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गुरुवार, 16 अगस्त 2012

हास्य रचना: कान बनाम नाक संजीव 'सलिल'

हास्य रचना:

कान बनाम नाक

संजीव 'सलिल'
*



शिक्षक खींचे छात्र के साधिकार जब कान.
कहा नाक ने: 'मानते क्यों अछूत श्रीमान?

उत्तर दें अति शीघ्र, क्यों नहीं मुझे खींचते?
सिर्फ कान क्यों लाड़-क्रोध से आप मींजते?'

शिक्षक बोला:'छात्र की अगर खींच लूँ नाक.
कौन करेगा साफ़ यदि बह आयेगी नाक?



बह आयेगी नाक, नाक पर मक्खी बैठे.
ऊँची नाक हुई नीची तो बड़े फजीते..

नाक एक तुम कान दो, बहुमत का है राज.
जिसकी संख्या हो अधिक सजे शीश पर ताज..

सजे शीश पर साज, सभी सम्बन्ध भुनाते.
गधा बाप को और गधे को बाप बताते..

कान ज्ञान को बाहर से भीतर पहुँचाते.
नाक बंद... बन्दे बेदम होते घबराते..



खर्राटे लेकर करे, नाक नाक में दम.
वेणु बजाती नाक लख चकित हो गये हम..



कान खिंचे तो बुद्धि जगे, आँखें भी खुलतीं
नाक खिंचे तो श्वास बंद हो, आँखें मुन्दतीं.

नाक कटे तो प्रतिष्ठा का हो जाता अंत.
कान खींचे तो सहिष्णुता बढ़ती बनता संत..


गाल खिंचे तो प्यार का आ जाता तूफ़ान.
दाँत खिंचे तो घनी पीर हो, निकले जान..



गला, पीठ ना पेट खिंचाई-सुख पा सकते.
टाँग खींचते नेतागण, लालू सम हँसते..
***


Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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