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गुरुवार, 7 मार्च 2024

७ मार्च, नवगीत, बोध कथा, तारा माता, शिशु गीत, मुक्तिका, जोगीरा सा रा, गजल

सलिल सृजन ७ मार्च
*
स्मरण युगतुलसी
मुक्तक
युगतुलसी की चरण शरण गह।
मानस मंथन कर सत्-शिव गह।।
सुंदरतम हो जीवन तब जब-
राम भगति पथ हनुमत सह गह।।
तुलसी प्रिय करुणानिधान को।
हुलसी सुत जीवन विधान को,
जोड़े रत्ना सह, वह तोड़े-
तब पाते हनुमत महान को।।
हुलसी शीघ्र न साथ छोड़ती,
रत्ना अगर न राह मोड़ती,
तुलसी युगतुलसी को कैसे-
राम भगति तब कहें मोहती।।
७.३.२०२४
•••
ग़ज़ल
काफिया- आ
रदीफ़ - समझें
*
हम तो शोलों से न गुजरेंगे, न सीता समझें २६
हम रहे मौन न बोलें हैं, तो न रीता समझें

खड़ा दर पर जो हुआ आपके भिक्षा लेने
सदा स्वागत ना करें आप फजीता समझें

कोई अपना नहीं इस दौर में कड़वा सच है
नेक नेकी ना सके पा, गया बीता समझें

जामे-उलफ़त न मिला आज तलक दुनिया में
आबे जमजम की करें चाह, न तीता समझें

कोशिशें जारी रखें मंज़िलें कदम चूमें
हार मानें न कभी और न जीता समझें
***
सोरठा मुक्तक
*
सुख देना ले सीख, रहें दमकते सभी मुख।
दुख से दुखी न दीख, जग जाने पा रहा सुख।।
नहीं गया कुछ साथ, जोड़-घटा मत कुछ यहाँ-
परपीड़ा सिर-माथ, अच्छा है बँट जाए दुख।।
***
सॉनेट
तेरे बिना भी क्या जीना
*
तेरे बिना भी क्या जीना?
ओ साथी रे! दूर मत जा,
मत बरज पास मत आ,
जिंदगी साथ हमें जीना।
विपद से लड़ें तान सीना,
रहे सदा सुर में सुर मिला,
तनिक नहीं मन में हो गिला,
भले कभी विष पड़े पीना।
सहना है धूप-छाँव साथ,
सुख-दुख लें साथ-साथ बाँट,
सिर-माथे विराजें हुजूर!
रखना है हाथों में हाथ,
दूर करें कंटक सब छाँट,
अंतिम दम तक न रहें दूर।
***
तारकेश्वर महादेव आयरलैंड
*
आयरलैंड में तारा हिल्स पर यह ४००० से अधिक वर्ष पुराना शिवलिंग स्थापित है। सनातन धर्म में तारा देवी को श्मशान की देवी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय भगवान शिव ने विषपान किया था, जिससे उनके शरीर में असहनीय हो रही थी। शिव जी की पीड़ा दूर करने के लिए माँ काली ने तारा देवी का रूप धरण कर भगवान शंकर को स्तनपान कराया, तब शिव जी को विष की जलन से मुक्ति मिली। माता तारा तंत्र की देवी मान्य हैं। तांत्रिक साधना करने वाले तारा माता के भक्त कहे जाते हैं। चैत्र मास की नवमी तिथि और शुक्ल पक्ष के दिन तारा देवी की तंत्र साधना करना सबसे ज्यादा फलकारी माना जाता है।

भगवान शिव की पत्नी माता सती राजा दक्ष की पुत्रीं थी। उनकी बहन थीं देवी तारा। महान देवी तारा नकी पूजा हिंदू और बौद्ध दोनों धर्मों में होती हैं। भव से तारनेवाली होने के कारण इन्हें तारा देवी कहा जाना जाता है। भारत में शिमला में तारा देवी का जंगल है।

प्राचीन काल में महर्षि वशिष्ठ ने देवी तारा उपासना कर सिद्धियां हासिल की थी। बीरभूम पश्चिम बंगाल में तांत्रिक पीठ तारापीठ सर्व मान्य है। देवी तारा के तीन नयन थे। ऐसा माना जाता है कि यहां देवी तारा के नयन गिरे थे, इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता है।

तारा देवी का दूसरा सर्वाधिक प्रसिद्ध मंदिर हिमाचल की राजधानी शिमला से लगभग १३ किलोमीटर दूर शोधी में तारा पर्वत पर है। यहाँ हिंदुओं के साथ तिब्बती बौद्ध धर्म के लोग भी पूजा करतेते हैं। तारा देवी के तीन स्वरू तारा, एकजटा और नील सरस्वती है।
माघ नवरात्रि में दूसरे दिन दस महाविद्याओं की दूसरी विद्या माँ तारा की पूजा तंत्र शक्ति प्राप्ति के लिए की जाती है।

