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मंगलवार, 10 जून 2025

जून १०, पोयम, सरस्वती, दोहे, पानी, लहसुन, स्वास्थ्य, फुलबगिया, पूर्णिका

सलिल सृजन जून १०
*
पूर्णिका : फुलबगिया 
हो आनंदित आप, फुलबगिया में घूमिए। 
सुमन सुमन में व्याप, पवन झुलाए झूमिए।। 
भँवरा ख्वाब हसीन, दिखा रहा है कली को।   
मादक महुआ मौन, कहे बाँह भर चूमिए।। 
.
'लिव इन' का है दौर, पल-पल नाते बदलते। 
सुबह किसी के आप, शाम किसी के हो लिए।। 
.
रहे बाँह में एक, और चाह में दूसरा। 
नजर तीसरा खोज, कहे शीघ्र फ्री होइए।। 
फुलबगिया गमगीन, देख बिक रही प्रीत को।   
प्रेम न पूजा आज, एक-दूसरे हित जिए।।    
००० 
Particle
*
O tiny particle! You are really Great.
Are very heavy but without weight.
What is the size?, knowbody know.
From where you come?, where you go.
No caste, no cult, no religion, no race.
Still not loose, always win the race.
O little particle! nobody can destroy.
Nobody can sell, nobody can buy.
You are the ultimate root of universe.
You never bother fate favour or adverse.
world say your are the samllest.
But to me you are the biggest.
10-6-2022
***
मुक्तक
ले लेती है जिंदों की भी अनजाने ही जान मोहब्बत।
दे देती हैं मुर्दों को भी अनजाने ही जान मोहब्बत।।
मरुथल में भी फूल खिलाती, पत्थर फोड़ बहाती झरना-
यही जीव संजीव बनाती, फिर भी क्यों अनजान मोहब्बत।।...
१०-६-२०२१
***
सरस्वती वंदना
*
भोर भई पट खोल सुरसती
दरसन दे महतारी।
हात जोड़ ठाँड़े हैं सुर-नर
अकल देओ माँ! माँग रए वर
मौन न रह कुछ बोल सुरसती
काहे सुधी बिसारी?
ध्वनि-धुन, स्वर-सुर, वाक् देओ माँ!
मति गति-यति, लय-ताल, छंद गा
विधि-हरि-हर ने रमा-उमा सँग
तोरे भए पुजारी
नेह नरमदा की कलकल तू
पंछी गुंजाते कलरव तू
लोरी, बम्बुलिया, आल्हा तू
मैया! महिमा न्यारी
***
एक रचना
*
अरुण अर्णव लाल-नीला
अहम् तज मन रहे ढीला
स्वार्थ करता लाल-पीला
छंद लिखता नयन गीला
संतुलन चाबी, न ताला
बिना पेंदी का पतीला
नमन मीनाक्षी सुवाचा
गगन में अरविंद साँचा
मुकुल मन ने कथ्य बाँचा
कर रहा जग तीन-पाँचा
मंजरी सज्जित भुआला
पुनीता है शक्ति वर ले
विनीता मति भक्ति वर ले
युक्तिपूर्वक जिंदगी जी
मुक्ति कर कुछ कर्म वर ले
काल का सब जग निवाला
८-६-२०२०
***
वंदना
*
शारद मैया! कैंया लेओ
पल पल करता मन कुछ खटपट
चाहे सुख मिल जाए झटपट
भोला चंचल भाव अँजोरूँ
हूँ संतान तुम्हारी नटखट
आपन किरपा दैया! देओ
शारद मैया! कैंया लेओ
मो खों अच्छर ग्यान करा दे
परमशक्ति सें माँ मिलवा दे
इकनी एक, अनादि अजर 'अ'
दिक् अंबर मैया! पहना दे
किरपा पर कें नीचें सेओ
शारद मैया! कैंया लेओ
अँगुली थामो, राह दिखाओ
कंठ बिराजो, हृदै समाओ
सुर-सरगम-स्वर दे प्रसाद माँ
मत मोखों जादा अजमाओ
नाव 'सलिल' की भव में खेओ
शारद मैया! कैंया लेओ
९-६-२०२०
***
श्वास शारदा माँ बसीं, हैं प्रयास में शक्ति
आस लक्ष्मी माँ मिलीं, कर मन नवधा भक्ति
त्रिगुणा प्रकृति नमन स्वीकारो,
तीन देव की जय बोलो
तीन काल का आत्म मुसाफिर,
कर्म-धर्म मति से तोलो
नमन करो स्वीकार शारदे! नमन करो स्वीकार
सब कुछ तुम पर वार शारदे आया तेरे द्वार
तुम आद्या हो, तुम अनंत हो
तुम्हीं अंत मेरी माता
ध्यान तुम्हारे में खोता जो, वही आप को पा पाता
पाती मन की कोरी इस पर, ॐ लिखूँ झट सिखला दो
सलिल बिंदु हो नेह नर्मदा, झलक पुनीता विख्याता
ग्यान तारिका! कला साधिका!
मन मुकुलित पुष्पा दो माँ!
'मावस को कर शरत् पूर्णिमा,
मैया! वरदा प्रख्याता
शुभदा सुखदा मातु वर्मदा,
देवि धर्मदा जगजननी
वीणा झंकृत कर दो मन की,
जीवन अर्पित हे प्राता
जड़ है जीव करो संजीवित, चेतन हो सत् जान सके
शिव-सुंदर का चित्र गुप्त लख
रहे सदा तुमको ध्याता
१०-६-२०२०
***
क्षणिका
क्यों पूछते हो
राह यह जाती कहाँ है?
आदमी जाते हैं नादां
रास्ते जाते नहीं हैं।*
दिशाएँ दीवार,
छत है आसमान
बेदरो-दीवार
कहिए कौन है?
१०-६-२०१९
***
दोहे पानीदार
पानी तो अनमोल है, मत कह तू बेमोल।
कंठ सूखते ही तुझे, पता लगेगा मोल।।
*
वर्षा-जल संग्रहण कर, बुझे ग्रीष्म में प्यास।
बहा निरर्थक क्यों सहो, रे मानव संत्रास।।
*
सलिल' नीर जल अंबु बिन, कैसे हो आनंद।
कलकल ध्वनि बिन कल कहाँ, कैसे गूँज छंद।।
*
लहर-लहर हँस हहरकर, बन-मिट दे संदेश।
पाया-खोया भूलकर, चिंता मत कर लेश।।
*
पानी मरे न आँख का, रखिए हर दम ध्यान।
सूखे पानी आँख का, यदि कर तुरत निदान।।
*
10.6.2018
***
स्वास्थ्य सलिला
कुछ नुस्खे: छोटे लहसुन के बड़े फायदे.......
___________________________________________________
(इन बीमारियों में है रामबाण)
लहसुन सिर्फ खाने के स्वाद को ही नहीं बढ़ाता बल्कि शरीर के लिए एक औषधी की तरह भी काम करता है।इसमें प्रोटीन, विटामिन, खनिज, लवण और फॉस्फोरस, आयरन व विटामिन ए,बी व सी भी पाए जाते हैं। लहसुन शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाता है। भोजन में किसी भी तरह इसका सेवन करना शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होता है आज हम बताने जा रहे हैं आपको औषधिय गुण से भरपूर लहसुन के कुछ ऐसे ही नुस्खों के बारे में जो नीचे लिखी स्वास्थ्य समस्याओं में रामबाण है।
1-- 100 ग्राम सरसों के तेल में दो ग्राम (आधा चम्मच) अजवाइन के दाने और आठ-दस लहसुन की कुली डालकर धीमी-धीमी आंच पर पकाएं। जब लहसुन और अजवाइन काली हो जाए तब तेल उतारकर ठंडा कर छान लें और बोतल में भर दें। इस तेल को गुनगुना कर इसकी मालिश करने से हर प्रकार का बदन का दर्द दूर हो जाता है।
2-- लहसुन की एक कली छीलकर सुबह एक गिलास पानी से निगल लेने से रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर नियंत्रित रहता है।साथ ही ब्लडप्रेशर भी कंट्रोल में रहता है।
3-- लहसुन डायबिटीज के रोगियों के लिए भी फायदेमंद होता है। यह शुगर के स्तर को नियंत्रित करने में कारगर साबित होता है।
4-- खांसी और टीबी में लहसुन बेहद फायदेमंद है। लहसुन के रस की कुछ बूंदे रुई पर डालकर सूंघने से सर्दी ठीक हो जाती है।
5-- लहसुन दमा के इलाज में कारगर साबित होता है। 30 मिली लीटर दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है। अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है।
6-- लहसुन की दो कलियों को पीसकर उसमें और एक छोटा चम्मच हल्दी पाउडर मिला कर क्रीम बना ले इसे सिर्फ मुहांसों पर लगाएं। मुहांसे साफ हो जाएंगे।
7-- लहसुन की दो कलियां पीसकर एक गिलास दूध में उबाल लें और ठंडा करके सुबह शाम कुछ दिन पीएं दिल से संबंधित बीमारियों में आराम मिलता है।
8-- लहसुन के नियमित सेवन से पेट और भोजन की नली का कैंसर और स्तन कैंसर की सम्भावना कम हो जाती है।
9-- नियमित लहसुन खाने से ब्लडप्रेशर नियमित रहता है। एसीडिटी और गैस्टिक ट्रबल में भी इसका प्रयोग फायदेमंद होता है। दिल की बीमारियों के साथ यह तनाव को भी नियंत्रित करती है।
10-- लहसुन की 5 कलियों को थोड़ा पानी डालकर पीस लें और उसमें 10 ग्राम शहद मिलाकर सुबह -शाम सेवन करें। इस उपाय को करने से सफेद बाल काले हो जाएंगे।
11- यदि रोज नियमित रूप से लहसुन की पाँच कलियाँ खाई जाएँ तो हृदय संबंधी रोग होने की संभावना में कमी आती है। इसको पीसकर त्वचा पर लेप करने से विषैले कीड़ों के काटने या डंक मारने से होने वाली जलन कम हो जाती है।
12- जुकाम और सर्दी में तो यह रामबाण की तरह काम करता है। पाँच साल तक के बच्चों में होने वाले प्रॉयमरी कॉम्प्लेक्स में यह बहुत फायदा करता है। लहसुन को दूध में उबालकर पिलाने से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। लहसुन की कलियों को आग में भून कर खिलाने से बच्चों की साँस चलने की तकलीफ पर काफी काबू पाया जा सकता है।
13- लहसुन गठिया और अन्य जोड़ों के रोग में भी लहसुन का सेवन बहुत ही लाभदायक है।
लहसुन की बदबू-
अगर आपको लहसुन की गंध पसंद नहीं है कारण मुंह से बदबू आती है। मगर लहसुन खाना भी जरूरी है तो रोजमर्रा के लिये आप लहसुन को छीलकर या पीसकर दही में मिलाकर खाये तो आपके मुंह से बदबू नहीं आयेगी। लहसुन खाने के बाद इसकी बदबू से बचना है तो जरा सा गुड़ और सूखा धनिया मिलाकर मुंह में डालकर चूसें कुछ देर तक, बदबू बिल्कुल निकल जायेगी।
***
दोहा सलिला
बिन नागा सूरज उगे सुबह ढले हर शाम.
यत्न सतत करते रहें, बिना रुके निष्काम..
***
अंतिम पल तक दिये से, तिमिर न पाता जीत.
सफर साँस का इस तरह, पूर्ण करें हम मीत..
***
संयम तज हम बजायें, व्यर्थ न अपने गाल.
बन संतोषी हों सुखी, रखकर उन्नत भाल..
***
ढाई आखर पढ़े बिन पढ़े, तज अद्वैत वर द्वैत.
मैं-तुम मिटे, बचे हम ही हम, जब-जब खेले बैत..
***
जीत हार में, हार जीत में, पायी हुआ कमाल.
सलिल'-साधना सफल हो सके, सबकी अबकी साल..
***
दूर क्षितिज को ताकती, रहकर मौन निगाह.
धरे हाथ पर हाथ हम, देखें काल-प्रवाह..
१०.६.२०१०
***

