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शनिवार, 25 अक्टूबर 2025

वर्षा, सॉनेट, शेक्सपियर, मिल्टन, सलिल

सॉनेट

बारिश तुम फिर

१.

बारिश तुम फिर रूठ गई हो।

तरस रहा जग होकर प्यासा।

दुबराया ज्यों शिशु अठमासा।।

मुरझाई हो ठूठ गई हो।।

कुएँ-बावली बिलकुल खाली।

नेह नर्मदा नीर नहीं है।

बेकल मन में धीर नहीं है।।

मुँह फेरे राधा-वनमाली।।

दादुर बैठे हैं मुँह सिलकर।

अंकुर मरते हैं तिल-तिलकर।

झींगुर संग नहीं हिल-मिलकर।

बीरबहूटी हुई लापता।

गर्मी सबको रही है सता।

जंगल काटे, मनुज की खता।।

*

२.

मान गई हो, बारिश तुम फिर।

सदा सुहागिन सी हरियाईं।

मेघ घटाएँ नाचें घिर-घिर।।

बरसीं मंद-मंद हर्षाईं।।

आसमान में बिजली चमकी।

मन भाई आधी घरवाली।

गिरी जोर से बिजली तड़की।।

भड़क हुई शोला घरवाली।।

तन्वंगी भीगी दिल मचले।

कनक कामिनी देह सुचिक्कन।

दृष्टि न ठहरे, मचले-फिसले।।

अनगिन सपने देखे साजन।।

सुलग गई हो बारिश तुम फिर।

पिघल गई हो बारिश तुम फिर।।

*

३.

क्रुद्ध हुई हो बारिश तुम फिर।

सघन अँधेरा आया घिर घिर।।

बरस रही हो, गरज-मचल कर।

ठाना रख दो थस-नहस कर।।

पर्वत ढहते, धरती कंपित।

नदियाँ उफनाई हो शापित।।

पवन हो गया क्या उन्मादित?

जीव-जंतु-मनु होते कंपित।।

प्रलय न लाओ, कहर न ढाओ।

रूद्र सुता हे! कुछ सुस्ताओ।।

थोड़ा हरषो, थोड़ा बरसो।

जीवन विकसे, थोड़ा सरसो।।

भ्रांत न हो हे बारिश! तुम फिर।

शांत रही हे बारिश! हँस फिर।।

३०-१०-२०२२

*** 

सोमवार, 14 अगस्त 2023

सॉनेट, शेक्सपियर, मिल्टन,









           शेक्सपियर


शेक्सपियर को सॉनेट अंजलि, 
हिंदी भाषा अर्पित करती,
स्वीकारे कवि यह प्रणतांजलि,
सॉनेट उर में हिंदी धरती।

याद त्रिलोचन की आती है, 
सॉनेट लिख इतिहास रच दिया,
माटी की सुगंध भाती है,
सत्य समय का सहज कह दिया।

जीवित भारत की परिपाटी, 
सॉनेट में हम रख जाएँगे, 
लिट्टा-चोखा, भर्ता-बाटी,
खा बम्बुलिया मिल गाएँगे। 

बने विश्ववाणी हिंदी तब।  
हर भाषा को अपनाए जब।।

               ***












           मिल्टन 

लेंटिनि ने अठ-छह पद जोड़ा, 
प्रथम चौपदी तुक दोहराई, 
सम-तुकांत दो त्रिपदी जोड़ा, 
सॉनेट रचकर कीर्ति कमाई।

पेट्रार्च ऑक्टेव-सेस्टेट लेकर,
वोल्टा रखता नौवें पद में, 
मिल्टन सॉनेट नैया खेकर, 
आगे बढ़ता सबसे कद में। 

सॉनेट नहीं 'कसीदा' किंचित, 
मिलता साम्य 'ओड' से थोड़ा,
वर्ड्सवर्थ करता है विस्मित,
बारोक ओर हूफ़्ट ने मोड़ा। 

हिंदी सॉनेट गढ़ परंपरा।
नूतनता दें परा व अपरा।।

            ***  

गुरुवार, 8 जून 2023

सोनेट लेखन, मिल्टन, शन्नो, शेक्सपियर

सोनेट सलिला 
*

सोनेट अंग्रेजी में कविता का एक रूप है। सोनेट (sonnet) एक इटालियन शब्द सोनेटो (sonetto) से बना है जिसका अर्थ है नन्हा गीत या लघु गीत (little song)। तेरहवीं शताब्दी में आते-आते यह १४ पंक्तियोंवाली कविता हो गया। सोनेट की लय के आधार पर इसे लिखने के कुछ विशिष्ट नियम हैं। सोनेट के रचयिता को सोनेटकार (sonneteers) कहते हैं। सोनेट के इतिहास में समय-समय पर सोनेटकार कुछ न कुछ परिवर्तन करते रहे हैं। 

इंग्लिश या शेक्सपीरियन सोनेट 

सर्वाधिक प्रसिद्ध सोनेटकार विलियम शेक्सपियर ने १५४ सोंनेट्स इआंबिक  पेरामीटर में लिखे। शेक्सपियर के सोनेट का शिल्प विधान ABAB CDCD EFEF GG था। इसमें तीन चतुष्पदी के बाद एक द्विपदी का समायोजन है। अंग्रेजी द्विपदी (English couplets) लयबद्ध होती है जिसके अंतिम शब्द (पदांत) की समान तुक होती है।
 
इटेलियन या मिलटेनियन  सोनेट 

अन्य प्रसिद्ध सोनेटकार जॉन मिल्टन ने इटालियन शिल्प पर सोनेट लिखे। सोलहवीं शताब्दी में थॉमस याट (Wyatt) ने इटेलियाँ तथा फ्रेंच सोनेटों का अनुवाद करने के साथ अपने सोनेट भी लिखे। उन दिनों  सोनेट का विषय सामान्यत: प्रेम से सम्बंधित होता था। लन्दन में १५९० में जब प्लेग फैला तो सभी थियेटर आदिबंद हो गए, सभी नाटककारों को रंगमंच पर नाटक खेलना, अभिनय करना आदि प्रतिबंधित कार दिया गया था। उसे दौर में शेक्सपियर ने अपने सोनेट लिखे। १६७० के बाद काफी समय तक सोंनेट्स लिखने का शौक खत्म स हो गया। फ्रांसीसी क्रांति आरंभ होने पर अचानक सोनेट फिर लिखे जाने लगे और वर्ड्सवर्थ, मिल्टन, कीट्स, शैली आदि ने सोनेट लिखे। इटेलियन सोनेट में एक अठपदी (oktev) तथा एक षट्पदी या दो त्रिपदियों (sestek) का संयोजन होता है। इसका मीटर ABBAABBA CDECDE है।

सोनेट का रचना विधान 

१. सोंनेट में १४ काव्य पक्तियाँ होती हैं। 
२. प्रथम १२ पंक्तियाँ ४ - ४ पंक्तियों के ३ पद या अंतरे होते हैं। 
३. हर अंतरे की पहली-तीसरी पंक्ति तथा दूसरी-चौथी पंक्तियाँ समान लय तथा पदांत की होना आवश्यक है।  
४. शेष अंतिम २ पंक्तियाँ द्विपदी (couplet)  होती हैं जिसकी लय तथा पदांत समान होता है। 
५. सोंनेट की हर पंक्ति इआंबिक पैरामीटर ( iambic perameter) में लिखी होती है।  

इआंबिक पैरामीटर ( iambic perameter):

१.  इआंबिक पैरामीटर की काव्य पंक्ति २ उच्चारों के  ५ ध्वनि खंडों (syllables) में विभाजित होती है। 
२. इसमें ५ उच्चारों का कम जोर से (unstressed) उच्चारण किया जाता है जबकि अन्य ५ उच्चारों का अधिक जोर से (stressed) उच्चारण किया जाता है। 

यहाँ पर unstressed और stressed syllables की ताल (rhythm या beat) का उदाहरण शेक्सपियर द्वारा लिखी दो पंक्तियों में देखिये:

If mu - / -sic be / the food / of love, / play on
Is this / a dag - /- ger I / see be - / - fore me.

तो Syllables के हर pair को iambus कहते हैं. और हर iambus एक unstressed और एक stressed ताल से बनता है.

William Shakespeare के लिखे एक सोंनेट का उदाहरण देखिये:
(With rhyme scheme in four stanzas)

A Shall I compare thee to a summer's day?
B Thou art more lovely and more temperate:
A Rough winds do shake the darling buds of May
B And summer's lease hath all too short a date:

C Sometimes too hot the eye of heaven shines,
D And often is his gold complexion dimm'd;
C And every fair from fair sometime declines,
D By chance or nature's changing course untrimm'd;

E But thy eternal summer shall not fade
F Nor loose possession of that fair thou ow'st;
E Nor shall death brag thou wand'rest in his shade,
F When in eternal lines to time thou grow'st:

G So long as men can breathe or eyes can see,
G So long lives this, and this gives life to thee.

इसी ऊपर वाले सोंनेट का अब सरल अंग्रेजी में अनुवाद देखिये
(Divided in four line stanzas)

If I compare you to a summer's day
I'd have to say you are more beautiful and serene
By comparison, summer is rough on budding life
And doesn't last longer; once it has been;
At times the summer sun (heaven's eye) is too hot
And at other times clouds dim its brilliance
Everything fair in nature becomes less fair from time to time
No one can change (trim) nature or chance;
However, you yourself will not fade
Nor loose ownership of your fairness
Not even death will claim you
Because these lines I write will immortalize you;
Your beauty will last as long as men breathe and see,
As long as this sonnet lives and gives you life.

इसी सोंनेट का  हिंदी अनुवाद- 

अगर मैं तुम्हारी तुलना एक ग्रीष्म दिवस से करुँ
तो तुममें उससे कहीं अधिक शांति और सुन्दरता है
तुम्हारी तुलना में यह मई का खिला सा महीना भी
देर तक नहीं रुकेगा और जल्दी ही मुरझा सकता है.
कभी-कभी सूरज इतना तपता हुआ होता है
और कभी बादलों के पीछे जाकर छिप जाता है
समय के साथ प्रकृति भी फीकी हो जाती है
और अचानक वाली बातों पर जोर नहीं होता है.
फिर भी तुम अपने में कभी नहीं मुर्झाओगी
ना ही तुम्हारी सुन्दरता में कोई कमी आयेगी
यहाँ तक की मृत्यु भी तुम्हे कभी नहीं छू पायेगी
क्योंकि मेरी यह पंक्तियाँ तुम्हें अमर बना देंगीं.
जब तक पुरुष साँसें लेगा और आँखें देख सकेंगी
और जब तक यह sonnet रहेगा तुम भी रहोगी.

एक और सोंनेट का उदाहरण देखिये जो Edmund Spencer ने लिखा है:

One day I wrote her name upon the strand,
but came the waves and washed it away:
Again I wrote it with a second hand,
But came the tide, and made my pains his prey.
Vain man, said she, that doest in vain assay
A mortal thing so to immortalize,
For I myself shall like to this decay,
And eek my name he wiped out likewise.
Not so (quothI), let baser things devise
To die in dust, but you shall live by fame;
My verse your virtues rare shall eternize,
And in the heavens write your glorious name.
Where when as Death shall all the world subdue,
Out love shall live, and later life renew.

इसी सोंनेट का  हिंदी गद्य अनुवाद :

Edmund Spencer ने इस सोंनेट को अपनी पत्नी के लिये लिखा था. जिसमें वह समुद्र के किनारे बैठा हुआ अपनी कल्पना में खोया है कि वह एक युवती के संग बातचीत कर रहा है और चाहता है कि वह सुनहरा समय वहीँ थम जाए और फिर रेत में उसका नाम लिखकर उसे अमर बनाना चाहता है. किन्तु समुन्द्र की निर्मम लहरों ने ऐसा नहीं होने दिया और उस लिखे नाम को अपने संग बहा ले गईं, जैसा कि समय की निर्ममता अक्सर इंसान की बनी चीज़ों को मिटा देती है. लेकिन फिर भी वह हिम्मत नहीं हारता है और दूसरे तरीके से अपने प्रेम को अमर बनाना चाहता है..... और वह है......कविता के रूप में लिखकर.....उस नाम को पृथ्वी से उठाकर स्वर्ग में अमर बना देना चाहता है......जहाँ हमेशा के लिये प्रेम का नाम अमर हो जाए और सारा संसार या मृत्यु भी कुछ न बिगाड़ सके. जैसा कि पहले बताया था तो यह sonnet भी अधिकतर sonnets की तरह प्रेम के विषय पर लिखा गया है. यह प्रेम, कविता और धर्म की भावनाओं का मिश्रण है.

लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ परिवर्तन आए और लिखनेवाले लोग नियम भूल कर अपने ही तरीके से कप्लेट्स व सोंनेट्स लिखने लगे.

अब यहाँ आधुनिक ढंग से एक सोंनेट शन्नो अग्रवाल ने   लिखा है:

Sometimes the path of life becomes thorny
And the truth is sometimes hard to take
The people you know may be so corny
To save the hurt some will lie and fake,
Pain and happiness are the part of life
One's ignorance might numb the pain
Bitter words are always sharp as a knife
The battle of emotions all goes in a vain,
Hidden fury of nature whenever explodes
It wipes earth's beauty with both hands
There is a warning that comes in codes
Not known when death's hand expands.
Life is like a river and we float like a swan
Strange twist of fate can make us a pawn.