आयरलैंड में ईसाई पूर्व काल में यहाँ मूर्ति पूजक रहते थे। लगभग २५०० वर्ष पूर्व तक आयरलैंड के सभी राजाओं का राज्याभिषेक यहीं इन्हीं के आशीर्वाद से होता था। ५०० ए. डी. में यह परंपरा बंद कर दी गई। कुछ साल पहले आयरलैंड के रेडिकल समूह ने इसे क्षतिग्रस्त करने का प्रयास किया था। क्या वर्तमान भारत सरकार इस तीर्थ स्थान की सुरक्षा और विकास के लिए कुछ करेगी?
***
बोध कथा
*
पुत्र द्वारा बार बार गलती करने पर पिता ने सीख देने के लिए एक थप्पड़ लगा दिया। बाद में सोच कि व्यर्थ ही मार दिया, एक बार और समझाता तो शायद वह समझ जाता। बेटे के आहत मन को सहलाने के लिए पिता ने उसे 'सॉरी' कह दिया।

बेटे ने एक कागज उठाया और उसे तोड़-मरोड़कर फिर सीधा फ़ाइल दिया और बोला जैसे यह कागज पहले की तरह नहीं हो सकता, वैसे ही चोट खाए मन की पीड़ा 'सॉरी' से दूर नहीं होती।

पिता ने बेटे को बहुत दिनों से उपयोग न हुए स्कूटर की चाबी देकर उसे स्टार्ट करने को कहा। बेटे ने स्कूटर में कुछ किक लगाई, स्कूटर न चलने पर वापिस आ गया।