शुक्रवार, 21 मार्च 2025

मार्च २१, सॉनेट, रंग, हाइकु, गीत, मुक्तिका, कुण्डलिया, त्रिभंगी छंद, देवी गीत, पूर्णिका, पानी

सलिल सृजन मार्च २१
पूर्णिका
पानी
किसी आँख से बहे न पानी
सूखे नहीं आँख का पानी
.
बिन पानी सूनी सब दुनिया
पानी बहा न कर नादानी
.
मानव मोती मृदा चून की
पानी ने कीमत पहचानी
.
'पानी पत राखो गिरधारी'
करे प्रार्थना मीरा स्यानी
.
पानी गंदा करें नराधम
बिन पानी दुनिया बेगानी
.
सलिल नीर जल वाटर निर्मल
बचा रखो न्यामत लासानी
२१.३.२०२५
०००
सॉनेट
रंग
रंगरहित बेरंग न कोई।
श्याम जन्मता सदा श्वेत को।
प्रगटाए पाषाण रेत को।।
रंगों ने नव आशा बोई।।
रंगोत्सव सब झूम मनाते।
रंग लगाना बस अपनों को।
छोड़ न देते क्यों नपनों को?
राग-रागिनी, गीत गुँजाते।।
रंग बिखेरें सूरज-चंदा।
नहीं बटोरें घर-घर चंदा।
यश न कभी भी होता मंदा।।
रंगों को बदरंग मत करो।
श्वेत-श्याम को संग नित वरो।
नवरंगों को हृदय में धरो।।
०००
देवी गीत
*
मैया पधारी दुआरे
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
घर-घर बिराजी मतारी हैं मैंया!
माँ, भू, गौ, भाषा प्यारी हैं मैया!
अब लौं न पैयाँ पखारे रे हमने
काहे रहा मन भुलावा
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
आसा है, श्वासा भतारी है मैया!
अँगना-रसोई, किवारी है मैया!
बिरथा पड़ोसन खों ताकत रहत ते,
भटका हुआ लौट आवा
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
राखी है, बहिना दुलारी रे मैया!
ममता बिखरे गुहारी रे भैया!
कूटे ला-ला भटकटाई -
सवनवा बहुतै सुहावा
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
बहुतै लड़ैती पिआरी रे मैया!
बिटिया हो दुनिया उजारी रे मैया!
'बज्जी चलो' बैठ काँधे कहत रे!
चिज्जी ले ठेंगा दिखावा
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
तोहरे लिए भए भिखारी रे मैया!
सूनी थी बखरी, उजारी रे मैया!
तार दये दो-दो कुल तैंने
घर भर खों सुरग बनावा
रे भैया! झूम-झूम गावा
२१-३ -२०२२
•••
शारद विनय
*
सरसुति सुरसति सब सुख दैनी,
हंस चढ़त लटकावति बैनी।
बीना थामे सुर गुंजाँय-
कर किरपा कुछ मातु सुनैनी।।
*
सरन तुमाई आय हम, ठुकराओ न मैया!
सिर पै कर धर आसिस, बरसाओ न मैया!
हैं संतान तिहारी सच बिसर गओ जब
भव बाधा ने घेरो सुख बिखर गओ सब
दर पर आ टेर लगाई, अपनाओ न मैया!
सरन तुमाई आय हम, ठुकराओ न मैया!
*
अपढ़-अनाड़ी ठैरे, आ दरसन देओ
इत-उत भटके, ईसें सेवा में लेओ
उबर सके संकट सें ऊ जिसे उबारो
एक आसरो तुमरो, ऐ माँ न बिसारो
ओ माँ! औसर देओ, अंबे अ: मैया!
सरन तुमाई आय हम, ठुकराओ न मैया!
*
आखर सबद न सरगम, जाने सिखला दो
नाद अनाहद तन्नक मैया! सुनवा दो
कलकल-कलरव ब्यापी माँ बीनापानी
भवसागर सें तारो हमखों कल्यानी
चरन सरन स्वीकारो ठुकराओ न दैया!
सरन तुमाई आय हम, ठुकराओ न मैया!
***
दोहा
हिंदू मरते हों मरें, नहीं कहीं भी जिक्र।
काँटा चुभे न अन्य को, नेताजी को फ़िक्र।।
***
मुक्तक कविता दिवस पर
कवि जी! मत बोलिये 'कविता से प्यार है'
भूले से भी मत कहें 'इस पे जां निसार है'
जिद्द अब न कीजिए मुश्किल में जान है
कविता का बाप बहुत सख्त थानेदार है
२१-३-२०२१
***
एक रचना
*
विश्व में कविता समाहित
या कविता में विश्व?
देखें कंकर में शंकर
या शंकर में प्रलयंकर
नाद ताल ध्वनि लय रस मिश्रित
शक्ति-भक्ति अभ्यंकर
अक्षर क्षर का गान करे जब
हँसें उषा सँग सविता
तभी जन्म ले कविता
शब्द अशब्द निशब्द हुए जब
अलंकार साकार हुए सब
बिंब प्रतीक मिथक मिल नर्तित
अर्चित चर्चित कविता हो तब
सत्-शिव का प्रतिमान रचे जब
मन मंदिर की सुषमा
शिव-सुंदर हो कविता
मन ही मन में मन की कहती
पीर मौन रह मन में तहती
नेह नर्मदा कलकल-कलरव
छप्-छपाक् लहरित हो बहती
गिरि-शिखरों से कूद-फलाँगे
उद्धारे जग-पतिता
युग वंदित हो कविता
***
इब्नबतूता
*
इब्नबतूता भूल के जूता
कोरोना से डर भागा
नहीं किसी को शकल दिखाता
घर के अंदर बंद हुआ है
राम राम करता दूरी से
ज्यों पिंजरे में कोई सुआ है
गले मत मिला, हाथ मत मिलो
कुरता सिलता बिन धागा
इब्नबतूता भूल के जूता
कोरोना से डर भागा
सगा न कोई रहा किसी का
हाय न कोई गैर है
सबको पड़े जान के लाले
नहीं किसी की खैर है
सोना चाहे; नींद न आए
आँख न खुलती पर जागा
इब्नबतूता भूल के जूता
कोरोना से डर भागा
***
नवगीत
क्या होएगा?
*
इब्नबतूता
पूछे: 'कूता?
क्या होएगा?'
.
काय को रोना?
मूँ ढँक सोना
खुली आँख भी
सपने बोना
आयसोलेशन
परखे पैशन
दुनिया कमरे का है कोना
येन-केन जो
जोड़ धरा है
सब खोएगा
.
मेहनतकश जो
तन के पक्के
रहे इरादे
जिनके सच्चे
व्यर्थ न भटकें
घर के बाहर
जिनके मन निर्मल
ज्यों बच्चे
बाल नहीं
बाँका होएगा
.
भगता क्योंहै?
डरता क्यों है?
बिन मारे ही
मरता क्यों है?
पैनिक मत कर
हाथ साफ रख
हाथ साफ कर अब मत प्यारे!
वह पाएगा
जो बोएगा
२१-३-२०२०
***
हाइकु गीत
*
आया वसंत
इन्द्रधनुषी हुए
दिशा-दिगंत..
शोभा अनंत
हुए मोहित,
सुर-मानव संत..
*
प्रीत के गीत
गुनगुनाती धूप
बनालो मीत.
जलाते दिए
एक-दूजे के लिए
कामिनी-कंत..
*
पीताभी पर्ण
संभावित जननी
जैसे विवर्ण..
हो हरियाली
मिलेगी खुशहाली
होगे श्रीमंत..
*
चूमता कली
मधुकर गुंजार
लजाती लली..
सूरज हुआ
उषा पर निसार
लाली अनंत..
*
प्रीत की रीत
जानकर न जाने
नीत-अनीत.
क्यों कन्यादान?
'सलिल' वरदान
दें एकदंत..
***
कुण्डलिया
*
कुंडल पहना कान में, कुंडलिनी ने आज
कान न देती, कान पर कुण्डलिनी लट साज
कुण्डलिनी लट साज, राज करती कुंडल पर
मौन कमंडल बैठ, भेजता हाथी को घर
पंजा-साइकिल सर धुनते, गिरते जा दलदल
खिला कमल हँस पड़ा, फन लो तीनों कुंडल
*
रूठी राधा से कहें, इठलाकर घनश्याम
मैंने अपना दिल किया, गोपी तेरे नाम
गोपी तेरे नाम, राधिका बोली जा-जा
काला दिल ले श्याम, निकट मेरे मत आ, जा
झूठा है तू ग्वाल, प्रीत भी तेरी झूठी
ठेंगा दिखा न भाग, खिजाती राधा रूठी
२१-३-२०१७
***
विमर्श : कुछ सवाल-
१. मिथुनरत नर क्रौंच के वध पश्चात क्रौंची के आर्तनाद को सुनकर विश्व की पहली कविता कही गयी। क्या कविता में केवल विलाप और कारुण्य हो, शेष रसों या अनुभूतियाँ के लिये कोई जगह न हो?
२. यदि विलाप से उत्पन्न कविता में आनंद का स्थान हो सकता है तो अभाव और विसंगति प्रधान नवगीत में पर्वजनित अनुभूतियाँ क्यों नहीं हो सकतीं?
३. यदि नवगीत केवल और केवल पीड़ा, दर्द, अभाव की अभिव्यक्ति हेतु है तो क्यों ने उसे शोक गीत कहा जाए?
४. क्या इसका अर्थ यह है कि नवगीत में दर्द के अलावा अन्य अनुभूतियों के लिये कोई स्थान नहीं और उन्हें केंद्र में रखकर रची गयी गीति रचनाओं के लिये कोई नया नाम खोज जाए?
५. यदि नवगीत सिर्फ और सिर्फ दलित और दरिद्र वर्ग की विधा है तो उसमें उस वर्ग में प्रचलित गीति विधाओं कबीरा, ढिमरयाई, आल्हा, बटोही, कजरी, फाग, रास आदि तथा उस वर्ग विशेष में प्रचलित शब्दावली का स्थान क्यों नहीं है?
६. क्या समीक्षा करने का एकाधिकार विचारधारा विशेष के समीक्षकों का है?
७. समीक्षा व्यक्तिगत विचारधारा और आग्रहों के अनुसार हो या रचना के गुण-धर्म पर? क्या समीक्षक अपनी व्यक्तिगत विचारधारा से विपरीत विचारधारा की श्रेष्ठ कृति को सराहे या उसकी निंदा करे?
८. रचनाकार समीक्षक और समीक्षक रचनाकार हो सकता है या नहीं?
९. साहित्य समग्र समाज के कल्याण हेतु है या केवल सर्वहारा वर्ग के अधिकारों का घोषणापत्र है?
***
त्रिभंगी छंद:
*
ऋतु फागुन आये, मस्ती लाये, हर मन भाये, यह मौसम।
अमुआ बौराये, महुआ भाये, टेसू गाये, को मो सम।।
होलिका जलायें, फागें गायें, विधि-हर शारद-रमा मगन-
बौरा सँग गौरा, भूँजें होरा, डमरू बाजे, डिम डिम डम।।
२१-३-२०१३
***
मुक्तिका:
हुई होली, हो रही, होगी हमेशा प्राण-मन की
*
भाल पर सूरज चमकता, नयन आशा से भरे हैं.
मौन अधरों का कहे, हम प्रणयधर्मी पर खरे हैं..
श्वास ने की रास, अनकहनी कहे नथ कुछ कहे बिन.
लालिमा गालों की दहती, फागुनी किंशुक झरे हैं..
चिबुक पर तिल, दिल किसी दिलजले का कुर्बां हुआ है.
भौंह-धनु के नयन-बाणों से न हम आशिक डरे हैं?.
बाजुओं के बंधनों में कसो, जीवन दान दे दो.
केश वल्लरियों में गूथें कुसुम, भँवरे बावरे हैं..
सुर्ख लाल गाल, कुंतल श्याम, चितवन है गुलाबी.
नयन में डोरे नशीले, नयन-बाँके साँवरे हैं..
हुआ इंगित कुछ कहीं से, वर्जना तुमने करी है.
वह न माने लाज-बादल सिंदूरी फिर-फिर घिरे हैं..
पीत होती देह कम्पित, द्वैत पर अद्वैत की जय.
काम था निष्काम, रति की सुरती के पल माहुरे हैं..
हुई होली, हो रही, होगी हमेशा प्राण-मन की.
विदेहित हो देह ने, रंग-बिरंगे सपने करे हैं..
समर्पण की साधना दुष्कर, 'सलिल' होती सहज भी-
अबीरी-अँजुरी करे अर्पण बिना, हम कब टरे हैं..
२१-३-२०११
***
हाइकु मुक्तिका
*
आया वसंत, / इन्द्रधनुषी हुए / दिशा-दिगंत..
शोभा अनंत / हुए मोहित, सुर / मानव संत..
*
प्रीत के गीत / गुनगुनाती धूप / बनालो मीत.
जलाते दिए / एक-दूजे के लिए / कामिनी-कंत..
*
पीताभी पर्ण / संभावित जननी / जैसे विवर्ण..
हो हरियाली / मिलेगी खुशहाली / होगे श्रीमंत..
*
चूमता कली / मधुकर गुंजार / लजाती लली..
सूरज हुआ / उषा पर निसार / लाली अनंत..
*
प्रीत की रीत / जानकार न जाने / नीत-अनीत.
क्यों कन्यादान? / 'सलिल' वरदान / दें एकदंत..
***
मुक्तिका
*
खर्चे अधिक आय है कम.
दिल रोता आँखें हैं नम..
पाला शौक तमाखू का.
बना मौत का फंदा यम्..
जो करता जग उजियारा
उस दीपक के नीचे तम..
सीमाओं की फ़िक्र नहीं.
ठोंक रहे संसद में ख़म..
जब पाया तो खुश न हुए.
खोया तो करते क्यों गम?
टन-टन रुचे न मन्दिर की.
रुचती कोठे की छम-छम..
वीर भोग्या वसुंधरा
'सलिल' रखो हाथों में दम..
***
मुक्तक
मौन वह कहता जिसे आवाज कह पाती नहीं.
क्या क्षितिज से उषा-संध्या मौन हो गाती नहीं.
शोरगुल से शीघ्र ही मन ऊब जाता है 'सलिल'-
निशा जो स्तब्ध हो तो क्या तुम्हें भाती नहीं?
२१-३-२०१०
*

रविवार, 24 सितंबर 2023

पुरोवाक्, हरविंदर सिंह गिल, बाल गीत, पञ्चचामर, नवगीत, मुक्तक, इसरो, पानी

पुरोवाक्
ये पत्थर और ढहती बर्लिन दीवार
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
भारतीय काव्याचार्यों ने काव्य को 'दोष रहित गुण सहित रचना' (मम्मट), 'रमणीय अर्थ प्रतिपादक' (जगन्नाथ), 'लोकोत्तर आनंददाता' (अंबिकादत्त व्यास), रसात्मक वाक्य (विश्वनाथ), सौंदर्ययुक्त रचना (भोज, अभिनव गुप्त), चारुत्वयुक्त (लोचन), अलंकार प्रधान (मेघा विरुद्र, भामह, रुद्रट), रीति प्रधान (वामन), ध्वनिप्रधान (आनंदवर्धन), औचित्यप्रधान (क्षेमेन्द्र), हेतुप्रधान (वाग्भट्ट), भावप्रधान (शारदातनय), रसमय आनंददायी वाक्य (शौद्धोदिनी), अर्थ-गुण-अलंकार सज्जित रसमय वाक्य (केशव मिश्र), आदि कहा है जबकि पश्चिमी विचारकों ने आनंद का सबल साधन (प्लेटो ), ज्ञानवर्धन में सहायक (अरस्तू), प्रबल अनुभूतियों का तात्कालिक बहाव (वर्ड्सवर्थ), सुस्पष्ट संगीत (ड्राइडन) माना है।
हिंदी कवियों में केशव ने केशव ने अलंकार, श्रीपति ने रस, चिंतामणि ने रस-अलंकार-अर्थ, देव ने रस-छंद- अलंकार, सूरति मिश्र ने मनरंजन व रीति, सोमनाथ ने गुण-पिंगल-अलंकार, ठाकुर ने विद्वानों को भाना, प्रतापसाहि ने व्यंग्य-ध्वनि-अलंकार, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने चित्तवृत्तियों का चित्रण, आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ह्रदय मुक्तिसाधना हेतु शब्द विधान, महाकवि जयशंकर प्रसाद ने संकल्पनात्मक अनुभूति, महीयसी महादेवी वर्मा ने ह्रदय की भावनाएँ, सुमित्रानंदन पंत ने परिपूर्ण क्षणों की वाणी, केदारनाथ सिंह ने स्वाद को कंकरियों से बचाना, धूमिल ने शब्द-अदालत के कटघरे में खड़े निर्दोष आदमी का हलफनामा, अज्ञेय ने आदि से अंत तक शब्द कहकर कविता को परिभाषित किया है। वस्तुत: कविता कवि की अनुभूति को अभिव्यक्त कर पाठक तक पहुँचानेवाली रस व लय से युक्त ऐसी भावप्रधान रचना है जिसे सुन-पढ़ कर श्रोता-पाठक के मन में समान अनुभूति का संचार हो।
प्रस्तुत कृति लोकोपयोगी अर्थ प्रतिपादक, गुण-दोषयुक्त, मननीय, रोचक, भाव प्रधान काव्य रचना है।
काव्य हेतु
बाबू गुलाबराय के अनुसार 'काव्य हेतु' काव्य रचना में सहायक साधन हैं। भामह के अनुसार शब्द, छंद, अभिधान, इतिहास कथा, लोक कथा तथा युक्ति कला काव्य साधन हैं। डंडी ने प्रतिभा,ज्ञान व अभ्यास को काव्य हेतु कहा है। वामन, जगन्नाथ व् हेमचंद्र ने प्रतिभा को काव्य का बीज कहा है। रुद्रट के मत में शक्ति, व्युत्पत्ति व अभ्यास को काव्य हेतु हैं। आनंदवर्धन जन्मजात संस्कार रूपी प्रतिभा को काव्य हेतु कहते हैं। राजशेखर ने प्रतिभा के कारयित्री और भावयित्री दो प्रकार तथा ८ काव्य हेतु स्वास्थ्य, प्रतिभा, अभ्यास, भक्ति, वृत्त कथा, निपुणता, स्मृति व अनुराग माने हैं। मम्मट शक्ति, लोकशास्त्र में निपुणता और अभ्यास को काव्य हेतु कहते हैं। कुंतक, महिम भट्ट और मम्मट प्रतिभा को काव्य हेतु मानते हुए उसे शक्ति, तृतीय नेत्र व काव्य बीज कहते हैं। डॉ. नगेंद्र प्रतिभा को काव्य का मूल, ईश्वर प्रदत्त शक्ति और काव्य बीज कहते हैं।
इस काव्य रचना का हेतु मानव हित, इतिहास कथा, मुक्त छंद, वृत्त कथा, मौलिक विश्लेषण तथा अभ्यास है।कवि हरविंदर सिंह गिल की कारयित्री और भावयित्री प्रतिभा के स्वंत्र अध्यवसाय का सुफल है यह कृति।
विषय चयन
सामान्यत: काव्य रचना में रस की उपस्थिति मानते हुए कोमलकांत पदावली तथा रोचक-रसयुक्त विषय चुने जाते हैं। पत्थर और दीवार 'एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा' की कहावत को चरितार्थ करते हैं। ऐसे नीरस विषय का चयन कर उस पर प्रबंध काव्य रचना अपेक्षाकृत दुष्कर कार्य है जिसे हरविंदर जी ने सहजता से पूर्ण किया है। पत्थर महाप्राण निराला का प्रिय पात्र रहा है।
प्रबंध काव्य तुलसीदास में देश दशा वर्णन हो या अहल्या प्रसंग, पाषाण के बिना कैसे पूर्ण होता-
१८
"हनती आँखों की ज्वाला चल,
पाषाण-खण्ड रहता जल-जल,
ऋतु सभी प्रबलतर बदल-बदलकर आते;
वर्षा में पंक-प्रवाहित सरि,
है शीर्ण-काय-कारण हिम अरि;
केवल दुख देकर उदरम्भरि जन जाते।"
२०
"लो चढ़ा तार-लो चढ़ा तार,
पाषाण-खण्ड ये, करो हार,
दे स्पर्श अहल्योद्धार-सार उस जग का;
अन्यथा यहाँ क्या? अन्धकार,
बन्धुर पथ, पंकिल सरि, कगार,
झरने, झाड़ी, कंटक; विहार पशु-खग का!
निराला की प्रसिद्ध रचना 'वह तोड़ती पत्थर' साक्षी है कि पत्थर भी मानव की व्यथा-कथा कह सकता है-
वह तोड़ती पत्थर;
देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर-
वह तोड़ती पत्थर। .....
..... एक क्षण के बाद वह काँपी सुघर,
ढुलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा-
"मैं तोड़ती पत्थर।"
मेरे काव्य संकलन 'मीत मेरे' में एक कविता है 'पाषाण पूजा' जिसमें पत्थर मानवीय संवेदनाओं का वाहक बनकर पाषाण ह्रदय मनुष्य के काम आता है-
ईश्वर!
पूजन तुम्हारा किया जग ने सुमन लेकर
किन्तु मैं पूजन करूँगा पत्थरों से
वही पत्थर जो कि नींवों में लगा है
सही जिसने अकथ पीड़ा, चोट अनगिन
जबकि वह कटा गया था।
मौन था यह सोचकर
दो जून रोटी पायेगा वह
कर परिश्रम काटता जो। ......
.....वही पत्थर ह्रदय जिसका
सुकोमल है बालकों सा
काम आया उस मनुज के
ह्रदय है पाषाण जिसका।
सुहैल अज़ीमाबादी का दिल दोस्तों द्वारा मारे गए पत्थर से घायल है-
पत्थर तो हजारों ने मारे हैं मुझे लेकिन
जो दिल पे लगा आकर एक दोस्त ने मारा है
आम तौर पथराई आँखें, पत्थर दिल, पत्थर पड़ना जैसी अभिव्यक्तियाँ पत्थर को कटघरे में ही खड़ा करती हैं किन्तु 'जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि'। 'पत्थर के सनम तुझे हमने मुहब्बत का खुदा जाना' कहनेवाले शायर के सगोत्री हरविंदर जी ने बर्लिन देश को दो भागों में विभाजित करनेवाली दीवार के टूटने पर गिरते पत्थर को मानवीय संवेदनाओं से जोड़ते हुए इस काव्य कृति की रचना की। कवि हरविंदर पंजाब से हैं, विस्मय यह है कि मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति के लिए उन्होंने 'जलियांवाला बाग़ के कुएँ का पत्थर' न चुनकर सुदूर बर्लिन की दीवार का पत्थर चुना, शायद इसलिए कि उबर्लिनवासियों ने निरंतर विरोधकर सत्तधीशों को उस दीवार को तोड़ने के लिए विवश कर दिया। इससे एक सीख भारत उपमहाद्वीप ने निवासियों को लेना चाहिए जो भारत-पाकिस्तान और भारत-बांगलादेश के बीच काँटों की बाड़ को अधिकाधिक मजबूत किया जाता देख मौन हैं, और उसे मिटाने की बात सोच भी नहीं पा रहे।