और अपने सोंनेट का मैंने हिंदी अनुवाद भी किया है:

कभी-कभी जीवन की पगडंडियाँ हो सकती हैं काँटों से भरी
सचाई को निगलना कभी बहुत कठिन भी हो सकता है
लोग जिन्हें तुम जानते हो उनमें हो सकती है भावुकता भरी
दर्द छिपाने को कोई बहाना होता है या कोई झूठ बोलता है.
दर्द और ख़ुशी हैं एक सच और बने हैं जीवन का हिस्सा
किसी की अज्ञानता उसके दर्द को कभी कर देती है कम
शब्दों का नुकीलापन सदा चुभता है छुरी जैसा और कड़वा सा
भावनाएँ मन में उलझती रहती हैं पर न कम होता है गम.
जब-जब प्रकृति अपने कोप का भयानक रूप दिखाती है
वह मिटा देती है अपने दोनों हाथों से धरती की सुन्दरता
लेकिन पहले से ही चेतावनी कुछ इशारों से मिल जाती है
अचानक मृत्यु के खुले हाथों की अनुभव होती है निकटता.
जीवन एक नदी की तरह है जिसमें हम हंस बन तैरते हैं
कभी तकदीर के खेल में हम मोहरा बन भी फिसलते हैं.

और यह रहा एक और सोंनेट इसे भी शन्नो जी ने ही लिखा है:

The word MUM doesn't echo in the house these days
Reading your text the tears ran down my cheeks
But to know you are sound and safe gives me relief
To see and hug you I have to wait a few more weeks.
I knew the day will come when you spread your wings
You will go to places and the world will be at your feet
To love children also means they enjoy some freedom
Also learn to calm down in the moments of heat.
You will have to make decisions that matter in life
You have grown to be sensible, thoughtful and wise
In life wheather there is a gentle breeze or a storm
But each day you wake up to find a new surprise.
You are a pure joy to me and I can't ask for more
I wish you the joys and the success be at your door.

ऊपरी सोंनेट का भी हिंदी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत है:

''माँ'' शब्द न गूंजा कबसे घर में कितना है खालीपन
टेक्स्ट तुम्हारा पढ़कर यह आँखें मेरी निर्झर बन जातीं
जहाँ कहीं हो ठीक-ठाक हो जानके खुश हो जाता है मन
देखूँगी बेटे को फिर से सोच के जलती नयनों की बाती.
पता मुझे था कबसे एक दिन पंख तुम्हारे जब फैलेंगे
एक जगह से उड़कर तुम दुनिया भर में भ्रमण करोगे
नेह करो बच्चों से तो उन पर के कुछ बंधन भी टूटेंगे
अगर कभी कुछ बुरा लगे तो अपने को तुम शांत रखोगे.
बहुत जटिल है यह जीवन ढंग से ही कोई निश्चय करना
समझदार और बुद्धिमान हो समझबूझ के कदम उठाना
सरस हवा सहलाएगी पर यदि आंधी आये तो ना डरना
नयी भोर लायेगी संग अपने एक नयी उमंग का सपना.
मेरी आँखों के तारे तुम, और खुशिओं का एक खजाना
द्वार सफलता दस्तक दे, हर दिन हो खुशिओं का आना.
***

बुधवार, 12 जनवरी 2022

सॉनेट, चिड़िया, विवेकानंद, सरस्वती, नवगीत, सूरज, शेक्सपियर

शेक्सपियर और उनका अवदान     
विलियम शेक्स्पीयर का जन्म २३ अप्रैल १५६४ को था निधन २३ अप्रैल १६१६ को हुआ। वे अंग्रेज़ी के कवि, काव्यात्मकता के विद्वान नाटककार तथा अभिनेता थे। उनके नाटकों का विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद हुआ है। शेक्स्पीयर में अत्यंत उच्च कोटि की सृजनात्मक प्रतिभा थी और साथ ही उन्हें कला के नियमों का सहज ज्ञान भी था। प्रकृति से उन्हें मानो वरदान मिला था, उन्होंने जिसे स्पृह किया, वह सोना हो गया। उनकी रचनाएँ न केवल अंग्रेज जाति के लिए गौरव की वस्तु हैं वरन् विश्व वांग्मय की भी अमर विभूति हैं। शेक्स्पीयर की कल्पना जितनी प्रखर थी उतना ही गंभीर उनके जीवन का अनुभव भी था।  उनके नाटकों तथा उनकी कविताओं से आनंद की उपलब्धि होने के साथ-साथ गंभीर जीवनदर्शन भी प्राप्त होता है। विश्वसाहित्य के इतिहास में शेक्स्पीयर के समकक्ष रखे जानेवाले विरले ही कवि मिलते हैं।

विलियम शेक्सपियर, जॉन शेक्सपियर तथा मेरी आर्डेन के ज्येष्ठ पुत्र एवं तीसरी संतान थे। इनका जन्म स्ट्रैटफोर्ड आन एवन में हुआ। बाल्यकाल में उनकी शिक्षा स्थानीय फ्री ग्रामर स्कूल में हुई। पिता की बढ़ती हुई आर्थिक कठिनाइयों के कारण उन्हें पाठशाला छोड़कर छोटे मोटे धंधों में लग जाना पड़ा। जीविका के लिए उन्होंने लंदन जाने का निश्चय किया। इस निश्चय का एक दूसरा कारण भी था। कदाचित् चार्ल कोट के जमींदार सर टामस लूसी के उद्यान से हिरण की चोरी की ओर कानूनी कार्यवाही के भय से उन्हें अपना जन्मस्थान छोड़ना पड़ा। उनका विवाह सन् १५८२ में एन हैथावे से हो चुका था। सन् १५८५ के लगभग शेक्सपियर लंदन आए। शुरू में उन्होंने एक रंगशाला में किसी छोटी नौकरी पर काम किया, किंतु कुछ दिनों के बाद वे लार्ड चेंबरलेन की कंपनी के सदस्य बन गए और लंदन की प्रमुख रंगशालाओं में समय समय पर अभिनय में भाग लेने लगे। ग्यारह वर्ष के उपरांत सन् १५९६ में ये स्ट्रैटफोर्ड आन एवन लौटे और अब इन्होंने अपने परिवार की आर्थिक व्यवस्था सुदृढ़ बना दी। सन् १५९७ में इन्होंने धीरे धीरे नवनिर्माण एवं विस्तार किया। इसी भवन में सन् १६१० के बाद वे अपना अधिकाधिक समय व्यतीत करने लगे और वहीं सन् १६१६ में उनका देहांत हुआ।

शेक्सपियर की रचनाओं के तिथिक्रम के संबंध में काफी मतभेद है। सन् १९३० में प्रसिद्ध विद्वान् सर ई.के. चैंबर्स ने तिथिक्रम की जो तालिका प्रस्तुत की वह आज प्राय: सर्वमान्य है। तब भी इधर पिछले वर्षों की खोज से तिथियों के संबंध में कुछ नवीन धारणाएँ बनी हैं। इन नई खोजों के आधार पर मैक मैनवे महोदय ने एक नवीन तालिका तैयार की है जो सर ई.के. चैंबर्स की सूची से कुछ भिन्न है।

