सवैया
२७ वर्णिक
यति १४-१३
*
ये सवेरा तीर की मानिंद चुभता है, चलो आशा का नया सूरज उगाएँ
घेर लें बादल निराशा के अगर तो, हौसलों की हवा से उनको उड़ाएँ
मेहनत है धर्म अपना स्वेद गंगा, भोर से संझा नहा नवगीत गाएँ
रात में बारात तारों की सजाकर, चाँदनी घर चाँद को दूल्हा बनाएँ
*
संजीव
१२-२-२०२०
२७ वर्णिक
यति १४-१३
*
ये सवेरा तीर की मानिंद चुभता है, चलो आशा का नया सूरज उगाएँ
घेर लें बादल निराशा के अगर तो, हौसलों की हवा से उनको उड़ाएँ
मेहनत है धर्म अपना स्वेद गंगा, भोर से संझा नहा नवगीत गाएँ
रात में बारात तारों की सजाकर, चाँदनी घर चाँद को दूल्हा बनाएँ
*
संजीव
१२-२-२०२०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें