कुल पेज दृश्य

नारी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
नारी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 22 दिसंबर 2024

दिसंबर २२, हाइकु गीत, गणितीय सॉनेट, गणपति, नंदिनी, इरावती, रेफ, मुक्तिका, नारी

सलिल सृजन- दिसंबर २२
राष्ट्रीय गणित दिवस पर गणितीय सॉनेट 

तीन-पाँच कर कर हम हारे,
नौ दो ग्यारह हुए न संकट,
एक-एक ग्यारह हों प्यारे। 
हों छत्तीस तभी हम-कंटक। 

आँखें चार न करे सफलता, 
पाँचों उँगली हुई न घी में, 
चार सौ बीसी कर जग छलता।  
उन्नीस बीस न चाहे जी में।  

चार बुलाए चौदह आए 
एक आँख से देखें कैसे?
दो नावों पर पैर जमाए।  
चारों खाने चित हों ऐसे। 

दो दिन का मेहमान नहीं गम 
सुनों बात दो टूक कहें हम।
२२.१२.२०१४  
●●●
हाइकु गीत
समय चक्र
सतत गतिमान
कहे न रुको।
बढ़ते पग / गिरकर उठते / थकते नहीं
रुकते नहीं/कभी चुकते नहीं / झुकते नहीं 
तम से लड़े 
जलकर भी बाती 
कहे न बुझो।
कहे कहानी/लोक अपने आप/बिना प्रचार 
जिए जवानी/मरकर हमेशा/माने न हार
अस्त हो सूर्य
फिर उगने हेतु 
तुम भी उगो। 
करते रहे/पल-पल समर/जो सब मिटे 
कुछ हो गए /मरकर अमर/जो थे पिटे   
मानें  न हार  
मनुज मतिमान 
विजयी बनो। 
●●●  
मुक्तक
उत्कर्ष पर पर पग सतत बढ़ते रहें
नित नई मंजिल मिले-वरते रहें
नाप लें आकाश भू में जड़ जमा
आदमी इंसान बन मिलते रहें
***
हाइकु गीत
जोड़-घटाना
प्रेम-नफरत को,
जीवन जीना.....
गुणा करना / परिश्रम का मीत / मत थकना।
भाग करना / थकावट का, जीत / मत रुकना।।
याद रखना
वस्त्र फ़टे या दिल
तुरंत सीना.....
प्रेम परिधि / संदेह के चाप से / कट न सके।
नेह निधि / आय घट-बढ़ से / घट न सके।।
नहीं फलता
गैर का प्राप्य यदि
तुमने छीना.....
जीवन रेखा / सरल हो या वक्र / टूट न सके।
भाग्य का लेखा / हाथ में लिया हाथ / छूट न सके।।
लाज का पर्दा
लोहे से मजबूत
किंतु है झीना.....
संजीव
२२-१२-२०२२, २०.३३
जबलपुर
***
सॉनेट
गणपति
*
जय जय गणपति!, ऋद्धि-सिद्धिपति, मंगलकर्ता, हे प्रथमेश।
भव बाधा हर, हे शब्देश्वर!, सदय रहो प्रभु जोड़ूँ हाथ।
जयति गजानन, जय मतिदाता, शिवा तनय जय, हे विघ्नेश।।
राह न भटकूँ, कहीं न अटकूँ, पैर न पटकूँ, बल दो नाथ।।
वंदन-चंदन, कर अभिनंदन, करूँ स्तवन नित, हे सर्वेश!
जगजननी-जगपिता की कृपा, हो हम पर ऐसा वर दो।
विधि-हरि, शारद-रमा कृपा पा, भज पाएँ हम तुम्हें हमेश।।
करें काम निष्काम भाव से, शांति निकेतन सा घर दो।।
सत्य सनातन कह पाएँ जो ऐसी रचनाएँ हो दैव।
समयसाsक्षी घटनाओं में देखें-दिखा प्रगति की रेख।
चित्र गुप्त हो हरदम उज्जवल, निर्मल हो आचार सदैव।।
सकल सृष्टि परिवार हमारा, प्रकृति मैया पाएँ लेख।।
जय जय दीनानाथ! दयामय, द्रुतलेखी जय जय कलमेश!
रहे नर्मदा जीवन यात्रा, हर लो सारे कष्ट-कलेश।।
२२-१२-२०२१
***
सॉनेट
विवाह
*
चट मँगनी पट माँग भराई।
दुलहा सूरज दुल्हन धूप है।
उषा निहारे खूब रूप है।।
सास धरा को बहू सुहाई।।
द्वार हरिद्रा-छाप लगाई।
छाप पाँव की शुभ अनूप है।
सुतवधु रानी, पुत्र भूप है।।
जोड़ी विधि ने भली मिलाई।।
भौजाई की कर पहुनाई।
है हर्षाई ननदी कोयल।
नाचे मिट्ठू, देवर झूमे।।
ससुर गगन दे मुँह दिखराई।
सँकुचाई बरबस वधु चंचल।
नजर बजा सूरज वधु चूमे।।
२२-१२-२०२१
***
सॉनेट
नारी
*
शारद-रमा-उमा की जय-जय, करती दुनिया सारी।
भ्रांति मिटाने साथ हाथ-पग बढ़ें तभी हो क्रांति।
एक नहीं दो-दो मात्राएँ, नर से भारी नारी।।
सफल साधना तभी रहे जब जीवन में सुख-शांति।।
जाया-माया, भोगी-भोग्या, चित-पट अनगिन रंग।
आशा पुष्पा दे बगिया को, सुषमा-किरण अनंत।
पूनम तब जब रहे ज्योत्सना, रजनीपति के संग।।
उषा-दुपहरी-संध्या सहचर दिनपति विभा दिगंत।।
शिक्षा-दीक्षा, रीति-नीति बिन सार्थक हुई न श्वासा।
क्षुधा-पिपासा-तृष्णा बिना हो, जग-जीवन बेरंग।
कीर्ति-प्रतिष्ठा, सज्जा-लज्जा से जीवन मधुमासा।।
राधा धारा भक्ति-मुक्ति की, शुभ्रा-श्वेता संग।।
अमला विमला धवला सरला, सुख प्रदायिनी नारी।
मैया भगिनि भामिनि भाभी पुत्री सखी दुलारी।।
२२-१२-२०२१
***
सुभाषित
*अस्थिरं जीवितं लोके, अस्थिरे धनयौवने।*
*अस्थिरा: पुत्रदाराश्च, धर्मकीर्तिद्वयं स्थिरं*।।
अस्थिर जीवित लोक, धन यौवन स्थिर है नहीं।
सुत-स्त्री अस्थिर यहाँ, धर्म-कीर्ति स्थिर रहे।।
अर्थात्- इस जगत में जीवन सदा नही रहने वाला है, धन और यौवन भी सदा नहीं रहने वाले हैं, पुत्र और स्त्री भी सदा नहीं रहने वाले हैं ;केवल धर्म और कीर्ति ही सदा रहने वाले हैं॥
***
मुक्तिका
प्रात नमन स्वीकार कीजिए हे माधव।
स्वप्न सभी साकार कीजिए हे माधव।।
राघव सा लाघव, सीता सी मर्यादा
युत हमको आचार दीजिए हे माधव।।
वृंदा को जो छले न ऐसे हरि हों हम
शूर्पणखा हित लखन भेजिए हे माधव।।
नगरवधू से मुक्त समूचा भारत हो
गृहवधुओं सज्जित गृह करिए हे माधव।।
नेता हों रणछोड़; न लूटें जनगण को
गो गिरि वन नद पीड़ा हरिए हे माधव।।
हिरणकशिपु सेठों की भस्म करें लंका
जनहित-पथ पर फिर पग धरिए हे माधव।।
कंस प्रशासन ऐश कर रहा जन-धन पर
दर्प हरें कालिय फण नचिए हे माधव।।
न्याय व्यवस्था बंदी काले कोटों की
इन्हें दूर कर श्वेत-सरल करिए माधव।।
श्रीराधे को हृदय बसी छवि जो मधुरिम
वह से सलिल-हृदय में हँस बसिए माधव।।
२२-१२-२०१९
***
मुक्तक:
*
दे रहे सब कौन सुनता है सदा?
कौन किसका कहें होता है सदा?
लकीरों को पढ़ो या कोशिश करो-
वही होता जो है किस्मत में बदा।
*
ठोकर खाएँ नहीं हम हार मानते।
कारण बिना नहीं किसी से रार ठानते।।
कुटिया का छप्पर भी प्यारा लगता-
संगमर्मरी ताजमहल हम न जानते।।
*
तम तो पहले भी होता था, ​अब भी होता है।
यह मनु पहले भी रोता था, अब रोता है।।
पहले थे परिवार, मित्र, संबंधी उसके साथ-
आज न साया संग इसलिए धीरज खोता है।।
२२.१२.२०१८
***
मुक्तक
*
जब बुढ़ापा हो जगाता रात भर
याद के मत साथ जोड़ो मन इसे.
प्रेरणा, जब थी जवानी ली नहीं-
मूढ़ मन भरमा रहा अब तू किसे?
२२-१२-२०१६
***
सामयिक गीत :
नूराकुश्ती खेल रहे हो
देश गर्त में ठेल रहे हो
*
तुम ही नहीं सयाने जग में
तुम से कई समय के मग में
धूल धूसरित पड़े हुए हैं
शमशानों में गड़े हुए हैं
अवसर पाया काम करो कुछ
मिलकर जग में नाम करो कुछ
रिश्वत-सुविधा-अहंकार ही
झिला रहे हो, झेल रहे हो
नूराकुश्ती खेल रहे हो
देश गर्त में ठेल रहे हो
*
दलबंदी का दलदल घातक
राजनीति है गर्हित पातक
अपना पानी खून बताएँ
खून और का व्यर्थ बहाएँ
सच को झूठ, झूठ को सच कह
मैली चादर रखते हो तह
देशहितों की अनदेखी कर
अपनी नाक नकेल रहे हो
नूराकुश्ती खेल रहे हो
देश गर्त में ठेल रहे हो
२१-१२-२०१५
***
मुक्तिका:
नए साल का अभिनन्दन
अर्पित है अक्षत-चन्दन
तम हरने दीपक जलता
कब कहता है लगी अगन
कोशिश हार न मानेगी
मरु को कर दे नंदन वन
लक्ष्य वही वर पाता है
जो प्रयास में रहे मगन
बाधाओं को विजय करे
दृढ़ हो जिसका अंतर्मन
गिर मत रुक, उठ आगे बढ़
मत चुकने दे 'सलिल' लगन
बंदूकों से 'सलिल' न डर
जीता भय पर सदा अमन
***
मुक्तिका:
नए साल का अभिनंदन
अर्पित है अक्षत-चंदन
तम हरने दीपक जलता
कब कहता है लगी अगन
कोशिश हार न मानेगी
मरु को कर दे नंदन वन
लक्ष्य वही वर पाता है
जो प्रयास में रहे मगन
बाधाओं को विजय करे
दृढ़ हो जिसका अंतर्मन
गिर मत रुक, उठ आगे बढ़
मत चुकने दे 'सलिल' लगन
बंदूकों से 'सलिल' न डर
जीता भय पर सदा अमन
२२.१२.२०१४
***
धूप -छाँव: बात निकलेगी तो फिर
गुजरे वक़्त में कई वाकये मिलते हैं जब किसी साहित्यकार की रचना को दूसरे ने पूरा किया या एक की रचना पर दूसरे ने प्रति-रचना की. अब ऐसा काम नहीं दिखता। संयोगवश स्व. डी. पी. खरे द्वारा गीता के भावानुवाद को पूर्ण करने का दायित्व उनकी सुपुत्री श्रीमती आभा खरे द्वारा सौपा गया. किसी अन्य की भाव भूमि पर पहुँचकर उसी शैली और छंद में बात को आगे बढ़ाना बहुत कठिन मशक है. धूप-छाँव में हेमा अंजुली जी के कुछ पंक्तियों से जुड़कर कुछ कहने की कोशिश है. आगे अन्य कवियों से जुड़ने का प्रयास करूंगा ताकि सौंपे हुए कार्य के साथ न्याय करने की पात्रता पा सकूँ. पाठक गण निस्संकोच बताएं कि पूर्व पंक्तियों और भाव की तारतम्यता बनी रह सकी है या नहीं? हेमा जी को उनकी पंक्तियों के लिये धन्यवाद।
हेमा अंजुली
इतनी शिद्दत से तो उसने नफ़रत भी नहीं की ....
जितनी शिद्दत से हमने मुहब्बत की थी.
.
सलिल:
अंजुली में न नफरत टिकी रह सकी
हेम पिघला फिसल बूँद पल में गई
साथ साये सरीखी मोहब्बत रही-
सुख में संग, छोड़ दुख में 'सलिल' छल गई
*
हेमा अंजुली
तुम्हारी वो एक टुकड़ा छाया मुझे अच्छी लगती है
जो जीवन की चिलचिलाती धूप में
सावन के बादल की तरह
मुझे अपनी छाँव में पनाह देती है
.
सलिल
और तुम्हारी याद
बरसात की बदरी की तरह
मुझे भिगाकर अपने आप में सिमटना
सम्हलना सिखा आगे बढ़ा देती है.
*
हेमा अंजुली
कभी घटाओं से बरसूँगी ,
कभी शहनाइयों में गाऊँगी,
तुम लाख भुलाने कि कोशिश कर लो,
मगर मैं फिर भी याद आऊँगी ...
.
सलिल
लाख बचाना चाहो
दामन न बचा पाओगे
राह पर जब भी गिरोगे
तुम्हें उठायेंगे
*
हेमा अंजुली
छाने नही दूँगी मैं अँधेरो का वजूद
अभी मेरे दिल के चिराग़ बाकी हैं
.
सलिल
जाओ चाहे जहाँ मुझको करीब पाओगे
रूह में खनक के देखो कि आग बाकी है
*
हेमा अंजुली
सूरत दिखाने के लिए तो
बहुत से आईने थे दुनिया में
काश! कि कोई ऐसा आईना होता
जो सीरत भी दिखाता
.
सलिल
सीरत 'सलिल' की देख टूट जाए न दर्पण
बस इसलिए ही आइना सूरत रहा है देख
***
मुक्तक
मन-वीणा जब करे ओम झंकार
गीत हुलास कर खटकाते हैं द्वार
करे संगणक स्वागत टंकण यंत्र-
सरस्वती मैया की जय-जयकार
***
मातृ वंदना -
*
ममतामयी माँ नंदिनी-करुणामयी माँ इरावती।
सन्तान तेरी मिल उतारें, भाव-भक्ति से आरती...
लीला तुम्हारी हम न जानें, भ्रमित होकर हैं दुखी।
सत्पथ दिखाओ माँ, बने सन्तान सब तेरी सुखी॥
निर्मल ह्रदय के भाव हों, किंचित न कहीं अभाव हों-
सात्विक रहे आचार, माता सदय रहो निहारती..
कुछ काम जग के आ सकें, महिमा तुम्हारी गा सकें।
सत्कर्म कर आशीष मैया!, पुत्र तेरे पा सकें॥
निष्काम औ' निष्पक्ष रह, सब मोक्ष पायें अंत में-
निश्छल रहें मन-प्राण, वाणी नित तम्हें गुहारती...
चित्रेश प्रभु केकृपा मैया!, आप ही दिलवाइये।
जैसे भी हैं, हैं पुत्र माता!, मत हमें ठुकराइए॥
कंकर से शंकर बन सकें, सत-शिव औ' सुंदर वर सकें-
साधना कर सफल, क्यों मुझ 'सलिल' को बिसारती...
२१-१२-२०१२
***
विचार-विमर्श नारी प्रताड़ना का दंड? संजीव 'सलिल'
*
दिल्ली ही नहीं अन्यत्र भी भारत हो या अन्य विकसित, विकासशील या पिछड़े देश, भाषा-भूषा, धर्म, मजहब, आर्थिक स्तर, शैक्षणिक स्तर, वैज्ञानिक उन्नति या अवनति सभी जगह नारी उत्पीडन एक सा है. कहीं चर्चा में आता है, कहीं नहीं किन्तु इस समस्या से मुक्त कोई देश या समाज नहीं है.
फतवा हो या धर्मादेश अथवा कानून नारी से अपेक्षाएं और उस पर प्रतिबन्ध नर की तुलना में अधिक है. एक दृष्टिकोण 'जवान हो या बुढ़िया या नन्हीं सी गुडिया, कुछ भी हो औरत ज़हर की है पुड़िया' कहकर भड़ास निकलता है तो दूसरा नारी संबंधों को लेकर गाली देता है.
यही समाज नारी को देवी कहकर पूजता है यही उसे भोगना अपना अधिकार मानता है.
