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मंगलवार, 2 जनवरी 2018

navgeet

नवगीत : घोंसला * घोंसले में परिंदे ही नहीं आशाएँ बसी हैं * आँधियाँ आयें न डरना भीत हो,जीकर न मरना काँपती हों डालियाँ तो नीड तजकर नहीं उड़ना मंज़िलें तो फासलों को नापते पग को मिली हैं घोंसले में परिंदे ही नहीं आशाएँ बसी हैं * संकटों से जूझना है हर पहेली बूझना है कोशिशें करते रहे जो उन्हें राहें सूझना है ऊगती उषा तभी जब साँझ खुद हंसकर ढली है घोंसले में परिंदे ही नहीं आशाएँ बसी हैं * १२-१-२०१६

मंगलवार, 12 जनवरी 2016

navgeet

एक रचना:
घोंसला 
*
घोंसले में 
परिंदे ही नहीं 
आशाएँ बसी हैं
*
आँधियाँ आयें न डरना
भीत हो,जीकर न मरना
काँपती हों डालियाँ तो
नीड तजकर नहीं उड़ना
मंज़िलें तो
फासलों को नापते
पग को मिली हैं
घोंसले में
परिंदे ही नहीं
आशाएँ बसी हैं
*
संकटों से जूझना है
हर पहेली बूझना है
कोशिशें करते रहे जो
उन्हें राहें सूझना है
ऊगती उषा
तभी जब साँझ
खुद हंसकर ढली है
घोंसले में
परिंदे ही नहीं
आशाएँ बसी हैं
*
१२-१-२०१६