'कंकर-कंकर में शंकर' और 'कण-कण में भगवान' देखने की विरासत समेटे भारतीय मनीषा आध्यात्म ही नहीं सर जगदीश चंद्र बसु के विज्ञान सम्मत शोध कार्यों के माध्यम से भी जानती और मानती है कि जो जड़ दिखता है उसमें भी चेतना होती है। ढहती बर्लिन दीवार के ढहते हुए पत्थरों को कवि निर्जीव नहीं चेतन मानते हुए उनमें भविष्य की श्वास-प्रश्वास अनुभव करता है।
ये पत्थर
निर्जीव नहीं है,
अपितु हैं उनमें
मानवता के आनेवाले कल की साँसें।
'कोई पत्थर से ना मारे मेरे दीवाने को' कहती हुई व्यवस्था के विरोध में खड़ी लैला, स्वेच्छा रूपी 'कैस' (मजनू) को पत्थर से बचाने की गुहार हमेशा करती आई है। कवि लैला को जनता, कैस को जनमत और पत्थर को हथियार मानता है -
पत्थर निर्जीव नहीं हैं
ये जन्मदाता हैं आधुनिक हथियारों के।
आदिकाल से मानव
इन नुकीले पत्थरों से
शिकार करता था
मानव और जानवर दोनों का।
कवि पत्थर में भी दिल की धड़कनें सुना पाता है-
इनमें प्यार करनेवाले
दिलों की धड़कनें भी होती हैं।
यदि ऐसा न होता तो
ताजमहल इतना जीवंत न होता।
कठोर पत्थर ही दयानिधान, करुणावतार को मूर्तित कर प्रेरणा स्रोत बनता है-
ये प्रेरणा स्रोत भी हैं
यदि ऐसा न होता
तो चौराहों पर लगी मूर्तियाँ
या स्तंभ और स्मारक
पूज्यनीय और आराधनीय न होते।
गुफा के रूप में आदि मानव के शरणस्थली बने पत्थर, मानव सभ्यता के सबल और सदाबहार सहायक रहे हैं-
इनमें छिपे हैं अनंत उपदेश जीवन के
वर्ण गुफाएँ जो पहाड़ों के गर्भ में
समेटे होती हैं अँधेरा अपने आप में
क्योंकर सार्थक कर देतीं तपस्या को
जो उन संतों ने की थीं।
मनुष्य भाषा, भूषा, लिंग, देश, जाति ही नहीं धरती, पानी और हवा को लेकर भी एक-दूसरे को मरता रहता है किन्तु पत्थर सौहार्द, सद्भाव और सहिष्णुता की मिसाल हैं। ये न तो एक दूसरे पर हमला न करते हैं, न एक दूसरे का शिकार करते हैं-
ये तो नाचते-गाते भी हैं
यदि ऐसा न होता
तो दक्षिण के मंदिरों में बनी
ये पत्थरों की मूर्तियाँ
जीवंत भारत नाट्यम की
मुद्राएँ न होतीं
और आनेवाली पीढ़ियों के लिए
साधना का उत्तम
मंच बनकर न रह पातीं।
पत्थर सीढ़ी के रूप में मानव के उत्थान-पतन में उसका सहारा बनता है। शाला भवन की दीवार बनकर पत्थर ज्ञान का दीपक जलाता है , यही नहीं जब सगे-संबंधी भी साथ छोड़ देते तब भी पत्थर साथ निभाता है -
अंतिम समय में
न ही उसके भाई-बहन और
न ही जीवन साथी
उसका साथ देते हैं।
साथ देते हैं ये पत्थर
जो उसकी कब्र पर सजते हैं।
यहाँ उल्लेख्य है कि गोंडवाने की राजमाता दुर्गावती की शहादत के पश्चात उनकी समाधि पर श्रद्धांजलि के रूप में सफेद कंकर चढ़ाने की परंपरा है।
पत्थर ठोकर लगाकर मनुष्य को आँख खोलकर चलने की सीख और लड़खड़ाने पर सम्हलने का अवसर भी देते हैं।
यदि ऐसा न होता तो
मानव को ठोकर शब्द का
ज्ञान ही नहीं हो पाता
और ठोकर के अभाव में
कोई भी ज्ञान
अपने आप में कभी पूर्ण नहीं होता।
पत्थर अतीत की कहानी कहते हैं, कल को कल तक पहुँचाते हैं, कल से कल के बीच में संपर्क सेतु बनाते हैं-
ये इतिहास के अपनने हैं,
यदि ऐसा न होता तो
कैसे पता चल पाता
मोहनजोदड़ो और हङप्पा का।
पत्थर के बने पाँसों के कारण भारत में महाभारत हुआ-
ये चालें भी चलते हैं ,
यदि ऐसा न होता
चौरस के खेल
में इन पत्थरों से बानी गोटियाँ
दो परिवारों को
जिनमें खून का रिश्ता था
कुरुक्षेत्र में घसीट
न ले जाते और
न होता जन्म
महाभारत का।
द्वार में लगकर पत्थर स्वागत और बिदाई भी करते हैं -
इन पत्थरों से बने द्वार ही
करते हैं स्वागत आनेवाले का
और देते हैं विदाई दुःख भरे दिल से
हर कनेवाले मेहमान को
पर्वत बनकर पत्थर वन प्रांतर और बर्षा का आधार बनते हैं-
यदि पत्थरों से बानी
ये पर्वत की चोटियां
बहती हवाओं के रुख को
महसूस न कर पातीं
तो धरती बरसात के अभाव में
एक रेगिस्तान बनकर रह जाती।
विद्यालय में लगकर पत्थर भविष्य को गढ़ते भी हैं -
स्कूल के प्रांगण में
विचरते बच्चों के जीवन पर
इनकी गहरी निगाह होती है
और उनके एक-एक कदम को
एक गहराई से निहारते हैं
जैसे कोइ सतर्क व्यक्ति
कदमों की आहट से ही
आनेवाले कल को पढ़ लेता है।
पत्थर जीवन मूल्यों की शिक्षा भी देता है, मानव को चेताता है कि हिंसा से किसी समस्या का समाधान होता है -
इतिहास में
खून की स्याही से
आज तक कभी कोई
अपने नाम को को
रौशन नहीं कर पाया
न कर पायेगा।
वह तो मानवता के लिए
बहाये पसीने से ही
स्याही को अक्षरों में
बदलता है।
यह कृति ४० कविताओं का संकलन है, जो बर्लिन को विभाजित करनेवाली ध्वस्त होती दीवार के पत्थर को केंद्र रखकर रची गयी हैं। इस तरह की दो कृतियाँ राम की शक्ति पूजा और तुलसीदास निराला जी ने रची हैं जो श्री राम तथा संत तुलसीदास को केंद्र में रची गयी हैं।
सामान्यत: किसी मानव को केंद्र में रखकर प्रबंध काव्य रचे जाते हैं किंतु कुछ कवियों ने नदी, पर्वत आदि को केंद्र में रखकर प्रबंध काव्य रचे हैं। डॉ. अनंत राम मिश्र अनंत ने नर्मदा, गंगा, यमुना, कृष्णा, कावेरी, चम्बल, सिंधु आदि नदियों पर प्रबंध काव्य रचे हैं।कप्तान हरविंदर सिंह गिल ने इसी पथ पर पग रखते हुए 'ये पत्थर और ढहती बर्लिन दीवार' प्रबंध काव्य की रचना की है। जीवन भर देश की रक्षार्थ हाथों में हथियार थामनेवाले करों में सेवानिवृत्ति के पश्चात् कलम थामकर सामाजिक-पारिवारिक-मानवीय मूल्यों की मशाल जलाकर कप्तान हरविंदर सिंह गिल ने अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। उनकी मौलिक चिंतन वृत्ति आगामी कृतियों के प्रति उत्सुकता जगाती है। इस कृति को निश्चय ही विद्वज्जनों और सामान्य पाठकों से अच्छा प्रतिसाद मिलेगा यह विश्वास है।
२४-९-२०२०
संपर्क : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', संचालक, विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१८३२४४, ईमेल salil.sanjiv@gmail.कॉम