'नारी ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया' यदि मात्र यही सच है तो 'एक नहीं दो-दो मात्राएँ नर से भारी नारी' कहनेवाला पुरुष आजीवन माँ, बहन, भाभी, बीबी या कन्या के स्नेहानुशासन में इतना क्यों बंध जाता है 'जोरू का गुलाम कहलाने लगता है.
स्त्री-पीड़ित पुरुषों की व्यथा-कथा भी विचारणीय है.
घर में स्त्री को सम्मान की दृष्टि से देखनेवाला युवा अकेली स्त्री को देखते ही भोगने के लिए लालायित क्यों हो जाता है?
ऐसे घटनाओं के अपराधी को दंड क्या और कैसे दिया जाए? इन बिन्दुओं पर विचार-विमर्श आवश्यक प्रतीत होता है. आपका स्वागत है।
२२-१२-२०१२
***
विमर्श : रेफ युक्त शब्द
राकेश खंडेलवाल
रेफ़ वाले शब्दों के उपयोग में अक्सर गलती हो जाती हैं। हिंदी में 'र' का संयुक्त रूप से तीन तरह से उपयोग होता है। '
१. कर्म, धर्म, सूर्य, कार्य
२. प्रवाह, भ्रष्ट, ब्रज, स्रष्टा
३. राष्ट्र, ड्रा
जो अर्ध 'र' या रेफ़ शब्द के ऊपर लगता है, उसका उच्चारण हमेशा उस व्यंजन ध्वनि से पहले होता है, जिसके ऊपर यह लगता है। रेफ़ के उपयोग में ध्यान देने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि स्वर के ऊपर नहीं लगाया जाता। यदि अर्ध 'र' के बाद का वर्ण आधा हो, तब यह बाद वाले पूर्ण वर्ण के ऊपर लगेगा, क्योंकि आधा वर्ण में स्वर नहीं होता। उदाहरण के लिए कार्ड्‍‍स लिखना गलत है। कार्ड्‍स में ड्‍ स्वर विहीन है, जिस कारण यह रेफ़ का भार वहन करने में असमर्थ है। इ और ई जैसे स्वरों में रेफ़ लगाने की कोई गुंजाइश नहीं है। इसलिए स्पष्ट है कि किसी भी स्वर के ऊपर रेफ़ नहीं लगता।
ब्रज या क्रम लिखने या बोलने में ऐसा लगता है कि यह 'र' की अर्ध ध्वनि है, जबकि यह पूर्ण ध्वनि है। इस तरह के शब्दों में 'र' का उच्चारण उस वर्ण के बाद होता है, जिसमें यह लगा होता है ,
जब भी 'र' के साथ नीचे से गोल भाग वाले वर्ण मिलते हैं, तब इसके /\ रूप क उपयोग होता है, जैसे-ड्रेस, ट्रेड, लेकिन द और ह व्यंजन के साथ 'र' के / रूप का उपयोग होता है, जैसे- द्रवित, द्रष्टा, ह्रास।
संस्कृत में रेफ़ युक्त व्यंजनों में विकल्प के रूप में द्वित्व क उपयोग करने की परंपरा है। जैसे- कर्म्म, धर्म्म, अर्द्ध। हिंदी में रेफ़ वाले व्यंजन को द्वित्व (संयुक्त) करने का प्रचलन नहीं है। इसलिए रेफ़ वाले शब्द गोवर्धन, स्पर्धा, संवर्धन शुद्ध हैं।
''जो अर्ध 'र' या रेफ़ शब्द के ऊपर लगता है, उसका उच्चारण हमेशा उस व्यंजन ध्वनि से पहले होता है। '' के संबंध में नम्र निवेदन है कि रेफ कभी भी 'शब्द' पर नहीं लगाया जाता. शब्द के जिस 'अक्षर' या वर्ण पर रेफ लगाया जाता है, उसके पूर्व बोला या उच्चारित किया जाता है।
- संजीव सलिल:
''हिंदी में 'र' का संयुक्त रूप से तीन तरह से उपयोग होता है.'' के संदंर्भ में निवेदन है कि हिन्दी में 'र' का संयुक्त रूप से प्रयोग चार तरीकों से होता है। उक्त अतिरिक्त ४. कृष्ण, गृह, घृणा, तृप्त, दृष्टि, धृष्ट, नृप, पृष्ठ, मृदु, वृहद्, सृष्टि, हृदय आदि। यहाँ उच्चारण में छोटी 'इ' की ध्वनि समाविष्ट होती है जबकि शेष में 'अ' की।
यथा: कृष्ण = krishn, क्रम = kram, गृह = ग्रिह grih, ग्रह = grah, श्रृंगार = shringar, श्रम = shram आदि।
राकेश खंडेलवाल :
एक प्रयोग और: अब सन्दर्भ आप ही तलाशें:
दोहा:-
सोऽहं का आधार है, ओंकार का प्राण।
रेफ़ बिन्दु वाको कहत, सब में व्यापक जान।१।
बिन्दु मातु श्री जानकी, रेफ़ पिता रघुनाथ।
बीज इसी को कहत हैं, जपते भोलानाथ।२।
हरि ओ३म तत सत् तत्व मसि, जानि लेय जपि नाम।
ध्यान प्रकाश समाधि धुनि, दर्शन हों बसु जाम।३।
बांके कह बांका वही, नाम में टांकै चित्त।
हर दम सन्मुख हरि लखै, या सम और न बित्त।४।
रेफ का अर्थ:
-- वि० [सं०√रिफ्+घञवार+इफन्] १. शब्द के बीच में पड़नेवाले र का वह रूप जो ठीक बाद वाले स्वरांत व्यंजन के ऊपर लगाया जाता है। जैसे—कर्म, धर्म, विकर्ण। २. र अक्षर। रकार। ३. राग। ४. रव। शब्द। वि० १. अधम। नीच। २. कुत्सित। निन्दनीय। -भारतीय साहित्य संग्रह.
-- पुं० [ब० स०] १. भागवत के अनुसार शाकद्वीप के राजा प्रियव्रत् के पुत्र मेधातिथि के सात पुत्रों में से एक। २. उक्त के नाम पर प्रसिद्ध एक वर्ष अर्थात् भूखंड।
रेफ लगाने की विधि : डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक', शब्दों का दंगल में
हिन्दी में रेफ अक्षर के नीचे “र” लगाने के लिए सदैव यह ध्यान रखना चाहिए कि ‘र’ का उच्चारण कहाँ हो रहा है?
यदि ‘र’ का उच्चारण अक्षर के बाद हो रहा है तो रेफ की मात्रा सदैव उस अक्षर के नीचे लगेगी जिस के बाद ‘र’ का उच्चारण हो रहा है। यथा - प्रकाश, संप्रदाय, नम्रता, अभ्रक, चंद्र।
हिन्दी में रेफ या अक्षर के ऊपर "र्" लगाने के लिए सदैव यह ध्यान रखना चाहिए कि ‘र्’ का उच्चारण कहाँ हो रहा है ? “र्" का उच्चारण जिस अक्षर के पूर्व हो रहा है तो रेफ की मात्रा सदैव उस अक्षर के ऊपर लगेगी जिस के पूर्व ‘र्’ का उच्चारण हो रहा है । उदाहरण के लिए - आशीर्वाद, पूर्व, पूर्ण, वर्ग, कार्यालय आदि ।
रेफ लगाने के लिए जहाँ पूर्ण "र" का उच्चारण हो रहा है वहाँ उस अक्षर के नीचे रेफ लगाना है जिसके पश्चात "र" का उच्चारण हो रहा है। जैसे - प्रकाश, संप्रदाय , नम्रता, अभ्रक, आदि में "र" का पूर्ण उच्चारण हो रहा है ।
*
६३ ॥ श्री अष्टा वक्र जी ॥
दोहा:-
रेफ रेफ तू रेफ है रेफ रेफ तू रेफ ।
रेफ रेफ सब रेफ है रेफ रेफ सब रेफ ॥१॥
*
१५२ ॥ श्री पुष्कर जी ॥
दोहा:-
रेफ बीज है चन्द्र का रेफ सूर्य का बीज ।
रेफ अग्नि का बीज है सब का रेफैं बीज ॥१॥
रेफ गुरु से मिलत है जो गुरु होवै शूर ।
तो तनकौ मुश्किल नहीं राम कृपा भरपूर ॥२॥
*
चलते-चलते : अंग्रेजी में रेफ का प्रयोग सन्दर्भ reference और खेल निर्णायक refree के लिये होता है.

***

मंगलवार, 10 दिसंबर 2024

दिसंबर १०, कपास, सोरठे, पूर्णिका, सॉनेट, मुक्तक, लघुकथा, दोहा, बुंदेली, नारी

सलिल सृजन दिसंबर १०
*
एक दोहा
आँख दिखाई; भीत हो, गया डॉक्टर भाग।
चाह रहाअनुराग पर, पाई जलती आग।।
***
कपासी सोरठे
करते रहें प्रयास, हिम्मत मत हारें कभी।
कहता धवल कपास, जोश होश संतोष रख।।
रखता तन-मन श्वेत, काली माटी में उपज।
परहित ही अभिप्रेत, है कपास को धन्य वह।।
देख सके तो देख, बीज बीज बीजक सदृश।
करे कर्म का लेख, निरासक्त रह संत सम।।
खली-बिनौले पा पले, गौ माता दे दूध।
कुटिया को ईंधन मिले, शाखाओं से खूब।।
कहता विहँस कपास, होना कभी उदास मत।
रख अधरों पर हास, सुख-दुख को सम जान सह।।
१०.१२.२०२४
०००
पूर्णिका
स्नेहमय उद्गार शत शत।
हृदय से आभार शत शत।।

भाव सलिला नर्मदा सी
नित प्रवाहित धार शत शत।।

पूर्ण होता नहीं मानव
पूर्णिका उद्गार शत शत।।

तम गरल लो कण्ठ में धर।
पूर्णिमा गलहार शत शत।।

शीश पर शशि सुशोभित है।
भुज भुजंग सिँगार शत शत।।

मोह-माया मुग्ध मन में
मधुर मूक सितार शत शत।।

कहे माटी नभ समुद भी।
दे 'सलिल' पर वार शत शत।।
१०.१२.२०२४
०००
सॉनेट
बुद्धू
लौट के बुद्धू घर को आए
जेब भरी थी, अब है खाली
फिर भी मस्त बजाते ताली
मन में मन भर सुधियाँ लाए
रमता जोगी बहता पानी
जैसे जहँ-तहँ अटके-भटके
जग-जीवन के देखे लटके
बनते चतुर करी नादानी
पर्वत पोखर झरने मंदिर
माटी घाटी नदियाँ सुंदर
मिटते पंछी रोते तरुवर
बलशाली विकास का दानव
कर विनाश दिखलाता लाघव
खुद को खुद ही ठगते मानव
११-१२-२०२२
७॰४७,जबलपुर
•••
मुक्तक सलिला:
नारी अबला हो या सबला, बला न उसको मानो रे
दो-दो मात्रा नर से भारी, नर से बेहतर जानो रे
जड़ हो बीज धरा निज रस से, सिंचन कर जीवन देती-
प्रगटे नारी से, नारी में हो विलीन तर-तारो रे
*
उषा दुपहरी संध्या रजनी जहाँ देखिए नारी है
शारद रमा शक्ति नारी ही नर नाहर पर भारी है
श्वास-आस मति-गति कविता की नारी ही चिंगारी हैं-
नर होता होता है लेकिन नारी तो अग्यारी है
*
नेकी-बदी रूप नारी के, धूप-छाँव भी नारी है
गति-यति पगडंडी मंज़िल में नारी की छवि न्यारी है
कृपा, क्षमा, ममता, करुणा, माया, काया या चैन बिना
जननी, बहिना, सखी, भार्या, भौजी, बिटिया प्यारी है
१०-१२-२०१९
***
तीन काल खंड तीन लघुकथाएँ :
१. जंगल में जनतंत्र
जंगल में चुनाव होनेवाले थे।
मंत्री कौए जी एक जंगी आमसभा में सरकारी अमले द्वारा जुटाई गयी भीड़ के आगे भाषण दे रहे थे।- ' जंगल में मंगल के लिए आपस का दंगल बंद कर एक साथ मिलकर उन्नति की रह पर कदम रखिये। सिर्फ़ अपना नहीं सबका भला सोचिये।'
' मंत्री जी! लाइसेंस दिलाने के लिए धन्यवाद। आपके कागज़ घर पर दे आया हूँ। ' भाषण के बाद चतुर सियार ने बताया। मंत्री जी खुश हुए।
तभी उल्लू ने आकर कहा- 'अब तो बहुत धाँसू बोलने लगे हैं। हाऊसिंग सोसायटी वाले मामले को दबाने के लिएरखिए' और एक लिफाफा उन्हें सबकी नज़र बचाकर दे दिया।
विभिन्न महकमों के अफसरों उस अपना-अपना हिस्सा मंत्री जी के निजी सचिव गीध को देते हुए कामों की जानकारी मंत्री जी को दी।समाजवादी विचार धारा के मंत्री जी मिले उपहारों और लिफाफों को देखते हुए सोच रहे थे - 'जंगल में जनतंत्र जिंदाबाद। '
१९९४
***
२. समरसता
*
भृत्यों, सफाईकर्मियों और चौकीदारों द्वारा वेतन वृद्धि की माँग मंत्रिमंडल ने आर्थिक संसाधनों के अभाव में ठुकरा दी।
कुछ दिनों बाद जनप्रतिनिधियों ने प्रशासनिक अधिकारियों की कार्य कुशलता की प्रशंसा कर अपने वेतन भत्ते कई गुना अधिक बढ़ा लिये।
अगली बैठक में अभियंताओं और प्राध्यापकों पर हो रहे व्यय को अनावश्यक मानते हुए सेवा निवृत्ति से रिक्त पदों पर नियुक्तियाँ न कर दैनिक वेतन के आधार पर कार्य कराने का निर्णय सर्व सम्मति से लिया गया और स्थापित हो गयी समरसता।
७-१२-२०१५
***
३. मी टू
वे लगातार कई दिनों से कवी की रचनाओं की प्रशंसा कर रही थीं। आरंभ में अनदेखी करने करने के बाद कवि ने शालीनतावश उत्तर देना आवश्यक समझा। अब उन्होंने कवि से कविता लिखना सिखाने का आग्रह किया। कवि जब भी भाषा के व्याकरण या पिंगल की बात करता वे अपने नए चित्र के साथ अपनी उपेक्षा और शोषण की व्यथा-कथा बताने लगतीं।
एक दिन उन्होंने कविता सीखने स्वयं आने की इच्छा व्यक्त की। कवि ने कोई उत्तर नहीं दिया। इससे नाराज होकर उन्होंने कवि पर स्त्री की अवमानना करने का आरोप जड़ दिया। कवि फिर भी मौन रहा।
ब्रम्हास्त्र का प्रयोग करते हुए उन्होंने अपने निर्वसन चित्र भेजते हुए कवि को अपने निवास पर या कवि के चाहे स्थान पर रात गुजारने का आमंत्रण देते हुए कुछ गज़लें देने की माँग कर दी, जिन्हें वे मंचों पर पढ़ सकें।
कवि ने उन्हें प्रतिबंधित कर दिया। अब वे किसी अन्य द्वारा दी गयीं ३-४ गज़लें पढ़ते हुए मंचों पर धूम मचाए हुए हैं। कवि स्तब्ध जब एक साक्षात्कार में उन्होंने 'मी टू' का शिकार होने की बात कही। कवि समय की माँग पर लिख रहा है स्त्री-विमर्श की रचनाएँ पर उसका जमीर चीख-चीख कर कह रहा है 'मी टू'।
११.१२.२०१८
***
दोहा सलिला
उदय भानु का जब हुआ, तभी ही हुआ प्रभात.
नेह नर्मदा सलिल में, क्रीड़ित हँस नवजात.
.
बुद्धि पुनीता विनीता, शिविर की जय-जय बोल.
सत्-सुंदर की कामना, मन में रहे टटोल.
.
शिव को गुप्तेश्वर कहो, या नन्दीश्वर आप.
भव-मुक्तेश्वर भी वही, क्षमा ने करते पाप.
.
चित्र गुप्त शिव का रहा, कंकर-कंकर व्याप.
शिवा प्राण बन बस रहें, हरने बाधा-ताप.
.
शिव को पल-पल नमन कर, तभी मिटेगा गर्व.
मति हो जब मिथलेश सी, स्वजन लगेंगे सर्व.
.
शिवता जिसमें गुरु वही, शेष करें पाखंड.
शिवा नहीं करतीं क्षमा, देतीं निश्चय दंड.
.
शिव भज आँखें मून्द कर, गणपति का करें ध्यान.
ममता देंगी भवानी, कार्तिकेय दें मान.
१०-१२-२०१७
...
मुक्तक
शब्दों का जादू हिंदी में अमित सृजन कर देखो ना
छन्दों की महिमा अनंत है इसको भी तुम लेखो ना
पढ़ो सीख लिख आत्मानंदित होकर सबको सुख बाँटो
मानव जीवन कि सार्थकता यही 'सलिल' अवरेखो ना
***
दोहा दुनिया
*
आलम आलमगीर की, मर्जी का मोहताज
मेरे-तेरे बीच में, उसका क्या है काज?
*
नयन मूँद देखूं उसे, जो छीने सुख-चैन
गुम हो जाता क्यों कहो, ज्यों ही खोलूँ नैन
*
पल-पल बीते बरस सा, अपने लगते गैर
खुद को भूला माँगता, मन तेरी ही खैर
*
साया भी अपना नहीं, दे न तिमिर में साथ
अपना जीते जी नहीं, 'सलिल' छोड़ता हाथ
*
रहे हाथ में हाथ तो, उन्नत होता माथ
खुद से आँखे चुराता, मन तू अगर न साथ
१०-१२-२०१६
***
सुधियों का दर्पण
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर
नवलेखन अभियान
लघुकथा प्रकोष्ठ
लघुकथा के तत्व और लेखन प्रक्रिया विषयक अन्तरंग संगोष्ठी ११-१२-२०१६ रविवार को अपरान्ह 3 बजे से ५.३० बजे तक भंवरताल उद्यान में आयोजित है. सहभागी होकर सफल बनायें. १. कालाधन तथा २. सद्भाव शीर्षकों पर लघुकथा पर लघुकथाओं का वाचन भी होगा.
***
सामयिक गीत
ठेंगे पर कानून
*
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
*
जनगण - मन ने जिन्हें चुना
उनको न करें स्वीकार
कैसी सहनशीलता इनकी?
जनता दे दुत्कार
न्यायालय पर अविश्वास कर
बढ़ा रहे तकरार
चाह यही है सजा रहे
कैसे भी हो दरबार
जिसने चुना, न चिंता उसकी
जो भूखा दो जून
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
*
सरहद पर ही नहीं
सड़क पर भी फैला आतंक
ले चरखे की आड़
सँपोले मार रहे हैं डंक
जूते उठवाते औरों से
फिर भी हैं निश्शंक
भरें तिजोरी निज,जमाई की
करें देश को रंक
स्वार्थों की भट्टी में पल - पल
रहे लोक को भून
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
*
परदेशी से करें प्रार्थना
आ, बदलो सरकार
नेताजी को बिना मौत ही
दें कागज़ पर मार
संविधान को मान द्रौपदी
चाहें चीर उतार
दु:शासन - दुर्योधन की फिर
हो अंधी सरकार
मृग मरीचिका में जीते
जैसे इन बिन सब सून
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
***
सामयिक गीत
चालीस चोर
*
चालीस चोर - अलीबाबा
क्योें करते बंटाढार?
*
जनता माँगे
दो हिसाब
क्यों की तुमने मनमानी?
घपले पकड़े गए
आ रही याद
तुम्हें अब नानी
सजा दे रहा जनगण
नाहक क्यों करते तकरार?
चालीस चोर - अलीबाबा
क्योें करते बंटाढार?
*
जननायक से
रार कर रहे
गैरों के पड़ पैर
अपनों से
चप्पल उठवाते
कैसे होगी खैर?
असंसदीय आचरण
बनाते संसद को बाज़ार
चालीस चोर - अलीबाबा
क्योें करते बंटाढार?
*
जनता समझे
कर नौटंकी
फैलाते पाखंड
देना होगा
फिर जवाब
हो कितने भी उद्दंड
सम्हल जाओ चुक जाए न धीरज
जन गण हो बेज़ार
चालीस चोर - अलीबाबा
क्योें करते बंटाढार?
*
***
बुंदेली गीत
जनता भई पराई
*
सत्ता पा घोटाले करते
तनकऊ लाज न आई
जाँच भई खिसियाए लल्ला
जनता भई पराई
*
अपनी टेंट नें देखे कानी
औरन को दे दोस
छिपा-छिपाकर ऐब जतन से
बरसों पाले पोस
सौ चूहे खा बिल्ली हज को
चली, रिसा पछताई?
जाँच भई खिसियाए लल्ला
जनता भई पराई
*
रातों - रात करोड़पति
व्ही आई पी भए जमाई
आम आदमी जैसा जीवन
जीने -गैल भुलाई
न्यायालय की गरिमा
संसद में घुस आज भुलाई
जाँच भई खिसियाये लल्ला
जनता भई पराई
*
सहनशीलता की दुहाई दें
जो छीनें आज़ादी
अब लौं भरा न मन
जिन्ने की मनमानी बरबादी
लगा तमाचा जनता ने
दूजी सरकार बनाई
जाँच भई खिसियाए लल्ला
जनता भई पराई
१०-१२-२०१५
***
मुक्तक सलिला:
नारी अबला हो या सबला, बला न उसको मानो रे
दो-दो मात्रा नर से भारी, नर से बेहतर जानो रे
जड़ हो बीज धरा निज रस से, सिंचन कर जीवन देती-
प्रगटे नारी से, नारी में हो विलीन तर-तारो रे
*
उषा दुपहरी संध्या रजनी जहाँ देखिए नारी है
शारद रमा शक्ति नारी ही नर नाहर पर भारी है
श्वास-आस मति-गति कविता की नारी ही चिंगारी हैं-
नर होता होता है लेकिन नारी तो अग्यारी है
*
नेकी-बदी रूप नारी के, धूप-छाँव भी नारी है
गति-यति पगडंडी मंज़िल में नारी की छवि न्यारी है
कृपा, क्षमा, ममता, करुणा, माया, काया या चैन बिना
जननी, बहिना, सखी, भार्या, भौजी, बिटिया प्यारी है
१०.१२.२०१३
***

रविवार, 8 दिसंबर 2024

दिसंबर ८, माया छंद, सॉनेट, जन जातियाँ, शिव, दोहा मुक्तक, नारी, कुंडलिया, भोजन

सलिल सृजन दिसंबर ८
*
वास्तु सूत्र 
ग्रहानुकूल भोजन 
*
भारतीय कैलेंडर के अनुसार हर दिन किसी देवता का है जो किसी विशेष शक्ति के इष्ट देव है। इस देव को प्रसन्न कर उनका आशीष पाने के लिए उस देव / ग्रह के गुणों के अनुसार  खाद्य पदार्थ ग्रहण करें। हर घर में आटा, भात या दाल रोज बनता है। आप निम्न अनुसार एक-दो चुटकी खाद्य पदार्थ आटा, भात या दाल में मिला लें।  
दिन        देवता      खाद्य पदार्थ        
सोम        चंद्र               दूध  
मंगल      मंगल          लाल मिर्च 
बुध          बुध          हरा धनिया/मिर्च, भाजी  
गुरु          गुरु       केसर, हल्दी, बेसन  
शुक्र       शुक्र             देसी घी 
शनि       शनि             सरसों तेल 
रवि         सूर्य                  गुड़ 
***  
कुंडलिया
छोड़ दिया सारांश ने, शेष रहा विस्तार।
इस संसार असार में, खोज पा सकें सार।।
खोज पा सकें सार, न साहस कोशिश कम हो।
जहर आप ले अमिय, बाँट दें सब प्रति सम हो।।
दे विवेक पा सकें, लक्ष्य तज नाहक होड़।
भूल न जाएँ पंथ, पकड़ प्रभु हाथ न छोड़।
८.१२.२०२४
०००
सॉनेट
शक्ति
आत्म चेतना परम शक्ति है
तंत्र शक्ति अर्जन की विधि है
मंत्र साधना सहज युक्ति है
यंत्र सुनिर्मित अक्षय निधि है
शक्ति न साध्य मात्र साधन है
शक्तिमान को जगत पूजता
कार्य-सिद्धि हित आराधन है
पंथ न कोई अन्य सूझता
शक्ति आत्म-परमात्म मिलाए
मिटा स्वार्थ सर्वार्थ लक्ष्य वर
श्वास-आस सह रास रचाए
इसकी टोपी उसके सिर न धर
शक्ति-भक्ति कर; मुक्ति-युक्ति कर
अनहद में लय कर अपना स्वर
संजीव
८-१२-२०२२
रॉयल डे कासा, गुवाहाटी
•••
सॉनेट
सच
*
अपनी कहे, न सुने और की।
कुर्सी बैठा अति का स्याना।
करुण कथा लिख रहा दौर की।।
घर-घर लाशें दे कोरोना।।
बौने कहते खुद को ऊँचा।
सागर को बतलाते मीठा।
गत पर थूक हो रहा नीचा।।
कुकुर चाटे दौना जूठा।।
गर्दभ बाघांबर धारण कर।
सीना ताने रेंक रहा है।
हर मुद्दे पर मुँह की खाकर।।
ऊँची-ऊँची फेंक रहा है।।
जिसने हाँ में हाँ न मिलाई।
उसकी समझो शामत आई।।
८-१२-२०२१
***
मुक्तिका
*
बैठ अँगना में ताकिए अंबर
भोर की हवा संग जी जाएँ
*
सूर्य-किरणों से किया याराना
क्या मिला तुमको कैसे बतलाएँ
*
गौर करिए दिख रही गौरैया
दूर हमसे न फिर ये हो पाएँ
*
काश कोविद बिना ही हम इंसां
खुद पे अंकुश लगा, सुधर जाएँ
*
साथ संजीव के उठा पुस्तक
पढ़ सकें, क्या मिला बता पाएँ
८-१२-२०२०
***
भारत की प्रमुख जनजातियाँ
आंध्र प्रदेश: चेन्चू, कोचा, गुड़ावा, जटापा, कोंडा डोरस, कोंडा कपूर, कोंडा रेड्डी, खोंड, सुगेलिस, लम्बाडिस, येलडिस, येरुकुलास, भील, गोंड, कोलम, प्रधान, बाल्मिक।
असम व नगालैंड: बोडो, डिमसा गारो, खासी, कुकी, मिजो, मिकिर, नगा, अबोर, डाफला, मिशमिस, अपतनिस, सिंधो, अंगामी।
झारखण्ड: संथाल, असुर, बैगा, बन्जारा, बिरहोर, गोंड, हो, खरिया, खोंड, मुंडा, कोरवा, भूमिज, मल पहाडिय़ा, सोरिया पहाडिय़ा, बिझिया, चेरू लोहरा, उरांव, खरवार, कोल, भील।
महाराष्ट्र: भील, गोंड, अगरिया, असुरा, भारिया, कोया, वर्ली, कोली, डुका बैगा, गडावास, कामर, खडिया, खोंडा, कोल, कोलम, कोर्कू, कोरबा, मुंडा, उरांव, प्रधान, बघरी।
पश्चिम बंगाल: होस, कोरा, मुंडा, उरांव, भूमिज, संथाल, गेरो, लेप्चा, असुर, बैगा, बंजारा, भील, गोंड, बिरहोर, खोंड, कोरबा, लोहरा।
हिमाचल प्रदेश: गद्दी, गुर्जर, लाहौल, लांबा, पंगवाला, किन्नौरी, बकरायल।
मणिपुर: कुकी, अंगामी, मिजो, पुरुम, सीमा।
मेघालय: खासी, जयन्तिया, गारो।
त्रिपुरा: लुशाई, माग, हलम, खशिया, भूटिया, मुंडा, संथाल, भील, जमनिया, रियांग, उचाई।
कश्मीर: गुर्जर।
गुजरात: कथोड़ी, सिद्दीस, कोलघा, कोटवलिया, पाधर, टोडिय़ा, बदाली, पटेलिया।
उत्तर प्रदेश: बुक्सा, थारू, माहगीर, शोर्का, खरवार, थारू, राजी, जॉनसारी।
उत्तरांचल: भोटिया, जौनसारी, राजी।
केरल: कडार, इरुला, मुथुवन, कनिक्कर, मलनकुरावन, मलरारायन, मलावेतन, मलायन, मन्नान, उल्लातन, यूराली, विशावन, अर्नादन, कहुर्नाकन, कोरागा, कोटा, कुरियियान,कुरुमान, पनियां, पुलायन, मल्लार, कुरुम्बा।
छत्तीसगढ़: कोरकू, भील, बैगा, गोंड, अगरिया, भारिया, कोरबा, कोल, उरांव, प्रधान, नगेशिया, हल्वा, भतरा, माडिया, सहरिया, कमार, कंवर।
तमिलनाडु: टोडा, कडार, इकला, कोटा, अडयान, अरनदान, कुट्टनायक, कोराग, कुरिचियान, मासेर, कुरुम्बा, कुरुमान, मुथुवान, पनियां, थुलया, मलयाली, इरावल्लन, कनिक्कर,मन्नान, उरासिल, विशावन, ईरुला।
