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मंगलवार, 10 जनवरी 2017

lekh

आलेख-
मत करें उपयोग इनका 
हम जाने-अनजाने ऐसी सामग्री का उपयोग करते रहते हैं जो हमारे स्वस्थ्य, पर्यावरण और परिवेश के लिए घातक होती है. निम्न वस्तुएँ ऐसी ही हैं, इनका प्रयोग बंद कर हम आप तथा समाज और पर्यावरण को बेहतर बना सकते हैं.

१. प्लास्टिक निर्मित सामान- मनुष्य द्वारा किसी सामान का उपयोग किये जाने के बाद बचा निरुपयोगी कचरा कूड़े के ढेर, नाली, नाला, नदी से होते हुए अंतत: समुद्र में पहुँचकर 'रत्नाकर' को 'कचराघर' बना देता है.  समुद्र को प्रदूषित करते कचरे में ८०% प्लास्टिक होता है. प्लास्टिक सड़ता, गलता नहीं, इसलिए वह मिट्टी में नहीं बदलता. भूमि में दबाये जाने पर बरसों बाद भी ज्यों का त्यों रहता है. प्लास्टिक जलने पर ओषजन वजू नष्ट होती है और प्रदूषण फैलानेवाली हानिप्रद वायु निकलती है. प्लास्टिक की डब्बियाँ, चम्मचें, प्लेटें, बर्तन, थैलियाँ, कुर्सियाँ आदि का कम से कम प्रयोग कर हम प्रदूषण कम कर सकते हैं.

प्लास्टिक के सामान मरम्मत योग्य नहीं होते. इनके स्थान पर धातु या लकड़ी का सामान प्रयोग किया जाए तो उसमें टूट-फूट होने पर मरम्मत तथा रंग-रोगन करना संभव होता है. इससे स्थानीय बेरोजगारों को आजीविका मिलती है जबकि प्लास्टिक सामग्री पूंजीपतियों का धन बढ़ाती है.

२. दन्तमंजन- हमने बचपन में कंडों या लकड़ी की राख में नमक-हल्दी मिले मंजन या दातौन का प्रयोग वर्षों तक किया है जिससे दांत मुक्त रहे. आजकल रसायनों से बने टूथपेस्ट का प्रयोग कर शैशव और बचपन दंत-रोगों से ग्रस्त हो रहा है. टूथपेस्ट कंपनियाँ ऐसे तत्वों (माइक्रोबीड्स) का प्रयोग करती हैं जिन्हें सड़ाया नहीं जा सकता. कोयले को घिसकर अथवा कोयले की राख से दन्तमंजन का काम लिया का सकता है. वनस्पतियों से बनाये गए दंत मंजन का प्रयोग बेहतर विकल्प है. 



स्टीरोफोम
३.  स्टिरोफोम से बने समान- आजकल तश्तरी, कटोरी, गिलास और चम्मच न सड़नेवाले (नॉन बायोडिग्रेडेबल) तत्वों से बनाये जाते हैं. हल्का और सस्ता होने पर भी यह गंभीर रोगों को जन्म दे सकता है. इसके स्थान पर बाँस, पेड़ के पत्तों, लकड़ी या छाल से बने समान का प्रयोग करें तो वह सड़कर मिटटी बन जाता है तह स्थानीय रोजगार का सर्जन करता है. इनकी उपलब्धता के लिए पौधारोपण बड़ी संख्या में करना होगा जिससे वन बढ़ेंगे और वायु प्रदूषण घटेगा.
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गुरुवार, 14 मई 2009

:: पर्यावरण गीत :: -आचार्य संजीव'सलिल'


फ़र्ज़ हमारा क्या है?, तनिक विचार करें.

नहीं गैर का, खुद का तो उपकार करें..

हरी-भरी धरती, शीतल जल हमें मिला।


नील गगन नीचे, यह जीवन-सुमन खिला॥


प्राणदायिनी पवन शुद्ध ले बड़े हुए।


गिरे-उठे, रो-हँस, लड़-मिलकर खड़े हुए॥


सबल हुए तो हरियाली को मिटा दिया.

पेड़ कटते हुए न कांपा तनिक हिया॥


मलिन किया निर्मल जल, मैल बहाया है।


धुंआ विषैला चारों तरफ उड़ाया है॥


शांति-चैन निज हर, कोलाहल-शोर भरा।


पग-पग पर फैलाया है कूड़ा-कचरा..

नियति-नटी के नयनों से जलधार बही।


नहीं पैर धरने को निर्मल जगह रही..

रुकें, विचारें और न अत्याचार करें.

फ़र्ज़ हमारा क्या है?, तनिक विचार करें....

सम्हले नहीं अगर तो मिट ही जायेंगे।


शाह मिलने के पहले पिट भी जायेंगे॥


रक्षक कवच मिट रहा है ओजोन का.

तेजाबी वर्षा झेले नर कौन सा?

दूषित फिजा हो रही प्राणों की प्यासी।


हुई जिन्दगी स्वयं मौत की ज्यों दासी..

बिन पानी सब सून, खो गया है पानी।


दूषित जल ले आया, बंजर-वीरानी.

नंगे पर्वत भू ऊसर-वीरान है।


कोलाहल सुन हाय! फट रहा कान है.

पशु भी बदतर जीवन जीने विवश हुए।


मिटे जा रहे नदी, पोखरे, ताल, कुए.

लाइलाज हो रोग-पूर्व उपचार करें।


फ़र्ज़ हमारा क्या है?, तनिक विचार करें...

क्या?, क्यों?, कैसे? बिगडा हमें न होश है।


शासन, न्याय, प्रशासन भी मदहोश है.

जनगण-मन को मीत जगना ही होगा।


अंधकार से सूर्य उगाना ही होगा.

पौधे लेकर गोद धरा को हरा करें।


हुई अत्यधिक देर किन्तु अब त्वरा करें..

धूम्र-रहित तकनीक सौर-ऊर्जा की है।


कृत्रिम खाद से अनुपजाऊ की माटी है.

कचरे से कम्पोस्ट बना उर्वरता दें।


वाहन-ईंधन कम कर स्वच्छ हवा हम लें.

कांच, प्लास्टिक, कागज़ फिर उपयोग करें।


सदा स्वच्छ जल, भू हो वह उद्योग करें..

श्वास-आस का 'सलिल' सदा सिंगार करें।


फ़र्ज़ हमारा क्या है?, तनिक विचार करें...

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