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गुरुवार, 10 अगस्त 2017

navgeet

नवगीत:
संजीव
*
मेरा नाम बताऊँ? हाऊ
ना दैहौं तन्नक काऊ
*
बम भोले है अपनी जनता
देती छप्पर फाड़ के.
जो पाता वो खींच चीथड़े
मोल लगाता हाड़ के.
नेता, अफसर, सेठ त्रयी मिल
तीन तिलंगे कूटते.
पत्रकार चंडाल चौकड़ी
बना प्रजा को लूटते.
किससे गिला शिकायत शिकवा
करें न्याय भी बंदी है.
पुलिस नहीं रक्षक, भक्षक है
थाना दंदी-फंदी है.
काले कोट लगाये पहरा
मनमर्जी करते भाऊ
मेरा नाम बताऊँ? हाऊ
ना दैहौं तन्नक काऊ
*
पण्डे डंडे हो मुस्टंडे
घात करें विश्वास में.
व्यापम झेल रहे बरसों से
बच्चे कठिन प्रयास में.
मार रहे मरते मरीज को
डॉक्टर भूले लाज-शरम.
संसद में गुंडागर्दी है
टूट रहे हैं सभी भरम.
सीमा से आतंक घुस रहा
कहिए किसको फ़िक्र है?
जो शहीद होते क्या उनका
इतिहासों में ज़िक्र है?
पैसे वाले पद्म पा रहे
ताली पीट रहे दाऊ
मेरा नाम बताऊँ? हाऊ
ना दैहौं तन्नक काऊ
*
सेवा से मेवा पाने की
रीति-नीति बिसरायी है.
मेवा पाने ढोंग बनी सेवा
खुद से शरमायी है.
दूरदर्शनी दुनिया नकली
निकट आ घुसी है घर में.
अंग्रेजी ने सेंध लगा ली
हिंदी भाषा के स्वर में.
मस्त रहो मस्ती में, चाहे
आग लगी हो बस्ती में.
नंगे नाच पढ़ाते ऐसे
पाठ जां गयी सस्ते में.
आम आदमी समझ न पाये
छुरा भौंकते हैं ताऊ
मेरा नाम बताऊँ? हाऊ
ना दैहौं तन्नक काऊ
*
salil.sanjiv@gmail.com
९४२५१८३२४४
#दिव्यनर्मदा
#हिंदी+ब्लॉगर

मंगलवार, 2 जून 2015

kundalini: sanjiv

कुंडलिनी:
अफसर आईएएस  हैं, सब कष्टों की खान
नाच नचा मंत्रियों को, धमकाते भर कान
धमकाते भर कान, न मानी बात हमारी
तो हम रहें न साथ, खोल दें पोल तुम्हारी
केर-बेर सा संग, निभाते दोनों अक्सर
नीति सुझाते बना-बना मंत्री को अफसर.
***  

मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

एक दोहा दो दुम का... सलिल

लोकतंत्र के देखिये, अजब-अनोखे रंग।

नेता-अफसर चूसते, खून आदमी तंग॥

जंग करते हैं नकली।

माल खाते हैं असली॥

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