पिता ने चाबी वापिस लेकर लगातार कुछ किक लगाईं तो स्कूटर स्टार्ट हो गया। पिता ने कहा 'लातों के देव बातों से नहीं मानते, जैसा देव वैसी पूजा जरूरी होती है।
***
रंगों के दोहे -दोहों के रंग
*
जोगीरा सा रा रा रा
रंग रंग पर आ गया, अद्भुत नवल निखार।
प्रिय से एकाकार हो, खुद को रहा निहार।। जोगीरा सा रा रा रा
*
हुआ रंग में भंग जब, पड़ी भंग में रंग।
जोरा-जोरी हुई तो, मन के बजे मृदंग।। जोगीरा सा रा रा रा
*
फागुन में भूला 'सलिल', श्याम-गौर का द्वैत।
राधा-कान्हा यूँ मिले, ज्यों जीवित अद्वैत।। जोगीरा सा रा रा रा
*
श्याम-रंग ऐसा चढ़ा, देह न सके उतार।
गौर रंग मन में बसा, गेह आत्म उजियार।। जोगीरा सा रा रा रा
*
लल्ला में लावण्य है, लल्ली में लालित्य।
लीला लल्ला-लली की, लखे लाल आदित्य।। जोगीरा सा रा रा रा
*
प्रिये! लाल पीली न हो, रहना पीली लाल।
गुस्सा रखो न नाक पर, नाचो आ दे ताल।। जोगीरा सा रा रा रा
*
आस न अब बेरंग हो, श्वास न हो बदरंग।
प्यास न अब बाकी रहे, खेल खिलाओ रंग।। जोगीरा सा रा रा रा
*
रंग-रंग से रंग को, रंग रंग है पस्त।
रंग रंग से हार कर, जीत गया हो मस्त।। जोगीरा सा रा रा रा
७.३.२०२३
***
मुक्तिका 
याद तुम्हारी
*
याद तुम्हारी नेह नर्मदा
आकर देती है प्रसन्नता
हर लेती है हर विपन्नता
याद तुम्हारी है अखण्डिता
सह न उपेक्षा हो प्रचंडिता
शुचिता है साकार वन्दिता
याद तुम्हारी आदि अमृता
युग युग पुजती हो समर्पिता
अभिनंदित हो आत्म अर्पिता
७-३-२०२०
***
शिशु गीत सलिला : २
*
११. पापा -१
पापा लाड़ लड़ाते खूब,
जाते हम खुशियों में डूब।
उन्हें बना लेता घोड़ा-
हँसती, देख बाग़ की दूब।।
*
१२. पापा -२
पापा चलना सिखलाते,
सारी दुनिया दिखलाते।
रोज बिठाकर कंधे पर-
सैर कराते मुस्काते।।
गलती हो जाए तो भी,
कभी नहीं खोना आपा।
सीख सुधारूँगा मैं ही-
गुस्सा मत होना पापा।।
*
१३. भैया - १
मेरा भैया प्यारा है,
सारे जग से न्यारा है।
बहुत प्यार करता मुझको-
आँखों का वह तारा है।।
*
१४ . भैया -२
नटखट चंचल मेरा भैया,
लेती हूँ हँस रोज बलैया।
दूध नहीं इसको भाता-
कहता पीना है चैया।।
*
१५. बहिन -१
बहिन गुणों की खान है,
वह प्रभु का वरदान है।
अनगिन खुशियाँ देती है-
वह हम सबकी जान है।।
*
१६. बहिन -२
बहिन बहुत ही प्यारी है,
सब बच्चों से न्यारी है।
हँसती तो ऐसा लगता-
महक रही फुलवारी है।।
*
१७. घर
पापा सूरज, माँ चंदा,
ध्यान सभी का धरते हैं।
मैं तारा, चाँदनी बहिन-
घर में जगमग करते हैं।।
*
१८. बब्बा
बब्बा ले जाते बाज़ार,
दिलवाते टॉफी दो-चार।
पैसे नगद दिया करते-
कुछ भी लेते नहीं उधार।।
मम्मी-पापा डांटें तो
उन्हें लगा देते फटकार।
जैसे ही मैं रोता हूँ,
गोद उठा लेते पुचकार।।
*
१९. दादी-१
दादी बनी सहेली हैं,
मेरे संग-संग खेली हैं।
उनके बिना अकेली मैं-
मुझ बिन निपट अकेली हैं।।
*
२०. दादी-
राम नाम जपतीं दादी,
रहती हैं बिलकुल सादी।
दूध पिलाती-पीती हैं-
खूब सुहाती है खादी।।
गोदी में लेतीं, लगतीं -
रेशम की कोमल गादी।
मुझको शहजादा कहतीं,
बहिना उनकी शहजादी।।
***
नवगीत-
आज़ादी
*
भ्रामक आज़ादी का
सन्निपात घातक है
*
किसी चिकित्सा-ग्रंथ में
वर्णित नहीं निदान
सत्तर बरसों में बढ़ा
अब आफत में जान
बदपरहेजी सभाएँ,
भाषण और जुलूस-
धर्महीनता से जला
देशभक्ति का फूस
संविधान से द्रोह
लगा भारी पातक है
भ्रामक आज़ादी का
सन्निपात घातक है
*
देश-प्रेम की नब्ज़ है
धीमी करिए तेज
देशद्रोह की रीढ़ ने
दिया जेल में भेज
कोर्ट दंड दे सर्जरी
करती, हो आरोग्य
वरना रोगी बचेगा
बस मसान के योग्य
वैचारिक स्वातंत्र्य
स्वार्थ हितकर नाटक है
भ्रामक आज़ादी का
सन्निपात त्राटक है
*
मुँदी आँख कैसे सके
सहनशीलता देख?
सत्ता खातिर लिख रहे
आरोपी आलेख
हिंदी-हिन्दू विरोधी
केर-बेर का संग
नेह-नर्मदा में रहे
मिला द्वेष की भंग
एक लक्ष्य असफल करना
इनका नाटक है
संविधान से द्रोह
लगा भारी पातक है
भ्रामक आज़ादी का
सन्निपात घातक है
६.३.२०१६
***
नवगीत :
चूहा झाँक रहा हंडी में...
*
चूहा झाँक रहा हंडी में,
लेकिन पाई सिर्फ हताशा...
*
मेहनतकश के हाथ हमेशा
रहते हैं क्यों खाली-खाली?
मोती तोंदों के महलों में-
क्यों बसंत लाता खुशहाली?
ऊँची कुर्सीवाले पाते
अपने मुँह में सदा बताशा.
चूहा झाँक रहा हंडी में,
लेकिन पाई सिर्फ हताशा...
*
भरी तिजोरी फिर भी भूखे
वैभवशाली आश्रमवाल.
मुँह में राम बगल में छूरी
धवल वसन, अंतर्मन काले.
करा रहा या 'सलिल' कर रहा
ऊपरवाला मुफ्त तमाशा?
चूहा झाँक रहा हंडी में,
लेकिन पाई सिर्फ हताशा...
*
अँधियारे से सूरज उगता,
सूरज दे जाता अँधियारा.
गीत बुन रहे हैं सन्नाटा,
सन्नाटा निज स्वर में गाता.
ऊँच-नीच में पलता नाता
तोल तराजू तोला-माशा.
चूहा झाँक रहा हंडी में,
लेकिन पाई सिर्फ हताशा...
***

