                                                                        
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
सड़क-मार्ग सा
फैला जीवन...
*
कभी मुखर है,
कभी मौन है।
कभी बताता,
कभी पूछता,
पंथ कौन है?
पथिक कौन है?
स्वच्छ कभी-
है मैला जीवन...
*
कभी माँगता,
कभी बाँटता।
पकड़-छुडाता
गिरा-उठाता।
सुख में, दुःख में

साथ निभाता-
बिन सिलाई का
थैला जीवन...
*
वेणु श्वास,
राधिका आस है।
कहीं तृप्ति है,
कहीं प्यास है।
लिये त्रास भी

'सलिल' हास है-
तन मजनू,
मन लैला जीवन...
*
बहा पसीना,
भूखा सोये।
जग को हँसा ,
स्वयं छुप रोये।
नित सपनों की
फसलें बोए।
पनघट, बाखर,
बैला जीवन...
*
यही खुदा है,
यह बन्दा है।
अनसुलझा
गोरखधंधा है।

आज तेज है,

कल मंदा है-
राजमार्ग है,
गैला जीवन-
*
काँटे देख
नींद से जागे।
हूटर सुने,
छोड़ जां भागे।
जितना पायी
ज्यादा माँगे-
रोजी का है
छैला जीवन...
*****

रविवार, 16 मई 2010

नवगीत: निर्माणों के गीत गुँजायें...... --संजीव वर्मा 'सलिल'















नवगीत:

निर्माणों के गीत गुँजायें...

संजीव वर्मा 'सलिल'
*













निर्माणों के गीत गुँजायें...
*
मतभेदों के गड्ढें पाटें,
सद्भावों की सड़क बनायें.
बाधाओं के टीले खोदें,
कोशिश-मिट्टी-सतह बिछायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*














निष्ठां की गेंती-कुदाल लें,
लगन-फावड़ा-तसला लायें.
बढ़ें हाथ से हाथ मिलाकर-
कदम-कदम पथ सुदृढ़ बनायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*



















विश्वास-इमल्शन को सींचें,
आस गिट्टियाँ दबा-बिछायें.
गिट्टी-चूरा-रेत छिद्र में-
भर धुम्मस से खूब कुटायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*














है अतीत का लोड बहुत सा,
सतहें सम कर नींव बनायें.
पेवर माल बिछाये एक सा-
पंजा बारम्बार चलायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*














मतभेदों की सतह खुरदुरी,
मन-भेदों का रूप न पायें.
वाइब्रेशन-कोम्पैक्शन दें-
रोलर से मजबूत बनायें.
दूरियाँ दूरकर एक्य बढ़ायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*














राष्ट्र-प्रेम का डामल डालें-
प्रगति-पन्थ पर रथ दौड़ायें.
जनगण देखे स्वप्न सुनहरे,
कर साकार, बमुलियाँ गायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*














श्रम-सीकर का अमिय पान कर,
पग को मंजिल तक ले जाएँ.
बनें नींव के पत्थर हँसकर-
काँधे पर ध्वज-कलश उठायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*















टिप्पणी: इमल्शन =  सड़क  निर्माण के पूर्व मिट्टी-गिट्टी की पकड़ बनाने के लिये डामल-पानी का तरल मिश्रण, पेवर = डामल-गिट्टी का मिश्रण समान मोती में बिछानेवाला यंत्र, पंजा = लोहे के मोटे तारों का पंजा आकार, गिट्टियों को खींचकर गड्ढों में भरने के लिये उपयोगी, वाइब्रेटरी रोलर से उत्पन्न कंपन तथा स्टेटिक रोलर से बना दबाव गिट्टी-डामल के मिश्रण को एकसार कर पर्त को ठोस बनाते हैं, बमुलिया = नर्मदा अंचल का लोकगीत, 













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