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मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

मुक्तक

मुक्तक
संजीव
*
दिल लगाकर दिल्लगी हमने न की.
दिल जलाकर बंदगी तुमने न की..
दिल दिया ना दिला लिया, बस बात की-
दिल दुखाया सबने हमने उफ़ न की..
*
दोस्तों की आजमाइश क्यों करें?
मौत से पहले ही बोलो क्यों मरें..
नाम के ही हैं. मगर हैं साथ जो-
'सलिल' उनके बिन अकेले क्यों रहें?.
*

बुधवार, 8 अप्रैल 2009

ग़ज़ल : समीर लाल

ग़ज़ल


सुधीर लाल 'उड़नतश्तरी'


मौत से दिल्लगी हो गयी।


जिन्दगी अजनबी हो गयी।


दोस्तों से तो शिकवा रहा।


गैरों से दोस्ती हो गयी।


उसके हंसने से जादू हुआ।


तीरगी रौशनी हो गयी


साँस गिरवी है हर इक घड़ी।


कैसी ये बेबसी हो गयी?


रात भर राह तकता रहा।


गुम कहाँ चांदनी हो गयी।


आपका नाम बस लिख दिया।


लीजिये शायरी हो गयी


अपने घर का पता खो गया।


कैसी दीवानगी हो गयी?


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