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शनिवार, 29 जून 2019

गीत

एक रचना 
*
चाँदनी में नहा 
चाँदनी महमहा 
रात-रानी हुई 
कुछ दीवानी हुई
*
रातरानी खिली
मोगरे से मिली
हरसिंगारी ग़ज़ल
सुन गया मन मचल
देख टेसू दहा
चाँदनी में नहा
*
रंग पलाशी चढ़ा
कुछ नशा सा बढ़ा
बालमा चंपई
तक जुही मत मुई
छिप फ़साना कहा
चाँदनी में नहा
*
२९-६-२०१६

रविवार, 28 अप्रैल 2019

दोहा, मुक्तिका

एक दोहा
जय हो सदा नरेन्द्र की, हो भयभीत सुरेन्द्र.
बन न जाये कर साधना, कहीं कभी देवेंद्र

मुक्तिका
चाँदनी फसल..
संजीव 'सलिल'
*
इस पूर्णिमा को आसमान में खिला कमल.
संभावना की ला रही है चाँदनी फसल..
*
वो ब्यूटी पार्लर से आयी है, मैं क्या कहूँ?
है रूप छटा रूपसी की असल या नक़ल?
*
दिल में न दी जगह तो कोई बात नहीं है.
मिलने दो गले, लोगी खुदी फैसला बदल..
*
तुम 'ना' कहो मैं 'हाँ' सुनूँ तो क्यों मलाल है?
जो बात की धनी थी, है बाकी कहाँ नसल?
*
नेता औ' संत कुछ कहें न तू यकीन कर.
उपदेश रोज़ देते न करते कभी अमल..
*
मन की न कोई भी करे है फ़िक्र तनिक भी.
हर शख्स की है चाह संवारे रहे शकल..
*
ली फेर उसने आँख है क्यों ताज्जुब तुझे.?
होते हैं विदा आँख फेरकर कहे अज़ल..
*
माया न किसी की सगी थी, है, नहीं होगी.
क्यों 'सलिल' चाहता है, संग हो सके अचल?
*
२८-४-२०१५

गुरुवार, 26 अक्टूबर 2017

मुक्तक

मुक्तक 
संवेदना का जन्मदिवस नित्य ही मने
दिल से दिल के तार जुड़ें, स्वर्ग भू बने
वेदना तभी मिटे, सौहार्द्र-स्नेह हो-
शांति का वितान दस दिशा रहा तने
*
श्याम घटा बीच चाँद लिये चाँदनी
लालिमा से, नीलिमा से सजी चाँदनी
सुमन गुच्छ से भी अधिक लिए ताजगी-
बिजलियाँ गिरा रही है विहँस चाँदनी
*
उषा की नमी दे रही दुनिया को ज़िंदगी
डिहाइड्रेशन से गयी क्यों अस्पताल में?
सूरज अधिक तपा या चाँदनी हुई कुपित
धरती से आसमान तक चर्चे है आज ये.
*
जग का सारा तिमिर ले, उसे बना आधार
रख दे आशा दीप में, कोशिश-बाती प्यार
तेल हौसले, योजना-तीली बाले ज्योति-
रमा-राज में हो सके ज्योतित सब संसार
*
रूपया हुआ अज़ीज़ अब, रुपया ही है प्यार
रुपये से इरशाद कह, रूपया पा हो शाद
रुपये की दीवानगी हद से अधिक न होय
रुपये ही आबाद कर, कर देता बर्बाद
*
कुछ मुट्ठी भर चेहरे, बासी सोच- विचार
नव पीढ़ी हित व्यर्थ हैं, जिनके सब आचार
चित्र-खबर में छप सकें, बस इतना उद्देश्य-
परिवर्तन की कोशिशें कर देते बेकार.
*
कतरा-कतरा तिमिर पी, ऊषा ले अरुणाई
'जाग' सूर्य से कह रही, 'चल कर लें कुड़माई'
'धत' कह लहना सिंह हुआ, भास्कर तपकर लाल
नेह नर्मदा तीर पर, कलकल पडी सुनाई
*
पंकज को आ गया है सुन सोना पर प्यार
देख लक्ष्मी को चढ़ा पल में तेज बुखार
कहा विष्णु से लीजिये गहने सभी समेट-
वित्तमंत्री चेता रहे भाव करें हद पार
*
***
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