लगभग २० वर्षों के साहित्यिक जीवन में शेक्सपियर की सर्जनात्मक प्रतिभा निरंतर विकसित होती गई। सामान्य रूप से इस विकासक्रम में चार विभिन्न अवस्थाएँ दिखाई देती है। प्रारंभिक अवस्था १५९५ में समाप्त हुई। इस काल की प्राय: सभी रचनाएँ प्रयोगात्मक है। शेक्सपियर अभी तक अपना मार्ग निश्चित नहीं कर पाए थे, अतएव विभिन्न प्रचलित रचनाप्रणालियों को क्रम से कार्यान्वित करके अपना रचनाविधान सुस्थिर कर रहे थे, प्राचीन सुखांत नाटकों की प्रहसनात्मक शैली में उन्होंने 'दी कामेडी ऑव एरर्स' और 'दी टेमिंग ऑफ दी सू' की रचना की। तदुपरांत 'लव्स लेबर्स लॉस्ट' में इन्होंने लिली के दरबारी सुखांत नाटकों की परिपाटी अपनाई। इसमें राजदरबार का वातावरण उपस्थित किया गया है जो चतुर पात्रों के रोचक वार्तालाप से परिपूर्ण है। 'दी टू जेंटिलमेन ऑव वेरोना' में ग्रीन के स्वच्छंदतावादी सुखांत नाटकों का अनुकरण किया गया है। दु:खांत नाटक भी अनुकरणात्मक हैं। 'रिचर्ड तृतीय' में मालों का तथा 'टाइटस एंड्रानिकस' में किड का अनुकरण किया गया है किंतु 'रोमियो ऐंड जुलिएट' में मौलिकता का अंश अपेक्षाकृत अधिक है। इसी काल में लिखी हुई दोनों प्रसिद्ध कविताएँ 'दी रेप आव् लुक्रीस' और 'वीनस ऐंड एडोनिस' पर तत्कालीन इटालियन प्रेमकाव्य की छाप है।

विकासक्रम की दूसरी अवस्था सन् १६०० में समाप्त हुई। इसमें शेक्सपियर ने अनेक प्रौढ़ रचनाएँ संसार को भेंट कीं। अब उन्होंने अपना मार्ग निर्धारित तथा आत्मविश्वास अर्जित कर लिया था। 'ए मिड समर नाइट्स ड्रीम' तथा 'दी मर्चेंट आव वेनिस' रोचक एवं लोकप्रिय सुखांत नाटक हैं किंतु इनसे भी अधिक महत्व रखनेवाले शेक्यपियर के सर्वोत्कृष्ट सुखांत नाटक 'मच एडो एबाउट नथिंग', 'ऐज यू लाइक इट' तथा 'ट्वेल्वथ नाइट' इसी काल में लिखे गए। इन नाटकों में कवि की कल्पना तथा उसके मन के आह्लाद का उत्तम प्रकाशन हुआ है। सर्वोत्तम ऐतिहासिक नाटक भी इसी समय लिखे गए। मार्लो से प्रभावित 'रिचर्ड द्वितीय' उसी श्रेणी की पूर्ववर्ती कृति 'रिचर्ड तृतीय' से रचनाविन्यास में कहीं अधिक सफल है। 'हेनरी चतुर्थ' के दोनों भाग और 'हेनरी पंचम' जो सुविख्यात ऐतिहासिक नाटक हैं, इसी काल की रचनाएँ हैं। शेक्सपियर के प्राय: सभी सॉनेट जो अपनी उत्कृष्ट अभिव्यक्ति के लिए अनुपम हैं, सन् १५९५ ओर १६०७ के बीच लिखे गए।

तीसरी अवस्था, जिसका अंत लगभग १६०७ में हुआ, शेक्सपियर के जीवन में विशेष महत्व रखती है। इन वर्षों में पारिवारिक विपत्ति एवं स्वास्थ्य की खराबी के कारण कवि का मन अवसन्न था। अत: इन दिनों की अधिकांश रचनाएँ दु:खांत हैं। विश्वप्रसिद्ध दु:खांत नाटक हैमलेट, ओथेलो, किंग लियर और मैकबेथ एवं रोमन दु:खांत नाटक जूलियस सीजर, 'एंटोनी ऐंड क्लिओपाट्रा' एवं 'कोरिओलेनस' इसी कालावधि में लिखे गए और अभिनीत हुए। 'ट्रवायलस ऐंड क्रेसिडा', 'आल्स वेल दैट एंड्स वेल' और 'मेजर फार मेजर' में सुख और दु:ख की संश्लिष्ट अभिव्यक्ति हुई है, तब भी दु:खद अंश का ही प्राधान्य है।

विकास की अंतिम अवस्था में शेक्सपियर ने पेरिकिल्स, सिंवेलिन, 'दी विंटर्स टेल', 'दी टेंपेस्ट' प्रभृति नाटकों का सर्जन किया, जो सुखांत होने पर भी दु:खद संभावनाओं से भरे हैं एवं एक सांध्य वातावरण की सृष्टि करते हैं। इन सुखांत दु:खांत नाटकों को रोमांस अथवा शेक्सपियर के अंतिम नाटकों की संज्ञा दी जाती है।

शेक्सपियर के सुखांत नाटकों की अपनी निजी विशेषताएँ हैं। यद्यपि 'दी कामेडी आव एरर्स' में प्लाटस का अनुसरण किया गया है तथापि अन्य सुखांत नाटक प्राचीन क्लासिकी नाटकों से सर्वथा भिन्न हैं। इनका उद्देश्य प्रहसन द्वारा कुरूपताओं का मिटाना तथा त्रुटियों का सुधार करना नहीं वरन् रोचक कथा और चरित्रचित्रण द्वारा लोगों का मनोरंजन करना है। इस प्रकार के प्राय: सभी नाटकों का विषय प्रेम की ऐसी तीव्र अनुभूति है जो युवकों और युवतियों के मन में सहज आकर्षण के रूप में स्वत: उत्पन्न होती है। प्रेमी जनों के मार्ग में पहले तो बाधाएँ उत्पन्न होती हैं किंतु नाटक के अंत तक कठिनाइयाँ विनष्ट हो जाती हैं और उनका परिणाम संपन्न होता है। इन रचनाओं में जीवन की कवित्वपूर्ण एवं कल्पनाप्रवण अभिव्यक्ति हुई है और समस्त वातावरण आह्लाद से ओत-प्रोत है। शेक्सपियर का परिचय कतिपय उच्चवर्गीय परिवारों से हो गया था और उनमें जिस प्रकार का जीवन उन्होंने देखा उसी का प्रकाशन इन नाटकों में किया है।

दु:खांत नाटकों में मानव जीवन की गंभीर समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है। इन नाटकों के अभिजात कुलोत्पन्न नायक कुछ समय तक सफलता और उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होने के उपरांत यातना और विनाश के शिकार बनते हैं। उनके दु:ख और मृत्यु के क्या कारण हैं, इस विषय पर शेक्सपियर का मत स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त हुआ है। नायक का दुर्भाग्य अंशत: प्रतिकूल नियति एवं परिस्थितियों से उद्भूत है, किंतु इससे कहीं बड़ा कारण उसकी चारित्रिक दुर्बलता में मिलता है। प्राचीन यूनानी दुखांत नाटकों में नायक केवल त्रुटिपूर्ण निर्णय अथवा त्रुटिपूर्ण दृष्टिकोण के कारण विनष्ट होता था परंतु, कदाचित् ईसाई धर्म और नैतिकवाद से प्रभावित होकर, शेक्सपियर ने अपने नाटकों में नायक के पतन की प्रधान जिम्मेदारी उसकी चारित्रिक दुर्बलता पर ही रखी है। हैमलेट, आथेलो, लियर और मैकबेथ - इन सभी के स्वभाव अथवा चरित्र में ऐसी कमी मिलती है जो उनके कष्ट एवं मृत्यु का कारण बनती है। इन दु:खांत नाटकों में दुहरा द्वंद्व परिलक्षित हुआ है, आंतरिक द्वंद्व एव बाह्य द्वंद्व। आंतरिक द्वंद्व नायक के मन में, उसके विचारों और भावनाओं में उत्पन्न होता है और अपनी तीव्रता के कारण न केवल निर्णय कठिन बना देता है अपितु कुछ समय के लिए नायक का आसूल विचलित भी कर देता है। इस प्रकार के आंतरिक द्वंद्व के कारण नाटकों में मनोवैज्ञानिक सूक्ष्मता और रोचकता का आविर्भाव हुआ है। बाह्य द्वंद्व बाहरी शक्तियों की स्पर्धा और उनके संघर्ष से उत्पन्न होता है, जैसे दो विरोधी राजनीतिक दलों अथवा सेनाओं का पारस्परिक विरोध। शेक्सपियर के प्रमुख दु:खांत नाटकों में रक्तगत एवं भयावह दृश्यों की अवतारणा के कारण अत्यंत आतंकपूर्ण वातावरण निर्मित हुआ है। इसी भाँति हत्या और प्रतिशोध संबंधी दृश्यों के समावेश से भी अवसाद का पुट गहरा हो गया है। इन सभी विशेषताओं और उपकरणों को शेक्सपियर ने कतिपय पुराने नाटकों तथा सेनेका, किड्, मार्लो आदि नाटककारों से ग्रहण किया था और सामयिक लोकरुचि को ध्यान में रखकर ही उनका उपयोग अपने नाटकों में किया था। दु:खांत नाटकों की जिन विशेषताओं का उल्लेख हमने यहाँ किया है वे न केवल हैमलेट, आथेलो, किंग लियर, और मैकबेथ में मिलती हैं वरन् रोमियो ऐंड जुलिएट तथा इंग्लैंड और रोम के इतिहास पर आधृत दु:खांत नाटकों में भी आंशिक रूप में विद्यमान हैं।

शेक्सपियर ने जिन ऐतिहासिक नाटकों की रचना की उनमें कई रोमन इतिहास विषयक हैं। इन रोमन नाटकों के लेखन में शेक्सपियर ने इतिहास के तथ्यों को थोड़ा बहुत बदल दिया है और कतिपय स्थलों पर ऐसा प्रतीत होने लगता है कि जीवन का जो चित्र उपस्थित किया गया है वह प्राचीन रोम का नहीं अपितु ऐलिज़वेथ कालीन इंग्लैंड का है। इतना होने पर भी ये नाटक सदैव लोकप्रिय रहे हैं, विशेषकर जुलियस सीजर तथा एंटोनी ऐंड क्लिओपाट्रा। ऐंटोनी ऐड क्लिओपाट्रा कवित्वपूर्ण अंशों स भरा पड़ा है तथा क्लिओपाट्रा की चरित्रकल्पना अत्यंत प्रभावोत्पादक है। टाइमन ऑव एथेंस और पेरिकिल्स में यूनानी इतिहास की घटनाओं का निरूपण किया गया है। अंग्रेजी इतिहास पर आधारित नाटकों में कुछ तो ऐसे हैं जो केवल आंशिक रूप में शेक्सपियर द्वारा लिखे गए हैं किंतु हेनरी चतुर्थ के दोनों भाग और हेनरी पंचम पूर्ण रूपेण शेक्सपियर द्वारा प्रणीत हैं। इन तीनों नाटकों में कवि को महान् सफलता मिली है। इनमें शौर्य और सम्मानभावना का अत्यंत आकर्षक प्रतिपादन हुआ है और फाल्स्टाफ का चरित्र अत्यंत रोचक एवं स्पृहणीय हैं। रिचर्ड तृतीय और रिचर्ड द्वितीय में मार्लो का अनुकरण सफलतापूर्वक किया गया है। शेक्सपियर के पूर्व के अधिकांश अंग्रेजी ऐतिहासिक नाटकों में तथ्यों और घटनाओं का निर्जीव चित्रण रहता था तथा कोरी इतिवृत्तात्मकता के कारण वे नीरस होते थे। शेक्सपियर ने इस प्रकार के नाटकों को जीवंत रूप देकर चमत्कारपूर्ण बना दिया है।

अंतिम नाटकों में शेक्सपियर का परिपक्व जीवनदर्शन मिलता है। महाकवि को अपने जीवन में विभिन्न प्रकार के अनुभव हुए थे जिनकी झलक उनी कृतियों में दिखाई पड़ती है। प्रणय विषयक सुखांत नाटकों में कल्पनाविलास है और कवि का मन ऐश्वर्य और यौवन की विलासिता में रमा है। दु:खांत नाटकों में ऐसे दु:खद अनुभवों को अभिव्यक्ति है जो जीवन को विषाक्त बना देते हैं। शेक्सपियर के कृतित्व की परिणति ऐसे नाटकों की रचना में हुई जिनमें उनकी सम्यक बुद्धि का प्रतिफलन हुआ है। कवि अब अपनी विवेकपूर्ण दृष्टि से देखता है कि जीवन में सुख और दु:ख दोनों सन्निविष्ट रहते हैं, अत: दानों ही क्षणिक हैं। जीवन में दु:ख दोनों सन्निविष्ट रहते हैं, अत: दोनों ही क्षणिक हैं। जीवन में दु:ख के बाद सुख आता है, अतएव विचार और व्यवहार में समत्व वांछनीय है। इन अंतिम नाटकों से यह निष्कर्ष निकलता है कि हिंसा और प्रतिशोध की अपेक्षा दया और क्षमा अधिक श्लाघनीय हैं। अपने गंभीर नैतिक संदेश के कारण इन नाटकों का विशेष महत्व है।

शेक्सपियर के नाटक स्वच्छंदतावादी हैं तथा प्राचीन यूनानी और लैटिन नाटकों की परंपरा से पृथक् हैं। अत: उनमें वस्तुविन्यास की शास्त्रीय विशेषताओं को ढूँढ़ना उचित नहीं है। केवल अपने अंतिम नाटक 'दी टेंपेस्ट' में उन्होंने तीनों अन्वितियों का निर्वाह किया है। प्राय: सभी अन्य नाटकों में केवल कार्यान्विति का ध्यान रखा गया है, समय और स्थान की दृष्टि से वे नितांत निबंध हैं। कथावस्तु में सदैव पर्याप्त विस्तार मिलता है और सामान्यत: उसमें कई कथाएँ अंतर्निहित रहती हैं। उदाहरणार्थ हम ए मिड समर नाइट्स ड्रीम, दी मर्चेंट आव वेनिस, ऐज़ यू लाइक इट अथवा किंग लियर को ले सकते हैं। इन सभी में अनेक कथाओं के मिश्रण द्वारा वस्तुनिर्माण संपन्न हुआ है। किंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि शेक्सपियर के नाटकों की बनावट त्रुटिपूर्ण है। अंत:कथाओं का नाट्यवस्तु में सुंदर, कलापूर्ण रीति से गुंफन किया गया है तथा संपूर्ण कथानक से संकलित एकता का आभास मिलता है। शास्त्रीय अर्थ में अन्वितियों का अभाव होने पर भी इन स्वच्छंदतावादी नाटकों में भावानात्मक तथा कल्पनात्मक एकीकरण हुआ है।

पात्र कल्पना में शेक्सपियर को और भी अधिक सफलता मिली है। अपने नाटकों में उन्होंने अनेक आकर्षक पात्रों की सृष्टि की है जो अपने जीवंत रूप में हमारे सामने आते हैं। समय के साथ चरित्र निरूपण की प्रक्रिया अधिकाधिक सूक्ष्म एवं कलात्मक होती गई। उदाहरण के लिए हम सुखांत नाटकों में समाविष्ट रोज़ालिन, पोर्सिया, वियार्ट्रस, रोज़ालिंड, वायला प्रभृति प्रगल्भा नारियों को ले सकते हैं जो अपनी प्रखर बुद्धि और वाक्चातुरी का परिचय निरंतर देती हैं। दूसरी कोटि की वे नारियाँ हैं जिनके अनुपम सौंदर्य और संकटपूर्ण अनुभवों के कारण मन में करुणा का उद्रेक होता है। ऐस नारियों में प्रमुख हैं जुलिएट, ओफिलिया, डेसडिमोना, कार्डिलिया, इमोजेन इत्यादि। दु:खांत नाटकों में चरित्र चित्रण का अत्यधिक महत्व है। उदाहरण के लिए हम हैमलेट को ले सकते हैं। नाटक की समस्त घटनाएँ नायक के चरित्र पर केंद्रित हैं और उसी के व्यक्तित्व के प्रभाव से कथा का विकास होता है। अंशत: यही बात अन्य दु:खांत नाटकों के लिए भी सत्य है। प्राचीन यूनानी नाटकों में अनेक स्मरणीय पात्र मिलते हैं किंतु नैतिक और मनोवैज्ञानिक उपकरणों के सहारे अंकित किए हुए शेक्सपियर के प्रमुख पात्र कहीं अधिक रोचक एवं आकर्षक हैं। आंतरिक द्वंद्व के उपयोग से दु:खांत नाटकों की पात्रकल्पना और भी अधिक चमत्कारपूर्ण हो गई है। शेक्सपियर के नाटकों के कुछ अन्य पात्र भी उल्लेखनीय हैं जैसे विदूषक और खलनायक। विदूषकों में फाल्स्टाफ टचस्टोन, फेस्टे और किंग लियर का स्वामिभक्त विदूषक आदि महत्वपूर्ण हैं। खलनायकों में रिचर्ड तृतीय, इयागो, एडमंड इयाशियों आदि की गणना होती है। जैसा हैज़लिट ने लिखा है, शैक्सपियर की शक्ति का पता इससे लगता है कि न केवल उनके महत्वपूर्ण पात्रों में वैशिष्ट्य है वरन् उनके बहुसंख्यक लघु पात्र भी अपना निजी महत्व रखते हैं।

यद्यपि शेक्सपियर के नाटकों में कहीं कहीं गद्य का प्रयोग हुआ है, तब भी वे मूलत: काव्यात्मक है। उनका अधिकांश भाग छंदोबद्ध है। यही नहीं, प्राय: सभी नाट्य रचनाएँ काव्यात्मक गुणों से भरी पड़ी हैं। कल्पना का प्रकाशन, आलंकारिक अभिव्यक्ति, संगीतात्मक लय तथा कोमल भावनाओं के निरूपण द्वारा शेक्सपियर ने मनोमुग्धकारी प्रभाव उत्पन्न कर दिया है। प्राचीन काल से नाटकों का कविता का एक भेद मात्र मानते आए थे और शेक्सपियर ने प्राचीन धारणा स्वीकार की। गद्य का प्रयोग यदा कदा विशेष प्रयोजन से हुआ है। किंतु सामान्य रूप से हम शेक्सपियर के नाटकों को काव्यनाट्य की संज्ञा दे सकते हैं। काव्यतत्व शुरू में अत्यधिक था किंतु शनै: शनै: उसका रूप संयत हो गया और प्रयोजन के विचार से उसका नियंत्रण होने लगा। इसी भाँति शेक्सपियर की शैली में समाविष्ट करने के लिए निरंतर प्रयास किया; फलत: प्रारंभिक नाटकों में विस्तृत वर्णनों एव सुंदर रूपकों का बाहुल्य है अपनी प्रतिभा की प्रौढ़ावस्था में जब शेक्सपियर अपने प्रसिद्ध दु:खांत नाटकों की रचना कर रहे थे उस समय तक उनकी शैली संतुलित हो गई थी। प्राथमिक अवस्था में अभिव्यक्ति का अधिक महत्व था और विचारों का कम। किंतु इस माध्यमिक काल में विचारों, भावों तथा अभिव्यक्ति के साधनों का सम्यक् समन्वय हुआ है। यह संतुलित व्यवस्था अंतिम वर्षों में शेक्सपियर का ध्यान विचारों और नैतिक प्रतिमानों पर केंद्रित था और उन्होंने शैलीगत चमत्कार की उपेक्षा की। इसीलिए अंतिम नाटकों की शैली कहीं कहीं अनगढ़ हो गई है।

