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गुरुवार, 17 जून 2021

बाल गीत: पाखी की बिल्ली

बाल गीत:
पाखी की बिल्ली
संजीव 'सलिल'
*
*
पाखी ने बिल्ली पाली.
सौंपी घर की रखवाली..
फिर पाखी बाज़ार गयी.
लाये किताबें नयी-नयी
तनिक देर जागी बिल्ली.
हुई तबीयत फिर ढिल्ली..
लगी ऊंघने फिर सोयी.
सुख सपनों में थी खोयी..
मिट्ठू ने अवसर पाया.
गेंद उठाकर ले आया..
गेंद नचाना मन भाया.
निज करतब पर इठलाया..
घर में चूहा आया एक.
नहीं इरादे उसके नेक..
चुरा मिठाई खाऊँगा.
ऊधम खूब मचाऊँगा..
आहट सुन बिल्ली जागी.
चूहे के पीछे भागी..
झट चूहे को जा पकड़ा.
भागा चूहा दे झटका..
बिल्ली खीझी, खिसियाई.
मन ही मन में पछताई..
१७-६-२०१२ 
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रविवार, 17 जून 2012

बाल गीत: पाखी की बिल्ली --संजीव 'सलिल'

बाल गीत:
पाखी की बिल्ली
संजीव 'सलिल'
*

 
 




*
पाखी ने बिल्ली पाली.
सौंपी घर की रखवाली..

फिर पाखी बाज़ार गयी.
लाये किताबें नयी-नयी



तनिक देर जागी बिल्ली.
हुई तबीयत फिर ढिल्ली..

लगी ऊंघने फिर सोयी.
सुख सपनों में थी खोयी..



मिट्ठू ने अवसर पाया.
गेंद उठाकर ले आया..

गेंद नचाना मन भाया.
निज करतब पर इठलाया..



घर में चूहा आया एक.
नहीं इरादे उसके नेक..

चुरा मिठाई खाऊँगा. 
ऊधम खूब मचाऊँगा..



आहट सुन बिल्ली जागी.
चूहे के पीछे भागी..

झट चूहे को जा पकड़ा.
भागा चूहा दे झटका..



बिल्ली खीझी, खिसियाई.
मन ही मन में पछताई..




अगर न दिन में सो जाती.
खो अवसर ना पछताती.

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