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सोमवार, 13 अक्टूबर 2025

अक्टूबर १३, सॉनेट, नयन, राजस्थानी, भाषा-गीत, मुक्तक, ग़ज़ल, गीत, वृन्दावन, हिंदी, अनन्वय अलंकार

 सलिल सृजन अक्टूबर १३

सॉनेट
नयन
नयन खुले जग जन्म हुआ झट
नयन खोजते नयन दोपहर
नयन सजाए स्वप्न साँझ हर
नयन विदाई मुँदे नयन पट
नयन मिले तो पूछा परिचय
नयन झुके लज बात बन गई
नयन उठे सँग सपने कई कई
नयन नयन में बसे मिटा भय
नयन आईना देखें सँवरे
नयन आई ना कह अकुलाए
नयन नयन को भुज में भरे
नय न नयन तज, सकुँचे-सिहरे
नयन वर्जना सुनें न बहरे
नयन न रोके रुके न ठहरे
१३•१०•२०२२
●●●
राजस्थानी मुक्तिका
*
आसमान में अटक्या सूरज
गेला भूला भटक्या सूरज
संसद भीतर बैठ कागलो
काँव-काँव सुन थकग्या सूरज
कोरोना ने रस्ता छेंका
बदरी पीछे छिपग्या सूरज
भरी दफेरी बैठ हाँफ़ र् यो
बिना मजूरी चुकग्या सूरज
धूली चंदण नै चपकेगी
भेळा करता भटक्या सूरज
चादर सीतां सीतां थाका
लून-तेल में फँसग्या सूरज
साँची-साँची कहें सलिल जी
नेता बण ग्यो ठग र् या सूरज
१३-१०-२०२०
***
मुक्तक
*
वन्दना प्रार्थना साधना अर्चना
हिंद-हिंदी की करिये, रहे सर तना
विश्व-भाषा बने भारती हम 'सलिल'
पा सकें हर्ष-आनंद नित नव घना
*
चाँद हो साथ में चाँदनी रात हो
चुप अधर, नैन की नैन से बात हो
पानी-पानी हुई प्यास पल में 'सलिल'
प्यार को प्यार की प्यार सौगात हो
*
चाँद को जोड़कर कर मनाती रही
है हक़ीक़त सजन को बुलाती रही
पी रही है 'सलिल' हाथ से किंतु वह
प्यास अपलक नयन की बुझाती रही
*
चाँद भी शरमा रहा चाँदनी के सामने
झुक गया है सिर हमारा सादगी के सामने
दूर रहते किस तरह?, बस में न था मन मान लो
आ गया है जल पिलाने ज़िंदगी के सामने
*
गगन का चाँद बदली में मुझे जब भी नज़र आता
न दिखता चाँद चेहरा ही तेरा तब भी नज़र आता
कभी खुशबू, कभी संगीत, धड़कन में कभी मिलते-
बसे हो प्राण में, मन में यही अब भी नज़र आता
*
मुक्तिका
*
अर्चना कर सत्य की, शिव-साधना सुंदर करें।
जग चलें गिर उठ बढ़ें, आराधना तम हर करें।।
*
कौन किसका है यहाँ?, छाया न देती साथ है।
मोह-माया कम रहे, श्रम-त्याग को सहचर करें।।
*
एक मालिक है वही, जिसने हमें पैदा किया।
मुक्त होकर अहं से, निज चित्त प्रभु-चाकर करें।।
*
वरे अक्षर निरक्षर, तब शब्द कविता से मिले।
भाव-रस-लय त्रिवेणी, अवगाह चित अनुचर करें।।
*
पूर्णिमा की चंद्र-छवि, निर्मल 'सलिल में निरखकर।
कुछ रचें; कुछ सुन-सुना, निज आत्म को मधुकर करें।।
करवा चौथ २७-१०-२०१८
***
नवगीत:
हार गया
लहरों का शोर
जीत रहा
बाँहों का जोर
तांडव कर
सागर है शांत
तूफां ज्यों
यौवन उद्भ्रांत
कोशिश यह
बदलावों की
दिशाहीन
बहसें मुँहजोर
छोड़ गया
नाशों का दंश
असुरों का
बाकी है वंश
मनुजों में
सुर का है अंश
जाग उठो
फिर लाओ भोर
पीड़ा से
कर लो पहचान
फिर पालो
मन में अरमान
फूँक दो
निराशा में जान
साथ चलो
फिर उगाओ भोर
***
मुक्तिका
*
ख़त ही न रहे, किस तरह पैगाम हम करें
आगाज़ ही नहीं किया, अंजाम हम करें
*
यकीन पर यकीन नहीं, रह गया 'सलिल'
बेहतर है बिन यकीन ही कुछ काम हम करें.
*
गुमनाम हों, बदनाम हों तो हर्ज़ कुछ नहीं
कुछ ना करें से बेहतर है काम हम करें.
*
हो दोस्ती या दुश्मनी, कुछ तो कभी तो हो
जो कुछ न हो तो, क्यों न राम-राम हम करें
*
मिल लें गले, भले ही ईद हो या दिवाली
बस हेलो-हाय का न ताम-झाम हम करे
*
क्यों ख़ास की तलाश करे कल्पना कहो
जो हमसफ़र हो साथ उसे आम हम करें
***
हिंदी ग़ज़ल -
बहर --- २२-२२ २२-२२ २२२१ १२२२
*
है वह ही सारी दुनिया में, किसको गैर कहूँ बोलो?
औरों के क्यों दोष दिखाऊँ?, मन बोले 'खुद को तोलो'
*
​खोया-पाया, पाया-खोया, कर्म-कथानक अपना है
क्यों चंदा के दाग दिखाते?, मन के दाग प्रथम धो लो
*
जो बोया है काटोगे भी, चाहो या मत चाहो रे!
तम में, गम में, सम जी पाओ, पीड़ा में कुछ सुख घोलो
*
जो होना है वह होगा ही, जग को सत्य नहीं भाता
छोडो भी दुनिया की चिंता, गाँठें निज मन की खोलो
*
राजभवन-शमशान न देखो, पल-पल याद करो उसको
आग लगे बस्ती में चाहे, तुम हो मगन 'सलिल' डोलो
***
***
भाषा-गीत
हिन्द और हिंदी की जय-जयकार करें हम
भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम
*
भाषा सहोदरी होती है हर प्राणी की
अक्षर-शब्द बसी छवि शारद कल्याणी की
नाद-ताल, रस-छंद, व्याकरण शुद्ध सरलतम
जो बोले वह लिखें-पढ़ें विधि जगवाणी की
संस्कृत-पुत्री को अपना गलहार करें हम
हिन्द और हिंदी की जय-जयकार करें हम
भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम
*
अवधी, असमी, कन्नड़, गढ़वाली, गुजराती
बुन्देली, बांगला, मराठी, बृज मुस्काती
छतीसगढ़ी, तेलुगू, भोजपुरी, मलयालम
तमिल, डोगरी, राजस्थानी, उर्दू भाती
उड़िया, सिंधी, पंजाबी गलहार करें हम
हिन्द और हिंदी की जय-जयकार करें हम
भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम
*
देवनागरी लिपि, स्वर-व्यंजन, अलंकार पढ़
शब्द-शक्तियाँ, तत्सम-तद्भव, संधि, बिंब गढ़
गीत, कहानी, लेख, समीक्षा, नाटक रचकर
समय, समाज, मूल्य मानव के नए सकें मढ़
देश, विश्व, मानव, प्रकृति-उद्धार करें हम
हिन्द और हिंदी की जय-जयकार करें हम
भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम
***
दोहा सलिला
सुधियों के संसार में, है शताब्दि क्षण मात्र
श्वास-श्वास हो शोभना, आस सुधीर सुपात्र
*
मृदुला भाषा-काव्य की, धारा, बहे अबाध
'सलिल' साधना कर सतत, हो प्रधान हर साध
*
अनिल अनल भू नभ सलिल, पंचतत्वमय देह
ईश्वर का उपहार है, पूजा करें सनेह
*
हिंदी आटा माढ़िए, उर्दू मोयन डाल
'सलिल'संस्कृत सान दे,पुड़ी बने कमाल
*
जन्म ब्याह राखी तिलक,गृह प्रवेश त्यौहार
हर अवसर पर दे 'सलिल', पुस्तक ही उपहार
*
बिन अपनों के हो सलिल', पल-पल समय पहाड़
जेठ-दुपहरी मिले ज्यों, बिन पाती का झाड़
*
विरह-व्यथा को कहें तो, कौन सका है नाप?
जैसे बरखा का सलिल, या गर्मी का ताप
*
कंधे हों मजबूत तो, कहें आप 'आ भार'
उठा सकें जब बोझ तो, हम बोलें 'आभार'
*
कविता करना यज्ञ है, पढ़ना रेवा-स्नान
सुनना कथा-प्रसाद है, गुनना प्रभु का ध्यान
*
कांता-सम्मति मानिए, हो घर में सुख-चैन
अधरों पर मुस्कान संग, गुंजित मीठे बैन
***
मुक्तक
वन्दना प्रार्थना साधना अर्चना
हिंद-हिंदी की करिये, रहे सर तना
विश्व-भाषा बने भारती हम 'सलिल'
पा सकें हर्ष-आनंद नित नव घना
*
नवगीत:
हार गया
लहरों का शोर
जीत रहा
बाँहों का जोर
तांडव कर
सागर है शांत
तूफां ज्यों
यौवन उद्भ्रांत
कोशिश यह
बदलावों की
दिशाहीन
बहसें मुँहजोर
छोड़ गया
नाशों का दंश
असुरों का
बाकी है वंश
मनुजों में
सुर का है अंश
जाग उठो
फिर लाओ भोर
पीड़ा से
कर लो पहचान
फिर पालो
मन में अरमान
फूँक दो
निराशा में जान
साथ चलो
फिर उगाओ भोर
***
एक रचना: मन-वृन्दावन
किस पग के नूपुर खनके मन-वृन्दावन में आज सखे!
किस पग-रज की दिव्य स्वामिनी का मन-आँगन राज सखे!
*
कलरव करता पंछी-पंछी दिव्य रूप का गान करे.
किसकी रूपाभा दीपित नभ पर संध्या अभिमान करे?
किसका मृदुल हास दस दिश में गुंजित ज्यों वीणा के तार?
किसके नूपुर-कंकण ध्वनि में गुंजित हैं संतूर-सितार?
किसके शिथिल गात पर पंखा झलता बृज का ताज सखे!
किस पग के नूपुर खनके मन-वृन्दावन में आज सखे!
*
किसकी केशराशि श्यामाभित, नर्तन कर मन मोह रही?
किसके मुखमंडल पर लज्जा-लहर जमुन सी सोह रही?
कौन करील-कुञ्ज की शोभा, किससे शोभित कली-कली?
किस पर पट-पीताम्बरधारी, मोहित फिरता गली-गली?
किसके नयन बाणकान्हा पर गिरते बनकर गाज सखे!
किस पग के नूपुर खनके मन-वृन्दावन में आज सखे!
*
किसकी दाड़िम पंक्ति मनोहर मावस को पूनम करती?
किसके कोमल कंठ-कपोलों पर ऊषा नर्तन करती?
किसकी श्वेताभा-श्यामाभित, किससे श्वेताभित घनश्याम?
किसके बोल वेणु-ध्वनि जैसे, करपल्लव-कोमल अभिराम?
किस पर कौन हुआ बलिहारी, कैसे, कब-किस व्याज सखे?
किस पग के नूपुर खनके मन-वृन्दावन में आज सखे!
*
किसने नीरव को रव देकर, भव को वैभव दिया अनूप?
किसकी रूप-राशि से रूपित भवसागर का कण-कण भूप?
किससे प्रगट, लीन किसमें हो, हर आकार-प्रकार, विचार?
किसने किसकी करी कल्पना, कर साकार, अवाक निहार?
किसमें कर्ता-कारण प्रगटे, लीन क्रिया सब काज सखे!
किस पग के नूपुर खनके मन-वृन्दावन में आज सखे!
१३-१०-२०१७
***
दोहा
सुधियों के संसार में, है शताब्दि क्षण मात्र
श्वास-श्वास हो शोभना, आस सुधीर सुपात्र
*
मृदुला भाषा-काव्य की, धारा, बहे अबाध
'सलिल' साधना कर सतत, हो प्रधान हर साध
*
अनिल अनल भू नभ सलिल, पंचतत्वमय देह
ईश्वर का उपहार है, पूजा करें सनेह
*
हिंदी आटा माढ़िए, उर्दू मोयन डाल
'सलिल'संस्कृत सान दे,पुड़ी बने कमाल
*
जन्म ब्याह राखी तिलक,गृह प्रवेश त्यौहार
हर अवसर पर दे 'सलिल', पुस्तक ही उपहार
१३-१०-२०१६
***
अलंकार सलिला
: २१ : अनन्वय अलंकार
बने आप उपमेय ही, जब खुद का उपमान
'सलिल' अनन्वय है वहाँ, पल भर में ले जान
*
किसी काव्य प्रसंग में उपमेय स्वयं ही उपमान हो तथा पृथक उपमान का अभाव हो तो अनन्वय अलंकार होता है.
उदाहरण:
१. लही न कतहुँ हार हिय मानी। इन सम ये उपमा उर जानी।।
२. हियौ हरति औ' करति अति, चिंतामनि चित चैन।
वा सुंदरी के मैं लखे, वाही के से नैन ।।
३. अपनी मिसाल आप हो, तुम सी तुम्हीं प्रिये!
उपमान कैसे दे 'सलिल', जूठे सभी हुए।।
४. ये नेता हैं नेता जैसे, चोर-उचक्के इनसे बेहतर।
५. नदी नदी सम कहाँ रह गयी?, शेष ढूह है रेत के
जहाँ-तहाँ डबरों में पानी, नदी हो गयी खेत रे!
*
कार्यशाला
पहचानिए अलंकार :
जाने बहार हुस्न तेरा बेमिसाल है
( गायक मो. रफ़ी, गीतकार शकील बदायूनी, संगीतकार रवि, चलचित्र प्यार किया तो डरना क्या, वर्ष १९६३)
पास बैठो तबियत बहल जाएगी
मौत भी आ गयी हो तो टल जाएगी
( गायक मो. रफ़ी, गीतकार इंदीवर, संगीतकार , चलचित्र पुनर्मिलन)
तोरा मन दरपन कहलाये
नहले-बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखाये
( गायक आशा भोंसले, गीतकार , संगीतकार रवि, चलचित्र काजल १९६५)
****
एक रचना
*
जय हिंदी जगवाणी!
जय मैया भारती!!
*
क्षर जग को दे अक्षर
बहा शब्द के निर्झर
रस जल, गति-यति लहरें
भाव-बिंब बह-ठहरें
रूपक-उपमा ललाम
यमक-श्लेष कर प्रणाम
अनुप्रासिक छवि देखें
वक्र-उक्ति अवरेखें
शब्द-शक्ति ज्योत बाल
नित करती आरती
जय हिंदी जगवाणी!
जय मैया भारती!!
*
हास्य करुण शांत वीर
वत्सल श्रृंगार नीर
अद्भुत वीभत्स रौद्र
जन-मन की हरें पीर
गोहा, चौपाई, गीत
अमिधा-लक्षणा प्रीत
व्यंजना उकेर चित्र
छंदों की बने मित्र
लघु-गुरु, गण, गुण तुम पर
शारद माँ वारती
*
लेख, कथा, उपन्यास,
व्यंग्य कहे मिटे त्रास
क्रिया संज्ञा सर्वनाम
कर अनाम को प्रणाम
कह रहे कहावतें
रच रुचिर मुहावरे
अद्भुत सामर्थ्यवान
दिग्दिगंत करे गान
स्नेह-'सलिल' गंग बहा
दे सुज्ञान तारती
जबलपुर बैठकी १३.१०.२०१५
***
नवगीत:
हार गया
लहरों का शोर
जीत रहा
बाँहों का जोर
तांडव कर
सागर है शांत
तूफां ज्यों
यौवन उद्भ्रांत
कोशिश यह
बदलावों की
दिशाहीन
बहसें मुँहजोर
छोड़ गया
नाशों का दंश
असुरों का
बाकी है वंश
मनुजों में
सुर का है अंश
जाग उठो
फिर लाओ भोर
पीड़ा से
कर लो पहचान
फिर पालो
मन में अरमान
फूँक दो
निराशा में जान
साथ चलो
फिर उगाओ भोर
१३.१०-२०१४
***
गीत:
वेदना पर.…
*
वेदना पर चेतना की जीत होगी
जिंदगी तब ही मधुर संगीत होगी…
*
दर्द है सौभाग्य यदि हँस झेल पाओ
पीर है उपहार यदि हँस खेल पाओ
निकष जीवट का कठिन तूफ़ान होता-
है सुअवसर यदि उसे हँस ठेल पाओ
विरह-पल में साथ जब-जब प्रीत होगी
वेदना पर चेतना की जीत होगी
जिंदगी तब ही मधुर संगीत होगी…
*
कशिश कोशिश की कहेगी कथा कोई
हौसला हो हमकदम-हमराज कोई
रति रमकती रात रानी रंग-रसमय
रास थामे रास रचती रीत कोई
रातरानी श्वास का संगीत होगी
वेदना पर चेतना की जीत होगी
जिंदगी तब ही मधुर संगीत होगी…
*
स्वेद-सीकर से सुवासित संगिनी सम
स्नेह-सलिला नर्मदा सद्भाव संगम
सियाही पर सिपाही सम सीध साधे-
सीर-सीता सुयोगित सोपान अनुपम
सभ्यता सुदृढ़ सफल संनीत होगी
वेदना पर चेतना की जीत होगी
जिंदगी तब ही मधुर संगीत होगी…
१३.१०.२०१३
***
रासलीला :
*
रासलीला दिव्य क्रीड़ा परम प्रभु की.
करें-देखें-सुन तरें, आराध्य विभु की.
चक्षु मूँदे जीव देखे ध्यान धरकर.
आत्म में परमात्म लेखे भक्ति वरकर.
जीव हो संजीव प्रभु का दर्श पाए.
लीन लीला में रहे जग को भुलाए.
साधना का साध्य है आराध्य दर्शन.
पूर्ण आशा तभी जब हो कृपा वर्षण.
पुष्प पुष्पा, किरण की सुषमा सुदर्शन.
शांति का राजीव विकसे बिन प्रदर्शन
वासना का राज बहादुर मिटाए.
रहे सत्य सहाय हरि को खोज पाए.
मिले ओम प्रकाश मन हनुमान गाए.
कृष्ण मोहन श्वास भव-बाधा भुलाए.
आँख में सपने सुनहरे झूलते हैं.
रूप लख भँवरे स्वयं को भूलते हैं.
झूमती लट नर्तकी सी डोलती है.
फिजा में रस फागुनी चुप घोलती है.
कपोलों की लालिमा प्राची हुई है.
कुन्तलों की कालिमा नागिन मुई है.
अधर शतदल पाँखुरी से रस भरे हैं.
नासिका अभिसारिका पर नग जड़े हैं.
नील आँचल पर टके तारे चमकते.
शांत सागर मध्य दो वर्तुल उमगते.
खनकते कंगन हुलसते गीत गाते.
राधिका है साधिका जग को बताते.
कटि लचकती साँवरे का डोलता मन.
तोड़कर चुप्पी बजी पाजेब बैरन.
सिर्फ तू ही तो नहीं मैं भी यहाँ हूँ.
खनखना कह बज उठी कनकाभ करधन.
चपल दामिनी सी भुजाएँ लपलपातीं.
करतलों पर लाल मेंहदी मुस्कुराती.
अँगुलियों पर मुन्दरियाँ नग जड़ी सोहें.
कज्जली किनार सज्जित नयन मोहें.
भौंह बाँकी, मदिर झाँकी नटखटी है.
मोरपंखी छवि सुहानी अटपटी है.
कौन किससे अधिक, किससे कौन कम है.
कौन कब दुर्गम-सुगम है?, कब अगम है?
पग युगल द्वय कब धरा पर?, कब अधर में?
कौन बूझे?, कौन-कब?, किसकी नजर में?
कौन डूबा?, डुबाता कब-कौन?, किसको?
कौन भूला?, भुलाता कब-कौन?, किसको?
क्या-कहाँ घटता?, अघट कब-क्या-कहाँ है?
क्या-कहाँ मिटता?, अमिट कुछ-क्या यहाँ है?
कब नहीं था?, अब नहीं जो देख पाए.
सब यहीं था, सब नहीं थे लेख पाए.
जब यहाँ होकर नहीं था जग यहाँ पर.
कब कहाँ सोता-न-जगता जग कहाँ पर?
ताल में बेताल का कब विलय होता?
नाद में निनाद मिल कब मलय होता?
थाप में आलाप कब देता सुनाई?
हर किसी में आप वह देता दिखाई?
अजर-अक्षर-अमर कब नश्वर हुआ है?
कब अनश्वर वेणु गुंजित स्वर हुआ है?
कब भँवर में लहर?, लहरों में भँवर कब?
कब अलक में पलक?, पलकों में अलक कब?
कब करों संग कर, पगों संग पग थिरकते?
कब नयन में बस नयन नयना निरखते?
कौन विधि-हरि-हर? न कोई पूछता कब?
नट बना नटवर, नटी संग झूमता जब.
भिन्न कब खो भिन्नता? हो लीन सब में.
कब विभिन्न अभिन्न हो? हो लीन रब में?
द्वैत कब अद्वैत वर फिर विलग जाता?
कब निगुण हो सगुण आता-दूर जाता?
कब बुलाता?, कब भुलाता?, कब झुलाता?
कब खिझाता?, कब रिझाता?, कब सुहाता?
अदिख दिखता, अचल चलता, अनम नमता.
अडिग डिगता, अमिट मिटता, अटल टलता.
नियति है स्तब्ध, प्रकृति पुलकती है.
गगन को मुँह चिढ़ा, वसुधा किलकती है.
आदि में अनादि बिम्बित हुआ कण में.
साsदि में फिर सांsत चुम्बित हुआ क्षण में.
अंत में अनंत कैसे आ समाया?
दिक् दिगादि दिगंत जैसे एक पाया.
कंकरों में शंकरों का वास देखा.
जमुन रज में आज बृज ने हास देखा.
मरुस्थल में महकता मधुमास देखा.
नटी नट में, नट नटी में रास देखा.
रास जिसमें श्वास भी था, हास भी था.
रास जिसमें आस, त्रास-हुलास भी था.
रास जिसमें आम भी था, खास भी था.
रास जिसमें लीन खासमखास भी था.
रास जिसमें सम्मिलित खग्रास भी था.
रास जिसमें रुदन-मुख पर हास भी था.
रास जिसको रचाता था आत्म पुलकित.
रास जिसको रचाता परमात्म मुकुलित.
रास जिसको रचाता था कोटि जन गण.
रास जिसको रचाता था सृष्टि-कण-कण.
रास जिसको रचाता था समय क्षण-क्षण.
रास जिसको रचाता था धूलि तृण-तृण..
रासलीला विहारी खुद नाचते थे.
रासलीला सहचरी को बाँचते थे.
राधिका सुधि-बुधि बिसारे नाचती थीं.
साधिका होकर साध्य को ही बाँचती थीं.
'सलिल' ने निज बिंदु में वह छवि निहारी.
जग जिसे कहता है श्री बांकेबिहारी.
नर्मदा सी वर्मदा सी शर्मदा सी.
स्नेह-सलिला बही ब्रज में धर्मदा सी.
वेणु झूमी, थिरक नाची, स्वर गुँजाए.
अर्धनारीश्वर वहीं साकार पाए.
रहा था जो चित्र गुप्त, न गुप्त अब था.
सुप्त होकर भी न आत्मन् सुप्त अब था.
दिखा आभा ज्योति पावन प्रार्थना सी.
उषा संध्या वंदना मन कामना सी.
मोहिनी थी, मानिनी थी, अर्चना थी.
सृष्टि सृष्टिद की विनत अभ्यर्थना थी.
हास था पल-पल निनादित लास ही था.
जो जहाँ जैसा घटित था, रास ही था.
*******************************
३०-४-२०१०

