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शनिवार, 4 अप्रैल 2020

पैरोडी

एक गीत -एक पैरोडी
*
ये रातें, ये मौसम, नदी का किनारा, ये चंचल हवा ३१
कहा दो दिलों ने, कि मिलकर कभी हम ना होंगे जुदा ३०
*
ये क्या बात है, आज की चाँदनी में २१
कि हम खो गये, प्यार की रागनी में २१
ये बाँहों में बाँहें, ये बहकी निगाहें २३
लो आने लगा जिंदगी का मज़ा १९
*
सितारों की महफ़िल ने कर के इशारा २२
कहा अब तो सारा, जहां है तुम्हारा २१
मोहब्बत जवां हो, खुला आसमां हो २१
करे कोई दिल आरजू और क्या १९
*
कसम है तुम्हे, तुम अगर मुझ से रूठे २१
रहे सांस जब तक ये बंधन न टूटे २२
तुम्हे दिल दिया है, ये वादा किया है २१
सनम मैं तुम्हारी रहूंगी सदा १८
फिल्म –‘दिल्ली का ठग’ 1958
*****
पैरोडी
है कश्मीर जन्नत, हमें जां से प्यारी, हुए हम फ़िदा ३०
ये सीमा पे दहशत, ये आतंकवादी, चलो दें मिटा ३१
*
ये कश्यप की धरती, सतीसर हमारा २२
यहाँ शैव मत ने, पसारा पसारा २०
न अखरोट-कहवा, न पश्मीना भूले २१
फहराये हरदम तिरंगी ध्वजा १८
*
अमरनाथ हमको, हैं जां से भी प्यारा २२
मैया ने हमको पुकारा-दुलारा २०
हज़रत मेहरबां, ये डल झील मोहे २१
ये केसर की क्यारी रहे चिर जवां २०
*
लो खाते कसम हैं, इन्हीं वादियों की २१
सुरक्षा करेंगे, हसीं घाटियों की २०
सजाएँ, सँवारें, निखारेंगे इनको २१
ज़न्नत जमीं की हँसेगी सदा १७
*****

सोमवार, 5 अगस्त 2019

गीत- करवट ले इतिहास

आज विशेष
करवट ले इतिहास
*
वंदे भारत-भारती
करवट ले इतिहास
हमसे कहता: 'शांत रह,
कदम उठाओ ख़ास

*
दुनिया चाहे अलग हों, रहो मिलाये हाथ
मतभेदों को सहनकर, मन रख पल-पल साथ
देश सभी का है, सभी भारत की संतान
चुभती बात न बोलिये, हँस बनिए रस-खान
न मन करें फिर भी नमन,
अटल रहे विश्वास
देश-धर्म सर्वोच्च है
करा सकें अहसास
*
'श्यामा' ने बलिदान दे, किया देश को एक
सीख न दीनदयाल की, तज दो सौख्य-विवेक
हिमगिरि-सागर को न दो, अवसर पनपे भेद
सत्ता पाकर नम्र हो, न हो बाद में खेद
जो है तुमसे असहमत
करो नहीं उपहास
सर्वाधिक अपनत्व का
करवाओ आभास
*
ना ना, हाँ हाँ हो सके, इतना रखो लगाव
नहीं किसी से तनिक भी, हो पाए टकराव
भले-बुरे हर जगह हैं, ऊँच-नीच जग-सत्य
ताकत से कमजोर हो आहात करो न कृत्य
हो नरेंद्र नर, तभी जब
अमित शक्ति हो पास
भक्ति शक्ति के साथ मिल
बनती मुक्ति-हुलास
(दोहा गीत: यति १३-११, पदांत गुरु-लघु )
***
५-८-२०१९
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
७९९९५५९६१८
salil.sanjiv@gmail.com

बुधवार, 20 जून 2018

कुंडलिया सलिला

केर-बेर के संग सम, महबूबा-महबूब।
स्वार्थ साधने मिल गए, राजनीति में डूब।।
राजनीति में डूब, न उनको मिला किनारा।
गए शीघ्र ही ऊब, हो गया दिल-बँटवारा।।
साथ-साथ या दूर, विषम न हों रह साथ सम।
महबूबा-महबूब, केर-बेर के संग सम।।
*

शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2017

pairody: kashmeer

एक गीत -एक पैरोडी
*
ये रातें, ये मौसम, नदी का किनारा, ये चंचल हवा ३१
कहा दो दिलों ने, कि मिलकर कभी हम ना होंगे जुदा ३०
*
ये क्या बात है, आज की चाँदनी में २१
कि हम खो गये, प्यार की रागनी में २१
ये बाँहों में बाँहें, ये बहकी निगाहें २३
लो आने लगा जिंदगी का मज़ा १९
*
सितारों की महफ़िल ने कर के इशारा २२
कहा अब तो सारा, जहां है तुम्हारा २१
मोहब्बत जवां हो, खुला आसमां हो २१
करे कोई दिल आरजू और क्या १९
*
कसम है तुम्हे, तुम अगर मुझ से रूठे २१
रहे सांस जब तक ये बंधन न टूटे २२
तुम्हे दिल दिया है, ये वादा किया है २१
सनम मैं तुम्हारी रहूंगी सदा १८
फिल्म –‘दिल्ली का ठग’ 1958
*****
पैरोडी
है कश्मीर जन्नत, हमें जां से प्यारी, हुए हम फ़िदा ३०
ये सीमा पे दहशत, ये आतंकवादी, चलो दें मिटा ३१
*
ये कश्यप की धरती, सतीसर हमारा २२
यहाँ शैव मत ने, पसारा पसारा २०
न अखरोट-कहवा, न पश्मीना भूले २१
फहराये हरदम तिरंगी ध्वजा १८
*
अमरनाथ हमको, हैं जां से भी प्यारा २२
मैया ने हमको पुकारा-दुलारा २०
हज़रत मेहरबां, ये डल झील मोहे २१
ये केसर की क्यारी रहे चिर जवां २०
*
लो खाते कसम हैं, इन्हीं वादियों की २१
सुरक्षा करेंगे, हसीं घाटियों की २०
सजाएँ, सँवारें, निखारेंगे इनको २१
ज़न्नत जमीं की हँसेगी सदा १७
*****

गुरुवार, 6 अक्टूबर 2016

geet aur pairody

एक गीत -एक पैरोडी 
*
ये रातें, ये मौसम, नदी का किनारा, ये चंचल हवा           ३१
कहा दो दिलों ने, कि मिलकर कभी हम ना होंगे जुदा       ३० 
*
ये क्या बात है, आज की चाँदनी में                                २१
कि हम खो गये, प्यार की रागनी में                                २१
ये बाँहों में 
बाँहें, ये बहकी निगाहें                                   २३
लो आने लगा जिंदगी का मज़ा                                      १९ 
*
सितारों की महफ़िल ने कर के इशारा                            २२ 
कहा अब तो सारा, जहां है तुम्हारा                                 २१
मोहब्बत जवां हो, खुला आसमां हो                                २१
करे कोई दिल आरजू और क्या                                      १९ 
*
कसम है तुम्हे, तुम अगर मुझ से रूठे                            २१
रहे सांस जब तक ये बंधन न टूटे                                   २२
तुम्हे दिल दिया है, ये वादा किया है                                २१
सनम मैं तुम्हारी रहूंगी सदा                                          १८ 

फिल्म –‘दिल्ली का ठग’ 1958
*****
पैरोडी 
है कश्मीर जन्नत, हमें जां से प्यारी, हुए हम फ़िदा   ३० 
ये सीमा पे दहशत, ये आतंकवादी, चलो दें मिटा       ३१ 
*
ये कश्यप की धरती, सतीसर हमारा                        २२ 
यहाँ शैव मत ने, पसारा पसारा                                २० 
न अखरोट-कहवा, न पश्मीना भूले                          २१  
फहराये हरदम तिरंगी ध्वजा                                  १८ 
अमरनाथ हमको, हैं जां से भी प्यारा                        २२ 
मैया ने हमको पुकारा-दुलारा                                   २०
हज़रत मेहरबां, ये डल झील मोहे                            २१ 
ये केसर की क्यारी रहे चिर जवां                              २० 
*
लो खाते कसम हैं, इन्हीं वादियों की                         २१
सुरक्षा करेंगे, हसीं घाटियों की                                  २०
सजाएँ, सँवारें, निखारेंगे इनको                                २१ 
ज़न्नत जमीं की हँसेगी सदा                                    १७ 
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बुधवार, 28 सितंबर 2016