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बाल गीत
*
आओ! खेलें चीटी धप
*
श्रीधर स्वाती जल्दी आओ
संग मंजरी को भी लाओ
मत घर बैठ बाद पछताओ
अंजू झटपट दौड़ लगाओ
तुम संतोष न घर रुक जाओ
अमरनाथ कर देंगे चुप
आओ! खेलें चीटी धप
*
भोर हुई आलोक सुहाया
कर विनोद फिर गीत सुनाया
राजकुमार पुलककर आया
रँग बसंत का सब पर छाया
शोर अनिल ने मचल मचाया
अरुण न भागे देखो छुप
आओ! खेलें चीटी धप
***
भावानुवाद
*
ओ मति-मेधा स्वामिनी, करने दो तव गान।
भाव वृष्टि कर दो बने, पंक्ति-पंक्ति रसवान।।
पंथ प्रकाशित कर सदा, दिखाती हो राह।
दोष हमारे मेटतीं, जिस पल लेतीं चाह।।
मिले प्रेरणा सभी को, लें सब बाधा जीत।
प्रीत तुम्हारी दिन करे, मिटा रात की भीत।।
लोभ मोह मत्सर मिटा, तुम करती हो मुक्त।
प्रगट मैया दर्श दो, नतमस्तक मैं भुक्त।।
***
छंद पञ्चचामर
विधान - जरजरजग
मापनी - १२१ २१२ १२१ २१२ १२१ २
*
कहो-कहो कहाँ चलीं, न रूठना कभी लली
न बोल बोल भूलना, कहा सही तुम्हीं बली
न मोहना दिखा अदा, न घूमना गली-गली
न दूर जा न पास आ, सुवास दे सदा कली
२४.९.२०१९
***
कवित्त
*
राम-राम, श्याम-श्याम भजें, तजें नहीं काम
ऐसे संतों-साधुओं के पास न फटकिए।
रूप-रंग-देह ही हो इष्ट जिन नारियों का
भूलो ऐसे नारियों को संग न मटकिए।।
प्राण से भी ज्यादा जिन्हें प्यारी धन-दौलत हो
ऐसे धन-लोलुपों के साथ न विचरिए।
जोड़-तोड़ अक्षरों की मात्र तुकबन्दी बिठा
भावों-छंदों-रसों हीन कविता न कीजिए।।
***
मान-सम्मान न हो जहाँ, वहाँ जाएँ नहीं
स्नेह-बन्धुत्व के ही नाते ख़ास मानिए।
सुख में भले हो दूर, दुःख में जो साथ रहे
ऐसे इंसान को ही मीत आप जानिए।।
धूप-छाँव-बरसात कहाँ कैसा मौसम हो?
दोष न किसी को भी दें, पहले अनुमानिए।
मुश्किलों से, संकटों से हारना नहीं है यदि
धीरज धरकर जीतने की जिद ठानिए।।
२४-९-२०१६
***
नवगीत
*
कर्म किसी का
क्लेश किसी को
क्यों होता है बोल?
ओ रे अवढरदानी!
अपनी न्याय व्यवस्था तोल।
*
क्या ऊपर भी
आँख मूँदकर
ही होता है न्याय?
काले कोट वहाँ भी
धन ले करा रहे अन्याय?
पेशी दर पेशी
बिकते हैं
बाखर, खेत, मकान?
क्या समर्थ की
मनमानी ही
हुआ न्याय-अभिप्राय?
बहुत ढाँक ली
अब तो थोड़ी
बतला भी दे पोल
*
कथा-प्रसाद-चढ़ोत्री
है क्या
तेरा यही रिवाज़?
जो बेबस को
मारे-कुचले
उसके ही सर ताज?
जनप्रतिनिधि
रौंदें जनमत को
हावी धन्ना सेठ-
श्रम-तकनीक
और उत्पादक
शोषित-भूखे आज
मनरंजन-
तनरंजन पाता
सबसे ऊँचे मोल।
***
मुक्तक
'नहीं चाहिए' कह देने से कब मिटता परिणाम?
कर्म किया जिसने वह निश्चय भोगेगा अंजाम
यथा समय फल जीव भोगता, अन्य न पाते देख
जाने-माने समय गर्त में खोते ज्यों गुमनाम
*
तन धोखा है, मन धोखा है, जीवन धोखा है
श्वास, आस, विश्वास, रास, परिहास न चोखा है
धोखे के कीचड़ में हमको कमल खिलाना है
सब को क्षमा कर सकें जो वह व्यक्ति अनोखा है
*
कान्हा कहता 'करनी का फल सबको मिलता है'
माली नोचे कली-फूल तो, आप न फलता है
सिर घमण्ड का नीचा होता सभी जानते हैं -
छल-फरेब कर व्यक्ति स्वयं ही खुद को छलता है .
*
श्रेष्ठ न खुद को कभी कहा है, मान लिया हूँ नीच
फेंक दूर कर, कभी नहीं आने दें अपने बीच
नफरत पाल किसी से, खुद को नित आहत करना
ऐसा जैसे स्नान-ध्यान कर फिर मल लेना कीच
*
कौन जगत में जिसने केवल अच्छा कार्य किया?
कौन यहाँ है जिसने केवल विष या अमिय पिया?
धूप-छाँव दोनों ही जीवन में भरते हैं रंग
सिर्फ एक हो तो दुनिया में कैसे लगे जिया?
***
नवगीत
*
पुनर्जन्म हर सुबह हो रहा
पुनर्मरण हर रात।
चलो बैठ पल दो पल कर लें
मीत! प्रीत की बात।
*
गौरैयों ने खोल लिए पर
नापें गगन विशाल।
बिजली गिरी बाज पर
उसका जीना हुआ मुहाल।
हमलावर हो लगा रहा है
लुक-छिपकर नित घात
पुनर्जन्म हर सुबह हो रहा
पुनर्मरण हर रात।
*
आ बुहार लें मन की बाखर
कहें न ऊँचे मोल।
तनिक झाँक लें अंतर्मन में
निज करनी लें तोल।
दोष दूसरों के मत देखें
खुद उजले हों तात!
पुनर्जन्म हर सुबह हो रहा
पुनर्मरण हर रात।
*
स्वेद-'सलिल' में करें स्नान नित
पूजें श्रम का दैव।
निर्माणों से ध्वंसों को दें
मिलकर मात सदैव।
भूखे को दें पहले,फिर हम
खाएं रोटी-भात।
पुनर्जन्म हर सुबह हो रहा
पुनर्मरण हर रात।
*
साक्षी समय न हमने मानी
आतंकों से हार।
जैसे को तैसा लौटाएँ
सरहद पर इस बार।
नहीं बात कर बात मानता
जो खाये वह लात।
पुनर्जन्म हर सुबह हो रहा
पुनर्मरण हर रात।
*
लोकतंत्र में लोभतंत्र क्यों
खुद से करें सवाल?
कोशिश कर उत्तर भी खोजें
दें न हँसी में टाल।
रात रहे कितनी भी काली
उसके बाद प्रभात।
पुनर्जन्म हर सुबह हो रहा
पुनर्मरण हर रात।
२४-९-२०१६
***
नवगीत २
इसरो को शाबाशी
किया अनूठा काम
'पैर जमाकर
भू पर
नभ ले लूँ हाथों में'
कहा कभी
न्यूटन ने
सत्य किया
इसरो ने
पैर रखे
धरती पर
नभ छूते अरमान
एक छलाँग लगाई
मंगल पर
है यान
पवनपुत्र के वारिस
काम करें निष्काम
अभियंता-वैज्ञानिक
जाति-पंथ
हैं भिन्न
लेकिन कोई
किसी से
कभी न
होता खिन्न
कर्म-पुजारी
सच्चे
नर हों या हों नारी
समिधा
लगन-समर्पण
देश हुआ आभारी
गहें प्रेरणा हम सब
करें विश्व में नाम
***
नवगीत:
संजीव
*
पानी-पानी
हुए बादल
आदमी की
आँख में
पानी नहीं बाकी
बुआ-दादी
हुईं मैख़ाना
कभी साकी
देखकर
दुर्दशा मनु की
पलट गयी
सहसा छागल
कटे जंगल
लुटे पर्वत
पटे सरवर
तोड़ पत्थर
खोद रेती
दनु हुआ नर
त्रस्त पंछी
देख सिसका
कराहा मादल
जुगाड़े धन
भवन, धरती
रत्न, सत्ता और
खाली हाथ
आखिर में
मरा मनुज पागल
२४-९-२०१४
***
द्विपदी