बुधवार, 1 अक्टूबर 2025

अक्टूबर १, वृद्ध दिवस, सॉनेट, दुर्गा, पुनरुक्तवदाभास अलंकार, यास्मीन, हिंदी

सलिल सृजन अक्टूबर १
*
अक्टूबर कब? क्या?
कब...? क्या...??
माह - अक्टूबर
*
०१ - विश्व वृद्ध दिवस / विश्व आवास दिवस / राष्ट्रीय रक्तदान दिवस, रहीम निधन १६२७, एनी बेसेंट जन्म १८४७
०२ - अहिंसा दिवस म. गाँधी / लाल बहादुर शास्त्री जयन्ती
०३ - अमृतलाल वेगड़ जन्म १९२८
०४- विश्व अंतरिक्ष सप्ताह, विश्व पशु कल्याण दिवस, राष्ट्रीय अखंडता दिवस / संत गणेश प्रसाद वरनी जयन्ती, आचार्य रामचंद्र शुक्ल जन्म १८८४, दुर्गा भाभी निधन १९९९, ,
०५ - विश्व शिक्षक दिवस, रानी दुर्गावती जयंती / संत तुकडो जी महाराज पुण्यतिथि, भगवतीचरण वर्मा निधन १९८१,
०६. डॉ. मेघनाद साहा जन्म १८९३, विश्व दृष्टि दिवस (अक्टूबर दूसरा गुवार )
०८ - भारतीय वायु सेना दिवस, प्रेमचंद निधन १९३६ , जे. पी. निधन १९७९ पटना,
०९ - विश्व डाक दिवस, सीताराम कंवर बलिदान दिवस / .
१० - विश्व मानसिक स्वस्थ्य दिवस / राष्ट्रीय डाक-तार दिवस.
११ - अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस, जयप्रकाश नारायण जन्म १९०२, महीयसी महादेवी निधन १९७१, अमिताभ बच्चन जन्म १९४२,
१२ - राष्ट्रीय किसान दिवस, राम मनोहर लोहिया निधन १९६७,
१३ - विश्व दृष्टि दिवस (अक्टूबर दूसरा गुरुवार), अंतर्राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण दिवस
१४ : विश्व मानक दिवस
१५ - ग्लोबल हैंडवाशिंग दिवस, अंतर्राष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवसनिराला निधन १९६१, डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जन्म १९३१, साई बाबा शिरडी निधन १९१८
१६ - विश्व खाद्य दिवस
१७ - अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस, शिवानी जन्म,
१९ - संगीतकार रविंद्र जैन निधन २०१५,
२० : विश्व सांख्यिकी दिवस
२१ - आजाद हिन्द फ़ौज स्थापना दिवस ,
२२ - स्वामी रामतीर्थ जन्म १८७३, अशफाक उल्ला खां जन्म १९००,
२४ - संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस, विश्व विकास सूचना दिवस
२५ - निर्मल वर्मा निधन २००५,
२६ - गणेश शंकर विद्यार्थी जयंती १८९०,
२७ : पैदल सेना दिवस (इंफेंट्री डे)
३१ - सरदार पटेल जन्म १८७५ / इंदिरा गाँधी पुण्य तिथि / राष्ट्रीय एकता दिवस /अमृता प्रीतम निधन २००५, के. पी. सक्सेना निधन २०१३
००० 
वैश्विक वृद्ध दिवस पर
गीत
जो थक-चुका वृद्ध वह ही है
अपना मन अब भी जवान है
अगिन हौसले बहुत जान है...
जब तक श्वासा, तब तक आशा
पल में तोला, पल में माशा
कटु झट गुटको, बहुत देर तक
मुँह में घुलता रहे बताशा
खुश रहना, खुश रखना जाने
जो वह रवि सम भासमान है
उसका अपना आसमान है...
छोड़ बड़प्पन बनकर बच्चा
खुद को दे तू खुद ही गच्चा
मिले दिलासा झूठी भी तो
ले सहेज कह जुमला सच्चा
लेट बिछा धरती की चादर
आँख मुँदे गायब जहान है
आँख खुले जग भासमान है...
गिनती कर किससे क्या पाया?
जोड़ कहाँ क्या लुटा गँवाया?
भुला पहाड़ा संचय का मन
जोड़ा छूटा काम न आया
काम सभी कर फल-इच्छा बिन
भुला समस्या, समाधान है
गहन तिमिर ही नव विज्ञान है
१.१०.२०२४
सॉनेट
*
रतजगा कर किताब को पढ़ना
पंखुड़ी गर गुलाब की पाओ
इश्किया गजल मौन रह गाओ
ख्वाब में ख्वाब कुछ नए गढ़ना।
मित्र का चित्र हृदय में मढ़ना
संग दिल संगदिल न हो जाओ
बाँह में चाह को सदा पाओ
हाथ में हाथ थाम कर बढ़ना।
बिंदु में सिंधु ज्यों समाया हो
नेह से नेह को समेटें हम
दूर होने न कभी, हम भेंटें।
गीत ने गीत गुनगुनाया हो
प्रेम से प्रेम को लपेटें हम
चाँद को ताक जमीं पर लेटें।
१-१०-२०२३
***
आदि शक्ति वंदना
*
आदि शक्ति जगदम्बिके, विनत नवाऊँ शीश.
रमा-शारदा हों सदय, करें कृपा जगदीश....
*
पराप्रकृति जगदम्बे मैया, विनय करो स्वीकार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
अनुपम-अद्भुत रूप, दिव्य छवि, दर्शन कर जग धन्य.
कंकर से शंकर रचतीं माँ!, तुम सा कोई न अन्य..
परापरा, अणिमा-गरिमा, तुम ऋद्धि-सिद्धि शत रूप.
दिव्य-भव्य, नित नवल-विमल छवि, माया-छाया-धूप..
जन्म-जन्म से भटक रहा हूँ, माँ ! भव से दो तार.
चरण-शरण जग, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
नाद, ताल, स्वर, सरगम हो तुम. नेह नर्मदा-नाद.
भाव, भक्ति, ध्वनि, स्वर, अक्षर तुम, रस, प्रतीक, संवाद..
दीप्ति, तृप्ति, संतुष्टि, सुरुचि तुम, तुम विराग-अनुराग.
उषा-लालिमा, निशा-कालिमा, प्रतिभा-कीर्ति-पराग.
प्रगट तुम्हीं से होते तुम में लीन सभी आकार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
वसुधा, कपिला, सलिलाओं में जननी तव शुभ बिम्ब.
क्षमा, दया, करुणा, ममता हैं मैया का प्रतिबिम्ब..
मंत्र, श्लोक, श्रुति, वेद-ऋचाएँ, करतीं महिमा गान-
करो कृपा माँ! जैसे भी हैं, हम तेरी संतान.
ढाई आखर का लाया हूँ,स्वीकारो माँ हार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
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: अलंकार चर्चा १४ :
पुनरुक्तवदाभास अलंकार
*
जब प्रतीत हो, हो नहीं, काव्य-अर्थ-पुनरुक्ति
वदाभास पुनरुक्त कह, अलंकार कर युक्ति
जहँ पर्याय न मूल पर, अन्य अर्थ आभास.
तहँ पुनरुक्त वदाभास्, करता 'सलिल' उजास..
शब्द प्रयोग जहाँ 'सलिल', ना पर्याय- न मूल.
वदाभास पुनरुक्त है, अलंकार ज्यों फूल..
काव्य में जहाँ पर शब्दों का प्रयोग इस प्रकार हो कि वे पर्याय या पुनरुक्त न होने पर भी पर्याय प्रतीत हों पर अर्थ अन्य दें, वहाँ पुनरुक्तवदाभास अलंकार होता है.
किसी काव्यांश में अर्थ की पुनरुक्ति होती हुई प्रतीत हो, किन्तु वास्तव में अर्थ की पुनरुक्ति न हो तब पुनरुक्तवदाभास अलंकार होता है।
उदाहरण:
१. अली भँवर गूँजन लगे, होन लगे दल-पात
जहँ-तहँ फूले रूख तरु, प्रिय प्रीतम कित जात
अली = सखी, भँवर = भँवरा, दल -पत्ते, पात = पतन, रूख = रूखे, तरु = पेड़, प्रिय = प्यारा, प्रीतम = पति।
२.
आतप-बरखा सह 'सलिल', नहीं शीश पर हाथ.
नाथ अनाथों का कहाँ?, तात न तेरे साथ..
यहाँ 'आतप-बरखा' का अर्थ गर्मी तथा बरसात नहीं दुःख-सुख, 'शीश पर हाथ' का अर्थ आशीर्वाद, 'तात' का अर्थ स्वामी नहीं पिता है.
३.
वे बरगद के पेड़ थे, पंछी पाते ठौर.
छाँह घनी देते रहे, उन सा कोई न और..
यहाँ 'बरगद के पेड़' से आशय मजबूत व्यक्ति, 'पंछी पाते ठौर' से आशय संबंधी आश्रय पाते, छाँह घनी का मतलब 'आश्रय' तथा और का अर्थ 'अन्य' है.
४.
धूप-छाँव सम भाव से, सही न खोया धीर.
नहीं रहे बेपीर वे, बने रहे वे पीर..
यहाँ धूप-छाँव का अर्थ सुख-दुःख, 'बेपीर' का अर्थ गुरुहीन तथा 'पीर' का अर्थ वीतराग होना है.
५.
पद-चिन्हों पर चल 'सलिल', लेकर उनका नाम.
जिनने हँस हरदम किया, तेरा काम तमाम..
यहाँ पद-चिन्हों का अर्थ परंपरा, 'नाम' का अर्थ याद तथा 'काम तमाम' का अर्थ समस्त कार्य है.
६. . देखो नीप कदंब खिला मन को हरता है
यहाँ नीप और कदंब में में एक ही अर्थ की प्रतीति होने का भ्रम होता है किन्तु वास्तव में ऐसा है नहीं। यहाँ नीप का अर्थ है कदंब जबकि कदंब का अर्थ है वृक्षों का समूह।
७. जन को कनक सुवर्ण बावला कर देता है
यहाँ कनक और सुवर्ण में अर्थ की पुनरुक्ति प्रतीत होती है किन्तु है नहीं। कनक का अर्थ है सोना और सुवर्ण का आशय है अच्छे वर्ण का।
८. दुल्हा बना बसंत, बनी दुल्हिन मन भायी
दुल्हा और बना (बन्ना) तथा दुल्हिन और बनी (बन्नी) में पुनरुक्ति का आभास भले ही हो किन्तु दुल्हा = वर और बना = सज्जित हुआ, दुल्हिन = वधु और बनी - सजी हुई. अटल दिखने पर भी पुनरुक्ति नहीं है।
९. सुमन फूल खिल उठे, लखो मानस में, मन में ।
सुमन = फूल, फूल = प्रसन्नता, मानस = मान सरोवर, मन = अंतर्मन।
१० . निर्मल कीरति जगत जहान।
जगत = जागृत, जहां = दुनिया में।
११. अली भँवर गूँजन लगे, होन लगे दल-पात
जहँ-तहँ फूले रूख तरु, प्रिय प्रीतम कित जात
अली = सखी, भँवर = भँवरा, दल -पत्ते, पात = पतन, रूख = रूखे, तरु = पेड़, प्रिय = प्यारा, प्रीतम = पति।
***
मुक्तिका: यास्मीन
*
पूरी बगिया को महकाती यास्मीन चुप
गले तितलियों से लग गाती यास्मीन चुप
*
चढ़े शारदा के चरणों में किस्मतवाली
सबद, अजान, भजन बन जाती यास्मीन चुप
*
जूही-चमेली-चंपा के सँग आँखमिचौली
भँवरे को ठेंगा दिखलाती यास्मीन चुप
*
शीश सुहागिन के सज, दिखलाती है सपने
कानों में क्या-क्या कह जाती यास्मीन चुप
*
पाकीज़ा शबनम से मिलकर मुस्काती है
देख उषा को खिल जाती है यास्मीन चुप
***
मुक्तिका: हिंदी
हिंदी प्रातः श्लोक है, दोपहरी में गीत
संध्या वंदन-प्रार्थना, रात्रि प्रिया की प्रीत
.
हम कैसे नर जो रहे, निज भाषा को भूल
पशु-पक्षी तक बोलते, अपनी भाषा मीत
.
सफल देश पढ़-पढ़ाते, निज भाषा में पाठ
हम निज भाषा भूलते, कैसी अजब अनीत
.
देशवासियों से कहें, ओबामा सच बात
बिन हिंदी उन्नति हुई, सचमुच कठिन प्रतीत
.
हिंदी का ध्वज थामकर, जय भारत की बोल
लानत उन पर दास जो, अंग्रेज़ी के क्रीत
.
हम स्वतंत्र फिर क्यों नहीं, निज भाषा पर गर्व
करे 'सलिल', क्यों हम हुए, अंग्रेजी से भीत?
.
पर भाषा मेहमान है, सौंप न तू घर-द्वार
निज भाषा गृह स्वामिनी, अपनाकर पा जीत
***
षटपदी :
आँखों में सपने हसीं, अधरों पर मुस्कान
सुख-दुःख की सीमा नहीं, श्रम कर हों गुणवान
श्रम कर हों गुणवान, बनेंगे मोदी जैसे
बौने हो जायेंगे सुख-सुविधाएँ पैसे
करें अनुसरण जग में प्रेरित मानव लाखों
श्रम से जय कर जग मुस्कायें आँखों-आँखों
१.१०.२०१५
***
गीत:
ज्ञान सुरा पी.…
*
ज्ञान सुरा पी बहकें ज्ञानी,
श्रेष्ठ कहें खुद को अभिमानी।
निज मत थोप रहे औरों पर-
सत्य सुनें तो मरती नानी…
*
हाँ में हाँ चमचे करते हैं,
ना पर मिल टूटे पड़ते हैं.
समाधान स्वीकार नहीं है-
सद्भावों को चुभ-गड़ते हैं.
खुद का खुद जयकारा बोलें
कलह करेंगे मन में ठानी…
*
हिंदी की खाते हैं रोटी,
चबा रहे उर्दू की बोटी.
अंग्रेजी के चाकर मन से-
तनखा पाते मोटी-मोटी.
शर्म स्वदेशी पर आती है
परदेशी इनके मन भानी…
*
मोह गौर का, असित न भाये,
लख अमरीश अकल बौराये.
दिखे चन्द्रमा का कलंक ही-
नहीं चाँदनी तनिक सुहाये.
सहज बुद्धि को कोस रहे हैं
पी-पीकर बोतल भर पानी…
१-१०-२०१३
(असितांग = शिव का एक रूप, असित = अश्वेत, काला (शिव, राम, कृष्ण, गाँधी, राजेन्द्र प्रसाद सभी अश्वेत), असिताम्बुज = नील कमल

