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बुधवार, 13 अगस्त 2025

अगस्त १३, इतिहास, संसद, फिरोज गांधी, नवगीत, दोहा, मित्र, मुक्तक, पूर्णिका

सलिल सृजन अगस्त १३
*
पूर्णिका
आईना
बोलता सच आईना
खोलता सच आईना
.
बिका जबसे मीडिया
तोलता सच आईना
.
हाय! संसद में न अब 
ढोलता सच आईना
.
सलिल-जनमत में सतत
घोलता सच आईना
१३.८.२०२५
०००
पूर्णिका
छप्पर है पानी पानी
भू-चूनर धानी-धानी
.
आसमान खैरात लिए
बादल गरजे बन दानी
.
नदी समंदर में फेंके
पाया जल सचमुच मानी
.
पवन बिजुरिया को छेड़े
कहे- जान, दिलवर जानी
.
लिव इन, लव जिहाद घातक
रहो दूर तितली रानी
.
चंपा और चमेली ने
शादी करने की ठानी
.
फुलबगिया अपनी सुंदर
कली कली है लासानी
.
सावन-फागुन दीवाली
बिना 'सलिल' है बेमानी
.
बागबान गुल गुलशन का
नाता नाजुक अरमानी
१३.८.२०२५
०००
पूर्णिका 
मन मंदिर में प्रेम
बसे तभी हो क्षेम
.
कोशिश कर अनवरत
जब तक मिले न एम
.
जग काजल का कक्ष
बच हो नहीं डिफेम
.
शेष न जब धन-देह
हो तब बुक अरु फेम
.
बने हार भी जीत
'सलिल' न छोड़ो गेम
०००
षट्पदी
सामना
.
मैके से लाली लौटी तो, सुन लालू का लाफ
कारण पूछा तो कहे लालू- 'करना माफ
कहता ट्रुथ होना नहीं तुम मुझसे नाराज़
कहा गुरू जी ने यही, प्रवचन में था आज
सिर चढ़ जाए मुसीबत तो मत डरकर भाग
हँसी-खुशी कर सामना, पग पर रखकर पाग।।
०००
केतकी पर सोरठे
हुई केतकी दीन, शिव से मिथ्या वचन कह।
थी मन-वृत्ति मलीन, पछताई भी शाप पा।।
.
श्वेत-पीत अभिराम, कोमल पात हरे हरे।
जपती हरि का नाम, सुरभि बिखेरे दूर तक।।
.
कहें गवाही झूठ, जो वे यह भी जान लें।
किस्मत जाती रूठ, मिलता है अभिशाप भी।।
.
जड़-पत्तों से आप, बना चटाई-टोकनी।
सकें जगत में व्याप, हस्त शिल्प से ख्याति पा।।
.
फुलबगिया में बैठ, जुही-केतकी सहेली।
कह मुकरी में पैठ रोज बूझतीं पहेली।।
.
लव-जिहाद तूफान,
हुई केतकी भीत है।
कोई न ले ले मान, बली बने तब जीत है।।
.
रंग-जाति शैतान, रिपु दहेज दानव मुआ।
लिए ले रहा जान, दिखा केतकी को कुँआ।।
.
१२.८.२०२५
०००
इतिहास
धोया गया संसद भवन
मुहूर्त निकाल तय किया था आजादी का दिन|
हमारे संविधान के निर्माण में २ साल ११ महीने १८ दिन का समय लगा। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को संविधान निर्माता कहलाने का गौरव प्राप्त है। डॉ. वे संविधान सभा के अध्यक्ष थे। संविधान के विविध पहलू पर अध्ययन और अनुश्ंसाओं हेतु कई समिति थीं। भीमराव अंबेडकर संविधान बनाने वाली प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे जिसमें कुल ७ सदस्य थे। 

१९४७ में जब यह तय हो गया कि अंग्रेज भारत छोडऩे के लिए तैयार हैं, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने गोस्वामी गणेशदत्त महाराज के माध्यम से उज्जैन के पंडित सूर्यनारायण व्यास को बुलावा भेजा। पंडित व्यास ने पंचांग देखकर बताया कि आजादी के लिए सिर्फ दो ही दिन शुभ हैं। १४ और १५ अगस्त। इसमें एक दिन पाकिस्तान को आजाद घोषित किया जा सकता है और एक दिन भारत को। उन्होंने डॉ. प्रसाद को भारत की आजादी के लिए मध्यरात्रि १२ बजे यानी स्थिर लग्न नक्षत्र का समय सुझाया। ताकि देश में लोकतंत्र स्थिर रहे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद के आग्रह पर उन्होंने बताया कि अगर आजादी १५ अगस्त १९४ की मध्यरात्रि १२ बजे ली गई तो हमारा गणतंत्र अमर रहेगा, १९९०  के बाद से देश की तरक्की होगी और २०२० तक भारत विश्व का सिरमौर बन जाएगा। इतना ही नहीं पंडित व्यास के कहने पर आजादी के बाद देर रात संसद को धोया भी गया था। क्योंकि ब्रिटिश शासकों के बाद अब यहां भारतीय बैठने वाले थे। धोने के बाद उनके बताए मुहूर्त पर गोस्वामी गिरधारीलाल ने संसद की शुद्धि करवाई थी। इसके बाद से चाहे शनि की दशा में देश को आजादी मिली, देश के टुकड़े हो गए, केतु की महादशा में देश भुखमरी और तंगहाली से गुजरा। मगर १९९० में शुक्र की महादशा शुरू होने के बाद देश की तरक्की भी शुरू हो गई।
 
पंडित सूर्यनारायण व्यास के पुत्र राजशेखर ने उनके जीवन और उनकी भविष्यवाणियों पर एक किताब लिखी है। 'याद आते हैं 'शीर्षक वाली इस किताब के ३४ वें 'अध्याय ज्योतिष जगत के सूर्य (पृष्ठ क्रमांक १९७-१९८) में आजादी के दिन के मुहूर्त का उल्लेख किया गया है। राजशेखर ने इस अध्याय में अपने पिता की अन्य भविष्यवाणियों का भी जिक्र किया है। सांदीपनी ऋषि के वंशज महान ज्योतिषाचार्य, लेखक, पत्रकार, पंडित सूर्यनारायण व्यास थे। उनका जन्म २ मार्च १९९  को हुआ था।

भविष्यवाणियां याँ सच निकली - लालबहादुर शास्त्री के ताशकंद जाने से पहले सूर्यनारायण व्यास ने एक लेख में इस बात का उल्लेख कर दिया था कि वे जीवित नहीं लौटेंगे। उन तक यह खबर पहुंची भी लेकिन उन्होंने इसे हँसकर टाल दिया। बाद में भविष्यवाणी सच साबित हुई। ७ दिसंबर १९५० को एक अखबार में उन्होंने लिखा कि उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का स्वास्थ्य अत्यंत चिंताजनक हो सकता है। १७ दिसंबर तक उनके लिए कठिन समय रहेगा। आखिर १६ दिसंबर की अर्ध रात्रि को सरदार पटेल दिवंगत हो गए। इससे पहले १९३२ में उन्होंने एक अंग्रेजी अखबार में भूकंप पर एक लेख लिखा था। फिर एक पत्र लिखकर आने वाले ३०० भूकंपों की सूची प्रकाशित करवा दी। समय के साथ-साथ ये भी सही साबित होती जा रही है। यह पत्र और अखबार सुरक्षित हैं। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद और महात्मा गाँधी के बारे में भी कई सटीक भविष्यवाणियाँ काफी पहले ही कर दी थीं।
***
भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़े होते थे फिरोज गाँधी 
*
परिवार से जुड़े होने के बावजूद अपनी अलग पहचान रखने के कायल फिरोज गांधी को एक ऐसे नेता और सांसद के रूप में याद किया जाता है जो हमेशा स्वच्छ सामाजिक जीवन के पैरोकार रहे और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करते रहे। फिरोज के समकालीन लोगों का कहना है कि वह भले ही संसद में कम बोलते रहे लेकिन वे बहुत अच्छे वक्ता थे और जब भी किसी विषय पर बोलते थे तो पूरा सदन उनको ध्यान से सुनता था। उन्होंने कई कंपनियों के राष्ट्रीयकरण का भी अभियान चलाया था।
फिरोज गाँधी अपने दौर के एक कुशल सांसद के रूप में जाने जाते थे। फिरोज इलाहाबाद के रहने वाले थे और आज भी लोग उनकी पुण्यतिथि के दिन उनकी मजार पर जुटते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। दिल्ली में मृत्यु के बाद फिरोज गांधी की अस्थियों को इलाहाबाद लाया गया था और पारसी धर्म के रिवाजों के अनुसार वहां उनकी मजार बनाई गई।
फिरोज गाँधी अच्छे खानपान के बेहद शौकीन थे। इलाहाबाद में फिरोज को जब भी फुर्सत मिलती थी वह लोकनाथ की गली में जाकर कचौड़ी तथा अन्य लजीज व्यंजन खाना पसंद करते थे। इसके अलावा हर आदमी से खुले दिल से मिलते थे। फिरोज गांधी का जन्म १२ अगस्त १९१२ को मुंबई के एक पारसी परिवार में हुआ था। बाद में वह इलाहाबाद आ गए और उन्होंने एंग्लो वर्नाकुलर हाई स्कूल और इवनिंग क्रिश्चियन कालेज से पढ़ाई की। पढ़ाई के दौरान ही उनकी जान पहचान नेहरू परिवार से हुई। शिक्षा के लिए फिरोज बाद में लंदन स्कूल आफ इकोनामिक्स चले गये।
इंग्लैंड में पढ़ाई के दौरान फिरोज और इंदिरा गांधी के बीच घनिष्ठता बढ़ी। इसी दौरान कमला नेहरू के बीमार पड़ने पर वह स्विट्जरलैंड चले गये। कमला नेहरू के आखिरी दिनों तक वह इंदिरा के साथ वहीं रहे। फिरोज बाद में पढ़ाई छोड़कर वापस आ गए और मार्च 1942 में उन्होंने इंदिरा गांधी से हिन्दू रीति रिवाजों के अनुसार विवाह कर लिया। विवाह के मात्र छह महीने बाद भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान दंपत्ति को गिरफ्तार कर लिया गया। फिरोज को इलाहाबाद के नैनी जेल में एक साल कारावास में बिताना पड़ा। आजादी के बाद फिरोज नेशनल हेरल्ड समाचार पत्र के प्रबंध निदेशक बन गये। पहले लोकसभा चुनाव में वह रायबरेली से जीते। उन्होंने दूसरा लोकसभा चुनाव भी इसी संसदीय क्षेत्र से जीता। संसद में उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ कई मामले उठाये जिनमें मूंदड़ा मामला प्रमुख था। फिरोज गांधी का निधन ८ सितंबर १९६०  को दिल्ली में दिल का दौरा पड़ने से हुआ।
***
***
दोहा सलिला
मित्र
*
निधि जीवन की मित्रता, करे सुखी-संपन्न
मित्र न जिसको मिल सके, उस सा कौन विपन्न.
*
सबसे अधिक गरीब वह, मिला न जिसको मित्र
गुल गुलाब जिससे नहीं, बन सकता हो इत्र
*
बिना स्वार्थ संबंध है, मन से मन का मित्र
मित्र न हो तो ज़िंदगी, बिना रंग का चित्र
१३-८-२०२०
***
नवगीत:
*
हल्ला-गुल्ला
शोर-शराबा
*
जंगल में
जनतंत्र आ गया
पशु खुश हैं
मन-मंत्र भा गया
गुराएँ-चीखें-रम्भाएँ
काँव-काँव का
यंत्र भा गया
कपटी गीदड़
पूजता बाबा
हल्ला-गुल्ला
शोर-शराबा
*
शतुरमुर्ग-गर्दभ
हैं प्रतिनिधि
स्वार्थ साधते
गेंडे हर विधि
शूकर संविधान
परिषद में
गिद्ध रखें
परदेश में निधि
पापी जाते
काशी-काबा
हल्ला-गुल्ला
शोर-शराबा
*
मानुष कैट-वाक्
करते हैं
भौंक-झपट
लड़ते-भिड़ते हैं
खुद कानून
बनाकर-तोड़ें
कुचल निबल
मातम करते हैं
मिटी रसोई
बसते ढाबा
हल्ला-गुल्ला
शोर-शराबा
***
मुक्तक
*
मापनी: २१२११ १२१११ २११
छंद: महासंस्कारी
बह्र: फाइलातुन मुफाईलुन फैलुन
*
रोकना मत, चले सदन संसद
चेतना झट, अगर रुके संसद
स्वार्थ साधन करें सतत जो दल
छोड़ना मत, गति भटक संसद
*
लीडरों! फिर बबाल करना मत
जो हुआ, अब धमाल करना मत
लोक का दुःख नहीं तनिक भी कम
शोक का इंतिज़ाम करना मत
*
पंडितों! तनिक राम भजिए अब
लोभ-लालच हराम तजिए अब
अस्थियाँ धरम की करम में लख
भूत-भावन सदृश्य सजिए अब
***
एक दोहा
बाप, बाप के है सलिल, बच्चे कम मत मान
वे तुझसे आगे बहुत, खुद पर कर न गुमान
१३-८-२०१५

शुक्रवार, 18 जुलाई 2025

जुलाई १८, लघुकथा, इतिहास, राखी, शब्द, लहर, रसभरी, बाल, सॉनेट, दोहा

सलिल सृजन जुलाई १८
*
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर के तत्वावधान में प्रकाशित संग्रह योग्य पुस्तकें ९४२५१८३२४४ पर पर मूल्य भेजकर प्राप्त करें।
०१. हिंदी सोनेट सलिला- ३२१ शेक्सपीयरी शैली के हिंदी सॉनेट का संकलन। मूल्य ५००/- ।
०२. चंद्र विजय अभियान- ५ देशों ५२ भाषा-बोलिओं २१७ कवियों की २७ रचनाओं का विश्व कीर्तिमान धारी संकलन। रियायती मूल्य ६००/-
०३. दोहा दोहा नर्मदा- दोहा रचना, इतिहास, १५ रचनाकारों के दोहा शतक । मूल्य २५०/- ।
०४. दोहा सलिला निर्मला- दोहा में रस प्रक्रिया, १५ रचनाकारों के दोहा शतक । मूल्य २५०/- ।
०५. दोहा दिव्य दिनेश- २२ भाषा-बोलियों के दोहे, १५ रचनाकारों के दोहा शतक । मूल्य ३००/- ।
०६. मीत मेरे कविताएँ- संजीव 'सलिल' मूल्य १५०/- ।
०७. कुरुक्षेत्र गाथा प्रबंध काव्य- दुर्गा प्रसाद खरे-संजीव 'सलिल' मूल्य ३००/- ।
०८. २१ श्रेष्ठ आदिवासी लोक कथाएँ मध्य प्रदेश- संजीव 'सलिल' मूल्य १५०/- ।
०९. २१ श्रेष्ठ बुंदेली लोक कथाएँ मध्य प्रदेश- संजीव 'सलिल' मूल्य १५०/- ।
१०. ओ मेरी तुम- शृंगार गीत संग्रह- संजीव 'सलिल' मूल्य ३००/- ।
११. काल है संक्रांति का- नवगीत संग्रह- संजीव 'सलिल' मूल्य ३००/- ।
१२. सड़क पर- नवगीत संग्रह- संजीव 'सलिल' मूल्य २५०/- ।
*
रसभरी
केप गुसबेरी (वानस्पतिक नाम : Physalis peruviana ; physalis = bladder) एक छोटा सा पौधा है। इसके फलों के ऊपर एक पतला सा आवरण होता है। कहीं-कहीं इसे 'मकोय' भी कहा जाता है। छत्तीसगढ़ में इसे 'चिरपोटी'व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पटपोटनी भी कहते हैं। इसके फलों को खाया जाता है। रसभरी औषधीय गुणो से परिपूर्ण है। केप गुसबेरी का पौधा किसानो के लिये सिरदर्द माना जाता है। जब यह खर पतवार की तरह उगता है तो फसलों के लिये मुश्किल पैदा कर देता है।
औषधीय गुण
केप गुसबेरी का फल और पंचांग (फल, फूल, पत्ती, तना, मूल) उदर रोगों (और मुख्यतः यकृत) के लिए लाभकारी है। इसकी पत्तियों का काढ़ा पीने से पाचन अच्छा होता है साथ ही भूख भी बढ़ती है। यह लीवर को उत्तेजित कर पित्त निकालता है। इसकी पत्तियों का काढ़ा शरीर के भीतर की सूजन को दूर करता है। सूजन के ऊपर इसका पेस्ट लगाने से सूजन दूर होती है। रसभरी की पत्तियों में कैल्सियम, फास्फोरस, लोहा, विटामिन-ए, विटामिन-सी पाये जाते हैं। इसके अलावा कैटोरिन नामक तत्त्व भी पाया जाता है जो ऐण्टी-आक्सीडैंट का काम करता है। बाबासीर में इसकी पत्तियों का काढ़ा पीने से लाभ होता है। संधिवात में पत्तियों का लेप तथा पत्तियों के रस का काढ़ा पीने से लाभ होता है। खांसी, हिचकी, श्वांस रोग में इसके फल का चूर्ण लाभकारी है। बाजार में अर्क-रसभरी मिलता है जो पेट के लिए उपयोगी है। सफेद दाग में पत्तियों का लेप लाभकारी है। अनुभूूत है यह डायबेटीज मे कारगर है। लीवर की सूजन कम करने में अत्यंत उपयोगी।
***
समीक्षा ......
मीत मेरे : केवल कविताएँ नहीं
समीक्षक: चंद्रकांता अग्निहोत्री, पंचकूला
[कृति विवरण: मीत मेरे, कविताएँ, संजीव 'सलिल', आवरण पेपर बैक जैकेट सहित बहुरंगी, आकार डिमाई, पृष्ठ १२४, मूल्य १५०/-, समन्वय प्रकाशन, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१, चलभाष:७९९९५५९६१८]
*
‘कलम के देव’ ,’लोकतंत्र का मकबरा’ ,’कुरुक्षेत्र गाथा’ ,’यदा कदा’ ‘काल है संक्रांति का’ ‘मीत मेरे’ अन्य कई कृतियों के रचियता व दिव्य –नर्मदा नामक सांस्कृतिक पत्रिका के सम्पादक आचार्य संजीव वर्मा जी का परिचय देना सूर्य को दीपक दिखाना है |
काव्य कृति ‘मीत मेरे’ में कवि की छंद मुक्त रचनाएं संग्रहीत हैं |छंद मुक्त कविता की गरिमा इसी में है कि कविता में छंद बद्धता के लिए बार –बार शब्दों का उनकी सहमति के बिना प्रयोग नहीं किया जा सकता|ऐसे ही प्रस्तुत संग्रह में लगभग सभी कविताओं में प्राण हैं ,गति है ,शक्ति है और आवाह्न है |
उनकी पूरी कृति में निम्न पंक्तियाँ गुंजायमान होती हैं
मीत मेरे
नहीं लिखता
मैं ,कभी कुछ
लिखाता है
कोई मुझसे
*
बन खिलौना
हाथ उसके
उठाता हूँ कलम |
उनकी कविताओं में चिर विश्वास है |गहन चिंतन की पराकाष्ठा है जब वे अपनी बात में लिखते हैं ------
तुम
उसी के अंश हो
अवतंश हो |
सलिल जी का स्वीकार भाव प्रणम्य है |वे कहते हैं ------
रात कितनी ही बड़ी हो
आयेंगे
फिर –फिर सवेरे |
अपने देश की माटी के सम्बन्ध में कहते हैं
सुख –दुःख ,
धूप -छाँव
हंस सहती
पीड़ा मन की
कभी न कहती
...................
भारत की माटी |
सलिल जी की हर कविता प्रेरक है |फिर भी कुछ कवितायें हैं जो विशेष रूप से उद्धहरणीय हैं |..........
जैसे :- सत्यासत्य ,नींव का पत्थर ,प्रतीक्षा ,लत, दीप दशहरा व दिया आदि |
हर पल को जीने की प्रेरणा देती कविता ......जियो
जो बीता ,सो
बीता चलो
अब खुश होकर
जी भर कर जिओ |
समर्पित भाव से आपूरित ------तुम और हमदम
तुम .....विहंस खुद सहकर
जिसके बिना मैं नहीं पूरा
सदा अधूरा हूँ
मेरे साथी मेरे मितवा
वही तुम हो ,वही तुम |
हमदम ......मैं तुम रहें न दो
हो जाएँ हमदम |
आत्म स्वीकृति से ओत प्रोत कविता |
रोको मत बहने दो में .........
मन को मन से
मन की कहने दो
‘सलिल’ को
रोको मत बहने दो |.....बहुत मन भावन कविता है|वास्तव में इस कविता में सियासत के प्रति आक्रोश है व आम आदमी के लिए स्वतंत्रता की कामना |
सपनों की दुकान ......निराशा को बाहर फैंकते हैं सपने|
गीत ,मानव मन ,क्यों ,बहने दे व मृण्मय मानव आदि मनमोहक कवितायेँ हैं |सलिल जी अपनी कविताओं में व्यक्ति स्वतंत्रता की घोषणा करते प्रतीत होते हैं |
रेल कविता .......जीवन संघर्षों का प्रतिबिम्ब |
मुसाफिर .......क्षितिज का नीलाभ नभ
देता परों को नित निमन्त्रण
और चल पड़ता
अनजाने पथ पर फिर
मैं मुसाफिर
जीवन मान्यताओं ,धारणाओं व संघर्षों के बीच गतिमान है
‘ताश’,व संदूक में कवि का आक्रोश परिलक्षित होता है जिनके जीवन का कोई उद्देश्य नहीं |
व्यंग्य प्रधान रचना ....इक्कीसवीं सदी |
सभी कवितायें यथार्थ के धरातल पर आदर्शोन्मुख हैं ,व्यक्ति को उर्ध्वगमन का सन्देश देती हैं |सलिल जी आप अपनी कविताओं में अभावों को जीते ,उन्हें महसूस करते हुए शाश्वत मूल्यों की स्थापना के लिए प्रयत्न शील हैं |
अंत में यही कहूँगी कि छंदमुक्त होते हुए भी हर कविता में लय है, गीत है व लालित्य है |निखरी हुई कलम से उपजी कविता सान्त्वना भी देती है ,झंझोड़ती, है दुलारती हैं ,उकसाती है व समझाती भी है |जीवन की सीढ़ी चढ़ने की प्रेरणा भी देती है | पंख फैला कर उड़ने के लिए प्रोत्साहित भी करती है |निर्भीक होकर सत्य को कहना सलिल जी की कविताओं की विशिष्टता भी है और गौरव भी |
सच कहूँ तो कविताएँ केवल कविताएँ नहीं बल्कि एक गौरव –गाथा है |
सॉनेट
जय-पराजय
जय-पराजय में अचल रह
आप अपनी राह चल रे
आँख में बन स्वप्न पल रे!
कोशिशों की बाँह हँस गह
पीर को मत कह पराई
आज लगती दूर यदि वह
कल लिपट जाए विहँस सह
दूर तुझसे है न भाई!
वेदना को प्यार कर ले
श्वास का शृंगार कर ले
निज गले का हार कर ले
सत्य-शिव-सुंदर सदा वर
हलाहल हँस कंठ में धर
अमिय औरों हित लुटाकर
१८-७-२०२२
•••
बाल कविता
जाह्नवी
*
बाल अरुण की सखी जाह्नवी
भू पर उतरी परी जाह्नवी
नेह नर्मदा निर्मल-चंचल
लोक कहे सुरसरी जाह्नवी
स्वप्न सलौने अनगिन देखे
बिन सोए, जग रही जाह्नवी
रूठे-मचले धरे शीश पर
नभ ही बात न सुने जाह्नवी
शारद-रमा-उमा की छवि ले
भव तारे खुद तरे जाह्नवी
है सब दुनिया खोटी लेकिन
सौ प्रतिशत है खरी जाह्नवी
मान सको तो बिटिया है यह
लाड़ करे ज्यों जननी जाह्नवी
जान बसी है इसमें सबकी
जान सभी को रही जाह्नवी
११-६-२०१९
***
स्वास्थ्यवर्धक रसभरी
केप गुसबेरी (वानस्पतिक नाम : Physalis peruviana ; physalis = bladder) एक छोटा सा पौधा है। इसके फलों के ऊपर एक पतला सा आवरण होता है। कहीं-कहीं इसे 'मकोय' भी कहा जाता है। छत्तीसगढ़ में इसे 'चिरपोटी'व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पटपोटनी भी कहते हैं। इसके फलों को खाया जाता है। रसभरी औषधीय गुणो से परिपूर्ण है। केप गुसबेरी का पौधा किसानो के लिये सिरदर्द माना जाता है। जब यह खर पतवार की तरह उगता है तो फसलों के लिये मुश्किल पैदा कर देता है।
औषधीय गुण
केप गुसबेरी का फल और पंचांग (फल, फूल, पत्ती, तना, मूल) उदर रोगों (और मुख्यतः यकृत) के लिए लाभकारी है। इसकी पत्तियों का काढ़ा पीने से पाचन अच्छा होता है साथ ही भूख भी बढ़ती है। यह लीवर को उत्तेजित कर पित्त निकालता है। इसकी पत्तियों का काढ़ा शरीर के भीतर की सूजन को दूर करता है। सूजन के ऊपर इसका पेस्ट लगाने से सूजन दूर होती है। रसभरी की पत्तियों में कैल्सियम, फास्फोरस, लोहा, विटामिन-ए, विटामिन-सी पाये जाते हैं। इसके अलावा कैटोरिन नामक तत्त्व भी पाया जाता है जो ऐण्टी-आक्सीडैंट का काम करता है। बाबासीर में इसकी पत्तियों का काढ़ा पीने से लाभ होता है। संधिवात में पत्तियों का लेप तथा पत्तियों के रस का काढ़ा पीने से लाभ होता है। खांसी, हिचकी, श्वांस रोग में इसके फल का चूर्ण लाभकारी है। बाजार में अर्क-रसभरी मिलता है जो पेट के लिए उपयोगी है। सफेद दाग में पत्तियों का लेप लाभकारी है। अनुभूूत है यह डायबेटीज मे कारगर है। लीवर की सूजन कम करने में अत्यंत उपयोगी।
***
समीक्षा ......
मीत मेरे : केवल कविताएँ नहीं
समीक्षक: चंद्रकांता अग्निहोत्री, पंचकूला
[कृति विवरण: मीत मेरे, कविताएँ, संजीव 'सलिल', आवरण पेपर बैक जैकेट सहित बहुरंगी, आकार डिमाई, पृष्ठ १२४, मूल्य १५०/-, समन्वय प्रकाशन, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१, चलभाष:७९९९५५९६१८]
*
‘कलम के देव’ ,’लोकतंत्र का मकबरा’ ,’कुरुक्षेत्र गाथा’ ,’यदा कदा’ ‘काल है संक्रांति का’ ‘मीत मेरे’ अन्य कई कृतियों के रचियता व दिव्य –नर्मदा नामक सांस्कृतिक पत्रिका के सम्पादक आचार्य संजीव वर्मा जी का परिचय देना सूर्य को दीपक दिखाना है |
काव्य कृति ‘मीत मेरे’ में कवि की छंद मुक्त रचनाएं संग्रहीत हैं |छंद मुक्त कविता की गरिमा इसी में है कि कविता में छंद बद्धता के लिए बार –बार शब्दों का उनकी सहमति के बिना प्रयोग नहीं किया जा सकता|ऐसे ही प्रस्तुत संग्रह में लगभग सभी कविताओं में प्राण हैं ,गति है ,शक्ति है और आवाह्न है |
उनकी पूरी कृति में निम्न पंक्तियाँ गुंजायमान होती हैं
मीत मेरे
नहीं लिखता
मैं ,कभी कुछ
लिखाता है
कोई मुझसे
*
बन खिलौना
हाथ उसके
उठाता हूँ कलम |
उनकी कविताओं में चिर विश्वास है |गहन चिंतन की पराकाष्ठा है जब वे अपनी बात में लिखते हैं ------
तुम
उसी के अंश हो
अवतंश हो |
सलिल जी का स्वीकार भाव प्रणम्य है |वे कहते हैं ------
रात कितनी ही बड़ी हो
आयेंगे
फिर –फिर सवेरे |
अपने देश की माटी के सम्बन्ध में कहते हैं
सुख –दुःख ,
धूप -छाँव
हंस सहती
पीड़ा मन की
कभी न कहती
...................
भारत की माटी |
सलिल जी की हर कविता प्रेरक है |फिर भी कुछ कवितायें हैं जो विशेष रूप से उद्धहरणीय हैं |..........
जैसे :- सत्यासत्य ,नींव का पत्थर ,प्रतीक्षा ,लत, दीप दशहरा व दिया आदि |
हर पल को जीने की प्रेरणा देती कविता ......जियो
जो बीता ,सो
बीता चलो
अब खुश होकर
जी भर कर जिओ |
समर्पित भाव से आपूरित ------तुम और हमदम
तुम .....विहंस खुद सहकर
जिसके बिना मैं नहीं पूरा
सदा अधूरा हूँ
मेरे साथी मेरे मितवा
वही तुम हो ,वही तुम |
हमदम ......मैं तुम रहें न दो
हो जाएँ हमदम |
आत्म स्वीकृति से ओत प्रोत कविता |
रोको मत बहने दो में .........
मन को मन से
मन की कहने दो
‘सलिल’ को
रोको मत बहने दो |.....बहुत मन भावन कविता है|वास्तव में इस कविता में सियासत के प्रति आक्रोश है व आम आदमी के लिए स्वतंत्रता की कामना |
सपनों की दुकान ......निराशा को बाहर फैंकते हैं सपने|
गीत ,मानव मन ,क्यों ,बहने दे व मृण्मय मानव आदि मनमोहक कवितायेँ हैं |सलिल जी अपनी कविताओं में व्यक्ति स्वतंत्रता की घोषणा करते प्रतीत होते हैं |
रेल कविता .......जीवन संघर्षों का प्रतिबिम्ब |
मुसाफिर .......क्षितिज का नीलाभ नभ
देता परों को नित निमन्त्रण
और चल पड़ता
अनजाने पथ पर फिर
मैं मुसाफिर
जीवन मान्यताओं ,धारणाओं व संघर्षों के बीच गतिमान है
‘ताश’,व संदूक में कवि का आक्रोश परिलक्षित होता है जिनके जीवन का कोई उद्देश्य नहीं |
व्यंग्य प्रधान रचना ....इक्कीसवीं सदी |
सभी कवितायें यथार्थ के धरातल पर आदर्शोन्मुख हैं ,व्यक्ति को उर्ध्वगमन का सन्देश देती हैं |सलिल जी आप अपनी कविताओं में अभावों को जीते ,उन्हें महसूस करते हुए शाश्वत मूल्यों की स्थापना के लिए प्रयत्न शील हैं |
अंत में यही कहूँगी कि छंदमुक्त होते हुए भी हर कविता में लय है, गीत है व लालित्य है |निखरी हुई कलम से उपजी कविता सान्त्वना भी देती है ,झंझोड़ती, है दुलारती हैं ,उकसाती है व समझाती भी है |जीवन की सीढ़ी चढ़ने की प्रेरणा भी देती है | पंख फैला कर उड़ने के लिए प्रोत्साहित भी करती है |निर्भीक होकर सत्य को कहना सलिल जी की कविताओं की विशिष्टता भी है और गौरव भी |
सच कहूँ तो कविताएँ केवल कविताएँ नहीं बल्कि एक गौरव –गाथा है |
चन्द्रकान्ता अग्निहोत्री |
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लहर (उर्मि, तरंग, वेव) पर दोहे
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नेह नर्मदा घाट पर, पटकें शीश तरंग.
लहर-लहर लहरा रहीं, सिकता-कण के संग.
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सलिल-धार में कूदतीं, भोर उर्मियाँ झाँक.
टहल रेत में बैठकर, चित्र अनूठे आँक.
*
ओज-जोश-उत्साह भर, कूदें छप्प-छपाक.
वेव लेंग्थ को ताक पर, धरें वेव ही ताक.
*
मन में उठी उमंग या, उमड़ा भाटा-ज्वार.
हाथ थाम संजीव का, कूद पडीं मँझधार.
*
लहँगा लहराती रहीं, लहरें करें किलोल.
संयम टूटा घाट का, गया बाट-दिल डोल.
*
घहर-घहर कर बह चली, हहर-हहर जलधार.
जो बौरा डूबन डरा, कैसे उतरे पार.
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नागिन सम फण पटकती, फेंके मुख से झाग.
बारिश में उफना लहर, बुझे न दिल की आग.
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निर्मल थी पंकिल हुई, जल-तरंग किस व्याज.
मर्यादा-तट तोड़कर, करती काज अकाज.
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कर्म-लहर पर बैठकर, कर भवसागर पार.
सीमा नहीं असीम की, ले विश्वास उबार.
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१८,७,२०१८
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'शब्द' पर दोहे
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अक्षर मिलकर शब्द हों, शब्द-शब्द में अर्थ।
शब्द मिलें तो वाक्य हों, पढ़ समझें निहितार्थ।।
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करें शब्द से मित्रता, तभी रच सकें काव्य।
शब्द असर कर कर सकें, असंभाव्य संभाव्य।।
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भाषा-संस्कृति शब्द से, बनती अधिक समृद्ध।
सम्यक् शब्द-प्रयोग कर, मनुज बने मतिवृद्ध।।
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सीमित शब्दों में भरें, आप असीमित भाव।
चोटिल करते शब्द ही, शब्द मिटाते घाव।।आद्या
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दें शब्दों का तोहफा, दूरी कर दें दूर।
मिले शब्द-उपहार लें, बनकर मित्र हुजूर।।
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निराकार हैं शब्द पर, व्यक्त करें आकार।
खुद ईश्वर भी शब्द में, हो जाता साकार।।
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जो जड़ वे जानें नहीं, क्या होता है शब्द।
जीव-जंतु ध्वनि से करें, भाव व्यक्त बेशब्द।।
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बेहतर नागर सभ्यता, शब्द-शक्ति के साथ।
सुर नर वानर असुर के, शब्द बन गए हाथ।।
*
पीढ़ी-दर-पीढ़ी बढ़ें, मिट-घट सकें न शब्द।
कहें, लिखें, पढ़िए सतत, कभी न रहें निशब्द।।
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शब्द भाव-भंडार हैं, सरस शब्द रस-धार।
शब्द नए नित सीखिए, सबसे सब साभार।।
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शब्द विरासत; प्रथा भी, परंपरा लें जान।
रीति-नीति; व्यवहार है, करें शब्द का मान।।
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शब्द न अपना-गैर हो, बोलें बिन संकोच।
लें-दें कर लगता नहीं, घूस न यह उत्कोच।।
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शब्द सभ्यता-दूत हैं, शब्द संस्कृति पूत।
शब्द-शक्ति सामर्थ्य है, मानें सत्य अकूत।।
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शब्द न देशी-विदेशी, शब्द न अपने-गैर।
व्यक्त करें अनुभूति हर, भाव-रसों के पैर।।
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शब्द-शब्द में प्राण है, मत मानें निर्जीव।
सही प्रयोग करें सभी, शब्द बने संजीव।।
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शब्द-सिद्धि कर सृजन के, पथ पर चलें सुजान।
शब्द-वृद्धि कर ही बने, रचनाकार महान।।
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शब्द न नाहक बोलिए, हो जाएंगे शोर।
मत अनचाहे शब्द कह, काटें स्नेहिल डोर।।
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समझ शऊर तमीज सच, सिखा बनाते बुद्ध।
युद्ध कराते-रोकते, करते शब्द प्रबुद्ध।।
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शब्द जुबां को जुबां दें, दिल को दिल से जोड़।
व्यर्थ होड़ मत कीजिए, शब्द न दें दिल तोड़।।
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बातचीत संवाद गप, गोष्ठी वार्ता शब्द।
बतरस गपशप चुगलियाँ, होती नहीं निशब्द।।
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दोधारी तलवार सम, करें शब्द भी वार।
सिलें-तुरप; करते रफू, शब्द न रखें उधार।।
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शब्दों से व्यापार है, शब्दों से बाजार।
भाव-रस रहित मत करें, व्यर्थ शब्द-व्यापार।।
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शब्द आरती भजन जस, प्रेयर हम्द अजान।
लोरी गारी बंदिशें, हुक्म कभी फरमान।।
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विनय प्रार्थना वंदना, झिड़क डाँट-फटकार।
ऑर्डर विधि आदेश हैं, शब्द दंड की मार।।
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शब्द-साधना दूत बन, करें शब्द से प्यार।
शब्द जिव्हा-शोभा बढ़ा, हो जाए गलहार।।
18.7.2018
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दोहा सलिला:
अंगरेजी में खाँसते...
*
अंगरेजी में खाँसते, समझें खुद को श्रेष्ठ.
हिंदी की अवहेलना, समझ न पायें नेष्ठ..
*
टेबल याने सारणी, टेबल माने मेज.
बैड बुरा माने 'सलिल', या समझें हम सेज..
*
जिलाधीश लगता कठिन, सरल कलेक्टर शब्द.
भारतीय अंग्रेज की, सोच करे बेशब्द..
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नोट लिखें या गिन रखें, कौन बताये मीत?
हिन्दी को मत भूलिए, गा अंगरेजी गीत..
*
जीते जी माँ ममी हैं, और पिता हैं डैड.
जिस भाषा में श्रेष्ठ वह, कहना सचमुच सैड..
*
चचा फूफा मौसिया, खो बैठे पहचान.
अंकल बनकर गैर हैं, गुमी स्नेह की खान..
*
गुरु शिक्षक थे पूज्य पर, टीचर हैं लाचार.
शिष्य फटीचर कह रहे, कैसे हो उद्धार?.
*
शिशु किशोर होते युवा, गति-मति कर संयुक्त.
किड होता एडल्ट हो, एडल्ट्री से युक्त..
*
कॉपी पर कॉपी करें, शब्द एक दो अर्थ.
यदि हिंदी का दोष तो अंगरेजी भी व्यर्थ..
*
टाई याने बाँधना, टाई कंठ लंगोट.
लायर झूठा है 'सलिल', लायर एडवोकेट..
*
टैंक अगर टंकी 'सलिल', तो कैसे युद्धास्त्र?
बालक समझ न पा रहा, अंगरेजी का शास्त्र..
*
प्लांट कारखाना हुआ, पौधा भी है प्लांट.
कैन नॉट को कह रहे, अंगरेजीदां कांट..
*
खप्पर, छप्पर, टीन, छत, छाँह रूफ कहलाय.
जिस भाषा में व्यर्थ क्यों, उस पर हम बलि जांय..
*
लिख कुछ पढ़ते और कुछ, समझ और ही अर्थ.
अंगरेजी उपयोग से, करते अर्थ-अनर्थ..
*
हीन न हिन्दी को कहें, भाषा श्रेष्ठ विशिष्ट.
अंगरेजी को श्रेष्ठ कह, बनिए नहीं अशिष्ट..
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दोहा सलिला:
अलंकारों के रंग-राखी के संग
*
राखी ने राखी सदा, बहनों की मर्याद.
संकट में भाई सदा, पहलें आयें याद..
राखी= पर्व, रखना.
*
राखी की मक्कारियाँ, राखी देख लजाय.
आग लगे कलमुँही में, मुझसे सही न जाय..
राखी= अभिनेत्री, रक्षा बंधन पर्व.
*
मधुरा खीर लिये हुए, बहिना लाई थाल.
किसको पहले बँधेगी, राखी मचा धमाल..
*
अक्षत से अ-क्षत हुआ, भाई-बहन का नेह.
देह विदेहित हो 'सलिल', तनिक नहीं संदेह..
अक्षत = चाँवल के दाने,क्षतिहीन.
*
रो ली, अब हँस दे बहिन, भाई आया द्वार.
रोली का टीका लगा, बरसा निर्मल प्यार..
रो ली= रुदन किया, तिलक करने में प्रयुक्त पदार्थ.
*
बंध न सोहे खोजते, सभी मुक्ति की युक्ति.
रक्षा बंधन से कभी, कोई न चाहे मुक्ति..
*
हिना रचा बहिना करे, भाई से तकरार.
हार गया तू जीतकर, जीत गयी मैं हार..
*
कब आएगा भाई? कब, होगी जी भर भेंट?
कुंडी खटकी द्वार पर, भाई खड़ा ले भेंट..
भेंट= मिलन, उपहार.
*
मना रही बहिना मना, कहीं न कर दे सास.
जाऊँ मायके माय के, गले लगूँ है आस..
मना= मानना, रोकना, माय के=माता-पिता का घर, माँ के
*
गले लगी बहिना कहे, हर संकट हो दूर.
नेह बर्फ सा ना गले, मन हरषे भरपूर..
गले=कंठ, पिघलना.
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विमर्श:
इतिहास और भविष्य
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अकबर महान है या महाराणा प्रताप???
ये कैसा प्रश्न, कैसा मुद्दा आज पूरे देश में उठाया जा रहा है? ऐसी दुविधा उत्पन्न करनेवाले महानुभावों से मेरा अनुरोध है कि आप इतिहास बदलने पर जितना ज़ोर दे रहे हैं उतना प्रयास व उतना समय एक नया इतिहास गढ़ने में दीजिये।
एक विदुषी ने अपने पन्ने पर अकबर पर लगाए जा रहे आक्षेपों पर आपत्ति करते हुए प्रताप से तुलना पर आपत्ति की है। इस सिलसिले में अपना मत प्रस्तुत कर रहा हूँ आप सबकी राय जानने के लिए।
***
इतिहास को पढ़ें और समझें तब कुछ कहें। अकबर कहीं से सुख सुविधा के लिए आया नहीं था। उसके बाप-दादे विदेश से भारत में आए थे। अकबर भारत में ही पैदा हुआ और पाला-पोसा गया था। वह पूरी तरह भारतीय था, भारत की संतान था।
कंस की तरह अकबर ने केवल सत्ता और भोग-विलास के लिए अपने ही देशवासियों पर जुल्म किए, इसलिए वह नींद का पात्र है। रानी दुर्गावती और चाँद बीबी अकबर की माँ की उम्र की थीं किन्तु दोनों के रूप-लावण्य के चर्चे सुनकर उन्हें अपने हरम में लाने के लिए अकबर ने आक्रमण कर उनके समृद्ध सुसंचालित राज्य नष्ट कर दिए। बुंदेलखंड की विदुषी सुंदरी राय प्रवीण को अपने पास भेजने के लिए ओरछा के राजा को विवश किया। यह दीगर बात है कि राय प्रवीण अपनी बुद्धिमता से बच कार वापिस लौट गईं। महाराणा प्रताप भी अकबर से बहुत बड़े थे। भारतीय होते हुए भी अकबर ने खुद को कभी भारतीय नहीं समझा, खुद को मुगलिया और तैमूरी कहता रहा । अकबर इस देश की मिट्टी का गुनाहगार है। रावण ने लंका के खिलाफ कभी कुछ नहीं किया। अकबर ने भारत के हित में कुछ नहीं किया। अफ़सोस कि खुद को बुद्धिजीवी समझनेवाले बिना इतिहास को समझे दूसरों को कटघरे में खड़ा करते हैं।
गोंडवाने के मूल निवासी दुर्गावती के बलिदान के लगभग २७० साल बाद भी उन्हें पूजते और अकबर को लानत भेजते हैं। यही स्थिति राजस्थान में है।
क्या आपको यह ज्ञात है कि अकबर के नवरत्नों में सम्मिलित बीरबल और तानसेन भारतीय राजाओं के गद्दार थे। उन्हें अपने राज्यों के भेद बताने और अपने ही राज्यों पर मुग़ल आक्रमण में मदद का पुरस्कार दिया गया था। भारतीय होने के नाते भारत की परंपरा और मूल्यों को समझकर इतिहास का मूल्यांकन करें तो बेहतर होगा।
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लघुकथा
सफेदपोश तबका
देश के विकास और निर्माण की कथा जैसी होती है वैसी दिखती नहीं, और जैसी दिखती है वैसी होती नहीं.... क्या कहा?, नहीं समझे?... कोई बात नहीं समझाता हूँ.
किसी देश का विकास उत्पादन से होता है. उत्पादन सिर्फ दो वर्ग करते हैं किसान और मजदूर. उत्पादनकर्ता की समझ बढ़ाने के लिए शिक्षक, तकनीक हेतु अभियंता तथा स्वास्थ्य हेतु चिकित्सक, शांति व्यवस्था हेतु पुलिस तथा विवाद सुलझाने हेतु न्यायालय ये पाँच वर्ग आवश्यक हैं. शेष सभी वर्ग अनुत्पादक तथा अर्थ व्यवस्था पर भार होते हैं. -वक्ता ने कहा.
फिर तो नेता, अफसर, व्यापारी और बाबू अर्थव्यवस्था पर भार हुए? क्यों न इन्हें हटा दिया जाए?-किसी ने पूछा.
भार ही तो हुए. ये कितने भी अधिक हों हमेशा खुद को कम बताएँगे और अपने अधिकार, वेतन और सुविधाएं बढ़ाते जायेंगे. यह शोषक वर्ग प्रशासन के नाम पर पुलिस के सहारे सब पर लद जाता है. उत्पादक और उत्पादन-सहायक वर्ग का शोषण करता है. सारे काले कारनामे करने के बाद भी कहलाता है 'सफेदपोश तबका'.
***
पहल
*
''आपके देश में हर साल अपनी बहिन की रक्षा करने का संकल्प लेने का त्यौहार मनाया जाता है फिर भी स्त्रियों के अपमान की इतनी ज्यादा घटनाएँ होती हैं। आइये! हम सब अपनी बहिन के समान औरों की बहनों के मान-सम्मान की रक्षा करने का संकल्प इस रक्षाबंधन पर लें।''
विदेशी पर्यटक से यह सुझाव आते ही सांस्कृतिक सम्मिलन के मंच पर छा गया मौन, अपनी-अपनी कलाइयों पर रक्षा सूत्रों का प्रदर्शन करते नेताओं, अफ्सरों और धन्नासेठों में कोई भी नहीं कर सका यह पहल।
१८-७-२०१७
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सोमवार, 29 नवंबर 2021

विक्रमादित्य, नवरत्न और भोज



राजा विक्रमादित्य


  विक्रमादित्य उज्जैन के राजा थे, जो अपने ज्ञान, वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे। "विक्रमादित्य" की उपाधि भारतीय इतिहास में बाद के कई अन्य राजाओं ने प्राप्त की थी, जिनमें गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीयऔर सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य (जो हेमु के नाम से प्रसिद्ध थे) उल्लेखनीय हैं। राजा विक्रमादित्य नाम, 'विक्रम' और 'आदित्य' के समास से बना है जिसका अर्थ 'पराक्रम का सूर्य' या 'सूर्य के समान पराक्रमी' है।उन्हें विक्रमया विक्रमार्क (विक्रम + अर्क) भी कहा जाता है (संस्कृत में अर्क का अर्थ सूर्य है)। भविष्य पुराण व आईने अकबरी के अनुसार विक्रमादित्य पंवार (प्रमार) वंश के सम्राट थे जिनकी राजधानी उज्जयनी थी । अनुश्रुत विक्रमादित्य, संस्कृत और भारत के क्षेत्रीय भाषाओं, दोनों में एक लोकप्रिय व्यक्तित्व है। उनका नाम बड़ी आसानी से ऐसी किसी घटना या स्मारक के साथ जोड़ दिया जाता है, जिनके ऐतिहासिक विवरण अज्ञात हों, हालांकि उनके इर्द-गिर्द कहानियों का पूरा चक्र फला-फूला है। संस्कृत की सर्वाधिक लोकप्रिय दो कथा-श्रृंखलाएं हैं वेताल पंचविंशति या बेताल पच्चीसी ("पिशाच की २५ कहानियाँ") और सिंहासन-द्वात्रिंशिका ("सिंहासन की ३२ कहानियाँ" सिहांसन बत्तीसी )। इन दोनों के संस्कृत और क्षेत्रीय भाषाओं में कई रूपांतरण मिलते हैं।

हिन्दू शिशुओं में 'विक्रम' नामकरण के बढ़ते प्रचलन का श्रेय आंशिक रूप से विक्रमादित्य की लोकप्रियता और उनके जीवन के बारे में लोकप्रिय लोक कथाओं की दो श्रृंखलाओं को दिया जा सकता है। विक्रम संवत् भारत और नेपाल की हिंदू परंपरा में व्यापक रूप से प्रयुक्त प्राचीन पंचाग हैं विक्रम संवत् या विक्रम युग। कहा जाता है कि ईसा पूर्व ५६ में शकों पर अपनी जीत के बाद राजा ने इसकी शुरूआत की थी। राजा विक्रमादित्य के दरबार में मौजूद नवरत्नों में उच्च कोटि के कवि, विद्वान, गायक और गणित के प्रकांड पंडित शामिल थे, जिनकी योग्यता का डंका देश-विदेश में बजता था। 

१. धन्वन्तरि-
नवरत्नों में इनका स्थान गिनाया गया है। इनके रचित नौ ग्रंथ पाये जाते हैं। वे सभी आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र से सम्बन्धित हैं। चिकित्सा में ये बड़े सिद्धहस्त थे। आज भी किसी वैद्य की प्रशंसा करनी हो तो उसकी ‘धन्वन्तरि’ से उपमा दी जाती है। धनतेरस असल में 'धन्वंतरि' के ही नाम पर मनाया जाता था। जिसे 'चिकित्सक' दिवस के रूप में मनाया जाता था।कालांतर में यह कुछ विशेष सामानों की खरीदारी तक ही सीमित हो गया।

२–क्षपणक-
जैसा कि इनके नाम से प्रतीत होता है, ये बौद्ध संन्यासी थे।
इससे एक बात यह भी सिद्ध होती है कि प्राचीन काल में मन्त्रित्व आजीविका का साधन नहीं था अपितु जनकल्याण की भावना से मन्त्रिपरिषद का गठन किया जाता था। यही कारण है कि संन्यासी भी मन्त्रिमण्डल के सदस्य होते थे।
इन्होंने कुछ ग्रंथ लिखे जिनमें ‘भिक्षाटन’ और ‘नानार्थकोश’ ही उपलब्ध बताये जाते हैं।

३–अमरसिंह-
ये प्रकाण्ड विद्वान थे। बोध-गया के वर्तमान बुद्ध-मन्दिर से प्राप्य एक शिलालेख के आधार पर इनको उस मन्दिर का निर्माता कहा जाता है। उनके अनेक ग्रन्थों में एक मात्र ‘अमरकोश’ ग्रन्थ ऐसा है कि उसके आधार पर उनका यश अखण्ड है। संस्कृतज्ञों में एक उक्ति चरितार्थ है जिसका अर्थ है ‘अष्टाध्यायी’ पण्डितों की माता है और ‘अमरकोश’ पण्डितों का पिता। अर्थात् यदि कोई इन दोनों ग्रंथों को पढ़ ले तो वह महान् पण्डित बन जाता है।

४–शंकु –
संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान 'शङ्कुक’ का काव्य-ग्रन्थ ‘भुवनाभ्युदयम्’ बहुत प्रसिद्ध रहा है किन्तु आज वह भी पुरातत्व का विषय बना हुआ है।

५–वेतालभट्ट –
 ‘वेताल पंचविंशति’ (‘वेताल-पच्चीसी’) के रचनाकार वेताल भट्ट  सम्राट विक्रम के वर्चस्व से प्रभावित थे। यही इनकी एक मात्र रचना उपलब्ध है।

७–घटखर्पर –
इनकी प्रतिज्ञा थी कि जो कवि अनुप्रास और यमक में इनको पराजित कर देगा उसके यहाँ वे फूटे घड़े से पानी भरेंगे।  तब से ही इनका नाम ‘घटखर्पर’ प्रसिद्ध हो गया। इनकी दो कृतियाँ ‘घटखर्पर काव्यम्’ (यमक और अनुप्रास का वह अनुपमेय ग्रन्थ) और  ‘नीतिसार’ हैं।



7–कालिदास –
कालिदास को देवी ‘काली’ की कृपा से विद्या प्राप्त हुई थी इसीलिए इनका नाम ‘कालिदास’ हुआ। संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से यह कालीदास होना चाहिए था किन्तु अपवाद रूप में कालिदास की प्रतिभा को देखकर इसमें उसी प्रकार परिवर्तन नहीं किया गया जिस प्रकार कि ‘विश्वामित्र’ को उसी रूप में रखा गया। कालिदास की विद्वता और काव्य प्रतिभा के विषय में अब दो मत नहीं है।  आज तक भी उन जैसा अप्रितम साहित्यकार अन्य उत्पन्न नहीं हुआ है। उनके चार काव्य और तीन नाटक प्रसिद्ध हैं। शकुन्तला उनकी अन्यतम कृति है। कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के प्राणप्रिय कवि थे। उन्होंने  अपने ग्रन्थों में विक्रम के व्यक्तित्व का उज्जवल स्वरूप निरूपित किया है। 


८–वराहमिहिर –
भारतीय ज्योतिष-शास्त्र इनसे गौरवास्पद हो गया है। इन्होंने अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया है। इनमें-‘बृहज्जातक‘, सुर्यसिद्धांत, ‘बृहस्पति संहिता’, ‘पंचसिद्धान्ती’ मुख्य हैं। गणक तरंगिणी’, ‘लघु-जातक’, ‘समास संहिता’, ‘विवाह पटल’, ‘योग यात्रा’, आदि-आदि का भी इनके नाम से उल्लेख पाया जाता है।

९–वररुचि-
कालिदास की भांति ही वररुचि भी अन्यतम काव्यकर्ताओं में गिने जाते हैं। ‘सदुक्तिकर्णामृत’, ‘सुभाषितावलि’ तथा ‘शार्ङ्धर संहिता’, इनकी रचनाओं में गिनी जाती हैं।
इनके नाम पर मतभेद है। क्योंकि इस नाम के तीन व्यक्ति हुए हैं उनमें से-
१.पाणिनीय व्याकरण के वार्तिककार-वररुचि कात्यायन,
२.‘प्राकृत प्रकाश के प्रणेता-वररुचि
३.सूक्ति ग्रन्थों में प्राप्त कवि-वररुचि

राजा भोज

भोज परमार या पंवार वंश के नवें राजा थे। परमार वंशीय राजाओं ने मालवा की राजधानी धारानगरी (धार) से आठवीं शताब्दी से लेकर चौदहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक राज्य किया था। भोज ने बहुत से युद्ध किए और अपनी प्रतिष्ठा स्थापित की जिससे सिद्ध होता है कि उनमें असाधारण योग्यता थी। यद्यपि उनके जीवन का अधिकांश युद्धक्षेत्र में बीता तथापि उन्होंने अपने राज्य की उन्नति में किसी प्रकार की बाधा न उत्पन्न होने दी। उन्होंने मालवा के नगरों व ग्रामों में बहुत से मंदिर बनवाए, यद्यपि उनमें से अब बहुत कम का पता चलता है।


भोजपाल नगर (वर्तमान मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल) को राजा भोज ने ही बसाया था तथा समीप ही  समुद्र के समान विशाल तालाब का निर्माण कराया था, जो पूर्व और दक्षिण में भोजपुर के विशाल शिव मंदिर तक जाता था। आज भी भोजपुर जाते समय , रास्ते में शिवमंदिर के पास उस तालाब की पत्थरों की बनी विशाल पाल दिखती है। उस समय उस तालाब का पानी बहुत पवित्र और बीमारियों को ठीक करने वाला माना जाता था। कहा जाता है कि राजा भोज को चर्म रोग हो गया था तब किसी ऋषि या वैद्य ने उन्हें इस तालाब के पानी में स्नान करने और उसे पीने की सलाह दी थी जिससे उनका चर्मरोग ठीक हो गया था। उस विशाल तालाब के पानी से शिवमंदिर में स्थापित विशाल शिवलिंग का अभिषेक भी किया जाता था। राजा भोज स्वयं बहुत बड़े विद्वान थे। उन्होंने धर्म, खगोल विद्या, कला, कोशरचना, भवननिर्माण, काव्य, औषधशास्त्र आदि विभिन्न विषयों पर पुस्तकें लिखी हैं जो अब भी विद्यमान हैं। इनके समय में कवियों को राज्य से आश्रय मिला था। उन्होने सन् १००० ई. से १०५५  ई. तक राज्य किया। इनकी विद्वता के कारण जनमानस में एक कहावत प्रचलित हुई 'कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तैली'। भोज बहुत बड़े वीर, प्रतापी, और गुणग्राही थे। इन्होंने अनेक देशों पर विजय प्राप्त की थी और कई विषयों के अनेक ग्रंथों का निर्माण किया था। ये बहुत अच्छे कवि, दार्शनिक और ज्योतिषी थे।राजा भोज ने ज्ञान के सभी क्षेत्रों में  ८४ ग्रन्थों की रचना की है। उनमें से प्रमुख हैं- राजमार्तण्ड (पतंजलि के योगसूत्र की टीका), सरस्वतीकंठाभरण (व्याकरण), सरस्वतीकण्ठाभरण (काव्यशास्त्र), शृंगारप्रकाश (काव्यशास्त्र तथा नाट्यशास्त्र), तत्त्वप्रकाश (शैवागम पर), वृहद्राजमार्तण्ड (धर्मशास्त्र), राजमृगांक (चिकित्सा), विद्याविनोद, शृंगारमंजरी, चंपूरामायण, चारुचर्या, तत्वप्रकाश, व्यवहारसमुच्चय, युक्तिकल्पतरु - यह ग्रन्थ राजा भोज के समस्त ग्रन्थों में अद्वितीय है। इस एक ग्रन्थ में अनेक विषयों का समाहार है। राजनीति, वास्तु, रत्नपरीक्षा, विभिन्न आयुध, अश्व, गज, वृषभ, महिष, मृग, अज-श्वान आदि पशु-परीक्षा, द्विपदयान, चतुष्पदयान, अष्टदोला, नौका-जहाज आदि के सारभूत तत्त्वों का भी इस ग्रन्थ में संक्षेप में सन्निवेश है। विभिन्न पालकियों और जहाजों का विवरण इस ग्रन्थ की अपनी विशेषता है। विभिन्न प्रकार के खड्गों का सर्वाधिक विवरण इस पुस्तक में ही प्राप्त होता है।  आदि अनेक ग्रंथ इनके लिखे हुए बतलाए जाते हैं। इनकी सभा सदा बड़े बड़े पंडितों से सुशोभित रहती थी। इनकी विदुषी पत्नी का नाम लीलावती था। जब भोज जीवित थे तो कहा जाता था-

अद्य धारा सदाधारा सदालम्बा सरस्वती।
पण्डिताः मण्डिताः सर्वे भोजराजे भुवि स्थिते॥

(आज जब भोजराज धरती पर स्थित हैं तो धारा नगरी सदाधारा (अच्छे आधार वाली) है; सरस्वती को सदा आलम्ब मिला हुआ है; सभी पंडित आदृत हैं।)

जब उनका देहान्त हुआ तो कहा गया -

अद्य धारा निराधारा निरालंबा सरस्वती।
पण्डिताः खण्डिताः सर्वे भोजराजे दिवंगते ॥

(आज भोजराज के दिवंगत हो जाने से धारा नगरी निराधार हो गयी है ; सरस्वती बिना आलम्ब की हो गयी हैं और सभी पंडित खंडित हैं।)

भोज, धारा नगरी के 'सिन्धुल' नामक राजा के पुत्र थे और इनकी माता का नाम सावित्री था । जब ये पाँच वर्ष के थे, तभी इनके पिता अपना राज्य और इनके पालन-पोषण का भार अपने भाई मुंज पर छोड़कर स्वर्गवासी हुए थे । मुंज इनकी हत्या करना चाहता था, इसलिये उसने बंगाल के वत्सराज को बुलाकर उसको इनकी हत्या का भार सौंपा । वत्सराज इन्हें बहाने से देवी के सामने बलि देने के लिये ले गया । व्हाँ पहुँचने पर जब भोज को मालूम हुआ कि यहाँ मैं बलि चढ़ाया जाऊँगा, तब उन्होंने अपनी जाँघ चीरकर उसके रक्त से बड़ के एक पत्ते पर दो श्लोक लिखकर वत्सराज को दिए और कहा कि थे मुंज को दे देना । उस समय वत्सराज को इनकी हत्या करने का साहस न हुआ और उसने इन्हें अपने यहाँ ले जाकर छिपा रखा । जब वत्सराज भोज का कृत्रिम कटा हुआ सिर लेकर मुंज के पास गया और भोज के श्लोक उसने उन्हें दिए, तब मुंज को बहुत पश्चाताप हुआ । मुंज को बहुत विलाप करते देखकर वत्सराज ने उन्हें असल हाल बतला दिया और भोज को लाकर उनके सामने खड़ा कर दिया । मुंज ने सारा राज्य भोज को दे दिया और आप सपत्नीक वन को चले गए ।

भोज ने प्रधानमंत्री रोहक, मंत्री भुवनपाल तथा सेनापतियों कुलचंद्र, साढ़ तथा तारादित्य की सहायता से राज्य संचालन सुचारु रूप से किया। अपने चाचा मुंज की ही भाँति यह भी पश्चिमी भारत में एक साम्राज्य स्थापित करना चाहते थे।  इसलिये इन्हें अपने पड़ोसी राज्यों से हर दिशा में युद्ध करना पड़ा। मुंज की मृत्यु शोकजनक परिस्थिति में हो जाने से परमारों ने  उत्तेजित थे होकर चालुक्यों से बदला लेने हेतु दक्षिण की ओर सेना लेकर चढ़ाई की। उन्होंने ने दाहल के कलचुरी गांगेयदेव तथा तंजौर (तंच्यावूर) के राजेन्द्र चोल से संधि की ओर साथ ही साथ दक्षिण पर आक्रमण कर दिया। तत्कालीन राजा चालुक्य जयसिंह द्वितीय [सोलंकी] ने बहादुरी से सामना किया और अपना राज्य बचा लिया। सन् १०४४ ई. के कुछ समय बाद जयसिंह के पुत्र सोमेश्वर द्वितीय ने परमारों से फिर शत्रुता कर ली और मालवा राज्य पर आक्रमण कर भोज को भागने के लिये बाध्य कर दिया। धारानगरी पर अधिकार कर लेने के बाद उसने आग लगा दी। कुछ दिनों बाद सोमेश्वर ने मालव छोड़ दिया और भोज ने राजधानी में लोटकर फिर सत्ताधिकार प्राप्त कर लिया। सन् १०१८ ई. के कुछ ही पहले भोज ने इंद्ररथ नामक एक व्यक्ति को, जो संभवत: कलिंग के गांग राजाओं का सामंत था, हराया था। 

जयसिंह द्वितीय तथा इंद्ररथ के साथ युद्ध समाप्त कर लेने पर भोज ने अपनी सेना भारत की पश्चिमी सीमा से लगे हुए देशों की ओर बढ़ाकर  दक्षिण में बंबई राज्य के अंतर्गत सूरत लाट राज्य पर आक्रमण कर दिया। वहाँ के राजा चालुक्य कीर्तिराज ने आत्मसमर्पण कर दिया। भोज ने कुछ समय तक उस पर अधिकार रखा।  सन् १०२० ई. में भोज ने लाट के दक्षिण में स्थित तथा थाना जिले से लेकर मालागार समुद्रतट तक विस्तृत कोंकण पर आक्रमण किया और शिलाहारों के अरिकेशरी नामक राजा को हराया। कोंकण को परमारों के राज्य में मिला लिया गया और उनके सामंतों के रूप में शिलाहारों ने यहाँ कुछ समय तक राज्य किया। सन् १००८ ई. में जब महमूद गज़नबी ने पंजाबे शाही नामक राज्य पर आक्रमण किया, भोज ने भारत के अन्य राज्यों के साथ अपनी सेना भी आक्रमणकारी का विरोध करने तथा शाही आनंदपाल की सहायता करने के हेतु भेजी परंतु हिंदू राजाओं की हार हो गई। सन् १०४३ ई. में भोज ने अपने भृतिभोगी सिपाहियों को पंजाब के मुसलमानों के विरुद्ध लड़ने के लिए दिल्ली के राजा के पास भेजा। उस समय पंजाब गज़नी साम्राज्य का एक भाग था और महमूद के वंशज  वहाँ राज्य कर रहे थे। दिल्ली के राजा को भारत के अन्य भागों की सहायता मिली और उसने पंजाब की ओर कूच करके मुसलमानों को हराया और कुछ दिनों तक उस देश के कुछ भाग पर अधिकार रखा परंतु अंत में गज़नी के राजा ने उसे हराकर खोया हुआ भाग पुन: अपने साम्राज्य में मिला लिया।

भोज ने एक बार दाहल के कलचुरी गांगेयदेव के विरुद्ध भी चढ़ाई कर दी जिसने दक्षिण पर आक्रमण करने के समय उसका साथ दिया था। गांगेयदेव हार गया परंतु उसे आत्मसमर्पण नहीं करना पड़ा।  उत्तर में भोज ने चंदेलों के देश पर भी आक्रमण किया था जहाँ विद्याधर नामक राजा राज्य करता था परंतु उससे कोई लाभ न हुआ। भोज के ग्वालियर पर विजय प्राप्त करने के प्रयत्न का भी कोई अच्छा फल न हुआ क्योंकि वहाँ के राजा कच्छपघाट कीर्तिराज ने उसके आक्रमण का डटकर सामना किया। ऐसा विश्वास किया जाता है कि भोज ने कुछ समय के लिए कन्नौज पर भी विजय पा ली थी जो उस समय प्रतिहारों के पतन के बादवाले परिवर्तन काल में था।

भोज ने राजस्थान में शाकंभरी के चाहमनों के विरुद्ध भी युद्ध की घोषणा की और तत्कालीन राजा चाहमान वीर्यराम को हराया। इसके बाद उसने चाहमानों के ही कुल के अनहिल द्वारा शालित नदुल नामक राज्य को जीतने की धमकी दी, परंतु युद्ध में परमार हार गए और उनके प्रधान सेनापति साढ़ को जीवन से हाथ धोना पड़ा। भोज ने गुजरात के चौलुक्यों [सोलंकी ] से भी, जिन्होंने अपनी राजधानी अनहिलपट्टण में बनाई थी, बहुत दिनों तक युद्ध किया। चालुक्य सोलंकी नरेश मूलराज प्रथम के पुत्र चामुंडराज को वाराणसी जाते समय मालवा में परमार भोज के हाँथों अपमानित होना पड़ा था। उसके पुत्र एवं उत्तराधिकारी बल्लभराज को बहुत क्रोध आया और उसने इस अपमान का बदला लेने हेतु एक बड़ी सेना तैयार कर भोज पर आक्रमण कर दिया, परंतु दुर्भाग्यवश रास्ते में ही चेचक से उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद वल्लभराज के छोटे भाई दुर्लभराज ने सत्ता की बागडोर अपन हाथों में ली। कुछ समय बाद भोज ने उसे भी युद्ध में हराया। दुर्लभराज के उत्तराधिकारी भीम के राज्यकाल में भोज ने अपने सेनापति कुलचंद्र को गुजरात के विरुद्ध युद्ध करने के लिए भेजा। कुलचंद्र ने पूरे प्रदेश पर विजय प्राप्त की तथा उसकी राजधानी अनहिलपट्टण को लूटा। भीम ने एक बार आबू पर आक्रमण कर उसके राजा परमार ढंडु को हराया था, जब उसे भागकर चित्रकूट में भोज की शरण लेनी पड़ी थी। सन् १०५५ ई. के कुछ ही पहले गांगेय के पुत्र कर्ण ने गुजरात के चौलुक्य भीम प्रथम के साथ एक संधि कर ली और मालव पर पूर्व तथा पश्चिम की ओर से आक्रमण कर दिया। भोज अपना राज्य बचाने का प्रबंध कर ही रहा था कि बीमारी से उसकी आकस्मिक मृत्यु हो गई और राज्य सुगमता से आक्रमणकारियों के अधिकार में चला गया।

डॉ महेश सिंह ने उनकी रचनाओं को विभिन्न विषयों के अन्तर्गत वर्गीकृत किया है-
संकलन : सुभाषितप्रबन्ध
शिल्प : समरांगणसूत्रधार
खगोल एवं ज्योतिष : आदित्यप्रतापसिद्धान्त, राजमार्तण्ड, राजमृगांक, विद्वज्ञानवल्लभ (प्रश्नविज्ञान)
धर्मशास्त्र, राजधर्म तथा राजनीति : भुजबुल (निबन्ध) , भुपालपद्धति, भुपालसमुच्चय या कृत्यसमुच्चय
चाणक्यनीति या दण्डनीति : व्यवहारसमुच्चय, युक्तिकल्पतरु, पुर्तमार्तण्ड, राजमार्तण्ड, राजनीतिः
व्याकरण : शब्दानुशासन
कोश : नाममालिका
चिकित्साविज्ञान : आयुर्वेदसर्वस्व, राजमार्तण्ड या योगसारसंग्रह राजमृगारिका, शालिहोत्र, विश्रान्त विद्याविनोद
संगीत : संगीतप्रकाश
दर्शन : राजमार्तण्ड (योगसूत्र की टीका), राजमार्तण्ड (वेदान्त), सिद्धान्तसंग्रह, सिद्धान्तसारपद्धति, शिवतत्त्व या शिवतत्त्वप्रकाशिका
प्राकृत काव्य : कुर्माष्टक
संस्कृत काव्य एवं गद्य : चम्पूरामायण, महाकालीविजय, शृंगारमंजरी, विद्याविनोद

भोज के समय में भारतीय विज्ञान

समराङ्गणसूत्रधार का ३१वाँ अध्याय ‘यंत्रविज्ञान’ से सम्बन्धित है। इस अध्याय में यंत्र, उसके भेद और विविध यंत्रनिर्माण-पद्धति पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। यंत्र उसे कहा गया है जो स्वेच्छा से चलते हुए (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश आदि) भूतों को नियम से बांधकर अपनी इच्छानुसार चलाया जाय ।

स्वयं वाहकमेकं स्यात्सकृत्प्रेर्यं तथा परम् ।
अन्यदन्तरितं बाह्यं बाह्यमन्यत्वदूरत: ॥

इन तत्वों से निर्मित यंत्रों के विविध भेद हैं, जैसे :- (१) स्वयं चलने वाला, (२) एक बार चला देने पर निरंतर चलता रहने वाला, (३) दूर से गुप्त शक्ति से चलाया जाने वाला तथा (४) समीपस्थ होकर चलाया जाने वाला।

राजा भोज के भोजप्रबन्ध में लिखा है –

घटयेकया कोशदशैकमश्व: सुकृत्रिमो गच्छति चारुगत्या ।
वायुं ददाति व्यजनं सुपुष्कलं विना मनुष्येण चलत्यजस्त्रम ॥

भोज ने यंत्रनिर्मित कुछ वस्तुओं का विवरण भी दिया है। यंत्रयुक्त हाथी चिंघाड़ता तथा चलता हुआ प्रतीत होता है। शुक आदि पक्षी भी ताल के अनुसार नृत्य करते हैं तथा पाठ करते है। पुतली, हाथी, घोडा, बन्दर आदि भी अंगसंचालन करते हुए ताल के अनुसार नृत्य करते मनोहर लगते है। उस समय बना एक यंत्रनिर्मित पुतला नियुक्त किया था। वह पुतला वह बात कह देता था जो राजा भोज कहना चाहते थे ।।
*

शनिवार, 18 जुलाई 2020

विमर्श: इतिहास और भविष्य

विमर्श:
इतिहास और भविष्य
*
अकबर महान है या महाराणा प्रताप???
ये कैसा प्रश्न,कैसा मुद्दा आज पूरे देश मे उठाया जा रहा है??ऐसी दुविधा उत्पन्न करने वाले महानुभावों से मेरा अनुरोध है कि आप इतिहास बदलने पर जितना ज़ोर दे रहे हैं उतना प्रयास व उतना समय एक नया इतिहास गढ़ने में दीजिये।
एक विदुषी ने अपने पन्ने पर अकबर पर लगाए जा रहे आक्षेपों पर आपत्ति करते हुए प्रताप से तुलना पर आपत्ति की है. इस सिलसिले में अपना मत प्रस्तुत कर रहा हूँ आप सबकी राय जानने के लिए.
***
इतिहास को पढ़ें और समझें तब कुछ कहें. अकबर कहीं से सुख सुविधा के लिए आया नहीं था. उसके बाप-दादे आये थे. अकबर भारत में ही पैदा हुआ और पाला-पोसा गया था. अकबर केवल सत्ता और भोग-विलास के लिए अपने ही देशवासियों पर जुल्म करता गया. रानी दुर्गावती और चाँद बीबी अकबर की माँ की उम्र की थीं किन्तु दोनों के रूप-लावण्य के चर्चे सुनकर उनक्को अपने हरम में लाने के लिए अकबर ने आक्रमण कर उनके समृद्ध सुसंचालित राज्य नष्ट कर दिए. बुंदेलखंड की विदुषी सुंदरी राय प्रवीण को अपने पास भेजने के लिए ओरछा के राजा को विवश किया. यह दीगर बात है कि राय प्रवीण अपनी बुद्धिमता से बच गयीं. महाराणा प्रताप भी अकबर से बहुत बड़े थे. भारतीय होते हुए भी अकबर ने खुद को कभी भारतीय नहीं समझा, खुद को मुगलिया और तैमूरी कहता रहा. अकबर इस देश की मिट्टी का गुनाहगार है. रावण ने लंका के खिलाफ कभी कुछ नहीं किया. अकबर ने भारत के हित में कुछ नहीं किया. अफ़सोस की खुद को बुद्धिजीवी समझनेवाले बिना इतिहास को समझे दूसरों को कटघरे में खड़ा करते हैं. गोंडवाने के मूल निवासी दुर्गावती के बलिदान के लगभग २७० साल बाद भी उन्हें पूजते और अकबर को लानत भेजते हैं. यही स्थिति राजस्थान में है. क्या आपको यह ज्ञात है कि अकबर के नवरत्नों में सम्मिलित बीरबल और तानसेन भारतीय राजाओं के गद्दार थे. उन्हें अपने राज्यों के भेद बताने और अपने ही राज्यों पर मुग़ल आक्रमण में मदद का पुरस्कार दिया गया था. भारतीय होने के नाते भारत की परम्परा और मूल्यों को समझकर इतिहास का मूल्यांकन करें तो बेहतर होगा.

सोमवार, 5 अगस्त 2019

गीत- करवट ले इतिहास

आज विशेष
करवट ले इतिहास
*
वंदे भारत-भारती
करवट ले इतिहास
हमसे कहता: 'शांत रह,
कदम उठाओ ख़ास

*
दुनिया चाहे अलग हों, रहो मिलाये हाथ
मतभेदों को सहनकर, मन रख पल-पल साथ
देश सभी का है, सभी भारत की संतान
चुभती बात न बोलिये, हँस बनिए रस-खान
न मन करें फिर भी नमन,
अटल रहे विश्वास
देश-धर्म सर्वोच्च है
करा सकें अहसास
*
'श्यामा' ने बलिदान दे, किया देश को एक
सीख न दीनदयाल की, तज दो सौख्य-विवेक
हिमगिरि-सागर को न दो, अवसर पनपे भेद
सत्ता पाकर नम्र हो, न हो बाद में खेद
जो है तुमसे असहमत
करो नहीं उपहास
सर्वाधिक अपनत्व का
करवाओ आभास
*
ना ना, हाँ हाँ हो सके, इतना रखो लगाव
नहीं किसी से तनिक भी, हो पाए टकराव
भले-बुरे हर जगह हैं, ऊँच-नीच जग-सत्य
ताकत से कमजोर हो आहात करो न कृत्य
हो नरेंद्र नर, तभी जब
अमित शक्ति हो पास
भक्ति शक्ति के साथ मिल
बनती मुक्ति-हुलास
(दोहा गीत: यति १३-११, पदांत गुरु-लघु )
***
५-८-२०१९
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
७९९९५५९६१८
salil.sanjiv@gmail.com

गुरुवार, 18 जुलाई 2019

विमर्श: इतिहास और भविष्य

विमर्श: 
इतिहास और भविष्य 
*
अकबर महान है या महाराणा प्रताप???
ये कैसा प्रश्न,कैसा मुद्दा आज पूरे देश मे उठाया जा रहा है??ऐसी दुविधा उत्पन्न करने वाले महानुभावों से मेरा अनुरोध है कि आप इतिहास बदलने पर जितना ज़ोर दे रहे हैं उतना प्रयास व उतना समय एक नया इतिहास गढ़ने में दीजिये।
एक विदुषी ने अपने पन्ने पर अकबर पर लगाए जा रहे आक्षेपों पर आपत्ति करते हुए प्रताप से तुलना पर आपत्ति की है. इस सिलसिले में अपना मत प्रस्तुत कर रहा हूँ आप सबकी राय जानने के लिए.
***
इतिहास को पढ़ें और समझें तब कुछ कहें. अकबर कहीं से सुख सुविधा के लिए आया नहीं था. उसके बाप-दादे आये थे. अकबर भारत में ही पैदा हुआ और पाला-पोसा गया था. अकबर केवल सत्ता और भोग-विलास के लिए अपने ही देशवासियों पर जुल्म करता गया. रानी दुर्गावती और चाँद बीबी अकबर की माँ की उम्र की थीं किन्तु दोनों के रूप-लावण्य के चर्चे सुनकर उनक्को अपने हरम में लाने के लिए अकबर ने आक्रमण कर उनके समृद्ध सुसंचालित राज्य नष्ट कर दिए. बुंदेलखंड की विदुषी सुंदरी राय प्रवीण को अपने पास भेजने के लिए ओरछा के राजा को विवश किया. यह दीगर बात है कि राय प्रवीण अपनी बुद्धिमता से बच गयीं. महाराणा प्रताप भी अकबर से बहुत बड़े थे. भारतीय होते हुए भी अकबर ने खुद को कभी भारतीय नहीं समझा, खुद को मुगलिया और तैमूरी कहता रहा. अकबर इस देश की मिट्टी का गुनाहगार है. रावण ने लंका के खिलाफ कभी कुछ नहीं किया. अकबर ने भारत के हित में कुछ नहीं किया. अफ़सोस की खुद को बुद्धिजीवी समझनेवाले बिना इतिहास को समझे दूसरों को कटघरे में खड़ा करते हैं. गोंडवाने के मूल निवासी दुर्गावती के बलिदान के लगभग २७० साल बाद भी उन्हें पूजते और अकबर को लानत भेजते हैं. यही स्थिति राजस्थान में है. क्या आपको यह ज्ञात है कि अकबर के नवरत्नों में सम्मिलित बीरबल और तानसेन भारतीय राजाओं के गद्दार थे. उन्हें अपने राज्यों के भेद बताने और अपने ही राज्यों पर मुग़ल आक्रमण में मदद का पुरस्कार दिया गया था. भारतीय होने के नाते भारत की परम्परा और मूल्यों को समझकर इतिहास का मूल्यांकन करें तो बेहतर होगा.

रविवार, 14 अगस्त 2016

navgeet

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🇮🇳 स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।🇮🇳
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
एक रचना-
हम
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
हम वही हैं,
यह न भूलो
झट उठो आकाश छू लो।
बता दो सारे जगत को
यह न भूलो
हम वही है।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
हमारे दिल में पली थी
सरफरोशी की तमन्ना।
हमारी गर्दन कटी थी
किंतु
किंचित भी झुकी ना।
काँपते थे शत्रु सुनकर
नाम जिनका
हम वही हैं।
कारगिल देता गवाही
मर अमर
होते हमीं हैं।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
इंकलाबों की करी जयकार
हमने फेंककर बम।
झूल फाँसी पर गये
लेकिन
न झुकने दिया परचम।
नाम कह 'आज़ाद', कोड़े
खाये हँसकर
हर कहीं हैं।
नहीं धरती मात्र
देवोपरि हमें
मातामही हैं।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
पैर में बंदूक बाँधे,
डाल घूँघट चल पड़ी जो।
भवानी साकार दुर्गा
भगत के
के संग थी खड़ी वो।
विश्व में ऐसी मिसालें
सत्य कहता हूँ
नहीं हैं।
ज़िन्दगी थीं या मशालें
अँधेरा पीती रही
रही  हैं।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
'नहीं दूँगी कभी झाँसी'
सुनो, मैंने ही कहा था।
लहू मेरा
शिवा, राणा,  हेमू की
रग में बहा था।
पराजित कर हूण-शक को
मर, जनम लेते
यहीं हैं।
युद्ध करते, बुद्ध बनते
हमीं विक्रम, 'जिन'
हमीं हैं।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
विश्व मित्र, वशिष्ठ, कुंभज
लोपामुद्रा, कैकयी, मय ।
ऋषभ, वानर, शेष, तक्षक
गार्गी-मैत्रेयी
निर्भय?
नाग पिंगल, पतंजलि,
नारद, चरक, सुश्रुत
हमीं हैं।
ओढ़ चादर रखी ज्यों की त्यों
अमल हमने
तही हैं।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
देवव्रत, कौंतेय, राघव
परशु, शंकर अगम लाघव।
शक्ति पूजित, शक्ति पूजी
सिय-सती बन
जय किया भव।
शून्य से गुंजित हुए स्वर
जो सनातन
हम सभी हैं।
नाद अनहद हम पुरातन
लय-धुनें हम
नित नयी हैं।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
हमीं भगवा, हम तिरंगा
जगत-जीवन रंग-बिरंगा।
द्वैत भी, अद्वैत भी हम
हमीं सागर,
शिखर, गंगा।
ध्यान-धारी, धर्म-धर्ता
कम-कर्ता
हम गुणी हैं।
वृत्ति सत-रज-तम न बाहर
कहीं खोजो,
त्रय हमीं हैं।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
भूलकर मत हमें घेरो
काल को नाहक न टेरो।
अपावन आक्रांताओं
कदम पीछे
हटा फेरो।
बर्फ पर जब-जब
लहू की धार
सरहद पर बही हैं।
कहानी तब शौर्य की
अगणित, समय ने
खुद कहीं हैं।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
हम वही हैं,
यह न भूलो
झट उठो आकाश छू लो।
बता दो सारे जगत को
यह न भूलो
हम वही है।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
जय हिंद
जय भारत
वन्दे मातरम्
भारत माता की जय
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
🙏🙏🙏🙏🙏🙏