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बुधवार, 27 जनवरी 2016

laghukatha

लघुकथा-
तिरंगा
*
माँ इसे फेंकने को क्यों कह रही हो? बताओ न इसे कहाँ रखूँ? शिक्षक कह रहे थे इसे सबसे ऊपर रखना होता है। तुम न तो पूजा में रखने दे रही हो, न बैठक में, न खाने की मेज पर, न ड्रेसिंग टेबल पर फिर कहाँ रखूँ?
बच्चा बार-बार पूछकर झुंझला रहा था.… इतने में कर्कश आवाज़ आयी 'कह तो दिया फेंक दे, सुनाता है कि लगाऊँ दो तमाचे?'
अवाक् बच्चा सुबकते हुए बोला 'तुम बड़े लोग गंदे हो। सही बात बताते नहीं और डाँटते हो, तुमसे बात नहीं करूंगा'। सुबकते-सुबकते कब आँख लगी पता ही नहीं चला उसके सीने से अब भी लगा था तिरंगा।
***

laghukatha

लघुकथा - 
अपनों की गुलामी 
*
इस स्वतंत्र देश से तो गुलाम भारत ही ठीक था। हम-तुम एक साथ तो रह पाते थे। तब मेरे लिये तुम लाठी-गोली भी हँसकर खा लेते थे। तुम्हारे साथ खेत, खलिहान, जंगल, पहाड़, महल, झोपड़ी हर जगह मैं रह पाता था। बच्चे, बूढ़े, महिला सभी का सान्निन्ध्य पाकर मेरा सर गर्व से ऊँचा हो जाता था।

देश आज़ाद होने के पहले जो अफसर मेरे साये से भी डरकर मुझसे नफरत करते थे उन्हीं ने मुझे नियम-कायदों में कैद कर अपना गुलाम बना लिया। तुम आज़ाद हो गये, मैं गुलाम हो गया।

अब तुम मुझे अपने घर, खेत, वाहन में फहरा नहीं पाते, गलती से उल्टा लगा लो तो तुम्हें सजा हो जाती है। मजबूरी में तम्हें अपने वस्त्रों और सामानों पर विदेशों के झंडे लगाये देखता हूँ तो मेरा मन रोता है, ऐसी कैसी स्वतंत्रता कि स्वतंत्र नागरिक को अपना झंडा फहराने में भी डरना पड़े।

काश! कोई मुझे दिला दे मुक्ति अपनों की गुलामी से।
***

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2014

geet: fahra naheen tiranga -sanjiv

गीत:
फहरा नहीं तिरंगा...
संजीव
*
झुका न शासन-नेत्र शर्म से सुन लें हिंदुस्तान में
फहरा नहीं तिरंगा सोची खेलों के मैदान में...
*
आज़ादी के संघर्षों में जन-गण का हथियार था
शीश चढ़ाने हेतु समुत्सुक लोगों का प्रतिकार था
आज़ादी के बाद तिरंगा आम जनों से दूर हुआ
शासन न्याय प्रशासन गूंगा अँधा बहरा  क्रूर हुआ
झंडा एक्ट बनाकर झंडा ही जनगण से दूर किया
बुझा न पाये लेकिन चाहा बुझे तिरंगा-प्रेम-दिया
नेता-अफसर स्वार्थ साधते खेलों के शमशान में...
*
कमर तोड़ते कर आरोपित कर न घटाते खर्च हैं
अफसर-नेताशाही-भर्रा लोकतंत्र का मर्ज़ हैं
भत्ता नहीं खिलाड़ी खातिर, अफसर करता मौज है
खेल संघ या परम भ्रष्ट नेता-अफसर की फ़ौज है
नूरा कुश्ती मैच करा जनता को ठगते रहे सभी
हुए जाँच में चोर सिद्ध पर शर्म न आयी इन्हें कभी
बिका-बिछा है पत्रकार भी भ्रष्टों के सम्मान में...
*
ससुर पुत्र दामाद पुत्रवधु बेटी पीछे कोई नहीं
खेले नहीं कभी खेलों के आज मसीहा बने वही
लगन परिश्रम त्याग समर्पण तकनीकों की पूछ नहीं
मौज मजा मस्ती अधनंगापन की बिक्री खूब हुई
मुन्नी-शीला बेच जवानी गंदी बात करें खो होश
संत पादरी मुल्ला ग्रंथी बहे भोग में किसका दोष?
खुद के दोष भुला कर ढूँढें दोष 'सलिल' भगवान में...
*

facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

शनिवार, 25 जनवरी 2014

gantantra divas -sanjiv

ध्वजा तिरंगी...

संजीव 'सलिल'
*
ध्वजा तिरंगी मात्र न झंडा
जन गण का अभिमान है.
कभी न किंचित झुकने देंगे,
बस इतना अरमान है...
*
वीर शहीदों के वारिस हम,
जान हथेली पर लेकर
बलिदानों का पन्थ गहेंगे,
राष्ट्र-शत्रु की बलि देकर.
सारे जग को दिखला देंगे
भारत देश महान है...
*
रिश्वत-दुराचार दानव को,
अनुशासन से मारेंगे.
पौधारोपण, जल-संरक्षण,
जीवन नया निखारेंगे.
श्रम-कौशल को मिले प्रतिष्ठा,
कण-कण में भगवान है...
*
हिंदी ही होगी जग-वाणी,
यह अपना संकल्प है.
'सलिल' योग्यता अवसर पाए,
दूजा नहीं विकल्प है.
सारी दुनिया कहे हर्ष से,
भारत स्वर्ग समान है...
****

शनिवार, 26 जनवरी 2013

गणतंत्र दिवस पर विशेष गीत: ध्वजा तिरंगी... संजीव 'सलिल'

गणतंत्र दिवस पर विशेष गीत:
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ध्वजा तिरंगी...

संजीव 'सलिल'
*
ध्वजा तिरंगी मात्र न झंडा
जन गण का अभिमान है.
कभी न किंचित झुकने देंगे,
बस इतना अरमान है...
*
वीर शहीदों के वारिस हम,
जान हथेली पर लेकर
बलिदानों का पन्थ गहेंगे,
राष्ट्र-शत्रु की बलि देकर.
सरे जग को दिखला देंगे
भारत देश महान है...
*
रिश्वत-दुराचार दानव को,
अनुशासन से मारेंगे.
पौधारोपण, जल-संरक्षण,
जीवन नया निखारेंगे.
श्रम-कौशल को मिले प्रतिष्ठा,
कण-कण में भगवान है...
*
हिंदी ही होगी जग-वाणी,
यह अपना संकल्प है.
'सलिल' योग्यता अवसर पाए,
दूजा नहीं विकल्प है.
सारी दुनिया कहे हर्ष से,
भारत स्वर्ग समान है...
****

सोमवार, 23 मई 2011

एक षटपदी (कुण्डलिनी): भारत के गुण गाइए... संजीव 'सलिल'

एक षटपदी (कुण्डलिनी):                                                   
भारत के गुण गाइए...
संजीव 'सलिल'
*
भारत के गुण गाइए, ध्वजा तिरंगी थाम.
सब जग पर छा जाइये, सब जन एक समान..
सब जन एक समान प्रगति का चक्र चलायें.
दंड थाम उद्दंड शत्रु को पथ पढ़ायें..
बलिदानी केसरिया की जयकार करें शत.
हरियाली सुख, शांति श्वेत, मुस्काए भारत..
********

रविवार, 24 अप्रैल 2011

एक षटपदी : भारत के गुण गाइए ---संजीव 'सलिल'

एक षटपदी :



संजीव 'सलिल'
*
भारत के गुण गाइए, ध्वजा तिरंगी थाम.
सब जग पर छा जाइये, बढ़े देख का नाम ..
बढ़े देख का नाम प्रगति का चक्र चलायें.
दंड थाम उद्दंड शत्रु को पथ पढ़ायें..
बलिदानी केसरिया की जयकार करें शत.
हरियाली सुख, शांति श्वेत, मुस्काए भारत..


********

शनिवार, 14 अगस्त 2010

स्वाधीनता दिवस पर विशेष रचना: गीत भारत माँ को नमन करें.... संजीव 'सलिल'

स्वाधीनता दिवस पर विशेष रचना:

गीत

भारत माँ को नमन करें....

संजीव 'सलिल'
*












*
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें.
ध्वजा तिरंगी मिल फहराएँ
इस धरती को चमन करें.....
*
नेह नर्मदा अवगाहन कर
राष्ट्र-देव का आवाहन कर
बलिदानी फागुन पावन कर
अरमानी सावन भावन कर

 राग-द्वेष को दूर हटायें
एक-नेक बन, अमन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*
अंतर में अब रहे न अंतर
एक्य कथा लिख दे मन्वन्तर
श्रम-ताबीज़, लगन का मन्तर
भेद मिटाने मारें मंतर

सद्भावों की करें साधना
सारे जग को स्वजन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*
काम करें निष्काम भाव से
श्रृद्धा-निष्ठा, प्रेम-चाव से
रुके न पग अवसर अभाव से
बैर-द्वेष तज दें स्वभाव से

'जन-गण-मन' गा नभ गुंजा दें
निर्मल पर्यावरण करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*
जल-रक्षण कर पुण्य कमायें
पौध लगायें, वृक्ष बचायें
नदियाँ-झरने गान सुनायें
पंछी कलरव कर इठलायें

भवन-सेतु-पथ सुदृढ़ बनाकर
सबसे आगे वतन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*
शेष न अपना काम रखेंगे
साध्य न केवल दाम रखेंगे
मन-मन्दिर निष्काम रखेंगे
अपना नाम अनाम रखेंगे

सुख हो भू पर अधिक स्वर्ग से
'सलिल' समर्पित जतन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*******

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com