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शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

muktak

मुक्तक
ढाले- दिल को छेदकर तीरे-नज़र जब चुभ गयी,
सांस तो चलती रही पर ज़िन्दगी ही रुक गयी।
तरकशे-अरमान में शर-हौसले भी कम न थे -
मिल गयी ज्यों ही नज़र से नज़र त्यों ही झुक गयी।।
*
***
salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१८३२४४
#divyanarmada.blogspot.com
#हिंदी_ब्लॉगर

मंगलवार, 18 मई 2010

दोहा का रंग भोजपुरी के संग: संजीव वर्मा 'सलिल'

दोहा के रंग भोजपुरी के संग:

संजीव वर्मा 'सलिल'

*















सपन दिखावैं रात भर, सुधि के दीपक बार.
जिया जरत बा बिरह में, अँखियाँ दें जल ढार..
*
पल-पल लागत बरस सम, मिल न दिन के चैन.
करवट बदल-बदल कटल, बैरन भइले रैन..
*
सावन सुलगल  जेठ सम, साँसें लागल भार.
पिया बसल परदेस जा, बारिश लगल कटार..
*
अंसुंअन ले फफकलि नदी, अंधड़ भयल उसांस.
विरह अँधेरा, मिलन के आस बिजुरि उर-फांस..
*
ठगवा के लगली नजर, बगिया गइल झुराइ.
अंचरा बोबाइल अगन, मैया भइल पराइ..
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रोटी के टुकड़ा मिलल, जिनगी भइल रखैल.
सत्य अउर ईमान के, कबहूँ न पकड़ल गैल..
*
प्रभु-मरजी कह कर लिहिल, 'सलिल' चुप्प संतोष.
नेता मेवा खा गइल, सेवा का कर घोष..
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दोहा के रंग जम गइल, भोजपुरी के संग.
लला-लली पढ़ सीख लिहिल, हे जिनगी के ढंग..
*
केहू मत कहिबे सगा, मत केहू के गैर.
'सलिल' जोड़ कर ईश से, मान सबहिं के खैर..

दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम