कुल पेज दृश्य

किरण लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
किरण लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, 23 नवंबर 2020

गीत

अनंत शुभ कामनाएँ
गीत:
किरण कब होती अकेली…
*
किरण कब होती अकेली?
नित उजाला बाँटती है
जानती है सूर्य उगता और ढलता,
उग सके फिर
सांध्य-बेला में न जगती
भ्रमित होए तिमिर से घिर
चन्द्रमा की कलाई पर,
मौन राखी बाँधती है
चाँदनी भेंटे नवेली
किरण कब होती अकेली…
*
मेघ आच्छादित गगन को
देख रोता जब विवश मन
दीप को आ बाल देती,
झोपड़ी भी झूम पाए
भाई की जब याद आती,
सलिल से प्रक्षाल जाए
साश्रु नयनों से करे पुनि
निज दुखों का आचमन
वेदना हो प्रिय सहेली
किरण कब होती अकेली…
*
पञ्च तत्वों में समाये
पञ्च तत्वों को सुमिरती
तीन कालों तक प्रकाशित
तीन लोकों को निहारे
भाईचारा ही सहारा
अधर शाश्वत सच पुकारे
गुमा जो आकार हो साकार
नभ को चुप निरखती
बुझती अनबुझ पहेली
किरण कब होती अकेली…
*
२३-११-२०१६ 

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

दोहा सलिला: किरण-कीर्ति संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला: किरण-कीर्ति 




संजीव 'सलिल'
*
सूर्य-चन्द्र बिन किरण के, हो जाते हैं दीन.
तिमिर घेर ले तो लगे, नभ में हुए विलीन..




आस-किरण बिन ज़िंदगी, होती सून-सपाट.
भोर-उषा नित जोहतीं, मिलीं किरण की बाट..
 

 

भक्त करे भगवान से, कृपा-किरण की चाह.
कृपा-किरण बिन दे सके, जग में कौन पनाह?


 



किरण न रण करती मगर, लेती है जग जीत.
करे प्रकाशित सभी को, सबसे सच्ची प्रीत..
 



किरण-शरण में जो गया, उसको मिला प्रकाश.
धरती पर पग जमा कर, छू पाया आकाश..
 



किरण पड़े तो 'सलिल' में, देखें स्वर्णिम आभ.
सिकता कण भी किरण सँग, दिखें स्वर्ण-पीताभ..
 



शरतचंद्र की किरण पा, 'सलिल' हुआ रजिताभ.
संगमरमरी शिलाएँ, हँसें हुई श्वेताभ..
 

 

क्रोध-किरण से सब डरें, शोक-किरण से दग्ध.
ज्ञान-किरण जिसको वरे, वही प्रतिष्ठा-लब्ध..
 



हर्ष-किरण से जिंदगी, होती मुदित-प्रसन्न.
पा संतोष-किरण लगे, स्वर्ग हुआ आसन्न..
 



जन्म-दिवस सुख-किरण का, पल-पल को दे अर्थ.
शब्द-शब्द से नमन लें, सार्थक हो वागर्थ..
 


___________________________
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in.divyanarmada
0761 2411131 / 94251 83244




रविवार, 15 जुलाई 2012

गद्य गीत: वर्षा -- किरण







*
हर किसी ने मन रूपी नेत्रों से तुम्हे अलग-अलग रूपों में देखा.
 
कहीं किसी ने प्रेम का प्रतीक मान प्रेम बांटते देखा,  तो कहीं किसी ने वियोग में विरहनी बन अश्रु धारा बहाते देखा!

कभी किसी ने हर्षित चंचला बन मचलते देखा, तो कहीं रूद्र रूप धारण कर साधारण जन को अपनी शक्ति से डराते देखा !

किसी ने इन नन्ही नन्ही बूंदों में  जीवन के हर पड़ाव को आते-जाते देखा, कहीं किसी ने चातक बन अपने सपनों को पूरा होते देखा !
मैंने अपने जीवन में तुम्हें को मन का अवसाद धोते देखा, माँ बन कर तन को, मन को, धोते-स्वच्छ करते देखा! 
माँ वर्षा तुम हर वर्ष विभिन्न रूपों में ऐसे ही आते रहना भीगा-भीगा, प्यारा-प्यारा खुशहाली बरसाता आशीर्वाद देते रहना !
*
"kiran" <kiran5690472@yahoo.co.in>