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शनिवार, 26 सितंबर 2009

चिंतन कण : अंतिम सत्य -मृदुल कीर्ति

चिंतन कण :




अंतिम सत्य



मृदुल कीर्ति


जगत को सत मूरख कब जाने .

दर-दर फिरत कटोरा ले के, मांगत नेह के दाने,

बिनु बदले उपकारी साईं, ताहि नहीं पहिचाने.

आपुनि-आपुनि कहत अघायो, वे सब अब बेगाने.

निज करमन की बाँध गठरिया, घर चल अब दीवाने.

रैन बसेरा, जगत घनेरा, डेरा को घर जाने.

जब बिनु पंख , हंस उड़ जावे, अपने साईं ठिकाने.

पात-पात में लिखा संदेशा , केवल पढ़ही सयाने.

आज बसन्ती, काल पतझरी, अगले पल वीराने.

बहुत जनम धरि जनम अनेका, जनम-जनम भटकाने.

मानुष तन धरि, ज्ञान सहारे, अपनों घर पहिचाने.

विनत

मृदुल