geet

एक रचना 
हर दिन 
*
सिया हरण को देख रहे हैं 
आँखें फाड़ लोग अनगिन। 
द्रुपद सुता के चीरहरण सम
घटनाएँ होतीं हर दिन।
*
'गिरि गोपाद्रि' न नाम रहा क्यों?
'सुलेमान टापू' क्यों है?
'हरि पर्वत' का 'कोह महाजन'
नाम किया किसने क्यों है?
नाम 'अनंतनाग' को क्यों हम
अब 'इस्लामाबाद' कहें?
घर में घुस परदेसी मारें
हम ज़िल्लत सह आप दहें?
बजा रहे हैं बीन सपेरे
राजनीति नाचे तिक-धिन
द्रुपद सुता के चीरहरण सम
घटनाएँ होतीं हर दिन।
*
हम सबका 'श्रीनगर' दुलारा
क्यों हो शहरे-ख़ास कहो?
'मुख्य चौक' को 'चौक मदीना'
कहने से सब दूर रहो
नाम 'उमा नगरी' है जिसका
क्यों हो 'शेखपुरा' वह अब?
'नदी किशन गंगा' को 'दरिया-
नीलम' कह मत करो जिबह
प्यार न जिनको है भारत से
पकड़ो-मारो अब गईं-गईं
द्रुपद सुता के चीरहरण सम
घटनाएँ होतीं हर दिन।
*
पण्डित वापिस जाएँ बसाए
स्वर्ग बनें फिर से कश्मीर
दहशतगर्द नहीं बच पाएं
कायम कर दो नई नज़ीर
सेना को आज़ादी दे दो
आज नया इतिहास बने
बंगला देश जाए दोहराया
रावलपिंडी समर ठने
हँस बलूच-पख्तून संग
सिंधी आज़ाद रहें हर दिन
द्रुपद सुता के चीरहरण सम
घटनाएँ होतीं हर दिन।
*

शनिवार, 3 सितंबर 2016

नवगीत

नवगीत
*
पल में बारिश,
पल में गर्मी
गिरगिट सम रंग बदलता है
यह मौसम हमको छलता है
*
खुशियों के ख्वाब दिखाता है
बहलाता है, भरमाता है
कमसिन कलियों की चाह जगा
सौ काँटे चुभा, खिजाता है 
अपना होकर भी छाती पर
बेरहम! दाल दल हँसता है
यह मौसम हमको छलता है
*
जब एक हाथ में कुछ देता
दूसरे हाथ से ले लेता
अधिकार न दे, कर्तव्य निभा
कह, यश ले, अपयश दे देता
जन-हित का सूर्य बिना ऊगे
क्यों, कौन बताये ढलता है?
यह मौसम हमको छलता है
*
गर्दिश में नहीं सितारे हैं
हम तो अपनों के मारे हैं
आधे इनके, आधे उनके
कुटते-पिटते बंजारे हैं
घरवाले ही घर के बाहर
क्या ऐसे भी घर चलता है?
यह मौसम हमको छलता है
*
तुम नकली आँसू बहा रहे
हम दुःख-तकलीफें तहा रहे
अंडे कौओं के घर में धर
कोयल कूके, जग अहा! कहे
निर्वंश हुए सद्गुण के तरु
दुर्गुण दिन दूना फलता है
यह मौसम हमको छलता है
*
है यहाँ गरीबी अधनंगी
है वहाँ अमीरी अधनंगी
उन पर जरुरत से ज़्यादा है
इन पर हद से ज्यादा तंगी
धीरज का पैर न जम पाता 
विचलित मन रपट-फिसलता है
यह मौसम हमको छलता है
*

शुक्रवार, 8 मई 2009

दो गीतिकाएँ: -रमेश श्रीवास्तव 'चातक', सिवनी

आम जनता के हक में सदा शूल रहे हैं।
आज गाँधी के अनुयायी फल-फूल रहे हैं॥

सीधे-सादे पेड़ तो हर दिन हैं कट रहे।
आरक्षितों में शूल और बबूल रहे हैं॥

कश्मीर तो भारत के माथे का मुकुट है।
भारत समूचा एक है हम भूल रहे हैं॥

आ गया 'चातक' पुनः चुनाव् का मौसम।
वादों के झूठे झूले सब झूल रहे हैं॥

उस दर पे मेरी गर्दन इसलिए न झुक सकी।
'चातक' की इबादत के कुछ उसूल रहे हैं॥

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यह बात मेरे अपने तजुर्बे में आई है।
साफ़ बात कहने में केवल बुराई है॥

जब एक बनो, नेक बनो तभी हो इन्सां।
सब के लिये रब ने यह दुनिया बनाई है॥

आपस में बाँट लें सभी के सुख-औ'- दुःख को हम।
आपस में बँटोगे तो बहुत ही बुराई है॥

क्यों लड़ते-झगड़ते हो, उलझते हो दोस्तों?
आपस में लड़कर किसने सुख-शान्ति पाई है?

'चातक; की प्यास के लिए, दरिया भी कम रहा।
स्वाति की एक बूँद सदा काम आयी है॥

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