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बुधवार, 15 अक्टूबर 2014

kshanikayen:

क्षणिकाएँ
*
अर्चना हो
प्रार्थना हो
वंदना हो
साधना हो
व्यर्थ मानो
निहित इनमें
यदि नहीं
शुभ कामना हो
*
भजन-पूजन
कर रहा तन
नाम सुमिरन
कुछ करे मन
लीन अपने
आप में हो
भूल करना
जगत-चिंतन
*
बिन बताये
हेरता है
कौन निश-दिन
टेरता है?
कौन केवल
नयन मूंदे?
सिर्फ माला
फेरता है
*
उषा-संध्या
नहीं वन्ध्या
दुपहरी में
यदि किया श्रम
निशा सपने
अगिन देती