कुल पेज दृश्य

self लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
self लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

कविता: मैं --संजीव 'सलिल'

कविता:



मैं

संजीव 'सलिल'
*
सच कहूँ?
देखकर नहीं देखा.
उसको जाना
मगर नहीं जाना.
आपा-धापी में
सदा व्यस्त रहा,
साथ रहकर भी
नहीं पहचाना.

जब भी तनहा हुआ,
उदास हुआ.
तब अचानक
वो मेरे पास हुआ.
जब कदम
मैंने बढ़ाये आगे.
साया उसका भी
साथ ही भागे.

वो नहीं अक्स है
न परछाईं.
मुझसे किंचित नहीं
जुदा भाई.
साथ सुख-दु:ख
सदा ही सहता है.
गिला-शिकवा
न कुछ भी करता है.

मेरे नगमे
वही तो गाता है.
दोहे, गजलें भी
गुनगुनाता है.
चोट मुझको लगे
तो वह रोये.
पैर मैले हुए
तो हँस धोये.

मेरा ईमान है,
ज़मीर है वह.
कभी फकीर है,
अमीर है वह.
सच को उससे
छिपा नहीं पाता.
साथ चलता
रुका नहीं जाता.

मैं थकूँ तो
है हौसला देता.
मुझसे कुछ भी
कभी नहीं लेता.
डूबता हूँ तो
बचाये वह ही.
टूटता हूँ तो
सम्हाले वह ही.

कभी हो पाक
वह भगवान लगे.
कभी हैरां करे,
शैतान लगे.
कभी नटखट,
कभी उदास लगे.
मुझे अक्सर तो
वह इंसान लगे.

तुमने जाना उसे
या ना जाना?
मेरा अपना है वह,
न बेगाना.
नहीं मुमकिन
कहीं वह और कहीं मैं.
वह मेंरी रूह है,
वही हूँ मैं.
********
Acharya Sanjiv verma 'Salil'http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in