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बुधवार, 14 अगस्त 2013

muktak : sanjiv

स्वाधीनता दिवस पर :
मुक्तक
संजीव
*
शहादतों को भूलकर सियासतों को जी रहे 
पड़ोसियों से पिट रहे हैं और होंठ सी रहे
कुर्सियों से प्यार है, न खुद पे ऐतबार है-
नशा निषेध इस तरह कि मैकदे में पी रहे
*
जो सच कहा तो घेर-घेर कर रहे हैं वार वो
हद है ढोंग नफरतों को कह रहे हैं प्यार वो
सरहदों पे सर कटे हैं, संसदों में बैठकर-
एक-दूसरे को कोस, हो रहे निसार वो
*
मुफ़्त भीख लीजिए, न रोजगार माँगिए
कामचोरी सीख, ख्वाब अलगनी पे टाँगिए
फर्ज़ भूल, सिर्फ हक की बात याद कीजिए-
आ रहे चुनाव देख, नींद में भी जागिए
*
और का सही गलत है, अपना झूठ सत्य है
दंभ-द्वेष-दर्प साध, कह रहे सुकृत्य है
शब्द है निशब्द देख भेद कथ्य-कर्म का-
वार वीर पर अनेक कायरों का कृत्य है
*
प्रमाणपत्र गैर दे: योग्य या अयोग्य हम?
गर्व इसलिए कि गैर भोगता, सुभोग्य हम
जो न हाँ में हाँ कहे, लांछनों से लाद दें -
शिष्ट तज, अशिष्ट चाह, लाइलाज रोग्य हम
*
गंद घोल गंग में तन के मुस्कुराइए
अनीति करें स्वयं दोष प्रकृति पर लगाइए
जंगलों के, पर्वतों के नाश को विकास मान-
सन्निकट विनाश आप जान-बूझ लाइए
*
स्वतंत्रता है, आँख मूँद संयमों को छोड़ दें
नियम बनायें और खुद नियम झिंझोड़-तोड़ दें
लोक-मत ही लोकतंत्र में अमान्य हो गया-
सियासतों से बूँद-बूँद सत्य की निचोड़ दें
*
हर जिला प्रदेश हो, राग यह अलापिए
भाई-भाई से भिड़े, पद पे जा विराजिए
जो स्वदेशी नष्ट हो, जो विदेशी फल सके-
आम राय तज, अमेरिका का मुँह निहारिए
*
धर्महीनता की राह, अल्पसंख्यकों की चाह
अयोग्य को वरीयता, योग्य करे आत्म-दाह
आँख मूँद, तुला थाम, न्याय तौल बाँटिए-
बहुमतों को मिल सके नहीं कहीं तनिक पनाह
*
नाम लोकतंत्र, काम लोभतंत्र कर रहा
तंत्र गला घोंट लोक का विहँस-मचल रहा
प्रजातंत्र की प्रजा है पीठ, तंत्र है छुरा-
राम हो हराम, तज विराम दाल दल रहा
*
तंत्र थाम गन न गण की बात तनिक मानता
स्वर विरोध का उठे तो लाठियां है भांजता
राजनीति दलदली जमीन कीचड़ी मलिन-
लोक जन प्रजा नहीं दलों का हित ही साधता
*
धरें न चादरों को ज्यों का त्यों करेंगे साफ़ अब
बहुत करी विसंगति करें न और माफ़ अब
दल नहीं, सुपात्र ही चुनाव लड़ सकें अगर-
पाक-साफ़ हो सके सियासती हिसाब तब
*
लाभ कोई ना मिले तो स्वार्थ भाग जाएगा
देश-प्रेम भाव लुप्त-सुप्त जाग जाएगा
देस-भेस एक आम आदमी सा तंत्र का-
हो तो नागरिक न सिर्फ तालियाँ बजाएगा
*
धर्महीनता न साध्य, धर्म हर समान हो
समान अवसरों के संग, योग्यता का मान हो
तोडिये न वाद्य को, बेसुरा न गाइए-
नाद ताल रागिनी सुछंद ललित गान हो
*
शहीद जो हुए उन्हें सलाम, देश हो प्रथम
तंत्र इस तरह चले की नयन कोई हो न नम
सर्वदली-राष्ट्रीय हो अगर सरकार अब
सुनहरा हो भोर, तब ही मिट सके तमाम तम
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बुधवार, 15 अगस्त 2012

मंगलवार, 14 अगस्त 2012

गीत: कब होंगे आजाद -- संजीव 'सलिल'

गीत:
कब होंगे आजाद
संजीव 'सलिल'
*
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*
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
गए विदेशी पर देशी अंग्रेज कर रहे शासन.
भाषण देतीं सरकारें पर दे न सकीं हैं राशन..
मंत्री से संतरी तक कुटिल कुतंत्री बनकर गिद्ध-
नोच-खा रहे
भारत माँ को
ले चटखारे स्वाद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
नेता-अफसर दुर्योधन हैं, जज-वकील धृतराष्ट्र.
धमकी देता सकल राष्ट्र को खुले आम महाराष्ट्र..
आँख दिखाते सभी पड़ोसी, देख हमारी फूट-
अपने ही हाथों
अपना घर
करते हम बर्बाद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
खाप और फतवे हैं अपने मेल-जोल में रोड़ा.
भष्टाचारी चौराहे पर खाए न जब तक कोड़ा.
तब तक वीर शहीदों के हम बन न सकेंगे वारिस-
श्रम की पूजा हो
समाज में
ध्वस्त न हो मर्याद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
पनघट फिर आबाद हो सकें, चौपालें जीवंत.
अमराई में कोयल कूके, काग न हो श्रीमंत.
बौरा-गौरा साथ कर सकें नवभारत निर्माण-
जन न्यायालय पहुँच
गाँव में
विनत सुनें फ़रियाद-
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
रीति-नीति, आचार-विचारों भाषा का हो ज्ञान.
समझ बढ़े तो सीखें रुचिकर धर्म प्रीति विज्ञान.
सुर न असुर, हम आदम यदि बन पायेंगे इंसान-
स्वर्ग तभी तो
हो पायेगा
धरती पर आबाद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*

स्वतंत्रता दिवस पर विशेष गीत: सारा का सारा हिंदी है --संजीव 'सलिल'



स्वतंत्रता दिवस पर विशेष गीत:

सारा का सारा हिंदी है

संजीव 'सलिल'
*

जो कुछ भी इस देश में है, सारा का सारा हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्ज्वल बिंदी है....*
मणिपुरी, कथकली, भरतनाट्यम, कुचपुडी, गरबा अपना है.
लेजिम, भंगड़ा, राई, डांडिया हर नूपुर का सपना है.
गंगा, यमुना, कावेरी, नर्मदा, चनाब, सोन, चम्बल,
ब्रम्हपुत्र, झेलम, रावी अठखेली करती हैं प्रति पल.
लहर-लहर जयगान गुंजाये, हिंद में है और हिंदी है.                                  
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्ज्वल बिंदी है....
*
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरजा सबमें प्रभु एक समान.
प्यार लुटाओ जितना, उतना पाओ औरों से सम्मान.
स्नेह-सलिल में नित्य नहाकर, निर्माणों के दीप जलाकर.
बाधा, संकट, संघर्षों को गले लगाओ नित मुस्काकर.
पवन, वन्हि, जल, थल, नभ पावन, कण-कण तीरथ, हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्ज्वल बिंदी है....
*
जै-जैवन्ती, भीमपलासी, मालकौंस, ठुमरी, गांधार.
गजल, गीत, कविता, छंदों से छलक रहा है प्यार अपार.
अरावली, सतपुडा, हिमालय, मैकल, विन्ध्य, उत्तुंग शिखर.
ठहरे-ठहरे गाँव हमारे, आपाधापी लिए शहर.
कुटी, महल, अँगना, चौबारा, हर घर-द्वारा हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्ज्वल बिंदी है....*
सरसों, मका, बाजरा, चाँवल, गेहूँ, अरहर, मूँग, चना.
झुका किसी का मस्तक नीचे, 'सलिल' किसी का शीश तना.                   
कीर्तन, प्रेयर, सबद, प्रार्थना, बाईबिल, गीता, ग्रंथ, कुरान.
गौतम, गाँधी, नानक, अकबर, महावीर, शिव, राम महान.
रास कृष्ण का, तांडव शिव का, लास्य-हास्य सब हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्ज्वल बिंदी है....
*
ट्राम्बे, भाखरा, भेल, भिलाई, हरिकोटा, पोकरण रतन.
आर्यभट्ट, एपल, रोहिणी के पीछे अगणित छिपे जतन.
शिवा, प्रताप, सुभाष, भगत, रैदास कबीरा, मीरा, सूर.
तुलसी. चिश्ती, नामदेव, रामानुज लाये खुदाई नूर.
रमण, रवींद्र, विनोबा, नेहरु, जयप्रकाश भी हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्ज्वल बिंदी है....

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Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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स्वतंत्रता दिवस


स्वतंत्रता दिवस मंगक्मय हो

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