मंगलवार, 7 मई 2013

hindi short story daulat deepti gupta

बोध कथा :
दौलत 
दीप्ति गुप्ता 

बचपन में दौलत राम बहुत ग़रीब था। समय के साथ साथ उसने शहर में जाकर ख़ूब मेहनत की और बहुत पैसा कमाया। जैसे-जैसे लक्ष्मी मैया की कृपा होती गई, दौलत राम का घमण्ड बढ़ता गया और वो हर किसी को नीची निगाह से देखने लगा।
बहुत दिन बाद वो शहर से अपने गाँव आया। दुपहर में एक बार जब वो घूमने निकला तो उसे अपने बचपन की सारी यादें ताज़ा होने लगीं। उसे वो सारे दृश्य याद आने लगे जहाँ उसने अपना बचपन बिताया था। एकाएक उसका ध्यान एक बरगद के पेड़ पर पड़ा जिस के नीचे एक आदमी आराम से लेटा हुआ था। क्योंकि धूप थोड़ी तेज़ होने लगी थी इसलिए दौलत राम सीधा वहाँ पहुँचा और देखा कि उसका बचपन का साथी कन्हैया वहाँ आराम से लेटा हुआ है।
बजाए इस के कि दौलत राम अपने पुराने मित्र का हाल चाल पूछे, उस ने कन्हैया को टेढ़ी नज़र से देख कर कहा-
 ओ कन्हैया, तू तो बिल्कुल निठल्ला है। न पहले कुछ करता था और न अब कुछ करता है। मुझे देख मैं कहाँ से कहाँ पहुँच गया हूँ।
यह सुनकर कन्हैया थोड़ा बुड़बुड़ा कर बैठ गया। दौलत राम का हालचाल पूछा और कहने लगा कि समस्या क्या है। दौलत राम के ये कहने पर कि वो काम क्यों नहीं करता, कन्हैया ने पूछा कि उस का क्या फ़ायदा होगा। दौलत राम ने कहा कि तेरे पास बहुत सारे पैसी हो जाएँगे।
उन पैसों का मैं क्या करूँगा? कन्हैया ने फिर प्रश्न किया।
अरे मूर्ख, उन पैसों से तू एक बहुत बड़ा महल बनाएगा।
क्या करूँगा मैं उस महल का?  कन्हैया ने फिर तर्क किया।
ओ मन्द बुद्धि उस महल में तू आराम से रहेगा, नौकर चाकर होंगे, घोड़ा गाड़ी होगी, बीवी बच्चे होंगे। दौलत राम ने ऊँचे स्वर से गुस्से में कहा।
फिर उसके बाद? कन्हैया ने फिर प्रश्न किया।
अब तक दौलत राम अपना धीरज खो बैठा था। वो गुस्से में झुँझला कर बोला-
ओ पागल कन्हैया, फिर तू आराम से लम्बी तान कर सोएगा।
ये सुन कर कन्हैया ने मुस्कुराकर जवाब दिया- सुन मेरे भाई दौलत, तेरे आने से पहले, मैं लम्बी तान के ही तो सो रहा था।
ये सुनकर दौलत राम के पास कुछ भी कहने को नहीं रहा। उसे इस चीज़ का एहसास होने लगा कि जिस दौलत को वो इतनी मान्यता देता था वो एक सीधे-साधे कन्हैया की निगाह में कुछ भी नहीं। आगे बढ़ कर उसने कन्हैया को गले लगा लिया और कहने लगा कि आज उसकी आँखें खुल गई हैं। दोस्ती के आगे दौलत कुछ भी नहीं है। इंसान और इंसानियत ही इस जग में सब कुछ है।
 
"gupta, deepti" <drdeepti25@yahoo.co.in>

सोमवार, 8 अप्रैल 2013

bodh katha: panchayat ka nirnay


बोध कथा 

पंचायत का निर्णय

एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए उजड़े, वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये !

हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ? यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं ! यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा ! भटकते २ शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज कि रात बिता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे !

रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे उस पर एक उल्लू बैठा था। वह जोर २ से चिल्लाने लगा।

हंसिनी ने हंस से कहा, अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते। ये उल्लू चिल्ला रहा है। हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ? ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही। पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों कि बात सुन रहा था। सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ कर दो। हंस ने कहा, कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद !

यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा, पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो। हंस चौंका, उसने कहा, आपकी पत्नी? अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है, मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है !

उल्लू ने कहा, खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है। दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग इक्कठा हो गये। कई गावों की जनता बैठी। पंचायत बुलाई गयी। पंच लोग भी आ गये ! बोले, भाई किस बात का विवाद है ? लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है !

लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पञ्च लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे। हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है। इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना है ! फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों कि जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है !

यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया। उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली ! रोते- चीखते जब वहआगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई - ऐ मित्र हंस, रुको ! हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ? पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे

उल्लू ने कहा, नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी ! लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है ! मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है । यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पञ्च रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं !

शायद ६५ साल कि आजादी के बाद भी हमारे देश की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हमने हमेशा अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में सुनाया है। इसलिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैं।
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मंगलवार, 20 नवंबर 2012