शेक्सपियर ने अपने नाटक मुख्यत: रंगमंच पर अभिनय के लिए लिखे थे, यद्यपि काव्यात्मक गुणों के कारण हम उनसे पठन द्वारा भी आनंद प्राप्त करते हैं। तत्कालीन रंगमंच की बनावट अभिनय की व्यवस्था, दर्शकों की लोकरुचि, इन सभी का प्रभाव शेक्सपियर के नाट्यनिर्माण पर पड़ा। दो एक उदाहरण ही पर्याप्त होंगे। उस समय रंगे हुए परदों का उपयोग नहीं होता था, इसलिए नाटकों में अनेक वर्णनात्मक अंशों का समावेश हुआ है। इन्हीं वर्णनों द्वारा स्थान, काल और परिस्थिति का संकेत होता था। नाटकों में स्वगत एवं स्वभाषित का निरंतर उपयोग इसीलिए संभव हो सका कि रंगमंच का अगला त्रिकोणाकार भाग प्रेक्षकों के बीच तक आगे बढ़ा रहता था। कई पुरुष और नारी पात्रों का सर्जन शेक्सपियर ने केवल इसलिए किया कि उनके उपयुक्त अभिनेता उपलब्ध थे। दर्शकों के मनोरंजनार्थ अनेक दृश्यों की अवतारणा हुई है जिनमे रंगमंच पर उत्तेजक एवं मनोरंजक परिस्थितियों का प्रदर्शन हुआ है। आज के यथार्थवादी रंगमंच की भाँति एलिजवेथ युगीन रंगमंच प्रचुर साधनों तथा निश्चित व्यवस्था द्वारा बँधा हुआ था। अभिनय और प्रदर्शन दोनों ही अपेक्षाकृत उन्मुक्त थे, इसलिए शेक्सपियर के नाटकों में पर्याप्त ऋजुता मिलती है।

प्राय: सभी प्रकार के नाटकों में महाकवि ने गेय मुक्तकों का सन्निवेश किया है जो अपने सौंदर्य और माधुर्य के लिए अनुपम हैं। इनके अतिरिक्त शेक्सपियर की विस्तृत कविताएँ हैं, जिनमें 'विनस ऐंड एडोनिस', 'दी रेप आव लुक्रीस' तथा सानेट्स का उल्लेख आवश्यक है। ये सभी कृतियाँ १६ वीं शताब्दी के अंतिम दशक की हैं जब शेक्सपियर का मन सौंदर्य एवं प्रणय के प्रभाव से आह्लादपर्ण हो गया था। 'विनस ऐंड एडोनिस' में एक प्राचीन प्रेमकथा को अत्यंत काव्यात्मक रीति से वर्णित किया गया है। 'दी रेप ऑव लुक्रीस' में एक परम सुंदरी रोमन महिला के दुर्भाग्य और मृत्यु की कथा है। सानेट्स में कुछ ऐसे हैं जो कवि के एक मित्र से संबंध रखते हैं जिसने विवाह न करने का निश्चय कर लिया था। शेक्सपियर ने उसके रूप और गुणों की चर्चा करते हुए उससे अपना निश्चय बदलने के लिए आग्रह किया है। सानेटों का दूसरा क्रम एक श्यामवर्ण महिला से संबंधित है जिसे प्रति कवि के मन में तीव्र आकर्षण उत्पन्न हुआ था किंतु जिसने उस स्नेह का आदर न करके कवि के उस मित्र को अपना प्रणय दिया, जिसको ध्यान में रखकर सानेटों का प्रथम क्रम लिखा गया था। शेक्सपियर ने इन सानेटों में अपनी आंतरिक भावनाओं का प्रकाशन किया है अथवा वे परंपरागत रचनाएँ मात्र हैं, यह प्रश्न अत्यंत विवादग्रस्त है।


बाल सॉनेट
चिड़िया
*
चूँ चूँ चिड़िया फुर्र उड़े।
चुग्गा चुग चुपचाप।
चूजे चें-चें कर थके।।
लपक चुगाती आप।।
पंखों में लेती लुका।
कोई करे न तंग।
प्रभु का करती शुक्रिया।।
विपदा से कर जंग।।
पंख उगें तब नीड़ से
देखी आप निकाल।
उड़ गिर उठ नभ नाप ले
व्यर्थ बजा मत गाल।।
खोज संगिनी घर बसा।
लूट जिंदगी का मजा।।
१२-१-२०२२
***
सॉनेट
विवेकानंद
*
मिल विवेक आनंद जब दिखलाते हैं राह।
रामकृष्ण सह सारदा मिल करते उद्धार।
नर नरेंद्र-गुरु भक्ति जब होती समुद अथाह।।
बनें विवेकानंद तब कर शत बाधा पार।।


गुरु-प्रति निष्ठा-समर्पण बन जीवन-पाथेय।
संकट में संबल बने, करता आत्म प्रकाश।
विधि-हरि-हर हों सहायक, भाव-समाधि विधेय।।
धरती को कर बिछौने, ओढ़े हँस आकाश।।


लगन-परिश्रम-त्याग-तप, दीन-हीन सेवार्थ।
रहा समर्पित अहर्निश मानव-मानस श्रेष्ठ।
सर्व धर्म समभाव को जिया सदा सर्वार्थ।।
कभी न छू पाया तुम्हें, काम-क्रोध-मद नेष्ठ।।


जाकर भी जाते नहीं, करते जग-कल्याण।
स्वामि विवेकानंद पथ, अपना तब हो त्राण।।
१२-१-२०२२

***
विमर्श
क्या सरस्वती वास्तव में एक फारसी देवी अनाहिता हैं ?
*
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
“देवी सरस्वती चमेली के रंग के चंद्रमा की तरह श्वेत हैं, जिनकी शुद्ध सफेद माला ठंडी ओस की बूंदों की तरह है, जो दीप्तिमान सफेद पोशाक में सुशोभित हैं, जिनकी सुंदर भुजा वीणा पर टिकी हुई है, और जिसका सिंहासन एक सफेद कमल है। जो ब्रह्मा को अच्युत रखतीं और शिवादि देवों द्वारा वन्दित हैं, मेरी रक्षा करें । आप मेरी सुस्ती, और अज्ञानता को
दूर करिये। "
ऋग्वेद में सरस्वती को "सरम वरति इति सरस्वती" के रूप में समझाया गया है - "वह जो पूर्ण की ओर बहती है वह सरस्वती है" - ३ री - ४ थी
सहस्राब्दी, ई.पू. में नदी स्वरास्वती एक प्रमुख जलधारा थी। यह खुरबत की खाड़ी से सुरकोटदा और कोटड़ा तक और नारा-हकरा-घग्गर-सरस्वती चैनलों के माध्यम से, मथुरा के माध्यम से ऊपर की ओर फैल गयी। यह दुनिया के सबसे बड़े रेगिस्तानों में से एक, मरुस्थली रेगिस्तान से सीधे बहती थी। इस नदी को वेदों में "सभी नदियों की माँ" के रूप में वर्णित किया गया है, जिसे सबसे शुद्ध और शुभ माना जाता है। प्रचलित मानसूनी हवाओं के कारण जब यह नदी सूख गई, तो इसके किनारे रहने वाली सभ्यता कुभा नदी में चली गई, और उस नदी का नाम बदलकर अवेस्तां सरस्वती (हराहवती) कर दिया। उपनिषदों में यह माना जाता है कि जब देवताओं को अग्नि / अग्नि को समुद्र में ले जाने की आवश्यकता थी, तो इसके जल की शुद्धता के लिए सरस्वती को जिम्मेदारी दी गई थी। हालांकि यह कार्य पूरा हुआ, लेकिन कुछ का मानना ​​है कि इस प्रक्रिया में नदी सूख गई।
फारसी कनेक्शन
अरदेवी सुरा अनाहिता ( Arədvī Sārā Anāhitā)); एक इंडो-ईरानी कॉस्मोलॉजिकल फिगर की एवेस्टन भाषा का नाम 'वाटर्स' (अबान) की दिव्यता के रूप में माना जाता है और इसलिए प्रजनन क्षमता, चिकित्सा और ज्ञान से जुड़ा है। अर्देवी सुरा अनाहिता मध्य में अर्दवीसुर अनाहिद या नाहिद है और आधुनिक फारसी, अर्मेनियाई में अनाहित। सरस्वती की तरह, अनाहिता को उसके पिता अहुरा मज़्दा (ब्रह्मा) से शादी करने के लिए जाना जाता है। दोनों तीन कार्यों के तत्वों के अनुरूप हैं। जॉर्ज डूमज़िल ने प्रोटो-इंडो-यूरोपीय धर्म में शक्ति संरचना पर काम करने वाले एक दार्शनिक ने कहा कि अनाहिता वी 85-87 में योद्धाओं द्वारा 'आर्द्र, मजबूत और बेदाग' के रूप में विकसित किया गया है, तत्वों को तीसरे, दूसरे और दूसरे को प्रभावित करता है। पहला समारोह। और उन्होंने वैदिक देवी वाक्, परिभाषित भाषण के मामले में एक समान संरचना पर ध्यान दिया, जो पुरुष देवता मित्रा-वरुण (पहला कार्य), इंद्र-अग्नि (दूसरा कार्य) और दो अश्व (तीसरा कार्य) को बनाए रखने के रूप में प्रतिनिधित्व करता है। सरस्वती के बारे में कहा जाता है कि वह मां के गर्भ में भ्रूण का रोपण करती है।
आर्टेमिस, कुंवारी शिकारी
मिथरिक पंथ में, अनहिता को मिथरा की कुंवारी माँ माना जाता था। क्या यह सही है? यह देखना दिलचस्प है कि 25 दिसंबर को एक प्रसिद्ध फ़ारसी शीतकालीन त्योहार मैथैरिक परंपराओं से ईसाई धर्म में आया और क्रिसमस मनाया।रोमन साम्राज्य में मिथ्रावाद इतना लोकप्रिय था और ईसाई धर्म के महत्वपूर्ण पहलुओं के समान था कि कई चर्च पिता निश्चित रूप से, इसे संबोधित करने के लिए मजबूर थे। इन पिताओं में जस्टिन मार्टियर, टर्टुलियन, जूलियस फर्मिकस मेटरनस और ऑगस्टाइन शामिल थे, जिनमें से सभी ने इन हड़ताली पत्राचारों को प्रस्तोता शैतान के लिए जिम्मेदार ठहराया। दूसरे शब्दों में, मसीह की आशा करते हुए, शैतान ने आने वाले मसीहा की नकल करके पैगनों को मूर्ख बनाने के बारे में निर्धारित किया। हकीकत में, इन चर्च पिताओं की गवाही इस बात की पुष्टि करती है कि ये विभिन्न रूपांकनों, विशेषताओं, परंपराओं और मिथकों को ईसाई धर्म से प्रभावित करते हैं।
जापान में सरस्वती
बेनज़ाइटन हिंदू देवी सरस्वती का जापानी नाम है। बेन्ज़िटेन की पूजा 8 वीं शताब्दी के माध्यम से 6 वीं शताब्दी के दौरान जापान में पहुंची, मुख्य रूप से गोल्डन लाइट के सूत्र के चीनी अनुवादों के माध्यम से , जो उसके लिए समर्पित एक खंड है। लोटस सूत्र में उसका उल्लेख भी किया गया है और अक्सर एक पूर्वाग्रह , सरस्वती के विपरीत एक पारंपरिक जापानी लुटे का चित्रण किया जाता है , जो एक कड़े वाद्य यंत्र के रूप में जाना जाता है, जिसे वीणा कहा जाता है।
हड़प्पा की मुहरों में सरस्वती और उषा
One of the frequently occurring signs in the seal is the compound symbol which occurs on 236 seals. Many scholars have held that the Indus symbols are often conjugated. Thus the symbol can be seen as a compound between and the symbol which may represent the sceptre which designated royal authority and may thus be read as ‘Ras’. The symbol-pair occurs in 131 texts and in many copper plate inscriptions which shows its great religious significance. The ending ‘Tri’ or ’Ti’ is significant and cannot but remind one of the great Tri-names like Saraswati and Gayatri. As Uksha was often shortened to ‘Sa’ the sign-pair becomes Sarasa-tri or Sarasvati.
१२-१-२०२०
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नवगीत:
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दर्पण का दिल देखता
कहिए, जग में कौन?
.
आप न कहता हाल
भले रहे दिल सिसकता
करता नहीं खयाल
नयन कौन सा फड़कता?
सबकी नज़र उतारता
लेकर राई-नौन
.
पूछे नहीं सवाल
नहीं किसी से हिचकता
कभी न देता टाल
और न किंचित ललकता
रूप-अरूप निहारता
लेकिन रहता मौन
.
रहता है निष्पक्ष
विश्व हँसे या सिसकता
सब इसके समकक्ष
जड़ चलता या फिसलता
माने सबको एक सा
हो आधा या पौन
(मुखड़ा दोहा, अन्तरा सोरठा)
***
बाल नवगीत:
*
सूरज बबुआ!
चल स्कूल
.
धरती माँ की मीठी लोरी
सुनकर मस्ती खूब करी
बहिन उषा को गिरा दिया
तो पिता गगन से डाँट पड़ी
धूप बुआ ने लपक चुपाया
पछुआ लाई
बस्ता-फूल
सूरज बबुआ!
चल स्कूल
.
जय गणेश कह पाटी पूजन
पकड़ कलम लिख ओम
पैर पटक रो मत, मुस्काकर
देख रहे भू-व्योम
कन्नागोटी, पिट्टू, कैरम
मैडम पूर्णिमा के सँग-सँग
हँसकर
झूला झूल
सूरज बबुआ!
चल स्कूल
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चिड़िया साथ फुदकती जाती
कोयल से शिशु गीत सुनो
'इकनी एक' सिखाता तोता
'अ' अनार का याद रखो
संध्या पतंग उड़ा, तिल-लड़ुआ
खा पर सबक
न भूल
सूरज बबुआ!
चल स्कूल
.
१२-१-२०१५

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2021

सॉनेट

सॉनेट: सवेरा
*
रश्मिरथी जब आते हैं
प्राची पर लाली छाती
पंछी शोर मचाते हैं
उषा नृत्य करती गाती

आँगन में आ गौरैया
उछल-कूदकर फुदक-फुदक
करती है ता ता थैया
झाँक'झाँककर, उचक-उचक

मुर्गा देता बाँग जगो
उठो तुरत शैया त्यागो
ईश्वर से सुख-शांति मँगो
सबमें रब है अनुरागो

करो कलेवा दूध पियो
सौ बरसों तक विहँस जियो
***
३-१२-२०२१