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मंगलवार, 22 नवंबर 2016

geet

एक गीत:                                                                                                        
मत ठुकराओ 

संजीव 'सलिल' 
*
मत ठुकराओ तुम कूड़े को 
कूड़ा खाद बना करता है..... 

मेवा-मिष्ठानों ने तुमको
जब देखो तब ललचाया है.
सुख-सुविधाओं का हर सौदा-
मन को हरदम ही भाया है.

ऐश, खुशी, आराम मिले तो
तन नाकारा हो मरता है.
मत ठुकराओ तुम कूड़े को
कूड़ा खाद बना करता है.....
*
मेंहनत-फाके जिसके साथी,
उसके सर पर कफन लाल है.
कोशिश के हर कुरुक्षेत्र में-
श्रम आयुध है, लगन ढाल है.

स्वेद-नर्मदा में अवगाहन
जो करता है वह तरता है.
मत ठुकराओ तुम कूड़े को
कूड़ा खाद बना करता है.....
*
खाद उगाती है हरियाली.
फसलें देती माटी काली.
स्याह निशासे, तप्त दिवससे-
ऊषा-संध्या पातीं लाली.

दिनकर हो या हो रजनीचर
रश्मि-पुंज वह जो झरता है.
मत ठुकराओ तुम कूड़े को
कूड़ा खाद बना करता है.....
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सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

laghukatha

लघुकथा-
सम्मान की दृष्टि 
*
कचरा बीनने वाले बच्चों से दूर रहा करो। वे गंदे होते हैं, पढ़ते-लिखते नहीं, चोरी भी करते हैं। उनसे बीमारी भी लग सकती है- माँ बच्चे को समझा रही थी।

तभी दरवाज़ा खटका, खोलने पर एक कचरा बीननेवाला बच्चा खड़ा था। क्या है? हिकारत से माँ ने पूछा।
माँ जी! आपके दरवाज़े के बाहर पड़े कचरे में से यह सोने की अँगूठी मिली है, आपकी तो नहीं? पूछते हुए बच्चे ने हथेली फैला दी. चमचमाती अँगूठी देखते ही माँ के मुँह से निकला अरे!यह तो मेरी ही है तो ले लीजिए कहकर बच्चा अंगूठी देकर चला गया।
रात पिता घर आये तो बच्चे ने घटना की चर्चा कर बताया की यह बच्चा समीप की सरकारी पाठशाला में पढ़ता है, कक्षा में पहला आता है, उसके पिता की सडक दुर्घटना में मृत्यु हो गयी है, माँ बर्तन माँजती है। अगले दिन पिता बच्चे के साथ पाठशाला गए, प्रधानाध्यापक को घटना की जानकारी देकर बच्चे को बुलाया, उसकी पढ़ाई का पूरा खर्च खुद उठाने की जिम्मेदारी ली। कल तक उपेक्षा से देखे जा रहे बच्चे को अब मिल रही थी सम्मान की दृष्टि।
***

शुक्रवार, 8 मई 2009

शोभना चौरे

कविता

ऐसा क्यों?...

शोभना चौरे

ऐसा क्यो होता है ?
जहाँ 'फूल तोड़ना मना है'
लिखा है
हम वहीं पर
सबसे ज्यादा फूल तोड़ते है
जहाँ वाहन खडा करना वर्जित हो,
वनीं सर्वाधिक गाडियां खड़ी होती हैं
जहाँ धूम्रपान 'वर्जित है,
वहीं तथाकथित भद्रजन
धुएँ के छल्ले उडाते देखे जाते हैं
जहाँ कचरा फेंकना मना है,
वहीं पर
घर और शहर कचरा फेकते हैं,
डब्बे में पेट्रोल ले जाना मना है,
तो पेट्रोल पम्प पर धड़ल्ले से
डब्बे में पेट्रोल भरते देखे जा सकते हैं.
हम समझना ही नहीन चाहते
मन्दिर की शान्ति को सराहते हैं,
परन्तु
जूतों की गंदगी
वहाँ भी फैला ही आते हैं.
आप ही बताएन
ऐसा क्यों होता है?
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