नवगीत:
अंतर्मन में व्याप्त
सुन
नीरव का संगीत
ओ मेरे मनमीत!
कोलाहल में
क्या पायेगा?
सन्नाटे में
खो जायेगा
सुन-गुन ज्यादा
बोल न्यूनतम
तभी
बढ़ेगी प्रीत
सबद-अजान
भजन-कीर्तन कर
किसे रहा तू टेर?
सुने न क्यों वह?
बहरा है या
करे देर- अंधेर?
व्यर्थ न माला फेर
तोड़ जग-रीत
कलकल, कलरव
सनन सनन सन
धाँय-धाँय
क्या रुचता?
पंकज पूजता
पूर्व-बाद क्यों
विवश पंक में धँसता?
क्यों जग गाता गीत?
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