कर्नाटक: गौडालू, हक्की, पिक्की, इरुगा, जेनु, कुरुव, मलाईकुड, भील, गोंड, टोडा, वर्ली, चेन्चू, कोया, अनार्दन, येरवा, होलेया, कोरमा।
उड़ीसा: बैगा, बंजारा, बड़होर, चेंचू, गड़ाबा, गोंड, होस, जटायु, जुआंग, खरिया, कोल, खोंड, कोया, उरांव, संथाल, सओरा, मुन्डुप्पतू।
पंजाब: गद्दी, स्वागंला, भोट।
राजस्थान: मीणा, भील, गरसिया, सहरिया, सांसी, दमोर, मेव, रावत, मेरात, कोली।
अंडमान-निकोबार द्वीप समूह: औंगी आरबा, उत्तरी सेन्टीनली, अंडमानी, निकोबारी, शोपन।
अरुणाचल प्रदेश: अबोर, अक्का, अपटामिस, बर्मास, डफला, गालोंग, गोम्बा, काम्पती, खोभा मिसमी, सिगंपो, सिरडुकपेन।
विश्व की प्रमुख जनजातियाँ
एस्किमों – एस्कीमों जनजाति उत्तरी अमेरिका के कनाड़ा, ग्रीनलैण्ड और साइबेरिया क्षेत्र में पाई जाती है।
यूकाधिर – यह साइबेरिया में रहने वाली जनजाति है। यह मंगोलाइड प्रजाति से संबंधित जनजाति है, इनकी आँखें आधी खुली होती है और रंग पीला होता है।
ऐनू – यह ‘जापान’ की जनजाति है।
बुशमैन – यह दक्षिण अफ्रीका और अफ्रीका के कालाहारी मरूस्थल में पाई जाने वाली जनजाति है।
अफरीदी – पाकिस्तान।
माओरी – न्यूजीलैण्ड, ऑस्ट्रेलिया।
मसाई – अफ्रीका के कीनिया में पाई जाने वाली जनजाति है।
जुलू – दक्षिण अफ्रीका के नेटाल प्रांत में।
बद्दू – अरब के मरूस्थल में पाई जाने वाली जनजाति है।
पिग्मी – कांगो बेसिन (अफ्रीका) !
पापुआ – न्यूगिनी।
रेड इण्डियन – दक्षिण अमेरिका।
लैप्स – फिनलैण्ड और स्काॅटलैण्ड।
खिरगीज – मध्य एषिया के स्टेपी क्षेत्र।
बोरो – अमेजन बेसिन।
बेद्दा – श्रीलंका।
सेमांग – मलेशिया।
माया – मेक्सिको।
फूलानी – अफ्रीका के नाइजीरिया में।
बांटू – दक्षिणी एवं मध्य अफ्रीका।
बोअर – दक्षिणी अफ्रीका। 
८.१२.२०१८
***
छंद सलिला :
माया छंद
*
छंद विधान: मात्रिक छंद, दो पद, चार चरण, सम पदांत,
पहला-चौथा चरण : गुरु गुरु लघु-गुरु गुरु लघु-लघु गुरु लघु-गुरु गुरु,
दूसरा तीसरा चरण : लघु गुरु लघु-गुरु गुरु लघु-लघु गुरु लघु-गुरु गुरु।
उदाहरण:
१. आपा न खोयें कठिनाइयों में, न हार जाएँ रुसवाइयों में
रुला न देना तनहाइयों में, बोला अबोला तुमने कहो क्यों?
२. नादानियों का करना न चर्चा, जमा न खोना कर व्यर्थ खर्चा
सही नहीं जो मत आजमाओ, पाखंडियों की करना न अर्चा
३. मौका मिला तो न उसे गँवाओ, मिले न मौक़ा हँस भूल जाओ
गिरो न हारो उठ जूझ जाओ, चौंके ज़माना बढ़ लक्ष्य पाओ
***
दोहा-दोहा शिव बसे
.
शिव न जोड़ते श्रेष्ठता, शिव न छोड़ते त्याज्य.
बिछा भूमि नभ ओढ़ते, शिव जीते वैराग्य.
.
शिव सत् के पर्याय हैं, तभी सती के नाथ.
अंग रमाते असुंदर, सुंदर धरते माथ.
.
शिव न असल तजते कभी, शिव न नकल के साथ.
शिव न भरोसे भाग्य के, शिव सच्चे जग-नाथ.
.
शिव नअशिव से दूर हैं, शिव न अशिव में लीन.
दंभ न दाता सा करें कभी न होते दीन.
.
शिव ही मंगलनाथ हैं शिव ही जंगलनाथ.
जंगल में मंगल करें, विष-अमृत ले साथ.
.
शिव सुरारि-असुरारि भी, शिव त्रिपुरारि अनंत.
शिव सचमुच कामरि हैं, शिव रति-काम सुकंत.
.
शिव माटी के पूत हैं, शिव माटी के दूत.
माटी-सुता शिवा वरें, शिव अपूत हो पूत.
.
शिव असार में सार हैं, शिव से है संसार.
सलिल शीश पर धारते, सलिल शीश पर धार.
.
शिव न साधना लीन हों, शिव न साधना-मुक्त.
शिव न बाह्य अन्तर्मुखी, शिव संयुक्त-विमुक्त.
८.१२.२०१७
...
मुक्तक
माँ
माँ की महिमा जग से न्यारी, ममता की फुलवारी
संतति-रक्षा हेतु बने पल भर में ही दोधारी
माता से नाता अक्षय जो पाले सुत बडभागी-
ईश्वर ने अवतारित हो माँ की आरती उतारी
नारी
नर से दो-दो मात्रा भारी, हुई हमेशा नारी
अबला कभी न इसे समझना, नारी नहीं बिचारी
माँ, बहिना, भाभी, सजनी, सासु, साली, सरहज भी
सखी न हो तो समझ जिंदगी तेरी सूखी क्यारी
*
पत्नि
पति की किस्मत लिखनेवाली पत्नि नहीं है हीन
भिक्षुक हो बारात लिए दर गए आप हो दीन
करी कृपा आ गयी अकेली हुई स्वामिनी आज
कद्र न की तो किस्मत लेगी तुझसे सब सुख छीन
*
दीप प्रज्वलन
शुभ कार्यों के पहले घर का अँगना लेना लीप
चौक पूर, हो विनत जलाना, नन्हा माटी-दीप
तम निशिचर का अंत करेगा अंतिम दम तक मौन
आत्म-दीप प्रज्वलित बन मोती, जीवन सीप
*
परोपकार
अपना हित साधन ही माना है सबने अधिकार
परहित हेतु बनें समिधा, कब हुआ हमें स्वीकार?
स्वार्थी क्यों सुर-असुर सरीखा मानव होता आज?
नर सभ्यता सिखाती मित्रों, करना पर उपकार
*
एकता
तिनका-तिनका जोड़ बनाते चिड़वा-चिड़िया नीड़
बिना एकता मानव होता बिन अनुशासन भीड़
रहे-एकता अनुशासन तो सेना सज जाती है-
देकर निज बलिदान हरे वह, जनगण कि नित पीड़
*
असली गहना
असली गहना सत्य न भूलो
धारण कर झट नभ को छू लो
सत्य न संग तो सुख न मिलेगा
भोग भोग कर व्यर्थ न फूलो
६.१२.२०१६
***

शनिवार, 9 मार्च 2024

मार्च ९, सॉनेट, नारी, भारत, माँ, सोरठा, लघुकथा, माली छंद, मुक्तक, होली, आलोक वर्मा, महिला दिवस , दोहा लेखन, मात्र विधान,

सलिल सृजन मार्च ९
*
सॉनेट
नारी
*
नारी! तूने साबित कर दिखलाया है,
जीत नहीं सकता है तुझको छल या बल,
कल से कल तक कल की कल तेरी कलकल,
वन अशोक में रहकर अडिग दिखाया है।  
नारी! तूने नर को पूर्ण बनाया है,
जननी, भगिनी, भाभी, अर्धांगिनी संबल,
रुष्ट रहे जीना मुश्किल कर दे किलकिल,
छाया-माया-काया शुभ सरमाया है। 
नारी! नर से दो मात्राएँ है भारी,
गलती से भी मत कहना इसको अबला, 
तबला बना बजाएगी यह तब तुमको। 
नारी! से ही विद्या-शक्ति मिले सारी, 
सबल तभी नर जब नारी होगी सबला,
प्रबला होकर प्रबल बनाएगी नर को। 
***
सॉनेट
सजग भारत
*
है सजग भारत मिलाकर आँख बातें कर रहा है,
ना झुकाता, ना चुराता आँख संकट देखकर यह,
चुनौती को दे चुनौती, जीतता नित लक्ष्य नव यह,
डराता है यह नहीं पर अब नहीं यह डर रहा है।
है सजग भारत जगत को छोड़ पीछे बढ़ रहा है,
कर रहा व्यवहार अपने हित हमेशा साधकर यह,
सुरक्षा-सुख-शांति सबकी सृष्टि हित आराधकर यह,
नए मानक आप अपने नित्य प्रति यह गढ़ रहा है।
सजग भारत दीन जन की गरीबी मिल मिटाता है,
मिटाता मतभेद, होकर एक, हरता है अँधेरा,
कर विकास प्रयास जन का बढ़ता है हौसला भी।
उद्यमी हो अधिक सक्षम, स्वप्न सुंदर दिखाता है,
दीप उन्नति के जलाकर उगाता है नव सवेरा,
कह रहा परिवार जग को और जग को घोंसला भी।
९.३.२०२४
***
सॉनेट
यूक्रेन
सत्य लिखेगा यह इतिहास।
हारा तिनके से तूफान।
धीरज इसका संबल खास।।
हर तिनका करता बलिदान।।
वह करता सब सत्यानाश।
धरती को करता शमशान।
अपराधी का करें विनाश।।
एक साथ मिल सब इंसान।।
भागें मत, संबल दें काश।
एक यही है शेष निदान।
गिरे पुतिन पर ही आकाश।।
यूक्रेनी हैं वीर महान।।
करते हैं हम उन्हें सलाम।
उनकी विपदा अपनी मान।।
९-३-२०२२
•••
आत्मकथ्य
मैं विवाह के पश्चात् प्राध्यापिका पत्नि को रोज कोलेज ले जाता-लाता था. फिर उन्हें लूना और स्कूटर चलाना सिखाया. बाद में जिद कर कार खरीदी तो खुद न चला कर उन्हें ही सिखवाई.शोध कार्य हेतु खूब प्रोत्साहित किया. सडक दुर्घटना के बाद मेरे ओपरेशन में उनहोंने और उन्हें कैंसर होने पर मैंने उनकी जी-जान से सेवा की. हर दंपति को अपने परिवेश और जरूरत के अनुसार एक-दुसरे से तालमेल बैठाना होता है. महिला दिवस मनानेवाली महिलायें घर पर बच्चों और बूढ़ों को नौकरानी के भरोसे कर जाती हैं तो देखकर बहुत बुरा लगता है.
***
कार्यशाला
राजीव गण / माली छंद
*
छंद-लक्षण: जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १८ मात्रा, यति ९ - ९
लक्षण छंद:
प्रति चरण मात्रा, अठारह रख लें
नौ-नौ पर रहे, यति यह परख लें
राजीव महके, परिंदा चहके
माली-भ्रमर सँग, तितली निरख लें
उदाहरण:
१. आ गयी होली, खेल हमजोली
भिगा दूँ चोली, लजा मत भोली
भरी पिचकारी, यूँ न दे गारी,
फ़िज़ा है न्यारी, मान जा प्यारी
खा रही टोली, भाँग की गोली
मार मत बोली,व्यंग्य में घोली
तू नहीं हारी, बिरज की नारी
हुलस मतवारी, डरे बनवारी
पोल क्यों खोली?, लगा ले रोली
प्रीती कब तोली, लग गले भोली
२. कर नमन हर को, वर उमा वर को
जीतकर डर को, ले उठा सर को
साध ले सुर को, छिपा ले गुर को
बचा ले घर को, दरीचे-दर को
३. सच को न तजिए, श्री राम भजिए
सदग्रन्थ पढ़िए, मत पंथ तजिए
पग को निरखिए, पथ भी परखिए
कोशिशें करिए, मंज़िलें वरिये
९-३-२०२०
***
होली के दोहे
*
होली हो ली हो रही, होली हो ली हर्ष
हा हा ही ही में सलिल, है सबका उत्कर्ष
होली = पर्व, हो चुकी, पवित्र, लिए हो
*
रंग रंग के रंग का, भले उतरता रंग
प्रेम रंग यदि चढ़ गया कभी न उतरे रंग
*
पड़ा भंग में रंग जब, हुआ रंग में भंग
रंग बदलते देखता, रंग रंग को दंग
*
शब्द-शब्द पर मल रहा, अर्थ अबीर गुलाल
अर्थ-अनर्थ न हो कहीं, मन में करे ख़याल
*
पिच् कारी दीवार पर, पिचकारी दी मार
जीत गई झट गंदगी, गई सफाई हार
*
दिखा सफाई हाथ की, कहें उठाकर माथ
देश साफ़ कर रहे हैं, बँटा रहे चुप हाथ
*
अनुशासन जन में रहे, शासन हो उद्दंड
दु:शासन तोड़े नियम, बना न मिलता दंड
*
अलंकार चर्चा न कर, रह जाते नर मौन
नारी सुन माँगे अगर, जान बचाए कौन?
*
गोरस मधुरस काव्य रस, नीरस नहीं सराह
करतल ध्वनि कर सरस की, करें सभी जन वाह
*
जला गंदगी स्वच्छ रख, मनु तन-मन-संसार
मत तन मन रख स्वच्छ तू, हो आसार में सार
*
आराधे राधे; कहे आ राधे! घनश्याम
वाम न होकर वाम हो, क्यों मुझसे हो श्याम
होली २०१८
***
दोहा लेखन विधान
१. दोहा द्विपदिक छंद है। दोहा में दो पंक्तियाँ (पद) होती हैं।
२. हर पद में दो चरण होते हैं।
३. विषम (पहला, तीसरा) चरण में १३-१३ तथा सम (दूसरा, चौथा) चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं।
४. तेरह मात्रिक पहले तथा तीसरे चरण के आरंभ में एक शब्द में जगण (लघु गुरु लघु) वर्जित होता है।
५. विषम चरणों की ग्यारहवीं मात्रा लघु हो तो लय भंग होने की संभावना कम हो जाती है।
६. सम चरणों के अंत में गुरु लघु मात्राएँ आवश्यक हैं।
७. हिंदी में खाय, मुस्काय, आत, भात, डारि, मुस्कानि जैसे देशज क्रिया-रूपों का उपयोग न करें।
८. दोहा मुक्तक छंद है। कथ्य (जो बात कहना चाहें वह) एक दोहे में पूर्ण हो जाना चाहिए।
९. श्रेष्ठ दोहे में लाक्षणिकता, संक्षिप्तता, मार्मिकता (मर्मबेधकता), आलंकारिकता, स्पष्टता, पूर्णता तथा सरसता होना चाहिए।
१०. दोहे में संयोजक शब्दों और, तथा, एवं आदि का प्रयोग यथा संभव न करें। औ' वर्जित 'अरु' स्वीकार्य।
११. दोहे में कोई भी शब्द अनावश्यक न हो। हर शब्द ऐसा हो जिसके निकालने या बदलने पर दोहा न कहा जा सके।
१२. दोहे में कारक (ने, को, से, के लिए, का, के, की, में, पर आदि)का प्रयोग कम से कम हो।
१३. दोहा में विराम चिन्हों का प्रयोग यथास्थान अवश्य करें।
१४. दोहा सम तुकान्ती छंद है। सम चरण के अंत में समान तुक आवश्यक है।
१५. दोहा में लय का महत्वपूर्ण स्थान है। लय के बिना दोहा नहीं कहा जा सकता।
*
मात्रा गणना नियम
१. किसी ध्वनि-खंड को बोलने में लगनेवाले समय के आधार पर मात्रा गिनी जाती है।
२. कम समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की एक तथा अधिक समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की दो मात्राएँ गिनी जाती हैंं।
३. अ, इ, उ, ऋ तथा इन मात्राओं से युक्त वर्ण की एक मात्रा गिनें। उदाहरण- अब = ११ = २, इस = ११ = २, उधर = १११ = ३, ऋषि = ११= २, उऋण १११ = ३ आदि।
४. शेष वर्णों की दो-दो मात्रा गिनें। जैसे- आम = २१ = ३, काकी = २२ = ४, फूले २२ = ४, कैकेई = २२२ = ६, कोकिला २१२ = ५, और २१ = ३आदि।
५. शब्द के आरंभ में आधा या संयुक्त अक्षर हो तो उसका कोई प्रभाव नहीं होगा। जैसे गृह = ११ = २, प्रिया = १२ =३ आदि।
६. शब्द के मध्य में आधा अक्षर हो तो उसे पहले के अक्षर के साथ गिनें। जैसे- क्षमा १+२, वक्ष २+१, विप्र २+१, उक्त २+१, प्रयुक्त = १२१ = ४ आदि।
७. रेफ को आधे अक्षर की तरह गिनें। बर्रैया २+२+२आदि।
८. हिंदी दोहाकार हिंदी व्याकरण नियमों का पालन करें। दोहा में वर्णिक छंद की तरह लघु को गुरु या गुरु को लघु पढ़ने की छूट नहीं होती।
९. अपवाद स्वरूप कुछ शब्दों के मध्य में आनेवाला आधा अक्षर बादवाले अक्षर के साथ गिना जाता है। जैसे- कन्हैया = क+न्है+या = १२२ = ५आदि।
१०. अनुस्वर (आधे म या आधे न के उच्चारण वाले शब्द) के पहले लघु वर्ण हो तो गुरु हो जाता है, पहले गुरु होता तो कोई अंतर नहीं होता। यथा- अंश = अन्श = अं+श = २१ = ३. कुंभ = कुम्भ = २१ = ३, झंडा = झन्डा = झण्डा = २२ = ४आदि।
११. अनुनासिक (चंद्र बिंदी) से मात्रा में कोई अंतर नहीं होता। धँस = ११ = २आदि। हँस = ११ =२, हंस = २१ = ३ आदि।
मात्रा गणना करते समय शब्द का उच्चारण करने से लघु-गुरु निर्धारण में सुविधा होती है।
***
गीत
महिला दिवस
*
एक दिवस क्या
माँ ने हर पल, हर दिन
महिला दिवस मनाया।
*