अकसर अवसर आ मिले, बिन आहट-आवाज़
अनबोले-अनजान पर, अलबेला अंदाज़
२४-९-२०१०
***

शनिवार, 10 जून 2023

लहसुन, स्वास्थ्य, दोहे, पानी, क्षणिका, सरस्वती, शारदा, particle, poetry, मुक्तक

***
Particle
*
O tiny particle! You are really Great.
Are very heavy but without weight.
What is the size?, knowbody know.
From where you come?, where you go.
No caste, no cult, no religion, no race.
Still not loose, always win the race.
O little particle! nobody can destroy.
Nobody can sell, nobody can buy.
You are the ultimate root of universe.
You never bother fate favour or adverse.
world say your are the samllest.
But to me you are the biggest.
10-6-2022
***
मुक्तक
ले लेती है जिंदों की भी अनजाने ही जान मोहब्बत।
दे देती हैं मुर्दों को भी अनजाने ही जान मोहब्बत।।
मरुथल में भी फूल खिलाती, पत्थर फोड़ बहाती झरना-
यही जीव संजीव बनाती, करे प्राण संप्राण मोहब्बत।।...
१०-६-२०२१
***
सरस्वती वंदना
*
भोर भई पट खोल सुरसती
दरसन दे महतारी।
हात जोड़ ठाँड़े हैं सुर-नर
अकल देओ माँ! माँग रए वर
मौन न रह कुछ बोल सुरसती
काहे सुधी बिसारी?
ध्वनि-धुन, स्वर-सुर, वाक् देओ माँ!
मति गति-यति, लय-ताल, छंद गा
विधि-हरि-हर ने रमा-उमा सँग
तोरे भए पुजारी
नेह नरमदा की कलकल तू
पंछी गुंजाते कलरव तू
लोरी, बम्बुलिया, आल्हा तू
मैया! महिमा न्यारी
***
एक रचना
*
अरुण अर्णव लाल-नीला
अहम् तज मन रहे ढीला
स्वार्थ करता लाल-पीला
छंद लिखता नयन गीला
संतुलन चाबी, न ताला
बिना पेंदी का पतीला
नमन मीनाक्षी सुवाचा
गगन में अरविंद साँचा
मुकुल मन ने कथ्य बाँचा
कर रहा जग तीन-पाँचा
मंजरी सज्जित भुआला
पुनीता है शक्ति वर ले
विनीता मति भक्ति वर ले
युक्तिपूर्वक जिंदगी जी
मुक्ति कर कुछ कर्म वर ले
काल का सब जग निवाला
८-६-२०२०
***
वंदना
*
शारद मैया! कैंया लेओ
पल पल करता मन कुछ खटपट
चाहे सुख मिल जाए झटपट
भोला चंचल भाव अँजोरूँ
हूँ संतान तुम्हारी नटखट
आपन किरपा दैया! देओ
शारद मैया! कैंया लेओ
मो खों अच्छर ग्यान करा दे
परमशक्ति सें माँ मिलवा दे
इकनी एक, अनादि अजर 'अ'
दिक् अंबर मैया! पहना दे
किरपा पर कें नीचें सेओ
शारद मैया! कैंया लेओ
अँगुली थामो, राह दिखाओ
कंठ बिराजो, हृदै समाओ
सुर-सरगम-स्वर दे प्रसाद माँ
मत मोखों जादा अजमाओ
नाव 'सलिल' की भव में खेओ
शारद मैया! कैंया लेओ
९-६-२०२०
***
श्वास शारदा माँ बसीं, हैं प्रयास में शक्ति
आस लक्ष्मी माँ मिलीं, कर मन नवधा भक्ति
त्रिगुणा प्रकृति नमन स्वीकारो,
तीन देव की जय बोलो
तीन काल का आत्म मुसाफिर,
कर्म-धर्म मति से तोलो
नमन करो स्वीकार शारदे! नमन करो स्वीकार
सब कुछ तुम पर वार शारदे आया तेरे द्वार
तुम आद्या हो, तुम अनंत हो
तुम्हीं अंत मेरी माता
ध्यान तुम्हारे में खोता जो, वही आप को पा पाता
पाती मन की कोरी इस पर, ॐ लिखूँ झट सिखला दो
सलिल बिंदु हो नेह नर्मदा, झलक पुनीता विख्याता
ग्यान तारिका! कला साधिका!
मन मुकुलित पुष्पा दो माँ!
'मावस को कर शरत् पूर्णिमा,
मैया! वरदा प्रख्याता
शुभदा सुखदा मातु वर्मदा,
देवि धर्मदा जगजननी
वीणा झंकृत कर दो मन की,
जीवन अर्पित हे प्राता
जड़ है जीव करो संजीवित, चेतन हो सत् जान सके
शिव-सुंदर का चित्र गुप्त लख
रहे सदा तुमको ध्याता
१०-६-२०२०
***
क्षणिका
क्यों पूछते हो
राह यह जाती कहाँ है?
आदमी जाते हैं नादां
रास्ते जाते नहीं हैं।*
दिशाएँ दीवार,
छत है आसमान
बेदरो-दीवार
कहिए कौन है?
१०-६-२०१९
***
दोहे पानीदार
पानी तो अनमोल है, मत कह तू बेमोल।
कंठ सूखते ही तुझे, पता लगेगा मोल।।
*
वर्षा-जल संग्रहण कर, बुझे ग्रीष्म में प्यास।
बहा निरर्थक क्यों सहो, रे मानव संत्रास।।
*
सलिल' नीर जल अंबु बिन, कैसे हो आनंद।
कलकल ध्वनि बिन कल कहाँ, कैसे गूँज छंद।।
*
लहर-लहर हँस हहरकर, बन-मिट दे संदेश।
पाया-खोया भूलकर, चिंता मत कर लेश।।
*
पानी मरे न आँख का, रखिए हर दम ध्यान।
सूखे पानी आँख का, यदि कर तुरत निदान।।
*
10.6.2018
***
स्वास्थ्य सलिला
कुछ नुस्खे: छोटे लहसुन के बड़े फायदे.......
___________________________________________________
(इन बीमारियों में है रामबाण)
लहसुन सिर्फ खाने के स्वाद को ही नहीं बढ़ाता बल्कि शरीर के लिए एक औषधी की तरह भी काम करता है।इसमें प्रोटीन, विटामिन, खनिज, लवण और फॉस्फोरस, आयरन व विटामिन ए,बी व सी भी पाए जाते हैं। लहसुन शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाता है। भोजन में किसी भी तरह इसका सेवन करना शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होता है आज हम बताने जा रहे हैं आपको औषधिय गुण से भरपूर लहसुन के कुछ ऐसे ही नुस्खों के बारे में जो नीचे लिखी स्वास्थ्य समस्याओं में रामबाण है।
1-- 100 ग्राम सरसों के तेल में दो ग्राम (आधा चम्मच) अजवाइन के दाने और आठ-दस लहसुन की कुली डालकर धीमी-धीमी आंच पर पकाएं। जब लहसुन और अजवाइन काली हो जाए तब तेल उतारकर ठंडा कर छान लें और बोतल में भर दें। इस तेल को गुनगुना कर इसकी मालिश करने से हर प्रकार का बदन का दर्द दूर हो जाता है।
2-- लहसुन की एक कली छीलकर सुबह एक गिलास पानी से निगल लेने से रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर नियंत्रित रहता है।साथ ही ब्लडप्रेशर भी कंट्रोल में रहता है।
