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वर्षों बाद लौटने पर घर
आँखें अब भी ढूँढ रही हैं
पेड़ पुराना अमलतास का,
सड़क किनारे यहीं खड़ा था
लदा हुआ पीले फूलों से|
पहली सूरज की किरणों से
सजग नीड़ का कोना–कोना,
पत्तों के झुरमुट के पीछे,
कलरव की धुन में गाता था,
शिशु विहगों का मौन मुखर हो|
आँखें अब भी ढूँढ रही हैं
तेरी–मेरी ------
पेड़ पुराना अमलतास का
लदा हुआ पीले फूलों से
कुछ दिन पहले यहीं खड़ा था|
*****
कविता,
अमलतास
संजीव 'सलिल'
*
*
तुम कहते हो ढूँढ रहे हो
पेड़ पुराना अमलतास का।
जाकर लकड़ी-घर में देखो
सिसक रही हैं चंद टहनियाँ,
कचरा-घर में रोती कलियाँ,
बिखरे फूल सड़क पर करते
चीत्कार पर कोई न सुनता।
करो अनसुना.
अपने अंतर्मन से पूछो:
क्यों सन्नाटा फैला-पसरा
है जीवन में?
घर-आंगन में??
हुआ अंकुरित मैं- तुम जन्मे,
मैं विकसा तुम खेल-बढ़े थे।
हुईं पल्लवित शाखाएँ जब
तुमने सपने नये गढ़े थे।
कलियाँ महकीं, कँगना खनके
फूल खिले, किलकारी गूँजी।
बचपन में जोड़ा जो नाता
तोड़ा सुन सिक्कों की खनखन।
तभी हुई थी घर में अनबन।
मुझसे जितना दूर हुए तुम,
तुमसे अपने दूर हो गए।
मन दुखता है यह सच कहते
आँखें रहते सूर हो गए।
अब भी चेतो-
व्यर्थ न खोजो,
जो मिट गया नहीं आता है।
उठो, फिर नया पौधा रोपो,
टूट गये जो नाते जोड़ो.
पुरवैया के साथ झूमकर
ऊषा संध्या निशा साथ हँस
स्वर्गिक सुख धरती पर भोगो
बैठ छाँव में अमलतास की.
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वर्षों बाद लौटने पर घर
आँखें अब भी ढूँढ रही हैं
पेड़ पुराना अमलतास का,
सड़क किनारे यहीं खड़ा था
लदा हुआ पीले फूलों से|
पहली सूरज की किरणों से
सजग नीड़ का कोना–कोना,
पत्तों के झुरमुट के पीछे,
कलरव की धुन में गाता था,
शिशु विहगों का मौन मुखर हो|
आँखें अब भी ढूँढ रही हैं
तेरी–मेरी ------
पेड़ पुराना अमलतास का
लदा हुआ पीले फूलों से
कुछ दिन पहले यहीं खड़ा था|
*****
कविता,
अमलतास
संजीव 'सलिल'
*
*
तुम कहते हो ढूँढ रहे हो
पेड़ पुराना अमलतास का।
जाकर लकड़ी-घर में देखो
सिसक रही हैं चंद टहनियाँ,
कचरा-घर में रोती कलियाँ,
बिखरे फूल सड़क पर करते
चीत्कार पर कोई न सुनता।
करो अनसुना.
अपने अंतर्मन से पूछो:
क्यों सन्नाटा फैला-पसरा
है जीवन में?
घर-आंगन में??
हुआ अंकुरित मैं- तुम जन्मे,
मैं विकसा तुम खेल-बढ़े थे।
हुईं पल्लवित शाखाएँ जब
तुमने सपने नये गढ़े थे।
कलियाँ महकीं, कँगना खनके
फूल खिले, किलकारी गूँजी।
बचपन में जोड़ा जो नाता
तोड़ा सुन सिक्कों की खनखन।
तभी हुई थी घर में अनबन।
मुझसे जितना दूर हुए तुम,
तुमसे अपने दूर हो गए।
मन दुखता है यह सच कहते
आँखें रहते सूर हो गए।
अब भी चेतो-
व्यर्थ न खोजो,
जो मिट गया नहीं आता है।
उठो, फिर नया पौधा रोपो,
टूट गये जो नाते जोड़ो.
पुरवैया के साथ झूमकर
ऊषा संध्या निशा साथ हँस
स्वर्गिक सुख धरती पर भोगो
बैठ छाँव में अमलतास
|
वर्षों बाद लौटने पर घर
आँखें अब भी ढूँढ रही हैं
पेड़ पुराना अमलतास का,
सड़क किनारे यहीं खड़ा था
लदा हुआ पीले फूलों से|
पहली सूरज की किरणों से
सजग नीड़ का कोना–कोना,
पत्तों के झुरमुट के पीछे,
कलरव की धुन में गाता था,
शिशु विहगों का मौन मुखर हो|
आँखें अब भी ढूँढ रही हैं
तेरी–मेरी ------
पेड़ पुराना अमलतास का
लदा हुआ पीले फूलों से
कुछ दिन पहले यहीं खड़ा था|
*****
कविता,
अमलतास
संजीव 'सलिल'
*
*
तुम कहते हो ढूँढ रहे हो
पेड़ पुराना अमलतास का।
जाकर लकड़ी-घर में देखो
सिसक रही हैं चंद टहनियाँ,
कचरा-घर में रोती कलियाँ,
बिखरे फूल सड़क पर करते
चीत्कार पर कोई न सुनता।
करो अनसुना.
अपने अंतर्मन से पूछो:
क्यों सन्नाटा फैला-पसरा
है जीवन में?
घर-आंगन में??
हुआ अंकुरित मैं- तुम जन्मे,
मैं विकसा तुम खेल-बढ़े थे।
हुईं पल्लवित शाखाएँ जब
तुमने सपने नये गढ़े थे।
कलियाँ महकीं, कँगना खनके
फूल खिले, किलकारी गूँजी।
बचपन में जोड़ा जो नाता
तोड़ा सुन सिक्कों की खनखन।
तभी हुई थी घर में अनबन।
मुझसे जितना दूर हुए तुम,
तुमसे अपने दूर हो गए।
मन दुखता है यह सच कहते
आँखें रहते सूर हो गए।
अब भी चेतो-
व्यर्थ न खोजो,
जो मिट गया नहीं आता है।
उठो, फिर नया पौधा रोपो,
टूट गये जो नाते जोड़ो.
पुरवैया के साथ झूमकर
ऊषा संध्या निशा साथ हँस
स्वर्गिक सुख धरती पर भोगो
बैठ छाँव में अमलतास की.
अमलतास
= आरग्वध, मुकुल, राजतरु, राजवृक्ष, रेवत, रोचन, व्याघिघ्न, शंपाक,
सियारलाठी, सुपर्णक, सुपुष्पक, स्वर्णपुष्पी, स्वर्णभूषण, हेमपुष्प, केसिया
फिस्टुला, लेबरनम.

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गुलमोहर = अशरफी, गुल अशरफी, डेलोनिक्स रेग़िया.
 Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com http://hindihindi.in |
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