अमर = जिसकी मृत्यु न हो. अमर + ईश = अमरीश = देवताओं के ईश = महादेव. वाग + ईश = वागीश।) 

गुरुवार, 18 सितंबर 2025

सितंबर १८, गीत, हिंदी, दोहे, यमक, अलंकार,


सितंबर १८
*
युगीय गीत
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हो रही खंडित ईकाई प्रभु बचाए
पूर्ण कंपित, अंश डँसता मुस्कुराए
एक पर निष्ठा नहीं रह गई बाकी
दो न अनगिन को पिलाए सुरा साकी
बाँह में इक, चाह में दुई, देख तीजी-
बहक मन ने खोज चौथी राह ताकी
आ प्रपंचन पाँचवी घर-घट दिखाए
हो रही खंडित ईकाई प्रभु बचाए
दूध छठ का छठी को लख याद आए
सातवीं आ दिवस में तारे दिखाए
आठवीं ने खड़ी कर दी खाट पल में-
नाश करने आई नौवीं पथ भुलाए
देह दुर्गज दहाई को शून्य पाए
हो रही खंडित ईकाई प्रभु बचाए
घटा-जोड़ा जो नहीं कुछ हाथ आया
गुणा गुण का भाग दे अवगुण बनाया
भिन्न ने अभिन्न हो अवमूल्यन कर-
नीति को बेदाम कर बेदम कराया
वरण कर बदनाम का अंधे कहाए
हो रही खंडित ईकाई प्रभु बचाए
पीढ़ियों की सीढ़ियों की नींव खोई
माँग जा बाजार में बेजार रोई
पूर्ति को मंहगाई ने बंधक बनाया-
मूलधन की नाव ब्याजों ने डुबोई
पूंजियों ने प्राण श्रम के नोच खाए
हो रही खंडित ईकाई प्रभु बचाए
अर्थ ने न्योता अनर्थों को अजाने
पुजारी रख पूज्य गिरवी लगा खाने
वर्गमूलों पर करें आघात घातें-
वक्फ की दौलत लगा मुल्ला उड़ाने
पादरी को ननों का सौंदर्य भाए
हो रही खंडित ईकाई प्रभु बचाए
सियासत ने सिया-सत को खो दिया है
आग घर में लगाता जलता दिया है
शारदा को लक्ष्मी नीलाम करती-
प्रेयसी-हाथों छला जाता पिया है
नाव में पतवार बच, नौका डुबाए
हो रही खंडित ईकाई प्रभु बचाए
दस दिशाओं से तिमिर ने हमें घेरा
आठ प्रहरों से दुखी संध्या-सवेरा
बजा बारह बारहों महिने ठठाते-
हुआ बेघर घर, लगे भूतों का डेरा
न्याय को अन्याय नीलामी चढ़ाए
हो रही खंडित ईकाई प्रभु बचाए
१८.९.२०२५
०००
हिंदी की तस्वीर
*
हिंदी की तस्वीर के, अनगिन उजले पक्ष
जो बोलें वह लिख-पढ़ें, आम लोग, कवि दक्ष
*
हिदी की तस्वीर में, भारत एकाकार
फूट डाल कर राज की, अंग्रेजी आधार
*
हिंदी की तस्वीर में, सरस सार्थक छंद
जितने उतने हैं कहाँ, नित्य रचें कविवृंद
*
हिंदी की तस्वीर या, पूरा भारत देश
हर बोली मिलती गले, है आनंद अशेष
*
हिंदी की तस्वीर में, भरिए अभिनव रंग
उनकी बात न कीजिए, जो खुद ही भदरंग
*
हिंदी की तस्वीर पर अंग्रेजी का फेम
नौकरशाही मढ़ रही, नहीं चाहती क्षेम
*
हिंदी की तस्वीर में, गाँव-शहर हैं एक
संस्कार-साहित्य मिल, मूल्य जी रहे नेक
१८.९.२०१६
***
:अलंकार चर्चा ०९ :
यमक अलंकार
भिन्न अर्थ में शब्द की, हों आवृत्ति अनेक
अलंकार है यमक यह, कहते सुधि सविवेक
पंक्तियों में एक शब्द की एकाधिक आवृत्ति अलग-अलग अर्थों में होने पर यमक अलंकार होता है. यमक अलंकार के अनेक प्रकार होते हैं.
अ. दुहराये गये शब्द के पूर्ण- आधार पर यमक अलंकार के ३ प्रकार १. अभंगपद, २. सभंगपद ३. खंडपद हैं.
आ. दुहराये गये शब्द या शब्दांश के सार्थक या निरर्थक होने के आधार पर यमक अलंकार के ४ भेद १.सार्थक-सार्थक, २. सार्थक-निरर्थक, ३.निरर्थक-सार्थक तथा ४.निरर्थक-निरर्थक होते हैं.
इ. दुहराये गये शब्दों की संख्या अर्थ के आधार पर भी वर्गीकरण किया जा सकता है.
उदाहरण :
१. झलके पद बनजात से, झलके पद बनजात
अहह दई जलजात से, नैननि सें जल जात -राम सहाय
प्रथम पंक्ति में 'झलके' के दो अर्थ 'दिखना' और 'छाला' तथा 'बनजात' के दो अर्थ 'पुष्प' तथा 'वन गमन' हैं. यहाँ अभंगपद यमक अलंकार है.
द्वितीय पंक्ति में 'जलजात' के दो अर्थ 'कमल-पुष्प' और 'अश्रु- पात' हैं. यहाँ सभंग यमक अलंकार है.
२. कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय
या खाये बौराय नर, वा पाये बौराय
कनक = धतूरा, सोना -अभंगपद यमक
३. या मुरली मुरलीधर की, अधरान धरी अधरा न धरैहौं
मुरली = बाँसुरी, मुरलीधर = कृष्ण, मुरली की आवृत्ति -खंडपद यमक
अधरान = पर, अधरा न = अधर में नहीं - सभंगपद यमक
४. मूरति मधुर मनोहर देखी
भयेउ विदेह विदेह विसेखी -अभंगपद यमक, तुलसीदास
विदेह = राजा जनक, देह की सुधि भूला हुआ.
५. कुमोदिनी मानस-मोदिनी कहीं
यहाँ 'मोदिनी' का यमक है. पहला मोदिनी 'कुमोदिनी' शब्द का अंश है, दूसरा स्वतंत्र शब्द (अर्थ प्रसन्नता देने वाली) है.
६. विदारता था तरु कोविदार को
यमक हेतु प्रयुक्त 'विदार' शब्दांश आप में अर्थहीन है किन्तु पहले 'विदारता' तथा बाद में 'कोविदार' प्रयुक्त हुआ है.
७. आयो सखी! सावन, विरह सरसावन, लग्यो है बरसावन चहुँ ओर से
पहली बार 'सावन' स्वतंत्र तथा दूसरी और तीसरी बार शब्दांश है.
८. फिर तुम तम में मैं प्रियतम में हो जावें द्रुत अंतर्ध्यान
'तम' पहली बार स्वतंत्र, दूसरी बार शब्दांश.
९. यों परदे की इज्जत परदेशी के हाथ बिकानी थी
'परदे' पहली बार स्वतंत्र, दूसरी बार शब्दांश.
१०. घटना घटना ठीक है, अघट न घटना ठीक
घट-घट चकित लख, घट-जुड़ जाना लीक
११. वाम मार्ग अपना रहे, जो उनसे विधि वाम
वाम हस्त पर वाम दल, 'सलिल' वाम परिणाम
वाम = तांत्रिक पंथ, विपरीत, बाँया हाथ, साम्यवादी, उल्टा
१२. नाग चढ़ा जब नाग पर, नाग उठा फुँफकार
नाग नाग को नागता, नाग न मारे हार
नाग = हाथी, पर्वत, सर्प, बादल, पर्वत, लाँघता, जनजाति
जबलपुर, १८-९-२०१५
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रविवार, 7 सितंबर 2025

हिंदी, सिंहली, भाषा सेतु, भारत, श्रीलंका, देवनागरी

हिंदी और सिंहली : एक अध्ययन   

                    हिंदी और सिंहली, दोनों ही भाषाएँ इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार से संबंधित हैं। श्रीलंका की मुख्य भाषा सिंहली, इंडो-आर्यन भाषा परिवार का अंग है।  सिंहली भाषा सीलोन (श्रीलंका) में राजा अशोक द्वारा बौद्ध धर्म के प्रचार के साथ अस्तित्व में आई। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में  भारतीय बौद्ध धर्म प्रचारक पाली/संस्कृत बोलते थे। उनके प्रारंभिक उपदेशों में पाली, संस्कृत, तमिल तथा अन्य स्थानीय बोलियों का मिश्रण होता था।  क्रमश: उन्होंने सिंहली को एक नई भाषा बना दिया। सिंहली व्याकरण, वर्णमाला और ध्वन्यात्मक संरचना तमिल से समानता रखती है। संस्कृत और पाली के प्रभाव के कारण सिंहली भाषा में बा, गा और फा को छोड़कर दोनों भाषाओं में अक्षरों की संख्या लगभग समान है। 