3-- लहसुन डायबिटीज के रोगियों के लिए भी फायदेमंद होता है। यह शुगर के स्तर को नियंत्रित करने में कारगर साबित होता है।
4-- खांसी और टीबी में लहसुन बेहद फायदेमंद है। लहसुन के रस की कुछ बूंदे रुई पर डालकर सूंघने से सर्दी ठीक हो जाती है।
5-- लहसुन दमा के इलाज में कारगर साबित होता है। 30 मिली लीटर दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है। अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है।
6-- लहसुन की दो कलियों को पीसकर उसमें और एक छोटा चम्मच हल्दी पाउडर मिला कर क्रीम बना ले इसे सिर्फ मुहांसों पर लगाएं। मुहांसे साफ हो जाएंगे।
7-- लहसुन की दो कलियां पीसकर एक गिलास दूध में उबाल लें और ठंडा करके सुबह शाम कुछ दिन पीएं दिल से संबंधित बीमारियों में आराम मिलता है।
8-- लहसुन के नियमित सेवन से पेट और भोजन की नली का कैंसर और स्तन कैंसर की सम्भावना कम हो जाती है।
9-- नियमित लहसुन खाने से ब्लडप्रेशर नियमित रहता है। एसीडिटी और गैस्टिक ट्रबल में भी इसका प्रयोग फायदेमंद होता है। दिल की बीमारियों के साथ यह तनाव को भी नियंत्रित करती है।
10-- लहसुन की 5 कलियों को थोड़ा पानी डालकर पीस लें और उसमें 10 ग्राम शहद मिलाकर सुबह -शाम सेवन करें। इस उपाय को करने से सफेद बाल काले हो जाएंगे।
11- यदि रोज नियमित रूप से लहसुन की पाँच कलियाँ खाई जाएँ तो हृदय संबंधी रोग होने की संभावना में कमी आती है। इसको पीसकर त्वचा पर लेप करने से विषैले कीड़ों के काटने या डंक मारने से होने वाली जलन कम हो जाती है।
12- जुकाम और सर्दी में तो यह रामबाण की तरह काम करता है। पाँच साल तक के बच्चों में होने वाले प्रॉयमरी कॉम्प्लेक्स में यह बहुत फायदा करता है। लहसुन को दूध में उबालकर पिलाने से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। लहसुन की कलियों को आग में भून कर खिलाने से बच्चों की साँस चलने की तकलीफ पर काफी काबू पाया जा सकता है।
13- लहसुन गठिया और अन्य जोड़ों के रोग में भी लहसुन का सेवन बहुत ही लाभदायक है।
लहसुन की बदबू-
अगर आपको लहसुन की गंध पसंद नहीं है कारण मुंह से बदबू आती है। मगर लहसुन खाना भी जरूरी है तो रोजमर्रा के लिये आप लहसुन को छीलकर या पीसकर दही में मिलाकर खाये तो आपके मुंह से बदबू नहीं आयेगी। लहसुन खाने के बाद इसकी बदबू से बचना है तो जरा सा गुड़ और सूखा धनिया मिलाकर मुंह में डालकर चूसें कुछ देर तक, बदबू बिल्कुल निकल जायेगी।
***

शुक्रवार, 10 जून 2022

सरस्वती, दोहे, पानी, क्षणिका, poetry, particle, मुक्तक,

Particle 
*
O tiny particle! You are really Great.
Are very heavy but without weight.

What is the size?, knowbody know.
From where you come?, where you go.

No caste, no cult, no  religion, no race.
Still not loose, always win the race.

O little particle! nobody can destroy.
Nobody can sell, nobody can buy.

You are the ultimate root of universe.
You never bother fate favour or adverse.

world say your are the samllest.
But to me you are the biggest.
10-6-2022
***
मुक्तक
ले लेती है जिंदों की भी अनजाने ही जान मोहब्बत।
दे देती हैं मुर्दों को भी अनजाने ही जान मोहब्बत।।
मरुथल में भी फूल खिलाती, पत्थर फोड़ बहाती झरना-
यही जीव संजीव बनाती, करे प्राण संप्राण मोहब्बत।।
१०-६-२०२१
***
प्रार्थना
भोर भई पट खोल सुरसती
दरसन दे महतारी।
हात जोड़ ठाँड़े हैं सुर-नर
अकल देओ माँ! माँग रए वर
मौन न रह कुछ बोल सुरसती
काहे सुधी बिसारी?
ध्वनि-धुन, स्वर-सुर, वाक् देओ माँ!
मति गति-यति, लय-ताल, छंद गा
विधि-हरि-हर ने रमा-उमा सँग
तोरे भए पुजारी
नेह नरमदा की कलकल तू
पंछी गुंजाते कलरव तू
लोरी, बम्बुलिया, आल्हा तू
मैया! महिमा न्यारी
८-६-२०२०
***
श्वास शारदा माँ बसीं, हैं प्रयास में शक्ति
आस लक्ष्मी माँ मिलीं, कर मन नवधा भक्ति
त्रिगुणा प्रकृति नमन स्वीकारो,
तीन देव की जय बोलो
तीन काल का आत्म मुसाफिर,
कर्म-धर्म मति से तोलो
नमन करो स्वीकार शारदे! नमन करो स्वीकार
सब कुछ तुम पर वार शारदे आया तेरे द्वार
तुम आद्या हो, तुम अनंत हो
तुम्हीं अंत मेरी माता
ध्यान तुम्हारे में खोता जो, वही आप को पा पाता
पाती मन की कोरी इस पर, ॐ लिखूँ झट सिखला दो
सलिल बिंदु हो नेह नर्मदा, झलक पुनीता विख्याता
ग्यान तारिका! कला साधिका!
मन मुकुलित पुष्पा दो माँ!
'मावस को कर शरत् पूर्णिमा,
मैया! वरदा प्रख्याता
शुभदा सुखदा मातु वर्मदा,
देवि धर्मदा जगजननी
वीणा झंकृत कर दो मन की,
जीवन अर्पित हे प्राता
जड़ है जीव करो संजीवित, चेतन हो सत् जान सके
शिव-सुंदर का चित्र गुप्त लख
रहे सदा तुमको ध्याता
१०-६-२०२०
***
क्षणिका
क्यों पूछते हो
राह यह जाती कहाँ है?
आदमी जाते हैं नादां
रास्ते जाते नहीं हैं।
***
दोहे पानीदार
पानी तो अनमोल है, मत कह तू बेमोल।
कंठ सूखते ही तुझे, पता लगेगा मोल।।
*
वर्षा-जल संग्रहण कर, बुझे ग्रीष्म में प्यास।
बहा निरर्थक क्यों सहो, रे मानव संत्रास।।
*
सलिल' नीर जल अंबु बिन, कैसे हो आनंद।
कलकल ध्वनि बिन कल कहाँ, कैसे गूँज छंद।।
*
लहर-लहर हँस हहरकर, बन-मिट दे संदेश।
पाया-खोया भूलकर, चिंता मत कर लेश।।
*
पानी मरे न आँख का, रखिए हर दम ध्यान।
सूखे पानी आँख का, यदि कर तुरत निदान।।
१०-६-२०१८
***

मंगलवार, 23 जून 2020

मुक्तिका: आँख का पानी

मुक्तिका:
आँख का पानी
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
आजकल दुर्लभ हुआ है आँख का पानी.
बंद पिंजरे का सुआ है आँख का पानी..
.
शिलाओं को खोदकर नाखून टूटे हैं..
आस का सूखा कुंआ है आँख का पानी..
.
द्रौपदी को मिल गया है यह बिना माँगे.
धर्मराजों का जुआ है आँख का पानी..
.
मेमने को जिबह करता शेर जब चाहे.
बिना कारण का खुआ है आँख का पानी..
.
हजारों की मौत भी उनको सियासत है.
देख बिन बोले चुआ है आँख का पानी..
.
किया मुजरा, मिला नजराना न तो बोले-
जहन्नुम जाए मुआ! खो आँख का पानी..
.
देवकी राधा यशोदा कभी विदुरानी.
रुक्मिणी कुंती बुआ है आँख का पानी..
.
देख चन्दा याद आतीं रोटियाँ जिनको
दिखे सूरज में पुआ बन आँख का पानी..
.
भजन प्रवचन सबद साखी साधना बानी
'सलिल' पुरखों की दुआ है आँख का पानी..
*******************************************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
***
२३-६-२०११

मुक्तिका: आँख का पानी

मुक्तिका:
आँख का पानी
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
आजकल दुर्लभ हुआ है आँख का पानी.
बंद पिंजरे का सुआ है आँख का पानी..
शिलाओं को खोदकर नाखून टूटे हैं..
आस का सूखा कुंआ है आँख का पानी..
द्रौपदी को मिल गया है यह बिना माँगे.
धर्मराजों का जुआ है आँख का पानी..
मेमने को जिबह करता शेर जब चाहे.
बिना कारण का खुआ है आँख का पानी..

मुक्तिका आँख का पानी

मुक्तिका 
आँख का पानी 
*
हजारों की मौत भी उनको सियासत है.
देख बिन बोले चुआ है आँख का पानी..
किया मुजरा, मिला नजराना न तो बोले-
जहन्नुम जाए मुआ! खो आँख का पानी..
देवकी राधा यशोदा कभी विदुरानी.
रुक्मिणी कुंती बुआ आँख का पानी..
देख चन्दा याद आतीं रोटियाँ जिनको
दिखे सूरज में पुआ बन आँख का पानी..
भजन प्रवचन सबद साखी साधना बानी
'सलिल' पुरखों की दुआ है आँख का पानी..
*******************************************

गुरुवार, 26 जुलाई 2018

dwipadi: pani

द्विपदी 
पानी  
*
न बारिश तुम इसे समझो, गिरा है आँख से पानी. 
जो आहों का असर होगा, कहाँ जाओगे ये सोचो.

शुक्रवार, 8 जून 2018

दोहे पानीदार

गुरुवार, 21 जुलाई 2016

नवगीत

दोहा - सोरठा गीत
पानी की प्राचीर
*
आओ! मिलकर बचाएँ,
पानी की प्राचीर।
पीर, बाढ़ - सूखा जनित 
हर, कर दे बे-पीर।।
*
रखें बावड़ी साफ़,
गहरा कर हर कूप को।
उन्हें न करिये माफ़,
जो जल-स्रोत मिटा रहे।।

चेतें, प्रकृति का कहीं,
कहर न हो, चुक धीर।
आओ! मिलकर बचाएँ,
पानी की प्राचीर।।
*
सकें मछलियाँ नाच,
पोखर - ताल भरे रहें।
प्रणय पत्रिका बाँच,
दादुर कजरी गा सकें।। 

मेघदूत हर गाँव को,
दे बारिश का नीर।
आओ! मिलकर बचाएँ,
पानी की प्राचीर।।
*
पर्वत - खेत  - पठार पर
हरियाली हो खूब।
पवन बजाए ढोलकें,
हँसी - ख़ुशी में डूब।।

चीर अशिक्षा - वक्ष दे ,
जन शिक्षा का तीर।
आओ मिलकर बचाएँ,
पानी की प्राचीर।।
***
२०-७-२०१६
-----------------

navgeet

सोरठा - दोहा गीत
संबंधों की नाव
*
संबंधों की नाव,
पानी - पानी हो रही।
अनचाहा अलगाव,
नदी-नाव-पतवार में।।
*
स्नेह-सरोवर सूखते,
बाकी गन्दी कीच।
राजहंस परित्यक्त हैं,
पूजते कौए नीच।।

नहीं झील का चाव,
सिसक रहे पोखर दुखी।
संबंधों की नाव,
पानी - पानी हो रही।।
*
कुएँ - बावली में नहीं,
शेष रहा विश्वास।
निर्झर आवारा हुआ,
भटके ले निश्वास।।

घाट घात कर मौन,
दादुर - पीड़ा अनकही।
संबंधों की नाव,
पानी - पानी हो रही।।
*
ताल - तलैया से जुदा,
देकर तीन तलाक।
जलप्लावन ने कर दिया,
चैनो - अमन हलाक।।

गिरि खोदे, वन काट
मानव ने आफत गही।
संबंधों की नाव,
पानी - पानी हो रही।।  
 ***
२०-७-२०१६
---------------

मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

चित्र पर कविता पानी


चित्र पर कविता%
निम्न चित्र को देखिए& पानी के लिए संघर्ष] नारियों का जीवट] पत्थर फोड़ कर निकलता पानी आदि विविध आयाम समेटे चित्र पर अपने मनोभावों को केंद्रित कीजिए और लोहा मनवाइए अपनी कलम के पानी का ---




पानी पानी हो रहा] पानी देख प्रयास-
श्रम के चरण पखारता] जी में भरे हुलास--

कोशिश पानीदार है]  जीवट का पर्याय-
एक साथ मिल लिख रही]  नारी नव अध्याय--

आँखों में पानी हया] लाज] शर्म] संकोच-
आँखों का पानी न ले ] और न दे उत्कोच--

आँखों से पानी गिरे] धरती जाए डोल-
पानी उतरे तो नहीं] मोती का कुछ मोल--

पानी का सानी नहीं]  रखिए  सलिल  संभाल-
फोड़ वक्ष पाषाण का]  बहे उठाकर भाल--

नभ  गिरि  भू  सागर किए]  जब पानी ने एक-
त्राहि त्राहि जग कर उठें]  रक्षा करे विवेक--

अनाचार जाता नहीं] क्यों पानी में डूब-
सदाचार क्यों दूबवत]  जड़ न जमाता खूब--

बिन अमृत भी ज़िंदगी] खुशियों का आगार-
निराकार पानी बिना हो जाता साकार--

मटकी धर मटकी कमर] लचकी मटकी साथ-
हाथ लगाने जो नहीं] आते रहें अनाथ--

काई-फिसलन मानतीं- संयम&सम्मुख हार-
अंगद सा पग जमाकर मुस्काती है नार--

पानी भू के गर्भ में] छिपा इस तरह आज-
करे सासरा तज बहू] ज्यों मैके में राज--

 &&&&&&&&
सन्तोष कुमार सिंह
 
चित्र पर कविता
कहो नहीं हमको अबलायें हम सबलायें हैं।
गिरिवर के रिसते जल से घट भर-भर लायें हैं।।
 
जीवन के इस महायज्ञ में हमको श्रम करना।
टेढ़े-मेड़े पथ पर हमको, निशदिन है चढ़ना।।
 
जीवन की हर डगर कठिन पर मानें हार नहीं।
अगर होंसला मंजिल पाना है दुश्वार नहीं।।
 
जल भरते या कहीं और भी जब-जब हम भेंटे।
एक दूसरे से सुख-दुःख की चर्चा कर लेते।।
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
मधु 
 
पानी की एक बूँद को तरसे  नर और नार 
जीवन और मरण के बीच पानी की दौड़ 
न्याय ये कौनसा  किस ईश्वर का काम 
कही बहता मिटटी में पानी और कहीं 
मिटटी निचोड़ , बचाए प्राणों की प्यास 
 
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कमल




 दोहे
शिला चीर पानी बहे बुझे सभी की प्यास
यह पनघट नित घट भरे फिरे न कोइ उदास
कठिन परिश्रमशील है गिरि का नारि समाज
घर तक दूरी तय करें  घट भर सर पर साध
सखियाँ मिल बतिया रहीं हुलसित पनघट तीर
दुःख  सुख बाँटें साथ मिल बहे  चरण तल नीर
ऊंची  नीची चट्टाने दुर्गम पहाड़ की राह
माथे धरतीं चरण वे, देखि नारि उत्साह
कई अभावों से घिरा  इनका जीवन क्रम
चित्र यही चित्रित करे धन्य है इनका श्रम
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