अलस सवेरे उठी पिता सँग
स्नान-ध्यान कर भोग लगाया।
खुश लड्डू गोपाल हुए तो
चाय बनाकर, हमें उठाया।
चूड़ी खनकी, पायल बाजी
गरमागरम रोटियाँ फूली
खिला, आप खा, कंडे थापे
पड़ोसिनों में रंग जमाया।
विद्यालय से हम,
कार्यालय से
जब वापिस हुए पिताजी
माँ ने भोजन गरम कराया।
*
ज्वार-बाजरा-बिर्रा, मक्का
चाहे जो रोटी बनवा लो।
पापड़, बड़ी, अचार, मुरब्बा
माँ से जो चाहे डलवा लो।
कपड़े सिल दे, करे कढ़ाई,
बाटी-भर्ता, गुझिया, लड्डू
माँ के हाथों में अमृत था
पचता सब, जितना जी खा लो।
माथे पर
नित सूर्य सजाकर
अधरों पर
मृदु हास रचाया।
*
क्रोध पिता का, जिद बच्चों की
गटक हलाहल, देती अमृत।
विपदाओं में राहत होती
बीमारी में माँ थी राहत।
अन्नपूर्णा कम साधन में
ज्यादा काम साध लेती थी
चाहे जितने अतिथि पधारें
सबका स्वागत करती झटपट।
नर क्या,
ईश्वर को भी
माँ ने
सोंठ-हरीरा भोग लगाया।
*
आँचल-पल्लू कभी न ढलका
मेंहदी और महावर के सँग।
माँ के अधरों पर फबता था
बंगला पानों का कत्था रँग।
गली-मोहल्ले के हर घर में
बहुओं को मिलती थी शिक्षा
मैंनपुरी वाली से सीखो
तनक गिरस्थी के कुछ रँग-ढंग।
कर्तव्यों की
चिता जलाकर
अधिकारों को
नहीं भुनाया।
***
पुस्तक सलिला:
कोई रोता है मेरे भीतर : तब कहता कविता व्याकुल होकर
*
[पुस्तक विवरण- कोई रोता है मेरे भीतर, कविता संग्रह, आलोक वर्मा, वर्ष २०१५, ISBN ९७८-९३-८५९४२-०७-५ आकार डिमाई, आवरण, बहुरंगी, पेपरबैक, पृष्ठ १२०, मूल्य १००/-, बोधि प्रकाशन ऍफ़ ७७ सेक्टर ९, पथ ११, करतारपुरा औद्योगिक क्षेत्र, बाईस गोदाम जयपुर ३०२००६, ०१४१ २५०३९८९, bodhiprakashan@gmail.com, कवि संपर्क ७१ विवेकानंद नगर, रायपुर ४९२००१, ९८२६६ ७४६१४, lokdhvani@gmail.com]
*
कविता और ज़िन्दगी का नाता सूरज और धूप का सा है। सूरज ऊगे या डूबे, धूप साथ होती है। इसी तरह मनुष्य का मन सुख अनुभव करे या दुख अभिव्यक्ति कविता के माध्यम से हो होती है। मनुष्येतर पशु-पक्षी भी अपनी अनुभूतियों को ध्वनि के माध्यम से व्यक्त करते हैं। ऐसी ही एक ध्वनि आदिकवि वाल्मीकि की प्रथम काव्याभिव्यक्ति का कारण बनी। कहा जाता हैं ग़ज़ल की उत्पत्ति भी हिरणी के आर्तनाद से हुई। आलोक जी के मन का क्रौंच पक्षी या हिरण जब-जब आदमी को त्रस्त होते देखता है, जब-जब विसंगतियों से दो-चार होता है, विडम्बनाओं को पुरअसर होते देखता तब-तब अपनी संवेदना को शब्द में ढाल कर प्रस्तुत कर देता है।
कोई रोता है मेरे भीतर ५८ वर्षीय कवि आलोक वर्मा की ६१ यथार्थपरक कविताओं का पठनीय संग्रह है। इन कविताओं का वैशिष्ट्य परिवेश को मूर्तित कर पाना है। पाठक जैसे-जैसे कविता पढ़ता जाता है उसके मानस में संबंधित व्यक्ति, परिस्थिति और परिवेश अंकित होता जाता है। पाठक कवि की अभिव्यक्ति से जुड़ पाता है। 'लोग देखेंगे' शीर्षक कविता में कवि परोक्षत: इंगित करता है की वह कविता को कहाँ से ग्रहण करता है-
शायद कभी कविता आएगी / हमारे पास
जब हम भाग रहे होंगे सड़कों पर / और लिखी नहीं जाएगी
शायद कभी कविता आएगी / हमारे पास
जब हमारे हाथों में / दोस्त का हाथ होगा
या हम अकेले / तेज बुखार में तप रहे होंगे / और लिखी नहीं जाएगी
दैनंदिन जीवन की सामान्य सी प्रतीत होती परिस्थितियाँ, घटनाएँ और व्यक्ति ही आलोक जी की कविताओं का उत्स हैं। इसलिए इन कविताओं में आम आदमी का जीवन स्पंदित होता है। अनवर मियाँ, बस्तर २०१०, फुटपाथ पर, हम साधारण, यह इस पृथ्वी का नन्हा है आदि कविताओं में यह आदमी विविध स्थितियों से दो-चार होता पर अपनी आशा नहीं छोड़ता। यह आशा उसे मौत के मुँह में भी जिन्दा रहने, लड़ने और जितने का हौसला देती है। 'सब ठीक हो जायेगा' शीर्षक कविता आम भारतीय को शब्दित करती है -
सुदूर अबूझमाड़ का / अनपढ़ गरीब बूढ़ा
बैठा अकेला महुआ के घने पेड़ के नीचे
बुदबुदाता है धीरे-धीरे / सब ठीक हो जायेगा एक दिन
यह आशा काम ढूंढने शहर के अँधेरे फुथपाथ पर भटके, अस्पताल में कराहे या झुग्गी में पिटे, कैसा भी भयावह समय हो कभी नहीं मरती।
समाज में जो घटता है उस देखता-भोगता तो हर शख्स है पर हर शख्स कवि नहीं हो सकता। कवि होने के लिए आँख और कान होना मात्र पर्याप्त नहीं। उनका खुला होना जरूरी है-
जिनके पास खुली आँखें हैं / और जो वाकई देखते हैं....
... जिनके पास कान हैं / और जो वाकई सुनते हैं
सिर्फ वे ही सुन सकते हैं / इस अथाह घुप्प अँधेरे में
अनवरत उभरती-डूबती / यह रोने की आर्त पुकार।
'एक कप चाय' को हर आदमी जीता है पर कविता में ढाल नहीं पाता-
अक्सर सुबह तुम नींद में डूबी होगी / और मैं बनाऊंगा चाय
सुनते ही मेरी आवाज़ / उठोगी तुम मुस्कुराते हुए
देखते ही चाय कहोगी / 'फिर बना दी चाय'
करते कुछ बातें / हम लेंगे धीरे-धीरे / चाय की चुस्कियाँ
घुला रहेगा प्रेम सदा / इस जीवन में इसी तरह
दूध में शक्कर सा / और छिपा रहेगा
फिर झलकेगा अनायास कभी भी
धूमकेतु सा चमकते और मुझे जिलाते
कि तुम्हें देखने मुस्कुराते / मैं बनाना चाहूँगा / ज़िंदगी भर यह चाय
यूं देखे तो / कुछ भी नहीं है
पर सोचें तो / बहुत कुछ है / यह एक कप चाय
अनुभूति को पकड़ने और अभिव्यक्त करने की यह सादगी, सरलता, अकृत्रिमता और अपनापन आलोक जी की कविताओं की पहचान हैं। इन्हें पढ़ना मात्र पर्याप्त नहीं है। इनमें डूबना पाठक को जिए क्षणों को जीना सिखाता है। जीकर भी न जिए गए क्षणों को उद्घाटित कर फिर जीने की लालसा उत्पन्न करती ये कवितायें संवेदनशील मनुष्य की प्रतीति करती है जो आज के अस्त-वस्त-संत्रस्त यांत्रिक-भौतिक युग की पहली जरूरत है।
***
मुक्तिका:
*
कर्तव्यों की बात न करिए, नारी को अधिकार चाहिए
वहम अहम् का हावी उस पर, आज न घर-परिवार चाहिए
*
मेरी देह सिर्फ मेरी है, जब जिसको चाहूँ दिखलाऊँ
मर्यादा की बात न करना, अब मुझको बाज़ार चाहिए
*
आदि शक्ति-शारदा-रमा हूँ, शिक्षित खूब कमाती भी हूँ
नित्य नये साथी चुन सकती, बाँहें बन्दनवार चाहिए
*
बच्चे कर क्यों फिगर बिगाडूँ?, मार्किट में वैल्यू कम होती
गोद लिये आया पालेगी, पति ही जिम्मेदार चाहिए
*
घोषित एक अघोषित बाकी,सारे दिवस सिर्फ नारी के
सब कानून उसी के रक्षक, नर बस चौकीदार चाहिए
*
नर बिन रह सकती है दावा, नर चाकर है करे चाकरी
नाचे नाच अँगुलियों पर नित, वह पति औ' परिवार चाहिए
*
किसका बीज न पूछे कोई, फसल सिर्फ धरती की मानो
हो किसान तो पालो-पोसो, बस इतना स्वीकार चाहिए
***
मुक्तक:
मुक्त देश, मुक्त पवन
मुक्त धरा, मुक्त गगन
मुक्त बने मानव मन
द्वेष- भाव करे दहन
*
होली तो होली है, होनी को होना है
शंका-अरि बनना ही शंकर सम होना है
श्रद्धा-विश्वास ही गौरी सह गौरा है
चेत न मन, अब तुझको चेतन ही होना है
*
मुक्त कथ्य, भाव,बिम्ब,रस प्रतीक चुन ले रे!
शब्दों के धागे से कबिरा सम बुन ले रे!
अक्षर भी क्षर से ही व्यक्त सदा होता है
देना ही पाना है, 'सलिल' सत्य गुण ले रे!!
***
लघुकथा:
गरम आँसू
*
टप टप टप
चेहरे पर गिरती अश्रु-बूँदों से उसकी नीद खुल गयी, सास को चुपाते हुए कारण पूछा तो उसने कहा- 'बहुरिया! मोय लला से माफी दिला दे रे!मैंने बापे सक करो. परोस का चुन्ना कहत हतो कि लला की आँखें कौनौ से लर गयीं, तुम नें मानीं मने मोरे मन में संका को बीज पर गओ. सिव जी के दरसन खों गई रई तो पंडत जी कैत रए बिस्वास ही फल देत है, संका के दुसमन हैं संकर जी. मोरी सगरी पूजा अकारत भई'
''नई मइया! ऐसो नें कर, असगुन होत है. तैं अपने मोंडा खों समझत है. मन में फिकर हती सो संका बन खें सामने आ गई. भली भई, मो खों असीस दे सुहाग सलामत रहे.''
एक दूसरे की बाँहों में लिपटी सास-बहू में माँ-बेटी को पाकर मुस्कुरा रहे थे गरम आँसू।
९-३-२०१६
***
सोरठा सलिला
भजन-कीर्तन नित्य, करिए वंदना-प्रार्थना।
रीझे ईश अनित्य, सफल साधना हो 'सलिल'।
*
हों कृपालु जगदीश , शांति-राज सुख-चैन हो।
अंतर्मन पृथ्वीश, सत्य सहाय सदा रहे।।
*
ऐसे ही हों कर्म, गुप्त चित्र निर्मल रहे।
निभा 'सलिल' निज धर्म, ज्यों की त्यों चादर रखे।।
९-३-२०१०
***