                    हिंदी भारत की एक प्रमुख भाषा है। दोनों भाषाओं की व्याकरणिक संरचना में  संस्कृत और पाली के प्रभाव के कारण कुछ समानताएँ हैं। हिंदी में पाली, संस्कृत, अरबी और उत्तर भारत, मध्य प्रदेश, बिहार, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र आदि की स्थानीय बोलियों का प्रभाव  है। इसका कारण भाषिक क्षेत्रों में वैवाहिक संबंध, श्रमिक आप्रवासी तथा व्यापार-वाणिज्य है। हिंदी और सिंहली में कई ऐसे शब्द समान हैं जिनकी जड़ें संस्कृत और पाली में हैं। 

शब्द-भंडार:
                    सिंहली भाषा में पार्किएर्ट+ तमिल+ बाली+ मिस्री भाषाओं के शब्द अधिक हैं। हिंदी भाषा में अपभ्रंश, संस्कृत, उर्दू , पुर्तगाली, जापानी, अंग्रेजी आदि सहित विश्व की अनेक भाषाओं के शब्द हैं। दोनों भाषाओं में विज्ञान संबंधी विषयों के अध्ययन के लिए अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग क्रमश: बढ़ता जा रहा है। हिंदी-सिंहली तथासिंहली-हिंदी में जीवन के विविध आयामों से संबंधित साहित्य का अनुवाद कार्य किया जाए तो न केवल दो भाषाओं अपितु दो देशों के मध्य संबंध सुदृढ़ होंगे जिससे दोनों देशों में पर्यटन, शिक्षा, साहित्य तथा व्यापार-वाणिज्य को प्रातसहन मिलेगा और आर्थिक समृद्धि का पथ प्रशस्त होगा। 

समानताएँ:
                    हिंदी और सिंहली दोनों भाषाएँ इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार से संबंधित हैं, जो उनकी संरचना और शब्दावली में कुछ समानताएँ लाती है। दोनों भाषाओं पर संस्कृत और पाली भाषाओं का प्रभाव है, जिससे व्याकरण और शब्दावली में कुछ समानताएँ और कुछ भिन्नताएँ होना स्वाभाविक है। .

द्वि रूपता:
                    हिंदी और सिंहली दोनों में  साहित्यिक भाषा और सामान्य जन-जीवन या बाजार में बोली जाने वाली भाषा में अंतर होता है। हिंदी  में स्थानीय बोलिओं के प्रभाव इसकी बहुवर्णीय छटाओं (बुंदेली, बृज, अवधी, भोजपुरी, मैथिली, मालवी, निमाड़ी, मारवाड़ी, मेवाड़ी आदि) को जन्म देता है।
बोलचाल की सिंहली साहित्यिक सिंहली से काफी अलग है।  

बोलचाल की सिंहली

मैंने किया = मामा / मांग कला।

हमने किया = अपी कला.

आपने (अभद्र, एकवचन) किया = उम्बा काला।

आपने (अभद्र, बहुवचन) किया = उम्बाला कला।

आपने (विनम्र, एकवचन) किया = ओया कला।

आपने (विनम्र, बहुवचन) किया = ओयाला / ओयागोलो काला।

उसने किया = ईया कला.

उसने किया = ईया कला.

उन्होंने किया = इयाला / एगोलो काला।

वर्तमान काल

मैं करता हूँ = मामा / मांग कारणवा।

हम करते हैं = अपि कारणवा।

आप (एकवचन) करते हैं = ओया / उम्बा करणवा।

आप (बहुवचन) करते हैं = ओयाला / उम्बाला करनवा।

वह करता है = एया कारणवा।

वह करती है = एया कारणवा।

वे करते हैं = इयाला / एगोलो करणवा।

भविष्य काल

मैं करूँगा = मामा कारणवा।

मैं कल कार चलाऊंगा = मामा / मांग हेता कार एका ड्राइव करानावा।

ठीक है, मैं कल कार चलाऊंगा = हरि, मामा / मांग हेता कार एका ड्राइव करनांग।

हम करेंगे = अपि कारणवा।

हम कल कार को पेंट करेंगे = अपी हेता कार एका पेंट करनावा।

चलो कल कार को पेंट करते हैं = Api heta Car eka Paint karamu.

आप (एकवचन) करेंगे = ओया कराई।

आप (बहुवचन) करेंगे = ओयाला / ओयागोलो कराई।

वह करेगा = ईया कराई।

वह करेगी = ईया कराई।

वे करेंगे = इयाला / एगोलो कराई।

भूतकाल

साहित्यिक सिंहली 

मैंने किया = मामा कलेमी.

हमने किया = अपी कालेमु.

आपने (अशिष्ट, एकवचन) किया = नुम्बा कालेही। (संपादन सुझाएँ)

आपने (अशिष्ट, बहुवचन) किया = नम्बला कालेहु। (संपादन सुझाएँ)

आपने (विनम्र, एकवचन) किया = ओबा कालेही। (संपादन सुझाएँ)

आपने (विनम्र, बहुवचन) किया = ओबाला कालेहु। (संपादन सुझाएँ)

उसने किया = ओहु कालेया.

उसने किया = ईया कलाया.

उन्होंने किया = ओवुन कालोया / कलहा। 

ध्वनि:
                    सिंहली में, कुछ ध्वनियाँ (महाप्राण व्यंजन) हिंदी से अलग हैं। हिंदी के महाप्राण व्यंजन वे हैं जिनके उच्चारण में मुख से अधिक वायु निकलती है जबकि अल्प प्राण व्यंजनों का उच्चारण करते समय मुख से वायु प्रवाह कम होता है।  महाप्राण व्यंजन में सभी वर्ग (क, च, ट, त, प) का दूसरा और चौथा वर्ण तथा सभी ऊष्म वर्ण (श, ष, स, ह) शामिल हैं। इस प्रकार ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ, श, ष, स, ह और एक उच्छिप्त व्यंजन ढ़, हिंदी के १५ महाप्राण व्यंजन कहलाते हैं। सिंहली भाषा (sinhala) में महाप्राण व्यंजन में ध्वन्यात्मक अंतर को दर्शाने के लिए ऐतिहासिक रूप से मौजूद महाप्राण ध्वनियों को वर्तनी में दिखाया जाता है। आधुनिक सिंहली ध्वनियों में महाप्राण और अल्पप्राण ध्वनियों के बीच वास्तविक अंतर नहीं है, क्योंकि सभी ध्वनियों को शुद्ध अक्षरों से दर्शाया जा सकता है। कुछ व्यंजन समूहों को सिंहली में अनुमति दी जाती है, जैसे कि संस्कृत से लिए गए "प्रश्नाय" (praśnaya) शब्द में, लेकिन यह जटिल व्यंजन समूह ऋण शब्दों में ही मिलते हैं। सिंहली भाषा में महाप्राण व्यंजन का विचार मुख्य रूप से ऐतिहासिक वर्तनी और ध्वन्यात्मकताओं के संदर्भ में है, जबकि हिंदी में यह उच्चारण-आधारित अवधारणा है जिसमें अधिक वायु-प्रवाह के साथ उच्चारित होने वाले व्यंजन शामिल हैं। तमिल आदि भाषाओं में महाप्राण व्यञ्जन होते ही नहीं और अंग्रेजी आदि ऐसी भी भाषाएँ  हैं जिनमें महाप्राण और अल्पप्राण व्यञ्जन दोनों बोलनेवालों को एक जैसे प्रतीत होते हैं  

लिपि:
                    प्राचीन ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई देवनागरी और सिंहली लिपियाँ क्रमश: भारत और श्रीलंका में अलग-अलग भाषाओं के लेखन में प्रयुक्त होती तथा बाएँ से दाएँ लिखी जाती हैं। देवनागरी भारत की कई भाषाओं जैसे हिंदी, संस्कृत, मराठी और अनेक बोलियों) को लिखने में प्रयुक्त होती है, जबकि सिंहली श्रीलंका की आधिकारिक भाषा सिंहली को लिखने के काम आती है। दोनों लिपियाँ बाएँ से दाएँ लिखी जाती हैं और इनमें स्वर और व्यंजन होते हैं। भारत में किसी समय साक्षरता का पर्याय समझे जाने वाले कायस्थ समाज में प्रचलित कैथी आदि अन्य लिपियाँ समय के साथ काल के गाल में समा गईं जबकि मुगल और ब्रिटिश शासनकाल में प्रचाली हुई फारसी और रोमन लिपियाँ क्रमश: उर्दू और अंग्रेजी लेखन में प्रयुक्त हो रही हैं।  

                    देवनागरी प्राचीन भारत में पहली से चौथी शताब्दी ईस्वी तक विकसित और ७वीं शताब्दी ईस्वी तक नियमित उपयोग में रही। देवनागरी लिपि, जिसमें ५२ अक्षर (१४ स्वर और ३८ व्यंजन) हैं, दुनिया में चौथी सबसे व्यापक रूप से अपनाई जाने वाली लेखन प्रणाली है, जिसका उपयोग १२० से अधिक भाषाओं के लिए होता है। भारतीय ही नहीं विश्व की लगभग सभी भाषाओं के किसी भी शब्द या ध्वनि को देवनागरी लिपि में ज्यों का त्यों लिखा जा सकता है और फिर लिखे पाठ को लगभग 'हू-ब-हू' उच्चारण किया जा सकता है, जो कि रोमन लिपि और अन्य कई लिपियों में संभव नहीं है, जब तक कि उनका आइट्राँस या अंतर्राष्ट्रीय संस्कृत लिप्यंतरण वर्णमाला में विशेष मानकीकरण न किया जाए भारत तथा एशिया की अनेक लिपियों के संकेत देवनागरी से अलग होते हुए भी उच्चारण व वर्णक्रम आदि देवनागरी के ही समान हैं, क्योंकि उर्दू को छोड़कर वे सभी ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न हुई हैं। इसलिए इन लिपियों का परस्पर लिप्यंतरण आसानी से संभव है। देवनागरी लेखन की दृष्टि से सरल, सौंदर्य की दृष्टि से सुन्दर और वाचन की दृष्टि से सुपाठ्य है।

                    भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से देवनागरी लिपि अक्षरात्मक (सिलेबिक) लिपि है। लिपि की दृष्टि से "चित्रात्मक", "भावात्मक" और "भावचित्रात्मक" लिपियों के बाद "अक्षरात्मक" स्तर की लिपियों का विकास होना मान्य है।से लिपि की अक्षरात्मक अवस्था के बाद वर्णात्मक (अल्फाबेटिक) प्रणाली का विकास हुआ। ध्वन्यात्मक (फोनेटिक) लिपि सर्वकाधिक विकसित प्रणाली है। "देवनागरी" के वर्ण-अक्षर (सिलेबिल) स्वर भी हैं और व्यंजन भी।  "क", "ख" आदि सस्वर व्यंजन  केवल ध्वनियाँ नहींअपितु सस्वर अक्षर भी हैं। ग्रीक, रोमन आदि वर्णमालाएँ हैं। भारत की "ब्राह्मी" या "भारती" वर्णमाला की ध्वनियों में व्यंजनों का "पाणिनि" ने वर्णसमाम्नाय के १४ सूत्रों में जो स्वरूप परिचय दिया है, उसके विषय में "पतंजलि" (द्वितीय शताब्दी ई॰ पू॰) ने यह स्पष्ट कहा कि व्यंजनों में संनियोजित "अकार" स्वर का उपयोग केवल उच्चारण के उद्देश्य से है। वह तत्वतः वर्ण का अंग नहीं है। अत: देवनागरी लिपि की वर्णमाला तत्वतः ध्वन्यात्मक है, अक्षरात्मक नहीं।

                    सिंहली भाषा श्रीलंका में सर्वाधिक नागरिकों द्वारा बोली जानेवाली भाषा है। सिंहल द्वीप की विशेषता है कि उसमें बसनेवाली जाति और उस जाति द्वारा व्यवहृत होने वाली भाषा दोनों "सिंहल" हैं। अनेक भारतीय भाषाओं की लिपियों की तरह सिंहल भाषा की लिपि भी ब्राह्मी लिपि का ही परिवर्तित विकसित रूप हैं। सिंहल भाषा के दो रूप शुद्ध सिंहल तथा मिश्रित सिंहल हैं। शुद्ध सिंहल में  ३२  अक्षर अ, आ, ऍ, ऐ, इ, ई, उ, ऊ, ऒ, ओ, ऎ, ए क, ग ज ट ड ण त द न प ब म य र ल व स ह क्ष तथा अं हैं। सिंहल के प्राचीनतम व्याकरण ग्रन्थ सिदत्संगरा (Sidatsan̆garā (१३०० ए डी)) के अनुसार ऍ तथा ऐ - अ, तथा आ की ही मात्रा वृद्धि वाली मात्राएँ हैं। वर्तमान मिश्रित सिंहल ने अपनी वर्णमाला को न केवल पाली वर्णमाला के अक्षरों से समृद्ध कर लिया है, बल्कि संस्कृत वर्णमाला में भी जो और जितने अक्षर अधिक थे, उन सब को भी अपना लिया है। इस प्रकार वर्तमान मिश्रित सिंहल में अक्षरों की संख्या ५४ है। १८ अक्षर "स्वर" तथा शेष ३६ अक्षर  "व्यंजन" हैं। 

शब्द क्रम:
                    हिंदी और सिंहली दोनों में, शब्द क्रम कर्ता-कर्म-क्रिया या विषय-वस्तु-क्रिया (SOV सब्जेक्ट-ऑब्जेक्ट-वर्ब ) होता है, जो जापानी और कोरियाई जैसी कुछ अन्य एशियाई भाषाओं से साम्यता रखता है। 

वचन (संख्या भेद):
                    हिंदी, सिंहली और अंग्रेजी तीनों में  वचन दो (एकवचन और बहुवचन) होते हैं। संस्कृत में ३ वचन (एक वचन, द्वि वचन, तथा बहुवचन) होते हैं। 

काल:
                    हिंदी में ३ काल (वर्तमान, भूत और भविष्यत) होते हैं जबकि सिंहली में दो काल (वर्तमान तथा भूत) होते हैं। अंग्रेजी में ३ काल प्रेजेंट, पास्ट और फ्यूचर (Present-Past-Future)  होते हैं। 

लिंग:
                    हिंदी और शुद्ध सिंहल दोनों में दो लिंग स्त्रीलिंग और पुल्लिंग होते हैं। संकृत में ३ लिंग स्त्रीलिंग, पुल्लिंग और नपुंसक लिंग हॉटे हैं जबकि अंग्रेजी में ४ लिंग स्त्रीलिंग, पुल्लिंग, उभय लिंग और नपुंसक (फेमिनाइन, मैसक्यूलाइन, कॉमन और न्यूट्रल जेंडर) लिंग होते हैं। हिंदी का लिंगभेद समझना अहिंदीभाषियों के लिए कठिन है किंतु सिंहल भाषा इस दृष्टि से सरल है। वहाँ "अच्छा" शब्द के समानार्थी "होंद" शब्द का प्रयोग  "लड़का" तथा "लड़की" दोनों के लिए होता है।

पुरुष: 
                    हिंदी और सिंहल दोनों  में तीन पुरुष- प्रथम पुरुष, मध्यम पुरुष तथा उत्तम पुरुष। तीनों पुरुषों में व्यवहृत होने वाले सर्वनामों के आठ कारक हैं, जिनकी अपनी-अपनी विभक्तियाँ हैं। "कर्म" के बाद प्राय: "करण" कारक की गिनती होती है, किंतु सिंहल के आठ कारकों में "कर्म" तथा "करण" के बीच में "कर्तृ" कारक है। "संबोधन" कारक नहीं होने से "कर्तृ" कारक के बावजूद ८ कारक हैं। 

क्रिया:

                    सिंहल व्याकरण अधिकांश बातों में संस्कृत तथा हिंदी के समान है किंतु उसमें संस्कृत की तरह न तो  "परस्मैपद" तथा "आत्मनेपद" हैं, न ही लट्, लोट् आदि दस लकार। सिंहल में क्रियाओं के आठ प्रकार कर्ता कारक क्रिया, कर्म कारक क्रिया, प्रयोज्य क्रिया, विधि क्रिया, आशीर्वाद क्रिया, असंभाव्य, पूर्व क्रिया तथा मिश्र क्रिया हैं। 

संधि:

                    शुद्ध सिंहल में संधियों के दस प्रकार हैं। आधुनिक सिंहल में संस्कृत शब्दों की संधि अथवा संधिच्छेद संस्कृत व्याकरणों के नियमों के अनुसार किया जाता है। "एकाक्षर" अथवा "अनेकाक्षरों" के समूह पदों को भी संस्कृत की ही तरह चार भागों में विभक्त किया जाता है - नामय, आख्यात, उपसर्ग तथा निपात। सिंहल में हिंदी की ही तरह दो वचन (एकवचन" तथा "बहुवचन") हैं, संस्कृत की तरह "द्विवचन" नहीं है। 

मुहावरे, लोकोक्तियाँ:

                    प्रत्येक भाषा के मुहावरे उसके अपने होते हैं। दूसरी भाषाओं में उनके ठीक-ठीक पर्याय खोजना व्यर्थ की कसरत है। अनुभव साम्य के कारण दो भिन्न जातियों द्वारा बोली जाने वाली दो भिन्न भाषाओं में एक जैसी मिलती-जुलती कहावतें उपलब्ध हो सकती हैं। सिंहल तथा हिंदी के कुछ मुहावरों तथा कहावतों में एकरूपता होते हुए भी अधिकतर भिन्नता है। 

सिंहली मुहावरे 

मुहावराहिंदी अनुवादअर्थ
इंगुरू दीला मिरिस गत्था वेज जैसे अदरक की जगह मिर्च लेना किसी बुरी चीज़ से छुटकारा पाने के बाद, उससे भी बुरी चीज़ मिलती है।
रावुलाई केंदई देकामा बेरागन्ना बाए कोई भी व्यक्ति अपनी मूछों पर दलिया लगे बिना इसे पी नहीं सकता।ऐसी स्थिति जहाँ दो विकल्प समान रूप से महत्वपूर्ण हों।
वेराडी गहाता केतुवे गलत पेड़ पर चोंच मार दी।कठिन कार्य करने के प्रयास में मुसीबत में पड़ जाना।
हिसाराधेता कोट्टे मारु काला वेगी सिर दर्द से छुटकारा पाने के लिए तकिया बदलना।किसी समस्या का वास्तविक कारण ढूंढकर उसे ठीक करने का प्रयास करना चाहिए।
गंगाता केपु इनि वेज जैसे बाड़ के खंभे काटकर उन्हें नदी में फेंक देना।ऐसे व्यर्थ कार्यों करना जिनसे कोई लाभ या प्रतिफल नहीं मिला है।
जिया लूला महा एका लू जो मछली आपके हाथ से बच निकली है वह सबसे बड़ी है।एक बड़े अवसर के नुकसान का वर्णन करता है।
गहाता पोत्था वेगी एक दूसरे के उतने ही करीब जितने पेड़ की छाल तने के करीब होती है।वास्तव में करीबी दोस्तों/लोगों का वर्णन करता है।
मिति थेनिन वाथुरा बहिनावा पानी सबसे निचले बिंदु से नीचे की ओर बहता है।जब गरीब और निर्दोष लोगों के साथ दूसरों द्वारा बुरा व्यवहार किया जाता है।
अनुंगे मगुल दाता थमांगे अडारे पेनवन्ना वेगी जैसे वह व्यक्ति जो किसी दूसरे की शादी में अपना आतिथ्य दिखाता है।जब कोई व्यक्ति किसी विशेष अनुकूल परिस्थिति का लाभ उठाता है, और उसका श्रेय लेने का प्रयास करता है।
कटुगाले पिपुनु माला वेगी उस फूल की तरह जो झाड़ियों के बीच खिलता है।आमतौर पर यह उस व्यक्ति को संदर्भित करता है जो भ्रष्ट और अनैतिक लोगों से घिरे होने पर भी धर्मी बना रहता है।
एंजेय इंदन काना कनवालु सींग पर बैठकर कान से भोजन लेना।साथ रहते हुए भी चोट पहुँचाना या फायदा उठाना।
मिते उन कुरुल्ला अरला गाहे उन कुरुल्ला अल्लीमाता गिया वेगी हाथ में लिए पक्षी को छोड़कर पेड़ पर चढ़े हुए पक्षी को पकड़ने की कोशिश करना।हाथ में एक पक्षी जंगल में दो पक्षियों से बेहतर है।
ओरुवा पेरलुना पिटा होंडाई कीवा वेगी जैसे यह कहना कि नाव पलटने पर नीचे का हिस्सा बेहतर होता है।जब कोई व्यक्ति बुरी परिस्थिति में भी उजला पक्ष देखने का प्रयास करता है।
एंजें अतायक गन्नावा वेगी जैसे किसी के शरीर से हड्डी मांगना।जब कोई व्यक्ति किसी का उपकार करने में बहुत अनिच्छुक हो।
अल्लापु अट्ठथ न, पया गहापु अथथथ न हाथ में पकड़ी शाखा तथा जिस शाखा पर पैर टिके हों, दोनों को खोना।जब कोई व्यक्ति अधिक पाने की कोशिश करता है और अंत में वह सब खो देता है जो उसके पास पहले से था।
आनंदी हाथ देनागे केंदा हलिया वागेई सात अण्डीयों के कुन्जी (दलिया) के बर्तन की तरह।हर व्यक्ति योगदान देने की बात कहे लेकिन वास्तव में कोई भी योगदान न करे। 
बलालुन लावा कोस अता बावा वेगी बिल्लियों से भुने हुए जैक बीजों को आग से बाहर निकालने को कहना।जब किसी व्यक्ति का उपयोग किसी अन्य के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है।
यकाता बया नाम सोहोने गेवल हदन्ने हेहे जो लोग शैतान से डरते हैं वे कब्रिस्तान पर घर नहीं बनाएंगे।यदि आप किसी चीज़ से डरते हैं, तो आप जानबूझकर खुद को उसके दायरे में नहीं रखेंगे।

सिंहली कहावतें

कहावतअंग्रेजी अनुवादअर्थ
पिरुनु काले दिया नोसेले पानी भरा बर्तन हिलाने पर आवाज नहीं करता।जिन्हें कम जानकारी है वे बहुत अधिक बोलते हैं, जबकि जिन्हें अच्छी जानकारी है वे चुप रहते हैं।
उगुराता होरा बेहेथ गन्ना बा गले को बताए बिना दवा नहीं निगल सकते।आप अपने आप से सच्चाई नहीं छिपा सकते।
उदा पन्नोथ बीमा वटेलु उत्थान के बाद पतन अवश्यंभावी है।जो चीज ऊपर उठी है , उसे अंततः नीचे गिरना ही होगा।
उनाहापुलुवेगे पतिया उता मानिकक लू लोरिस का बच्चा उसके लिए एक रत्न है एक व्यक्ति के लिए बेकार चीज़ दूसरे के लिए बहुत मूल्यवान हो सकती है।
अथथिन अट्ठथा पनीना कुरुल्ला थीमी नासी जो पक्षी वर्षा से बचने हेतु एक डालसे दूसरी डाल पर कूदता है, ठंड से मर जाता है।पक्ष बदलना या लगातार किसी समस्या से भागना आपको दीर्घकाल में नुकसान पहुँचाएगा।
अंदायाता मोना पाहन एलियादा अंधे आदमी के लिए दीपक किस काम का?लोगों को ऐसी चीजें न दें जिनका वे उपयोग न कर सकें।
हदीसियता कोरोस कटेथ अथलंता बारिलु जल्दबाजी में कोई व्यक्ति अपना हाथ मिट्टी के बर्तन में भी नहीं डाल सकता।जल्दबाजी और जल्दबाजी में काम करने से आप साधारण चीजों को नजरअंदाज कर देते हैं।
काना कोकागे सुदा पेनेने इगिलुनामालु सारस की सफेदी केवल तभी दिखाई देती है जब वह उड़ता है।लोगों को किसी चीज़ का मूल्य तभी पता चलता है जब वह चली जाती है।
गिनिपेनेलेन बटाकापू मिनिहा कानामादिरी एलियाथ बययी लूजो व्यक्ति आग की लपटों से मारा गया हो, वह जुगनू की रोशनी से भी डरता है।जब कोई व्यक्ति किसी दर्दनाक अनुभव से गुजरता है, तो वह हर उस चीज से बचने की कोशिश करता है जो उस अनुभव से थोड़ी भी मिलती-जुलती हो।
जिया हकुराता नादान्ने, थियेना हकुरा राकागन्ने खोए हुए गुड़ के टुकड़े पर शोक किए बिना बचे हुए गुड़ के टुकड़े को बचाकर रखना ।किसी भी नुकसान की स्थिति में आगे बढ़ना सीखना चाहिए।
राए वेतुनु वलेह दवल वतेन्ने नै जो आदमी रात को गड्ढे में गिर गया, वह दिन के उजाले में फिर उसमें नहीं गिरता।लोगों को अपनी गलतियों से सीखना चाहिए।
पाला अथि गहे कोई साथथ वाहनवालु एक फलदार वृक्ष हर प्रकार के जीव को आकर्षित करता है।सफलता और धन कई लोगों को आकर्षित करते हैं।
थलेना याकदे दुतुवामा अचारिया उडा पाना पाना थलानावालु लोहार को लचीला लोहा मिल जाए तो वह अपना हथौड़ा नीचे लाने के लिए खुशी से उछल पड़ता है।जितना अधिक कोई झुकता है, उतना ही अधिक उसे पीटा जाता है।

कुछ प्रमुख सिंहल शब्द और उनके हिंदी पर्यायवाची  

गिया -- गया
यायी -- जायेगा
अवे -- आया
मम -- मैं
ओहु -- वह
अय -- वह
ओय -- तुम
 -- यह
ओयाघे -- तुम्हारा धन्यवाद
सुदु -- सफेद
सीनि -- चीनी
हिना वेनवा -- हँसना
हितनवा -- सोचना
सीय -- सौ
सिंहय -- शेर
सेप -- स्वास्थ्य
सेकय -- संदेह
सम -- समान
सपत्तुव -- जूता
सत्यय -- सत्य
सतिय -- सप्ताह
मून्न -- चेहरा
मिहिरि -- मीठा
मिनिसा -- मनुष्य
मिट्टि -- छोटा
मामा -- मामा
माल्लुवा -- मछली
मासय -- मास
मन -- मन
हिम -- बर्फ
सिहिनय -- सपना
सुलंग -- हवा
मल -- गन्दगी
मरनवा -- मारना
मरन्नय -- मृत्यु
अवुरुद्द -- वर्ष
सामय -- शान्ति
रूपय -- सुन्दरता
रोगय -- रोग
रोहल -- अस्पताल
रुवन -- रत्न
रिदी -- चाँदी
रेय -- रात
रहस -- रहस्य
रस्ने -- गरम
रस्नय -- गर्मी
रिदेनवा -- चोट पहुँचाना
रॅय -- रात
रहस -- रहस्य
रसने -- गरम
रसनय -- गरमी
रतु -- लाल
रजय -- सरकार
रज -- राजा
रट -- विदेश
रट -- देश
ओबनवा -- प्रेस
ओककोम -- सब
एळिय -- प्रकाश
एया -- वह
एनवा -- आना
ऋतुव -- ऋतु
ऋण -- ऋण
उयनवा -- खाना बनाना
ईये -- कल
ईलन्गट -- बाद में
ईय -- तीर
ॲनुम अरिनवा -- जम्हाई लेना
ॲत -- दूर
इरनवा -- देखा
ऍस कण्णडिय -- चश्मा

ऍन्गिलल -- अंगुलू
सेनसुरादा -- शनिवार
सिकुरादा -- शुक्रवार
ब्रहसपतिनदा -- गुरुवार
ब्रदादा -- बुधवार
अन्गहरुवादा -- मंगलवार
सन्दुदा -- सोमवार
इरिदा -- रविवार
देसॅमबरय -- दिसम्बर
नोवॅमबरय -- नवम्बर
ओकतोबरय -- अक्टूबर
सॅपतॅमबरय -- सितम्बर
अगोसतुव -- अगस्त
जूलि -- जुलाई
जूनि -- जून
मॅयि -- मई
अप्रियेल -- अप्रैल
मारतुव -- मार्च
पेबरवारिय -- फरवरी
जनवारिय -- जनवरी
चूटि -- छोटा
गहनवा -- पीटना
गल -- पत्थर
गननवा -- लेना
गन्ग -- नदी
क्रीडव -- खेल
कोपि -- कॉफी
केटि -- छोटा
कुससिय -- रसोईघर
कुलिय -- वेतन
कुरुलला -- पक्षी
किकिळी -- मुर्गी
कट -- मुँह
कतुर -- कैंची
आता -- दादा
आच्ची -- दादी
सिंहल -- सिंहली
गम -- गाँव
मिनिहा -- आदमी
मिनिससु -- मनुष्य
हरिय -- क्षेत्र
कोयि -- कौन सा
पलात -- प्रान्त
दकुण्उ -- दक्षिण
उपन गम -- जन्मस्थान
नमुत -- लेकिन
पदिंcइय -- निवासी
कोहे -- कहाँ
ने -- ऐसा है या नहीं?
आयुबोवन -- Hello
नम -- नाम
सुब उपनदिनयक -- शुभ जन्मदिन
दननवा -- जानना
मतकय -- स्मृति
मतक वेनवा -- याद करना
कोलल -- बालक
केलल -- स्त्री
लोकु -- लम्बा
लससण -- सुन्दर
दत -- दाँत
दत -- दाँत
दिव -- जीभ
गसनवा -- beat
गॅयुव -- गाया
गयनवा -- गाना
हदवत -- हृदय
कपनवा -- काटना
कॅपुव -- काटा
कोन्द -- बाल
पोड्इ -- तुच्छ
रिदेनव -- hurt
ककुल -- पाँव
ऍस -- आँख
कन -- कान

ऍन्ग -- शरीर
कोनन्द -- पीठ
बलला -- कुत्ता
गिया -- जाना (perfect)
इससर -- पहले
नपुरु -- निर्दयी
पोहोसती -- धनी स्त्री
पोहोसता -- धनी पुरुष
पोहोसत -- धनी
तर -- मजबूत
तद -- कठिन
नव -- आधुनिक
ऍयि -- क्यों
कवद -- कौन
अद -- आज
मगे -- खान
ऊरो -- सूअर
ऊरु मस -- सूअर का मांस
ऊरा -- सूअर
उण -- ज्वर
गेवल -- घर
गेय -- घर
वॅड करनवा -- काम करनाकार्य
वॅड -- कार्य
देवल -- वस्तुएँ
देय -- वस्तु
देननु -- गायें
देन -- गाय
अशवयो -- घोड़े
अशवय -- घोड़ा
कपुटो -- कौवे
कपुट -- कौवा
दिविया -- चीता
बोहोम सतुतियि -- बहुत-बहुत धन्यवाद
करुणाकर -- कृपया
ओवु -- हाँ
एकदाह -- हजार
एकसीय -- सौ
दहय -- दस
नवय -- नौ
अट -- आठ
हत -- सात
हय -- छ:
पह -- पाँच
हतर -- चार
तुन -- तीन
देक -- दो
इर -- सूर्य
वन्दुरा -- बन्दर
नॅवत हमुवेमु -- अलविदा
सललि -- धन
वॅसस -- वर्षा
वहिनवा -- बरसना (वर्षा होना) पिहिय -- चाकू
हॅनद -- चम्मच
लियुम -- पत्र
कनतोरुव -- कार्यालय
तॅPआआEल -- डाकघर
यवननवा -- भेजना
पनसल -- मन्दिर
आदरय -- प्यार
गोविपळअ -- खेत
मेसय (न.) -- मेज
मेहे -- यहाँ
काल -- चौथाई
कालय -- समय
कल -- समय
कोच्चर -- कितना देर
ओया -- तुम
इननवा -- होना
होन्द -- अच्छा
इसतुति -- धन्यवाद
सनीप -- स्वास्थ्य
सॅप -- स्वास्थ्य

नगरय -- शहर
अपिरिसिदु -- गन्दा
पिरिसिदु वेनवा -- साफ होना
पिरिसिदु करनवा -- साफ
पिरिसिदु -- साफ करना
यट -- नीचे
कलिन -- पहले
नरक -- बुरा
ळदरुवा -- बच्चा
नॅनद -- चाची
सतुन -- जानवर
सह -- और
पिळितुर -- उत्तर
अतर -- के बीच में
तनिव -- अकेले
अवसर दिम -- अनुमति देना
सियलल -- सब
वातय -- हवा
एकन्गयि -- सहमत हुआ
कलहख़कर -- आक्रामक
वयस -- आयु
विरुदडव -- विरुद्ध
नॅवत -- पुन:
पसुव -- बाद में
अहसयानय -- वायुयान
वॅड्इहिति -- वयस्क
लिपिनय -- पता
हरहा -- आर-पार
अनतुर -- दुर्घटना
पिळिगननवा -- स्वीकार करना
पिटरट -- बाहर
उड -- उपर
करनवा -- काम करना
ओळूव -- सिर
मललि -- छोटा भाई
नंगि -- छोटी बहन
अकका -- बड़ी बहन
अयया -- बड़ा भाई
मेसय -- मेज
बत -- उबला चावल
हरि -- ठीक है
हरि -- बहुत
नॅहॅ -- नहीं
मोककद -- क्या
अममा -- माँ
दुवनव -- दौड़ना
गेदर -- घर
लोकु मीया -- चूहा
मीया -- चूहा
उड -- के उपर
इरिदा -- रविवार
एक -- यह
एक -- एक
एपा -- नहीं
दोर -- दरवाजा
वहनवा -- बन्द करना
पोत -- पुस्तक
इकमन -- तेज
कनवा -- खाना
अत -- भुजा
मल -- फूल
वतुर -- पानी
ले -- रक्त
किरि -- दूध
अपि -- हम लोग
मम -- मै
यनवा -- जाना
मोकक्द -- क्या
कीयद -- कितना
कोहेन्द 

 भाषिक साम्य 


सिंहली और भारतीय भाषाओं में पर्याप्त साम्य है।  


हिंदी-सिंहली

मैं आया = मामा आवेमी।  

हम आये = अपी आवेमु 

तू आया = नुम्बा आवेही।

तुम (बहुवचन) आए = नम्बला आवेहु।

आप (विनम्र, एकवचन) आए = ओबा आवेही।

आप (विनम्र, बहुवचन) आए = ओबाला आवेहु।

वह आया = ओहु आवेया।

वह आई = ईया आवाया।

वे आए = ओवुन आवोया.

मैं करता हूँ = मामा करामी/कर्णनेमि।

हम करते हैं = अपि करामु / करणनेमु।

आप (एकवचन) करते हैं = ओबा/नुम्बा करननेही।

आप (बहुवचन) करते हैं = ओबला / नुम्बाला करण्नेहु।

वह करता है = ओहू करै/करणेय।

वह करती है = ईया करै/करन्नेयया।

वे करते हैं = ओवुन कराथी / करन्नोया।

हिंदी : वचन देना 

सिंहली : वचन (याक) दीमा। 

बंगाली और सिंहली 

                    बंगाली और सिंहली दोनों ही इंडो-आर्यन भाषाएँ हैं। इसलिए इन दोनों भाषाओं में काफ़ी समानताएँ हैं। कोई इनमें से एक भाषा जानता हो तो वह दूसरी भाषा आसानी से सीख सकता है।  

सिंहली 
मैंने किया = मामा कलेमी.

हमने किया = अपी कालेमु.

आपने (अभद्र, एकवचन) किया = नुम्बा कलेही।

आपने (अभद्र, बहुवचन) किया = नुम्बाला कलेहु।

आपने (विनम्र, एकवचन) किया = ओबा कालेही।

आपने (विनम्र, बहुवचन) किया = ओबाला कालेहु।

उसने किया = ओहु कालेया.

उसने किया = ईया कलाया.

उन्होंने किया = ओवुन कालोया / कलहा।

बांग्ला 

मैंने किया = अमी कोरलाम.

हमने किया = अमरा कोरलाम.

आपने (अशिष्ट, एकवचन) किया = तुई कोर्ली।

आपने (अशिष्ट, बहुवचन) किया = तोरा कोर्ली।

आपने (अभद्र, एकवचन) किया = तुमी कोरले।

आपने (अभद्र, बहुवचन) किया = टॉमरा कोरले।

आपने (विनम्र, एकवचन) किया = अपनी कोरलेन।

आपने (विनम्र, बहुवचन) किया = अपनारा कोरलेन।

उसने / उसने किया = से कोर्लो।

उसने/उसने (विनम्र) किया = टिनी कोरलेन।

उन्होंने किया = तारा कोरलो.

सिंहली 

मैं करता हूँ = मामा करामि (/करणनेमि)।

हम करते हैं = अपि करामु (/करणनेमु)।

आप (एकवचन) करते हैं = ओबा/नुम्बा करननेही।

आप (बहुवचन) करते हैं = ओबला / नुम्बाला करण्नेहु।

वह करता है = ओहू करै/करणेय।

वह करती है = ईया करै/करन्नेयया।

वे करते हैं = ओवुन कराथी / करन्नोया।

बांग्ला 

मैं करता हूँ = अमी कोरी.

हम करते हैं = अमरा कोरी.

आप (अशिष्ट, एकवचन) करते हैं = तुई कोरिस।

आप (अशिष्ट, बहुवचन) करते हैं = तोरा कोरिस।

आप (अभद्र, एकवचन) करते हैं = तुमी कोरो।

आप (अभद्र, बहुवचन) करते हैं = तोमरा कोरो।

आप (विनम्र, एकवचन) करते हैं = अपनी कोरेन।

आप (विनम्र, बहुवचन) करते हैं = अपनारा कोरेन।

वह / वह करता है = से कोरे.

वह / वह (विनम्र) करता है = टिनी कोरेन।

वे करते हैं = तारा कोरे.

सिंहली 

मैं करूँगा = मामा करामी.

हम करेंगे = अपी करमु.

आप (एकवचन) करेंगे = ओबा / नुम्बा करन्नेही।

आप (बहुवचन) करेंगे = ओबाला / नुम्बाला करण्नेहु।

वह करेगा = ओहु कराई।

वह करेगी = ईया कराई।

वे करेंगे = ओवुन कराथी.

बांग्ला 

मैं करूँगा = अमी कोरबो.

हम करेंगे = अमरा कोरबो.

आप (अशिष्ट, एकवचन) करेंगे = तुई कोरबी।

आप (अशिष्ट, बहुवचन) करेंगे = तोरा कोरबी।

आप (अभद्र, एकवचन) करेंगे = तुमी कोर्बे।

आप (अशिष्ट, बहुवचन) करेंगे = तोमरा कोर्बे।

आप (विनम्र, एकवचन) करेंगे = अपनी कोरबेन।

आप (विनम्र, बहुवचन) करेंगे = अपनारा कोरबेन।

वह / वह करेगा = से कोर्बे।

वह/वह (विनम्र) करेगा = टिनी कोरबेन।

वे करेंगे = तारा कोर्बे.

                    बंगाली में 'बा' ध्वनि को सिंहली में 'वा' ध्वनि से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए। सिंहली भाषा में बंगा का उच्चारण वंगा होता है। शारीरिक भाग
                    शब्दों की अधिकांश समानताएँ स्पष्ट हैं और किसी विस्तार की आवश्यकता नहीं है। केश - केस, नाक - नासय, अक्षी - अस, मुख - मुकाय, जीव - दिवा, दथ - दथ, रिदोई - हरदय, हाथ - हाथ - अथ, अंगुल - अंगिली, लप - कुले - उकुले, पद - पाड़ा, लिंग - लिंग, देवियों - नारी - नारी, छोटा आदमी - बेटी मानुष - बेटी मिनिसा, लंबा आदमी - लोम्बा - लम्बायक जितना लंबा। इसके अलावा रक्थो का अर्थ लाल होता है और इसका तात्पर्य रक्त से है।

फल- 

                    आम - आंब - अंबा, बेल फल - बेल - बेली, अमरूद - पेरा - पेरा, गन्ना - आक - उक, अनानास - अन्नास - अन्नासी, केला - कोला - केसेल। यहां बंगाली व्यंजनों में से दो तीन सिंहली व्यंजनों के बीच दिखाई देते हैं और लेखक को छिपी हुई समानता का एहसास करने में कई साल लग गए क्योंकि कोला ध्वनि आपको पत्तियों या हरे रंग की ओर ले जाती है। स्टार फल - कबरंका - काबरंका। यह संयोग से था, जब मैंने कोलकाता में एक फुटपाथ विक्रेता को 'कबरंका, कबरंका' कहते सुना। इस गैर-व्यावसायिक, कुछ हद तक दुर्लभ फल को सिंहली शब्द से पुकारा जाना एक बड़ा आश्चर्य था।

खाद्य पदार्थ- 

                    चावल - भात - स्नान, खाना - कबेन - कन्ना, पानी - झोल - जलाया, लाल मिर्च - मोरिच - मिरिस, रोटी - रोटी, गिंगिली बॉल्स - थिला गुली - थाला गुली, कड़वा - थेथो - थिट्ठा, शराब - शरा - रा, आलू - आलू - आलु।  

स्थानों के नाम- 
                    निम्नलिखित स्थानों के नाम महानगर कोलकाता से हैं। रत्नों का मैदान - मानिकतला - मानिक थलावा, धर्म का मैदान - धर्मतला - धर्मतालवा, साल्ट लेक - नून पोकुर - लुनु पोकुना, नेशन लवर्स पार्क - देशप्रियो पार्क - देशप्रिया पार्क आदि। 

कैलेंडर/समय- 

                    चार ऋतुओं को ग्रिशमो-ग्रीष्मा, शोरोट-सारथ, शीथ-शीथा और बोसोन्टो-वसंथा कहा जाता है। सप्ताह के अंत में दिनों के बंगाली नाम 'बार' में होते हैं। ध्वनि 'बा' को सिंहली समकक्ष के लिए 'वा' से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए ताकि 'बार' 'वर' या 'वरया' या 'टर्न' हो। सोमवार से शुरू होने वाले दिनों के नाम हैं - रोबिबर - रविगेवरया, सोंबर, मोंगलबार - मंगलावरया, बुधबार - बदादा, बृहस्पतिबर - ब्रहस्पतिंडा, शुक्रोबर - सिकुराडा और शोनिबार - सेनासुरधा। नामों की ये दोनों सूची कुछ ग्रहों को संदर्भित करती हैं। एएम, पीएम - शोकले, विकले। रात्रि - रात्रि - रात्रि, शुभ रात्रि - शुबा रात्रि - सुबा रात्रिक।

तमिल और सिंहल 

                    तमिल और सिंहल दोनों में, वाक्यांश संरचना ज़्यादातर मामलों में काफी समान होती है। उदाहरण के लिए, "मैं भूखा हूँ" को "सिंहल" में "माता बदागिनी" और "तमिल" में "एनक्कु पासिक्कुथु" कहा जा सकता है। यहाँ "माता" का अर्थ "एनक्कु" और "बदागिनी" का अर्थ "पसिक्कुथु" है। कोई शिक्षक या दोस्त जब जवाब चाहता है, तो वह कहता है "कियान्ना बलन्ना", जिसका अनुवाद "सोली परपोम" है।"कियाला देनावादा" - "सोल्ली थरवा"। 

उड़िया और सिंहल  

मैंने किया = म्यू करिली.

हमने किया = अमे करिलु.

आपने (अशिष्ट, एकवचन) किया = तू करिलु।

तुमने (अशिष्ट, एकवचन) किया = तुमे करीला।

आपने (अशिष्ट, बहुवचन) किया = तुमेमेन करीला। (संपादन सुझाएँ)

आपने (Polite) किया = अपोनो करिले. (संपादन सुझाएँ)

उसने / उसने किया = से करीला।

उसने / उसने (विनम्र) किया = से करिले।

उन्होंने किया = सेमेन कारिले.

सिंहली

मैं करता हूँ = मामा करामि (/करणनेमि)।

हम करते हैं = अपि करामु (/करणनेमु)।

आप (एकवचन) करते हैं = ओबा/नुम्बा करननेही।

आप (बहुवचन) करते हैं = ओबला / नुम्बाला करण्नेहु।

वह करता है = ओहू करै/करणेय।

वह करती है = ईया करै/करन्नेयया।

वे करते हैं = ओवुन कराथी / करन्नोया।

उड़िया  

मैं करता हूँ = मु करे.

हम करते हैं = अमे कारू।

आप (अशिष्ट, एकवचन) करते हैं = तू करु।

तुम (अशिष्ट, एकवचन) करते हो = तुमे कारा।

आप (अशिष्ट, बहुवचन) करते हैं = तुममेमने कारा।

आप (विनम्र, एकवचन) करते हैं = अपोनो कारंती।

वह / वह करता है = से करे।

वह/वह (विनम्र) करता है = से कारंति।

वे करते हैं = सेमने कारंती।

अन्य साम्यताएँ  
                    भारत और लंका में व्यक्तियों के नाम प्रसन्ना, महेंद्र, आदि एक जैसे हैं। सिंहली नाम "विजयरत्न" तमिल में "विजयरत्नम" हो जाता है। सिंहली लोग "भगवान कटारागामा" की पूजा करते हैं । भगवान कटारागामा को  "भगवान कंठस्वामी" के नाम से जाना जाता है, जो शिव के पुत्र हैं। सिंहली और तमिल दोनों ही उनके अनुयायी हैं। बौद्ध सिंहली कोविल भी जाते हैं। 

                    
                    सिंहली भाषा में वाक्यांशों को “कर्ता-क्रिया-कर्ता” (अंग्रेजी में शब्द क्रम सख्त है) प्रारूप का पालन करना आवश्यक नहीं है।अंग्रेजी में, यदि आप कहते हैं “लड़के ने लड़की का पीछा किया”, और यदि आप एसवीओ से शब्दों के क्रम को पलट देते हैं, और इसे “लड़की ने लड़के का पीछा किया” लिखते हैं, तो विचार अलग होगा। सिंहल में SVO क्रम लचीला है। उदाहरण के लिए, "मामा अय्याता गहुवा (मैं, भाई को, मारो)" को "अय्याता, मामा, गहुवा" (भाई को, मैं, मारो) भी कहा जा सकता है। 

                    सिहली और तमिल संस्कृतियाँ मिलती-जुलती हैं। सिंहली महिलाएँ हल्के रंग की साड़ियाँ पहनती हैं, और तमिल महिलाएँ चटकीले और गहरे रंग की साड़ियाँ पहनती हैं। सिंहली और तमिल दोनों ही रूढ़िवादी हैंऔर उन्हें अपनी भाषा और इतिहास पर बहुत गर्व है। सिंहली और तमिल लोग एक जैसे दिखते हैं। 

                        सार यह कि दक्षिण भारतीयों और सिंहलियों में कई समानताएँ और असमानताएँ  हैं तथापि इस समूचे भूखंड के निवासियों की सभ्यता, संस्कृति, इतिहास, धर्म, भाषाएँ, परंपराएँ और भाग्य साझा हैं। आधुनिक विश्व के फलक पर भारत और लंका का भविष्य भी एक समान रहना संभावित है। विश्व की महाशक्तियाँ भारत और अलंका को अलग-अलग करने  के कितने भी प्रयास कर लें, सफल नहीं हो सकेंगे। श्री लंका और भारत की सरकारें और राजनेता पारस्परिक हितों का संरक्षण करते हुए साझा उज्जवल भविष्य का निर्माण करने की दिशा में सक्रिय हैं। भारत और श्रीलंका के साहित्यकारों का दायित्व है कि वे समय की पुकार को सुनकर एक दूसरे के साथ मिलकर सारस्वत अनुष्ठानों को साकार करें और साझा साहित्य का सृजन करें। 

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संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन। जबलपुर ४८२००१, वाट्स ऐप ९४२५१८३२४४